6 मार्च, सन 1508 को काबुल में मुग़ल बादशाह हुमायूँ की पैदाइश हुई। वो बादशाह जिसने सारी ज़िंदगी संघर्ष किया। बाबर ने वफ़ात से पहले अपनी सल्तनत अपने बेटों में तक़सीम कर दी थी। काबुल और लाहौर हुमायूँ के भाई कामरान मिर्ज़ा के हिस्से में आया जबकि सबसे मुश्किल जगह दिल्ली हमायूँ के हिस्से में आयी, जहां शेर शाह सूरी ने उसे जल्दी ही सत्ता से बेदख़ल कर दिया।
हुमायूं को उस वक़्त हिंदुस्तान के सबसे ताक़तवर बादशाह शेर शाह सूरी से जंग लड़नी पड़ी थी और 26 जून, सन 1539 में शेरशाह ने चौसा की जंग में, एक साल बाद फिर सन 1540 में बिलग्राम की जंग में शेरशाह के हाथों हार झेलनी पड़ी। बिलग्राम की जंग जीतने के बाद शेरशाह ने हुमायूं को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। दिल्ली से हुमायुं को बेदख़ल करने में राजा राव मालदेव राठौर ने शेरशाह सूरी का साथ दिया था।
दिल्ली छोड़ने के बाद सिंध अमरकोट रियासत के राजा अमर सिंह ने हुमायूं का साथ दिया। अकबर की पैदाइश का वक़्त था। अकबर की मां हमीदा बेगम कुछ दिन अमरकोट में ही ठहरीं इसी राजपूत रियासत में अकबर की पैदाइश हुई।
अकबर की पैदाइश के बाद हुमायूँ ने ईरान के बादशाह की मदद से काबुल-कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को दोबारा फ़तह किया। हुमायूं ने सन 1555 में शेरशाह के उत्तराधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली-आगरा फ़तह कर लिया। पर अफ़सोस ज़्यादा दिन शासन नहीं कर सका। हुमायूं ने सन 1556 में, 47 साल की उम्र में मृत्यु हो गयी। सन 1556 में उनकी मृत्यु के वक़्त, मुग़ल सल्तनत तक़रीबन दस लाख किलोमीटर तक फैला चुकी थी जिसे मुग़ल बादशाह अकबर ने और आगे बढ़ाया।
हुमायूं का अध्ययन प्रेम और उसके पुस्तकालय का परिचय
मुग़ल बादशाह हुमायूं एक महान विद्वान एवं वैज्ञानिक था। वह अध्ययन एवं खोज (अनुसंधान) में गहन रुचि रखता था। बादशाह हुमायूं का पुस्तक-प्रेम जगज़ाहिर था। अपने पुस्तक-प्रेम के कारण अच्छी पुस्तकें हमेशा हुमायूं के साथ रहती थीं।
“आईन-ए-अकबरी” एवं “अकबरनामा” के लेखक अबुल फ़ज़ल लिखते हैं- “पुस्तकें हुमायूं की अध्यात्मिक साथी थीं। युद्ध अभियानों तथा यात्राओं में भी पुस्तकालय सदैव उसके साथ रहती थीं। युद्ध के बाद फ़ुर्सत के क्षणों में भी वह पुस्तकों के आनंद में डूब जाता था।”
“मीरात-ए-सिकन्दरी” जो गुजरात सल्तनत के इतिहास पर एक साहित्यक काम है, उसके लेखक सिकंदर बी मुहम्मद लिखते हैं कि पुस्तकें बराबर हुमायूं के साथ रहती थीं और उसके पिता मंझू को सदैव उसकी सेवा में उपस्थित रहकर पुस्तकें पढ़ना पड़ता था।
सन 1548 में एक युद्ध में जब हुमायूं को अपनी सेना की पराजय की सूचना मिली तो उसने पूछा कि उसके पुस्तकालय का क्या हुआ? यह जानकर कि उसका पुस्तकालय सुरक्षित है, उसे प्रसन्नता हुई। उसे युद्ध में हारने का अफ़सोस नहीं हुआ। कुछ दिनों बाद जब एक युद्ध में उसे अपनी पुस्तकों का खोया हुआ एक बक्सा मिला तो उसकी प्रसन्नता की सीमा ना रही।
हम सभी जानते हैं कि हुमायूं का शासन संकटों से घिरा रहता था। फिर भी वह अपने आपको अध्ययन एवं अनुसंधान में व्यस्त रखता था। उसके दरबार में बहुत से विद्वान एवं वैज्ञानिक हमेशा रहते थे। वे अनुसंधान में व्यस्त रहते थे।
एक तुर्की सेनापति सिद्दी अलीरेज हुमायूं के लिए भूगोल के अनुसंधान में लगा रहता था। वह हमेशा चंद्रमास की गणना में एवं सूर्य ग्रहण से संबंधित वैज्ञानिक समस्याओं का हल खोजने में व्यस्त रहता था।
हुमायूं का अध्ययन एवं अनुसंधान से विशेष लगाव था। उसने एक बहुत अच्छी एवं मूल्यवान लाइब्रेरी का निर्माण स्वयं के लिए एवं विद्वानों के अनुसंधान में सहायता के लिए किया था। उसकी इस लाइब्रेरी का विवरण हमें उसकी बहन गुलबदन बेगम रचित “हुमायूंनामा” में मिलता है। उसने इस पुस्तकालय को अपने पिता से मिली दुर्लभ पुस्तकों से धनी बनाया।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हुमायूं के प्रारंभिक वर्ष युद्धों में बीते एवं वह इधर से उधर भागता रहा। परंतु वह इन अभियानों में भी पुस्तकें अपने साथ ले जाया करता था। एक रात में जब वह गुजरात के अभियान पर था तब अचानक कुछ जंगली एवं पहाड़ी जनजातियों के लोगों ने उस पर आक्रमण कर दिया, जिसके कारण उसे पीछे हटना पड़ा। उसकी बहुत सारी अच्छी और दुर्लभ किताबें वहीं रह गई। इन किताबों में से एक “तैमूरनामा” भी थी जिसकी प्रतिलिपि मौलाना सुल्तान अली द्वारा तथा उस्ताद बेहज़ाद द्वारा चित्रित की गई थी।
सन 1555 में दिल्ली पर फ़तह हासिल करने के पश्चात जब हिमायूम का अभियान समाप्त हो गया, तब उसने वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधान पर ध्यान दिया। इस उद्देश्य के लिए उसने पूरे भारत एवं विदेशों से विद्वानों की एक मंडली जमा की। उसने सभी बहुमूल्य एवं दुर्लभ किताबों को इकट्ठा किया तथा उन्हें दिल्ली के पुराने क़िले के “शेर-मंडल” ले आया, जिसे मूल रूप से अफ़ग़ान शासक शेरशाह ने अपने लिए आरामगाह के रूप में बनवाया था। वह ज्ञान महल “दीनपनाह पुस्तकालय” के रूप में बदल गया था।
“शेर मंडल” का पूरा लेखा “रोजर्स” के लेख में देखा जा सकता है। इसी दीनपनाह पुस्तकालय के बनने के कुछ समय पश्चात दुर्भाग्य से उसकी मृत्यु, इस पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हो गई। जनवरी सन 1556 में हुमायूं इस संसार से विदा हो गया।
अपने नाम के अर्थ में भाग्यवान किंतु उसके जैसा अभागा बादशाह पूरे मुग़ल काल में दूसरा कोई नहीं हुआ।हुमायूं के बारे में लेनपूल ने लिखा है कि “हुमायूं गिरते-पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया। ठीक उसी तरह जिस तरह वह तमाम ज़िंदगी गिरते पड़ते-चलता रहा था।” उसके हिस्से में एक ही अच्छी बात आई कि उसका बेटा अकबर महान कहलाया।
हुमायूं मुग़ल काल का सबसे अधिक पढ़ा-लिखा बादशाह था। हुमायूं ज्योतिष में भी विश्वास करता था। इसलिए वह सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनता था। मुख्यत: वह इतवार को पीले, शनिवार को काले एवं सोमवार को सफ़ेद रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूं को, अबुल फ़जल ने “आईन-ए-अकबरी” में “इंसान-ए-कामिल” (पूर्ण व्यक्ति) कह कर संबोधित किया।
अब हम बात करते हैं, हुमायूं के पुस्तकालय में किस प्रकार की पुस्तकें थीं। इस बात का कोई साफ़ लेखा जोखा हमें नहीं मिलता। वह एक बहुमुखी प्रतिभा वाला विद्वान था, जिसकी रुचि भिन्न-भिन्न विषयों में थी। संभवतः उसके पुस्तकालय में साहित्य, कविता, ज्योतिष, भूगोल, गणित एवं इतिहास की पुस्तकों का संग्रह रहा होगा।
मौलाना सुर्ख़ और एक निज़ाम- ये दो व्यक्ति पुस्तकालय अध्यक्ष थे।
हुमायूं ने दिल्ली में मदरसा स्थापित किया था। इस मदरसे के मुख्य शिक्षक शेख हुसैन थे, उनकी ही निगरानी में इस मदरसे में बहुत बढ़िया पुस्तकालय क़ायम हो सका था।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मुग़ल बादशाह हुमायूं को पुस्तकों से बड़ा प्रेम था और उसका पुस्तकालय उस समय के भारत में काफ़ी समृद्ध था और उसमें दुर्लभ से दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह था।इसका असर बाद में अकबर पर देखा जा सकता है। उसने पिता से प्रभावित होकर अनुवाद विभाग स्थापित किया और दुर्लभ ग्रंथों का फ़ारसी भाषा में अनुवाद करवाया।
हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.