छत्तीसगढ़ में, महानदी के तट पर प्राचीन नगर सिरपुर के अवशेष हैं । यह नगर छठी सदी में हुआ करता था। ये शहर कभी दक्षिण कोसल राज्य के राजाओं शरभपुरिया और पांडुवंशी की राजधानी हुआ करता था । दिलचस्प बात ये है कि सिरपुर जंगलों में खो चुका था लेकिन हाल ही में यानी वर्ष 2000 में इसे खोज निकाला गया।
चूंकि सिरपुर की खोज हाल ही में हुई है इसलिए खुदाई और शोध का काम अब भी चल रहा है । पुरातत्वेत्ता और इतिहासकार सिरपुर की कहानी खोजने के साथ ये भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर ये नगर वीरान कैसे हुआ ? बहरहाल, अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं उन्हें देखकर तो यही लगता है कि किसी समय ये एक समृद्ध और भव्य नगर रहा होगा । खुदाई में 12 बौद्ध विहार, एक जैन विहार, बुद्ध और महावीर की विशालकाय मूर्तियां, आयुर्वेद के इलाज का एक केंद्र, भूमिगत अनाज मंडी और एक स्नान कुंड मिला है। ये सभी क़रीब बारह से पंद्रह सौ साल पुराने हैं।
एलोरा के मंदिरों पर गहन अध्ययन करने वाली गैरी हॉकफ़ील्ड मैलेंड्रा के अनुसार सिरपुर की शिल्पकृति और एलोरा गुफ़ाओं तथा रत्नागिरी के मंदिरों की शिल्पकृति में काफ़ी समानता है। इसका मतलब ये हुआ कि दोनों प्रांतो के बीच न सिर्फ़ विचारों का आदान प्रदान बल्कि शिल्पियों का आना जाना होता होगा। मैलेंड्रा का यह भी कहना है कि सिरपुर कांसे के सामान बनाने का केंद्र था। यहां खुदाई में निकली उस युग की कांसे की बेहतरीन मूर्तियां हैं।
सिरपुर के बारे में जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार सिरपुर, (श्रीपुरा, लक्ष्मी का नगर), पर सोमवंशी राजा तीवारदेव (7वीं शताब्दी) का शासन था। चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग (602-664 ई.पू.) भारत भ्रमण के दौरान 639 ई.पू. में सिरपुर आए थे। उन्होंने लिखा कि सिरपुर के लोगों का क़द लंबा, रंग में दबे हुए और वे समृद्ध थे। उन्होंने शासक को क्षत्रिय बताया और कहा कि उस समय वहां लगभग सौ बोद्ध मठ और 150 से ज़्यादा हिंदू मंदिर थे। मठों में दस हज़ार बौद्ध भिक्षु रहते थे। सिरपुर की ख़ास बात ये है कि नगर के निर्माण में अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया था। सिरपुर नगर में चौड़ी सड़कें थीं, पाइपलाइन और जल निकासी सिस्टम था। इसके अलावा राजसी लोगों के लिए शानदार घर, पुजारियों के लिए आवास, मंडियां और मेडिकल सुविधाएं थीं।
सिरपुर के पुराने स्मारकों में है लक्ष्मण मंदिर जो 595-605 ई.पू. में बनवाया गया था। मंदिर के गर्भगृह के द्वार की चौखट के ऊपर नक़्क़ाशी में शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु और एक पैनल पर भागवत पुराण से लिए गए कृष्ण उद्धृत हैं । मंदिर की दक्षिण पूर्व दिशा से सौ मीटर दूर राम मंदिर है।
हालंकि ये मंदिर अब पूरी तरह टूट चुका है लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि ये मंदिर राम-लक्ष्मण का था। इसकी बुनियाद से लगता है कि इसका निर्माण जगती शैली में तारे के आकार के रुप में किया गया था। इस तरह यह मध्य भारत में अपनी तरह का पहला मंदिर था।
लेकिन सिरपुर में सबसे बड़ा मंदिर परिसर है सुरंग टीला जो 7वीं शताब्दी का है। ये मंदिर सफ़ेद पत्थरों का बना है और खुदाई (2006-07) के पहले स्थानीय लोग सुरंग बनाकर मिट्टी का टीला खड़ा कर देते थे।
यहां के बौद्ध स्मारकों में आनंद प्रभा विहार भी है जो मंदिर भी है और मठ भी। इसे भिक्षु आनंद प्रभु ने राजा शिवगुप्ता वातार्जुन से मिली वित्तीय सहायता से बनवाया था। इसके अलावा और भी विहार हैं जिनकी बनावट में स्वास्तिक चिन्ह की झलक मिलती है। यहां से खुदाई में बुद्ध की मूर्ति मिली है।
तिव्रदेव मठ में हिंदू और बौद्ध थीम दिखाई देती है। मठ में जहां बुद्ध की मूर्ति जैसी बौद्ध-कला के दर्शन होते हैं वहीं हिंदू देवी गंगा और यमुना की मूर्तियां भी हैं। इसके अलावा पंचतंत्र की कहानियों, काम और मिथुन के दृश्यों का चित्रण भी है। सिरपुर में एक जैन बस्ती भी हुआ करती थी। यहां के अवशेषों में 9वीं शताब्दी की प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की कांसे की मूर्ति भी मिली थी।
ऐसा भी नहीं है कि पुरातत्वीय स्थल के रुप में सिरपुर एकदम अज्ञात था। भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी जे.डी. बेगलर ने 1872 में यहां के कुछ मंदिरों के अवशेष देखे थे । 1953 और 1955 के दौरान सागर विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश(अब हरि सिंह गौड़ विश्वविद्यालय ), ने थोड़ी बहुत खुदाई की थी। इस अद्भुत नगर और इसके अवशेषों की सही मायने में खोज 2000 और 2007 के बीच (जब 184 टीले मिले)और फिर 2009 और 2011 के बीच हुई। 2009 में बुद्ध की कांसे की मूर्तियों और विस्तृत महल परिसर की खोज हुई । ऐसा लगता है मानों सिरपुर के इतिहास परत दर परत खुलता जा रहा हो और प्राचीन नगर अपने रहस्य धीरे धीरे उजागर कर रहा हो।
लेकिन एक सवाल जो बार बार उठता है, वो ये कि इस शहर को छोड़कर लोग क्यों चले गए ? इस बारे में कई तरह के अनुमान हैं। कुछ का कहना है कि एक बड़े भूकंप में ये नगर नष्ट हो गया था। कुछ का कहना है कि दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने इस पर हमला कर इसे बरबाद कर दिया था। ये अनुमान यहां से मिले अलाउद्दीन ख़िलजी के समय के सिक्कों पर आधारित है। लेकिन सिक्के मिलने का मतलब ये भी हो सकता है कि तब दोनों साम्राजों के बीच व्यापार होता होगा। एक अन्य अनुमान के मुताबिक़ महानदी में भयंकर बाढ़ की वजह से लोगों को नगर छोड़कर जाना पड़ा था ।
सिरपुर सहिष्णुता का एक सटीक उदाहरण है जिसकी हमें आज के समय मे सख़्त ज़रुरत है। यहां बौद्ध और जैन मठों के बीच शिव, विष्णु और देवी के मंदिरों में समन्वय नज़र आता है । आजकल यहां एक म्यूज़िम भी है जहां खुदाई में मिली, छठी और 12वीं शताब्दी की कलाकृतियों और अवशेषों को सहेजकर रखा गया है।
हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.