भारत का एकमात्र धधकता ज्वालामुखी

भारत का एकमात्र धधकता ज्वालामुखी

अंडमान के दूरदराज़ इलाक़े में एक छोटा-सा द्वीप है जहां एक ज्वालामुखी है जो भारत का एक अकेला सक्रिय ज्लालामुखी है। इंडो-बर्मीज़ टेकटोनिक प्लेट के किनारे कई (अधिकतर जल के भीतर) ज्वालामुखी हैं ।पहले यह माना जाता था कि भारत के एकमात्र ज्वालामुखी सहित ये सभी ज्वालामुखी निष्क्रिय हैं लेकिन भू-वैज्ञानिकों के एक दल ने 23 जनवरी,सन 2017 में इस सक्रिय ज्वालामुखी के बारे पता लगाया जिसमें से धुआं और लावा निकल रहा था।

ये आश्यर्य की बात है कि भारत दुनिया का 7वां सबसे बड़ा देश है लेकिन यहां सिर्फ़ एक ही सक्रिय ज्वालामुखी बेरेन( बंजर द्वीप) है। भारतीय उप-महाद्वीप के इतिहास को देखकर और यह देखेकर कि यह धरती कैसे घूमती है किसी को भी लग सकता है कि भारत एक अस्थिर ज़मीन पर आबाद है। लेकिन भारत में सिर्फ़ एक ही सक्रिय ज्वालामुखी है जो बंगाल की खाड़ी पर अंडमान द्वीप में स्थित है और जो पोर्ट ब्लैयर से 138 कि.मी. के फ़ासले पर है।

नक्शे में बंजर द्वीप | नेहा परब

3.2 स्क्वैयर मील के दायरे में फैला ये छोटा-सा द्वीप इंडो-बर्मीज़ टोकटोनिक प्लेट के किनारे स्थित कई ज्वालामुखियों की श्रृंखला में से एक ही ज्वालामुखी है। अधिकतर ज्वालामुखी पानी के नीचे हैं। बैरन द्वीप की उत्तर-पश्चिम दिशा में क़रीब 150 कि.मी. दूर एक और छोटा-सा नार्कोदम ज्वालामुखी द्वीप है। भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के अनुसार ये ज्वालामुखी निष्क्रिय है।

पहले बैरन द्वीप ज्वालामुखी भी जल के भीतर था लेकिन लाखों साल के दौरान लगातार होनेवाले विस्फ़ोटों से चट्टाने पिघल गईं, इसी वजह से क आज ये द्वीप समुद्र तल से 354 मीटर ऊपर हो गया है जो सबसे ज़्यादा ऊंचा ज्वालामुखी माना जाता है। ज्वालामुखी से निकले पत्थरों की तारीख़ पता करने की प्रणाली एरगोन-एरगोन डेटिंग के आधार पर ये स्थापित हो गया है कि ज्वालामुखी से निकला सबसे पुरना लावा सोला लाख साल पुराना था। ज्वालामुखी का सबसे पुराना हिस्सा समुद्र तल के 2250 मीटर नीचे है। अब ये समुद्र तल से 350 मीटर ऊपर है और आप कल्पना कर सकते हैं कि ये कितनी ऊंचाई पर आ गया है। कॉल्डेर अथवा ज्वालामुखी-कुण्ड (वह स्थान जहां से ज्वालामुखी फूटता है) का व्यास दो कि.मी. है और ये एक तरफ़ से समुद्र की तरफ़ खुलता है।

लेफ्टिनेंट आरएच कोलेब्रुक द्वारा बंजर द्वीप का स्केच | विकिमीडिया कॉमन्स

बैरन द्वीप में सक्रिय ज्वालामुखी का पहली बार पता सन,1787 में उस समय चला था जब अंग्रेज़ नाविक लेफ़्टिनेंट आर.एच. कोलब्रूक, ट्रेल स्नो नाम के जहाज़ से पेनांग जा रहे थे और तभी उनकी नज़र द्वीप के ऊपर ज्वालामुखी से निकल रहे धुएं पर पड़ी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा: ‘मैं 21 मार्च को तट से रवाना हुआ और 24 मार्च को बैरन द्वीप पहुंचा- वहां ज्वालामुखी बुरी तरह से फूट रहा था और उसमें से ज़बरदस्त धुआं निकल रहा था तथा लाल गरम पत्थर गिर रहे थे। कुछ पत्थरों का वज़न तीन से चार टन था।’

ये रिपोर्ट एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की पत्रिका में छपी थी। रिपोर्ट के साथ कोलब्रुक का बनाया हुआ ज्वालामुखी का रेखाचित्र भी छपा था ।

सन1803 में भी यहां ज्वालामुखी फूटा था और इसके बाद 188 साल तक कोई गतिविधि नहीं हुई और मान लिया गया कि ज्वालामुखी निष्क्रिय हो गया है। लेकिन सन 1991, सन 2003 और सन 2005 में फिर यहां ज्वालामुखी फूटा। हाल ही में 23 जनवरी सन 2017 में नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओशनोग्राफ़ी, गोवा, के डॉ. अभय मुधोलकर के नेतृत्व में वैज्ञानिकों का एक दल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास के क्षेत्र का अध्ययन कर रहा था और तभी उसकी नज़र द्वीप पर फूटते ज्वालामुखी पर पड़ी।

लेकिन ये ज्वालामुखी उतना ज़बरदस्त नहीं था जिसकी आप आशंका कर सकते हों। दल ने देखा कि ज्वालामुखी छोटी-छोटी कड़ियों में फूट रहा था जो पांच से दस मिनट चलता था। दिन के समय सिर्फ़ राख के बादल देखे गए। लेकिन सूर्यास्त के बाद दल ने देखा कि ज्वालामुखी से लाल लावे के झरने फूट रहे हैं और लाल गर्म लावा ज्वालामुखी पहाड़ी की ढ़लानों से बह रहा है। दल ने लगातार हो रहे विस्फोट और धुएं को भी देखा। इस धटना के बाद ही बैरन द्वीप को भारत का एकलौता सक्रिय ज्वालामुखी घोषित किया गया।

बैरन द्वीप पर कोई नहीं रहता और जैसा कि नाम है, द्वीप का उत्तरी हिस्सा एकदम बंजर है और यहां पेड़-पौधे नहीं हैं। दिलचस्प बात ये है कि यहां पाए जाने वाले जानवरों में जंगली बकरी पाई जाती है जो द्वीप का सबसे बड़ा जानवर है। जंगली बकरी को यहां घास चरते देखा जा सकता है। दूसरी दिलचस्प बात ये है कि द्वीप में मीठा पानी नहीं होता और ये बकरी खारा पानी ही पीती है। इस तरह से जंगली बकरी अपने आप में एक अनोखा जानवर है। बकरियों की छोटी आबादी के अलावा उजाड़ बैरन द्वीप में चमगादड़ें, उड़न लोमड़ियां और चूहे जैसी प्रजातियां भी रहती हैं।

दुर्भाग्य से बैरन द्वीप में प्रवेश प्रतिबंधित है। इसकी सामरिक स्थिति की वजह से यहां भारतीय नौसेना और तट रक्षक गार्ड्स का कड़ा पहरा रहता है। हालांकि आप समंदर से ज्वालामुखी नहीं देख सकते लेकिन अगर आप इसके पास से गुज़रें तो आपको द्वीप से उठता धुआं ज़रुर दिख जाएगा। बहरहाल, अगर आप वहां कभी जाते हैं तो पूरी सावधानी बरतिये।

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