केसरिया का विशाल बौद्ध स्तूप

केसरिया का विशाल बौद्ध स्तूप

सदियों से भारत ने देश-भर में फैले अनेक स्मारकों, गुफाओं, स्तूपों, स्थलों और अन्य चीज़ों के ज़रिए अपनी बौद्ध विरासत का गुणगान किया है लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश में विश्व के सबसे विशाल स्तूपों में से एक मौजूद है? बिहार में केसरिया स्तूप है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये विश्व के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है।

बिहार की राजधानी पटना से उत्तर की दिशा में क़रीब 110 कि.मी. दूर पूर्वी चंपारन ज़िले में एक छोटा-सा शहर है केसरिया जहां ये केसरिया स्तूप स्थित है। ये बौद्ध स्थल वैशाली और कुशीनगर के बीच है जिसकी वजह से केसरिया को एक महत्वपूर्ण शहर माना जाता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार बुद्ध ने वैशाली में अपना अंतिम प्रवचन दिया था और कुशीनगर में उन्हें महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी। किसी समय वैशाली वज्जि महाजनपद के लिच्छवि क़बीले की राजधानी हुआ करती थी।

अपने आखिरी दिनों में बुद्धा, अपने शिष्य आनंद के साथ | विकिपीडिया

आरंभिक बौद्ध ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार बुद्ध ने वैशाली में अपने अनुयायियों को बता दिया था कि उन्हें निर्वाण प्राप्त होने वाला है। वह जब वैशाली से कुशीनगर रवाना होने लगे तो लिच्छवि लोग भी उनके पीछे आने लगे क्योंकि वे बुद्ध को जाने नहीं देना चाहते थे। कहा जाता है कि बुद्ध ने उन्हें वापस लौट जाने पर राज़ी कर लिया और यादगार के रुप में उन्हें अपना भिक्षा-पात्र दे दिया। इस घटना की स्मृति में यहां एक स्तूप बनाया गया जिसे अब केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। परंपरा के अनुसार इस स्तूप को पारिभोगिक स्तूप माना जाता है जिसमें बुद्ध द्वारा प्रयोग की गईं वस्तुएं रखी हुई हैं। ये स्तूप सारीरिक स्तूप नहीं हैं जहां बुद्ध के अवशेष रखे होते हैं।

दिलचस्प बात ये है कि 5वीं सदी के चीनी यात्री फ़ाहियान और 7वीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपनी भारत यात्रा के दस्तावेज़ में इस स्तूप और बुद्ध द्वारा लिच्छवि छोड़ने की कथा का उल्लेख किया है। फ़ाहियान ने इस स्थल पर एक स्तंभ और ह्वेन त्सांग ने स्तूप का ज़िक्र किया है। इस स्थल का आरंभिक उल्लेख अंग्रेज़ अफ़सर ब्रायन हॉटन हॉजसन के रिकार्ड में मिलता जो भारत और नेपाल में काम करता था। उसने स्थानीय कलाकार की मदद से सन 1835 में टीले का एक रेखा चित्र बनाया था। लेकिन ये भारतीय पुरातत्व के जनक एलेक्ज़ेंडर कनिंघम ही थे जिन्होंने सन 1860 के दशक में स्तूप के आसपास कुछ समय के लिए खुदाई करवाई थी और इसका थोड़ा बहुत अध्ययन किया था। अपने दस्तावेज़ में उन्होंने लिखा है कि हॉजसन के पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में स्कॉटलैंड के अधिकारी और भारत के पहले महानिरीक्षक कर्नल मैकेंज़ी ने स्तूप की गैलरी की खुदाई का आदेश दिया था लेकिन इसमें कुछ निकला नहीं था।

स्तूप के साथ एक अन्य दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। इस कहानी के अनुसार ये वही स्थान है जहां बुद्ध ने अपने पूर्व जन्म में “चक्रवर्ती राजा” होने की घोषणा की थी। स्तूप का वर्णन करते समय अपने दस्तावेज़ में ह्वेन त्सांग इस कथा का ज़िक्र करते हैं और कहते हैं कि उत्तर-पश्चिम वैशाली से क़रीब 33 मील दूर एक स्तूप है जहां बुद्ध ने घोषणा की थी कि अपने पूर्व के एक जन्म में वह बोधिसत्व थे और महादेव नामक “चक्रवर्ती राजा” के नाम से उन्होंने इस क्षेत्र पर शासन किया था।

ह्वेन त्सांग

एलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इस परंपरा का उल्लेख किया है और कहा है कि स्थानीय लोग टीले को “राजा बन का ढ़्योरा” कहते थे। ये लोग “राजा बन” के बारे में ये जानते थे भारत के महान राजाओं में से एक थे इसलिए उन्हें “राजा बन चक्रवर्ती” कहा जाता था। कनिंघम कहते हैं कि ये परंपरा वही कहानी हो सकती है जिसका ज़िक्र ह्वेन त्सांग ने अपने दस्तावेज़ में किया था।

केसरिया स्तूप का एक दृश्य | विकिमीडिआ कॉमन्स

कनिंघम के अनुसार मौजूदा स्तूप सन 200 से सन 700 के बीच का है। उनकी राय में इसका निर्माण एक बहुत पुराने और बड़े स्तूप के खंडहर के ऊपर किया गया था। कनिंघम के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण न सन 1998 के बाद यहां खुदाई करवाई । प्रमुख पुरातत्वविद् एम.एम. मोहम्मद के नेतृत्व में यहां खुदाई हुई जो अब भी जारी है।

 

कनिंघम ने उत्तर-पूर्व केसरिया में टीले के पास कुछ खुदाई करवाई थी जिसे “रानी-वास” के रुप में जाना जाता है। यहां उन्हें एक पुराने मंदिर के खंडहर, बुद्ध की एक विराट छवि और एक पुराना बौद्ध-मठ संबंधी प्रतिष्ठान मिला। कनिंघम का अनुमान था कि ये भवन एक प्राचीन रानी के थे और यहां एक विशाल बौद्ध-मठ अथवा विहार हुआ करता था जिसका संबंध केसरिया स्तूप से था।

कनिंघम के अनुसार मौजूदा स्तूप सन 200 से सन 700 के बीच का है। उनकी राय में इसका निर्माण एक बहुत पुराने और बड़े स्तूप के खंडहर के ऊपर किया गया था। कनिंघम के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण न सन 1998 के बाद यहां खुदाई करवाई । प्रमुख पुरातत्वविद् एम.एम. मोहम्मद के नेतृत्व में यहां खुदाई हुई जो अब भी जारी है।

कनिंघम ने उत्तर-पूर्व केसरिया में टीले के पास कुछ खुदाई करवाई थी जिसे “रानी-वास” के रुप में जाना जाता है। यहां उन्हें एक पुराने मंदिर के खंडहर, बुद्ध की एक विराट छवि और एक पुराना बौद्ध-मठ संबंधी प्रतिष्ठान मिला। कनिंघम का अनुमान था कि ये भवन एक प्राचीन रानी के थे और यहां एक विशाल बौद्ध-मठ अथवा विहार हुआ करता था जिसका संबंध केसरिया स्तूप से था।

केसरिया स्तूप अपनी शानदार वास्तुकला के लिए जाना जाता है और ये विश्व में सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। ये 31.5 मीटर या 101 फ़ुट ऊंचा सीढ़ीदार गोलाकार स्तूप है। इसका आयताकार पैंदा क़रीब 123 मीटर या चार सौ फ़ुट का है। ईंटों के बने इस स्तूप में कुछ खुदाई की गई थी और ये गुप्तकाल (5वी-छठी सदी) का है हालंकि इसके नीचे खुदाई में शुंग-सातवाहन के समय (पहली-दूसरी सदी) के अवशेष भी मिले हैं।

केसरिया स्तूप | बिहार टूरिज्म

इस स्तूप की तुलना इंडोनेशिया की राजधानी जावा में स्थित बोरोबुदूर स्तूप से की जाती है जिसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। हाल ही की खुदाई में पता चला है कि स्तूप की बुनियाद बहुभुजी है। इसकी कम से कम सात गोलाकार मंज़िले हैं। ईंटों की बहुभुजी मंज़िलों के ऊपर एक बुर्ज है जो कभी 80 से 90 फ़ुट ऊंचा रहा होगा।

पुणे के दक्कन कॉलेज की विद्वान इशानी सिन्हा ने अपने पेपर ‘केसरिया स्तूप: रिसेंटली एक्सकेवेटेड आर्टेक्चुरल मार्वल’ में लिखती हैं, “ड्रम और ऊपर के दो छतें, जिन्हें हर तरफ़ से साफ़ किया जा चुका है, में दक्षिण-पश्चिम किनारे की तरफ़ 80 सें.मी. चौड़ी सीढ़ी है जो ऊपरी दो छतों की तरफ़ जाती है। ये सीढ़ी प्रकोष्ठ वाले मंदिरों के समूहों के बीच बहुभुजी डिज़ाइन में छुपी हुई है और स्तूप को देखने पर नज़र नहीं आती है…नीचे की तीन छतों में एक निश्चित अंतर पर तीन प्रकोष्ठ हैं। प्रकोष्ठ के बीच फ़ासलों को तारामय पैटर्न से भरा गया है जिसकी वजह से स्तूप की वास्तुकला और भी निखर जाती है।”

केसरिया में मिली एक बुद्धा की मूर्ती | विकिमीडिआ कॉमन्स

स्तूप की वास्तुकला का भारत में कोई सानी नहीं है। इसे देखकर लगता है कि इसके साथ ही स्तूप वास्तुकला में क्रमागत विकास की शुरुआत हुई थी। लगभग हर छत पर प्रकोष्ठों में बुद्ध की अस्तरकारी वाली विराट छवियां बनी हुई हैं। प्रकोष्ठ के सुसज्जित आलों में गुप्तकाल की वास्तुकला की झलक देखी जा सकती है। इशानी के अनुसार, ‘कथ्य, मुद्रा और संरक्षण के मामले में केसरिया स्तूप की मिट्टी अथवा अस्तरकारी छवियों की तुलना विक्रमशिला और नालंदा में रखी छवियों से की जा सकती है हालंकि आकार में केसरिया छवियां बहुत छोटी हैं।’

इस स्तूप में खुदाई का काम जारी है और अभी आंशिक खुदाई ही हुई है लेकिन आशा की जाती है कि पूरी खुदाई के बाद यहां विशाल स्तूप के अलावा और भी कई दिलचस्प चीज़े सामने आएंगी। केसरिया स्तूप बिहार में महत्वपूर्ण बौद्ध-स्थलों और स्मारकों में से एक है। एक बार वहां ज़रूर जाना चाहिए और उसकी भव्यता और सुंदरता को ज़रुर देखा जाना चाहिए…

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