राष्ट्रीय रक्षा अकादमी : जिसने दिए हैं देश को कई जांबाज़ हीरो

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी : जिसने दिए हैं देश को कई जांबाज़ हीरो

महाराष्ट्र के पुणे शहर की ख़ूबसूरत वादियों में, आधुनिक संस्कृति और शैक्षणिक संस्थानों के बीच एक संस्थान बसा हुआ है। इस संस्थान ने देश को सेना के तीनों अंगों के लिए बेहतरीन सैनिक अधिकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहीं से छात्र अपनी पसंद के अनुसार उच्च सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। पुणे के खडकवासला में स्थित इस संस्थान को नैशनल डिफ़ेंस एकेडमी यानी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी कहते हैं।

भारत में सैन्य अधिकारियों को दो तरह की ट्रेनिंग मिलती है। या तो वे 16-19 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाख़िला लेते हैं, और वहां से फिर वे भारतीय सैन्य अकादमी (देहरादून, उत्तराखंड), भारतीय नौसेना अकादमी (एझिमाला, केरल) या फिर वायु सेना अकादमी (दुंडिगल, तेलंगाना) चले जाते हैं।इसके अलवा वह चाहें तो अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी करके सैन्य प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों में दाख़िला ले सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति थोड़े समय के लिए एक अधिकारी के रूप में सेवा करना चाहता है, तो वो सैन्य प्रशिक्षण के लिए चेन्नई में अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी में भी दाख़िला ले सकता है। कम ही लोग जानते हैं, कि एनडीए की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान हुई थी। लेकिन इसके पहले भारतीय सैनिकों से संबंधित अवधारणा और व्यवस्था में कई बदलाव हुए थे।

राष्ट्रीय सेवा अकादमी का औपचारिक चिन्ह | विकी कॉमन्स

एक वो भी समय था, जब इस संस्थान को कोई ख़ास एहमियत नहीं दी जाती थी। यहां ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए निचले स्तर के सैनिकों को ही ट्रेनिंग दी जाती थी। 20वीं शताब्दी के आते आते प्रभावशाली या समृद्ध भारतीय परिवारों के गिने चुने लोगों को ही इम्पीरियल कैडेट कोर में ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सैनिकों का नेतृत्व करने का मौक़ा मिलता था। लेकिन पहले विश्व युद्ध (1914-1919) के बाद पूरा परिदृश्य बदल गया। एक तरफ़ जहां आज़ादी का संधर्ष ज़ोर पकड़ रहा था, वहीं इस दौरान भारतीयों को भी मैदान-ए-जंग में अपनी बहादुरी साबित करने के मौक़े मिले। इस स्थिति ने अंग्रेजों को, भारतीय सैनिकों के बारे में अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया। उसी के बाद अंग्रेज़ों ने भारतीयों की ट्रेनिंग के लिए सैन्य प्रतिष्ठान स्थापित करने का फ़ैसला किया। इस सिलसिले की शुरुआत सन 1922 में, प्रिंस ऑफ़ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज की स्थापना से साथ हुई। वही कॉलेज बाद में राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज बना। इसके बाद सन 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी बनी। शहीद भारतीय सैनिकों  की याद में,सन 1931 में, दिल्ली में एक स्मारक बनाया गया था जिसे इंडिया गेट के नाम से जाना जाता है।

इंडिया गेट | लेखक

दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945) शुरु होने तक भारतीयों ने वायु सेना और नौसेना में ख़ुद को स्थापित कर लिया था। लेकिन उन्हें इसकी ट्रेनिंग इंग्लैंड में दी जाती थी। युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद, युद्ध जैसी स्थिति से निबटने के लिए, एक मज़बूत सेना की ज़रूरत महसूस की गई। इसके लिए सेना के तीनों अंगों को, एक सम्पूर्ण यूनिट में तब्दील करने की योजना तैयार की गई। सन 1941 में  युद्ध के दौरान सूडान को आज़ाद कराने में भारतीय सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान रहा था। दिलचस्प बात यह है, कि उन शहीद सैनिकों की स्मृति में  सूडान सरकार ने युद्ध स्मारक बनाने के लिए भारत के वायसराय को एक लाख पाउंड्स (आज के समय में 92 लाख रुपये से अधिक) दिए थे। इसी पैसे से एनडीए(नैशनल डिफ़ेंस एकाडमी) बनाई गई थी, जिसका प्रशासनिक मुख्यालय सूडान ब्लॉक कहलाता है!

दूसरा विश्व युद्ध अपने अंतिम चरण में था। 2 मई, 1945 को, भारत के कमांडर-इन-चीफ, फ़ील्ड मार्शल सर क्लाउड जे औचिनलेक के नेतृत्व में, एक समिति ने सैन्य अकादमी की स्थापना के लिए एक योजना तैयार करना शुरू कर दी थी। जिसका मक़सद थल सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए अधिकारियों को ट्रेनिंग देना था। इस योजना में दुनिया भर में ऐसे सभी संस्थानों की विशेषताओं को ध्यान में रखा गया। इसके पीछे युनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री अकादमी एक प्रेरणा थी, लेकिन वहां केवल थल सेना और वायु सेना के अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती थी।

इस समिति के अन्य सदस्य, रियासतों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी संगठनों से थे। दिलचस्प बात यह है, कि समिति की बैठकों में भारत के भावी प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी शामिल हुए थे। समिति की बैठक के बाद  यह फ़ैसला लिया गया कि केवल सेना और वायु सेना के कैडेटों की ट्रेनिंग, अमेरिकी प्रणाली से अलग होगी। नई भारतीय अकादमी में, नौसेना सहित सेना के तीनों अंगों के कैडेटों को एक साथ ट्रेनिंग दी जाएगी। इससे पहले, इस तरह की ट्रेनिंग दुनिया में कहीं नहीं होती थी।

राष्ट्रीय सैन्य अकादमी के पासिंग आउट परेड में शरीक होते कैडेट | विकी कॉमन्स

सन 1947 में भारत की आज़ादी के बाद,  शुरुआत की  देहरादून में इंडियन मिलिटेरी एकेडमी (भारतीय सैन्य अकादमी) का नाम बदलकर आर्मड फ़ोर्सेस एकेडमी (सशस्त्र बल अकादमी) कर दिया गया । इसकी दो शाखाएं थीं, “इंटर-सर्विस विंग” (जिसे बाद में संयुक्त सेवा विंग के रूप में जाना गया) और “मिलिट्री विंग”। एक जनवरी,सन 1949 को वर्तमान क्लेमेंट टाउन सैन्य छावनी में संयुक्त सेवा विंग में पाठ्यक्रम शुरू हुआ। ज्वाइंट सर्विसेज़ में दो साल की ट्रेनिंग के बाद, सेना के कैडेट दो साल के पूर्व-कमीशन ट्रेनिंग के लिए सैन्य विंग में चले गए, जबकि नौसेना और वायु सेना के कैडेटों को उच्च प्रशिक्षण के लिए इंग्लैंड में डार्टमाउथ और क्रैनवेल भेज दिया गया।

सन 1949 में सैन्य अकादमी के लिए एक बड़े स्थान की आवश्यकता महसूस की गई। इसके लिए पंजाब से लेकर रांची तक के विकल्पों पर विचार किया गया। औचिनलेक ने व्यक्तिगत रूप से कुछ सुझाए गए स्थानों का दौरा भी किया, जिनमें वे भी शामिल थे, जो उन्हें उपयुक्त लगते थे। इस तरह पुणे के पास खड़कवासला को, सैन्य अकादमी की स्थापना के लिए चुना गया। यह स्थान भौगोलिक रूप से सैन्य प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त था। यह जगह अरब सागर से नज़दीक थी। फिर यहां एक झील (खड़कवासला) थी। इसके ठीक पीछे सिंहगढ़ क़िला भी था। इन्हीं वजहों से ये अकादमी के लिए बेहतर स्थान माना गया। बहुत कम लोग जानते हैं, कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, इसका इस्तेमाल मित्र-देशों की सेना के लिए युद्ध स्कूल के रूप में किया जाता था!

1999 में राष्ट्रीय सेवा अकादमी के पचास वर्ष पूरा करने के उपलक्ष्य पर भारत सरकार द्वारा जारी किया गया डाक टिकट | विकी कॉमन्स

अकादमी और इससे बॉम्बे राज्य (अब महाराष्ट्र) को होने वाले फ़ायदों को समझने के बाद बॉम्बे के तत्कालीन मुख्यमंत्री बालासाहेब खेर ने अकादमी समिति को 8,022 एकड़ भूमि दान कर दी थी। पहले ट्रेनिंग की अवधि चार साल रखी गई थी लेकिन बाद में, अवधि को घटाकर तीन साल कर दिया गया। यहां  प्रवेश की उम्र 16 और 19 के बीच थी। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक थी और दाख़िला चयन बोर्ड द्वारा आयोजित एक परीक्षा और एक चिकित्सा जांच के बाद दिया जाता था। यह फ़ैसला किया गया था, कि कैडेटों को केवल योग्यता के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा न कि आरक्षण के आधार पर। ये भी फ़ैसला किया गया, कि उनका ख़र्च सरकार वहन करेगी और ट्रेनिंग समाप्त करने के बाद वे विशेष ट्रेनिंग के लिए अपने संबंधित सेवा प्रशिक्षण संस्थानों में जाएंगे। सेना के तीन अंगों- थल सेना, नौसेना और वायु सेना में कमीशन रैंक में प्रवेश का मुख्य मार्ग यह था।

एक ख़ास बात यह भी है, कि यहां सैनिक छात्रों को अंग्रेज़ी, इंजीनियरिंग ड्राइंग और भौतिक-शास्त्र से लेकर सामाजिक विज्ञान जैसे कई विषय पढ़ाए जाते हैं। ऐसी शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य उनके ज्ञान को बढ़ाना और उन्हें भविष्य में आने वाली समस्याओं को समझने और उनसे निपटने में सक्षम बनाना है। सशत्र बल में आधुनिक हथियार-प्रणालियों को समझने के लिए उन्हें विज्ञान विषय में ट्रेनिंग दी जाती है। यहां सेना के तीनों अंगों के सैनिक-छात्र एक साथ रहकर ट्रेनिंग लेते हैं, ताकि आगे चलकर जब ये सैनिक अधिकारी बनें, तो इनमें दोस्ताना संबंध रहें। इससे उन्हें न सिर्फ़ अपनी बल्कि अन्य संगठन की क्षमताओं और कमियों को समझने में मदद मिलती है। इस तरह सेना के तीनों अंग मिलकर एक सैन्य-बल के रूप में काम करते हैं।

ऑपरेशन ‘बदली’  मिशन के तहत  प्रशिक्षण संस्थान को देहरादून से खड़कवासला में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया कमांडेंट, मेजर जनरल ई हबीबुल्लाह की देखरेख में शुरू हुई। इस संस्था की आधारशिला 6 अक्टूबर,सन 1949 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों से खड़कवासला में रखी गई थी। इस तरह 7 दिसंबर,सन 1954 को नैशनल डिफ़ेंस एकेडेमी (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) की स्थापना की शुरुआत हुई और 16 जनवरी,सन 1955 को अकादमी का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया गया।सन 1974 में दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू) सैन्य रक्षा-पाठ्यक्रम तैयार करने और इस विषय में सैन्य-छात्रों को बीएससी की डिग्री प्रदान करने वाला पहला शिक्षा संस्थान बना।

राष्ट्रीय सेवा अकादमी में सूडान ब्लॉक समेत अशोक स्तम्भ | विकी कॉमन्स

समय के साथ वायु सेना के कैडेटों के उच्च सैन्य प्रशिक्षण के लिए  सन 1969 में दुंडीगल (तेलंगाना) में वायु सेना अकादमी की स्थापना की गई। उसी वर्ष, नौसेना कैडेटों के लिए कोच्चि में एक नौसेना अकादमी की स्थापना की गई  जिसे बाद में,सन 2009 में कन्नूर ज़िले के एझिमाला में स्थानांतरित कर दिया गया।

अपने 67 वर्षों के इतिहास में, एनडीए ने कुछ बेहतरीन भारतीय सैन्य अधिकारी पैदा किए जिन्होंने न सिर्फ़ सेवा के दौरान बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी अपने पेशे की ऊंचाइयों को छुआ। कम ही लोग जानते हैं कि इस संस्था के 90वें कोर्स ने चार ऐसे अधिकारी दिए जिन्होंने  कारगिल युद्ध (1999) में अपना नाम रौशन किया। ये हैं- लेफ़्टिनेंट मनोज पांडे, लेफ़्टिनेंट, हनीफ़ उद्दीन, लेफ़्टिनेंट अनुज नय्यर और कैप्टन केसी धाराशिवकर! 26/11 मुंबई हमलों के हीरो के नाम से मशहूर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन एनडीए के 94वें कोर्स से थे!

सन 2022 में महिला कैडेटों को शामिल करने के साथ ही एनडीए के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। आज  यह उन प्राथमिक संस्थानों में से एक है, जो युवाओं को देश के प्रति कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करता है।

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