वेलु नचियार: अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाली पहली भारतीय रानी

वेलु नचियार: अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाली पहली भारतीय रानी

भारतीय इतिहास में सन 1857 के विद्रोह के अध्याय से हम सभी वाक़िफ़ हैं, लेकिन क्या आपको मालूम है, कि विद्रोह के कुछ दशकों पहले एक ऐसी रानी तमिलनाडु में थीं, जिन्होंने महिलाओं की सेना बनाकर ईस्ट इंडिया कंपनी से डटकर मुकाबला करके अपना साम्राज्य वापस लिया था? इसके अलावा क्या आप ये भी जानते हैं, कि उनकी सेना में एक ऐसी भी महिला थी, जो भारतीय इतिहास की पहली मानव बम मानी जाती थी?

18वीं सदी में वेलु नचियार तमिलनाडु में शिवगंगा की रानी थीं और वह ईस्ट इंडिया कंपनी से लोहा लेने वाली पहली भारतीय रानी थीं।

तीन जनवरी सन 1730 को जन्मी वेलु नचियार तमिलनाडु में रामनाड (रामनाथपुरम) के राजा सेलामुतु विजयरघुनाथ सेतुपति और उनकी रानी सकंधी मुतातल की एकमात्र संतान थीं। रामनाड, जिसे मरावर साम्राज्य नाम से भी जाना जाता है, की स्थापना 17वीं सदी में रघुनाथ किलावन सेतुपति ने की थी। सेतुपति पहले मदुरै के नायकों के सेनापति हुआ करते थे, जो 16वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक तमिलनाडु पर शासन करते थे।

चूंकि विजयरघुनाथ सेतुपति और उनकी रानी का कोई बेटा नहीं था, इसलिये वेलु की परवरिश एक राजकुमार की तरह की गई। वेलु बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं और उन्हें शस्त्र-कला, घुड़सवारी और सिलंबम जैसी मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित किया गया। सिलंबम मार्शल आर्ट में बांस के डंडों से लड़ा जाता है। सैन्य युद्ध में प्रशिक्षण के अलावा वेलु विद्वान भी थीं, जिन्हें उर्दू, अंग्रेज़ी और फ्रांसिसी भाषा आती थी, जो उन दिनों किसी महिला के लिये एक अनोखी बात हुआ करती थी।

सन 1746 में, 16 साल की उम्र में उनका विवाह शिवगंगा के दूसरे राजा मुथुवादुगनाथ पेरियाउदय थेवर के साथ हो गया। शिवगंगा इसके पहले रामनाड साम्राज्य के अंतर्गत आता था, लेकिन 18वीं सदी में पारिवारिक विवाद की वजह से रामनाड का विभाजन हो गया और शशिवर्ण थेवर शिवगंगा का प्रथम राजा बन गया। शशिवर्ण का पुत्र मुतुवाडुगनाथ थेवर बाद में यानी सन 1750 में सत्ता में आया और उसने अगले दो दशकों तक शासन किया।

शिवगंगा का प्रवेश द्वार | विकिमीडिआ कॉमन्स

सन 1772 में साम्राज्य पर संकट के बादल मंडराने लगे। ये वो साल वेलु नचियार के जीवन में एक नया मोड़ था। कर्नाटक क्षेत्र पर सन 1717 से लेकर सन 1795 तक शासन करने वाले आरकोट के नवाब मोहम्मद अली वालाजाह ने दक्षिण राजवंशों के स्वामित्व पर अपना दावा कर अंग्रेज़ों के साथ हाथ मिला लिया था। उसने शिवगंगा पर कर लगा दिये और इनकी वसूली के लिये ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी भेज दिये। लेकिन शिवगंगा के राजा ने कर देने से मना कर दिया और नतीजन कर्नल जोसेफ़ स्मिथ और मेजर अब्राहम बोंजोर के नेतृत्व में शिवगंगा के कलयार कोली में मुतु वाडुनाथ थेवर पर हमला कर दिया। इस अचानक हमले से राजा चौंक गया और अपने कई साथियों के साथ मारा गया। हमले के बाद शिवगंगा पर आरकोट के नवाब का कब्ज़ा हो गया। वेलु नचियार, अपनी छोटी-सी बेटी वेलाची, सेनापतियों, मरुधु बंधु वेल्लई और चिन्ना मरुधु और मंत्री तंडावरय पिल्लई सहित कुछ विश्वासपात्र लोगों के साथ भागने में सफल हो गईं।

मरुधु बंधु वेल्लई और चिन्ना मरुधु

वेलु नचियार ने तमिलनाडु के डिंडीगुल में वीरुपक्षी में शरण ली, जहां वह आठ साल तक रहीं। वीरुपक्षी पर पोलिगर (सामंती सरदार) गोपाल नायक का शासन होता था। यहां रहते हुए वेलु नचियार ने बदला लेने की क़सम खाई। उन्होंने अपना साम्राज्य वापस लेने की ठान रखी थी और उन्होंने ये आठ साल योजना बनाने तथा हमले के लिये सहयोगियों को जमा करने में लगाये। विरोधियों की ताक़त को देखते हुए, हमला करना आसान भी नहीं था। ऐसी स्थिति में उन्हें मैसूर के वास्तविक शासक हैदर अली का साथ मिल गया, जिसके अंग्रेज़ों और आरकोट के नवाब के साथ फीके संबंध थे। हैदर अली और अंग्रेज़ों के बीच संबंध इसलिये ख़राब हो गये थे, क्योंकि वादे के बावजूद अंग्रेज़ों ने मराठों के साथ लड़ाई में हैदर अली का साथ नहीं दिया था।

मंत्री तंडवर्या पिल्लई ने वेलु नचियार और हैदर अली के बीच मुलाक़ात का इंतज़ाम किया और सुल्तान से पांच हज़ार सैनिक मुहैया कराने का आग्रह किया। कहा जाता है, कि सुल्तान, वेलु नचिचार की शुद्ध उर्दू, बहादुरी और अपना साम्राज्य वापस लेने के उनके हौंसले से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने मदद की पेशकश की और वेलु नचियार से डिंडीगुल क़िले में रहने को कहा, जो मदुरै नायकर राजवंश ने डिंडीगुल में 16वीं सदी में बनवाया था। ये क़िला उत्तर दिशा में उनके साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण होता था। बाद में 18वीं सदी में इस क़िले पर हैदर अली का कब्ज़ा हो गया था। हैदर अली ने वेलु नचियार को सोने के 400 सिक्कों का भत्ता भी दिया।

वेलु नचियार

सुल्तान की मदद मिलने के बाद वेलु नचियार हमले की योजना बनाने लगीं। वेलु नचियार की एक और विशेष उपलब्धि ये भी थी, कि उन्होंने महिलाओं की सेना बनाई थी, जिसका नाम उड़ैयाल रखा गया था। इन महिला सैनिकों को युद्ध और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया जाता था। सन 1780 में हैदर अली ने अस्सी हज़ार सैनिकों के साथ आरकोट के नवाब के पूर्वी तटीय इलाक़ों पर हमला किया। इस हमले में अंग्रेज सैनिक भी निशाने पर थे। वेलु नचियार के लिये ये एकदम सही अवसर था और वह अपने सैनिकों के साथ शिवगंगा की ओर रवाना हो गईं।

चूंकि शिवगंगा की क़िलेबंदी बहुत मज़बूत थी, इसलिये वेलु नचियार ने एक चालाक योजना बनाई। वे लोग विजयदशमी त्यौहार के कुछ पहले ही शिवगंगा पहुंचे थे। इस त्यौहार के मौक़े पर शिवगंगा की महिलाएं राजा राजेश्वरी के मंदिर में जमा होती थीं, जो महल के पास ही था। वेलु नचियार अपनी महिला सैनिकों के साथ महिलाओं की भीड़ में शामिल होकर महल में घुस गईं और हमला बोल दिया।

हैदर अली

इस युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका कुयिली नामक महिला सैनिक ने निभाई थी। कुयिली को रानी ने शिवगंगा में काम दिया था और रानी तथा साम्राज्य के प्रति अदम्य वफ़ादारी की वजह से वह तरक़्क़ी करती रही। वह वेलु नचियार की सेना की कमांडर-इन-चीफ़ थी। हमले के दौरान वेलु नचियार और उनकी सेना को एहसास हुआ, कि अंग्रेज़ों के हथियारों के आगे उनके हथियार बहुत कमतर हैं। जब उन्हें गोला बारुद रखने वाला कमरा दिखा, तो कुयिली इस कमरे में दाख़िल हो गई। भीतर दाख़िल होते समय उसने दीपकों के तेल को अपने शरीर पर छिड़क कर आग लगा ली और कमरे में दाख़िल हो गई| इसकी वजह से विस्फोट हुआ और शोरगुल के बीच सब कुछ नष्ट हो गया। कुयिली की अद्वितीय बहादुरी और बलिदान की वजह से वेलु नचियार और उनकी सेना अंग्रेज़ों को हराने में कामयाब रही। हैदर अली और वेलु नचियार की संयुक्त सेना को देखकर आरकोट के नवाब ने वेलु नचियार से समझोता कर लिया।

वेलु नचियार ने शिवगंगा का शासन अपने हाथों में ले लिया और वेल्लई मरुधु को कमांडर-इन चीफ़ तथा चिन्ना मरुधु को मुख्यमंत्री बना दिया। वेलु नचियार का शासन क़रीब दस साल तक चला। उनके बाद सत्ता की बागडोर उनकी बेटी वेल्लाची ने संभाली।

शिवगंगा के महल में वेलु नाचियार की मूर्ती

सन 1776 में वेलु नचियार का निधन हो गया। तमिलनाडु में वह आज भी बहुत लोकप्रिय हैं और उनकी प्रशंसा में कई लोकगीत लिखे गये हैं। दिसंबर सन 2008 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। सन 2014 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने शिवगंगा में वीरमंगलई वेलु नचियार मेमोरियल का उद्घाटन किया जो उनके सम्मान में बनाया गया था।

वेलु नचियार की दृढता और बहादुरी की वजह से उन्हें प्यार से वीरमंगलई यानी बहादुर महिला कहा जाता है।

हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading