परशुरामेश्वर मंदिर: ओडिशा के सबसे पुराने मंदिरों में से एक

परशुरामेश्वर मंदिर: ओडिशा के सबसे पुराने मंदिरों में से एक

ओडिशा राज्य में कोणार्क, जगन्नाथ और लिंगराज जैसे प्राचीन भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित मंदिर हैं, जो अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं। एक तरफ़ जहां लिंगराज मंदिर राज्य की राजधानी भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है, तो वहीं भुवनेश्वर से केवल एक किलोमीटर दूर परशुरामेश्वर मंदिर है, जो राज्य के सबसे पुराने और सबसे अच्छे संरक्षित मंदिरों में से एक है।

भुवनेश्वर शहर मंदिरों का पर्याय बन चुका है। ऐसा माना जाता है, कि एक समय यहां लगभग सात हज़ार मंदिर होते थे! आज भी यहां लगभग सात सौ मंदिर हैं, जिसके कारण इसे “भारत के मंदिरों का शहर” कहा जाता है। 7वीं और 13वी शताब्दी के बीच,  ओडिशा में भौमकारा, सोमवंशी, और पूर्वी गंग जैसे कई राजवंशों के शासन के दौरान कई मंदिरों का निर्माण हुआ।

इन राजवंशों ने इस क्षेत्र पर वर्षों तक शासन किया था। इनमें शैलोद्भव राजवंश भी था, जिसे 7वीं-8वीं शताब्दी के आसपास परशुरामेश्वर मंदिर बनवाने का श्रेय दिया जाता है। शैलोद्भव राजवंश के बारे में आमतौर पर कम जाना जाता है। इस राजवंश ने लगभग छठी से लेकर 8वीं शताब्दी तक शासन किया था। माना जाता है, कि शौलोद्भव शुरु में गौड़ राजा शशांक के सामंत हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने 7वीं शताब्दी के मध्य में ख़ुद को स्वतंत्रत घोषित कर दिया था। इनका शासन बहुत लंबे समय तक नहीं चला था। वे पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करते थे। उनका मूल क्षेत्र कोंगोडा-मंडला होता था, जिसे मौजूदा समय में गंजम,पुरी और खोरधा के नाम से जाना जाता है। इस वंश के शासक शैव मत के प्रबल संरक्षक थे। दरअसल, राजवंश के उद्गम का मिथक, राजवंश द्वारा शिव की स्थापना से जुड़ा हुआ है।

संभवत: राजा माधवराज- द्वितीय के दौर में ही परशुरामेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ था।

परशुरामेश्वर का शाब्दिक अर्थ परशुराम भगवान होता है। इस मंदिर के देवता विष्णु के छठे अवतार, परशुराम के रूप में शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार यहां परशुराम ने घोर तपस्या की थी, और तभी उन पर शिव की कृपा हुई थी।

परशुरामेश्वर मंदिर | विकिमीडिआ कॉमन्स

नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर ओडिशा का सबसे अच्छी तरह से संरक्षित प्रारंभिक मंदिर है। यह भी माना जाता है, कि यह ओडिशा का पहला मंदिर है, जिसमें जगमोहन यानी सभागार है, जो ओडिशा के मंदिरों की एक विशेषता होती है। एक दिलचस्प बात और है, कि, शिव मंदिर होने के बावजूद इसमें शाक्त पंथ से संबंधित देवताओं की कई छवियां हैं। 5वीं शताब्दी में ब्राह्मण धर्म के पुनरुद्धार के साथ शैव संप्रदाय भुवनेश्वर में एक प्रमुख संप्रदाय बन गया था। वास्तव में शहर का नाम लिंगराज मंदिर के मुख्य देवता त्रिभुवनेश्वर (तीन लोकों के भगवान यानी शिव) के नाम पर पड़ा है। भुवनेश्वर जहां प्राचीन काल में एक लोकप्रिय शैव केंद्र रहा है, वहीं शैववाद के साथ-साथ शक्तिवाद भी फला-फूला। 7वीं-8वीं शताब्दी के आसपास इस क्षेत्र में शक्तिवाद लोकप्रिय होने लगा था।

डॉ. बी.सी. प्रधान लिखते हैं,

शाक्त धर्म के प्रसार के साथ ही शक्ति की विभिन्न देवी-देवता जैसे महिषामर्दिनी, सप्त-मातृक, पार्वती, गौरी, चामुंडा, भुवनेश्वरी, सावित्री, चौंसठ-योगिनी, कात्यायनी, अर्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर आदि की भुवनेश्वर के मंदिरों में या तो पीठासीन या फिर पार्श्व-देवी-देवताओं के रूप में स्थापना होने लगी।

सप्तमात्रिरिका की छवियां इस मंदिर के मुख्य आकर्षण में से एक हैं। दिलचस्प बात यह है, कि परशुरामेश्वर मंदिर को भुवनेश्वर का पहला मंदिर कहा जाता है, जिसमें सप्त मात्रिरिका या सात देवी-देवताओं का चित्रण है और जो शक्तिवाद का एक अभिन्न अंग हैं। ये देवियां ऊर्जा या शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो मुख्य देवताओं ब्राह्मणी ब्रह्मा से, वैष्णवी विष्णु से, माहेश्वरी शिव से, इंद्राणी इंद्र से, कौमारी स्कंद से, वाराही वराह से और चामुंडा देवी से उभरी हैं। ये छवियां इस मंदिर की उत्तरी दीवार पर उनके सहयोगियों गणेश और वीरभद्र के साथ उकेरी गई हैं।

परशुरामेश्वर में सप्तमातृका | विकिमीडिआ कॉमन्स

मंदिर की एक और अनोखी ख़ासियत सहस्रलिंग या “हज़ार शिवलिंग” है। मंदिर के उत्तर-पश्चिम भाग में एक शिवलिंग के भीतर 20 पंक्तियों में हजारों छोटे लिंगों को दिखाया गया है। हालांकि शहर के अन्य मंदिरों के मुक़ाबले में परशुरामेश्वर मंदिर आकार में   उतना भव्य नहीं है लेकिन फिर भी इसका अपना एक आकर्षण है।

सहस्रलिंगम | विकिमीडिआ कॉमन्स

इस मंदिर की ख़ास बात मंदिर के चारों ओर उकेरी गई कई छवियां हैं। इन  उल्लेखनीय छवियों में नृत्य करते हुए आठ-भुजाओं वाले अर्धनारीश्वर, रावण-अनुग्रह (रावण का वध करते हुए शिव),मोर पर सवार कार्तिकेय, शिव और पार्वती का विवाह और विभिन्न मुद्राओं में नटराज के रूप में शिव की मुद्राएं शामिल हैं। देवी-देवताओं के अलावामंदिर में नर्तकियों और संगीतकारों की बांसुरी और ढ़ोल जैसे  वाद्ययंत्र बजाते हुए भी कई चित्र हैं।

परशुरामेश्वर मंदिर में नर्तक और संगीतकार की छवियां | विकिमीडिआ कॉमन्स

आज, परशुरामेश्वर मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखभाल में एक स्मारक है, और भुवनेश्वर में सैलानियों के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है।

हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading