राजस्थान का कुचामणी ख्याल

राजस्थान का कुचामणी ख्याल

कुचामणी ख्याल या मारवाड़ी खेल एक नाटक शैली है जो कुचामन शहर के नाम से जानी जाती है| लोक नाट्यकला, सांस्कृतिक विरासत, मानवीय व नैतिक मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शक करने वाली पारम्परिक शैली पुरूषों की मण्डलीया करती हैं ख्याल|

‘भणत है कवि लच्छीराम, गाँव है कुचामण धाम, बास बूडसू पायो है,,’

अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त ‘‘कुचामणी ख्याल’’ के जनक, अभिनेता, नर्तक व निर्देशक पण्डित लच्छीराम कुचामन शहर के पास बूडसू गाँव के निवासी थे। वे भरूड़िया ब्राह्मण एवं मेघवाल जाति के गुरु भी थे। इनके द्वारा रचित कुचामणी ख्याल के नाटक ऐतिहासिक, धार्मिक, श्रृंगार और सामाजिक बुराईयों के ख़िलाफ़ लिखे गये हैं।

‘‘काव्य छंद कुछ नहीं जाणु, आ गुरवां की माया है।
शार्गिद होय के बदल जावे, वो सतमुता का जाया है।”

पं. लच्छीराम ने अनेक नाटक लिखे जिनको ख्याल के नाम से जाना जाता है। पद्य शैली में लिखे सोरठा, कक्ति, शेर, लावणी, ग़ज़ल, कुण्डलिया, छन्द, छप्पय, तिबोला, चन्द्रायणी, दोहा आदि के माध्यम से इतनी शालीनता एवं गंभीरता से प्रस्तुत किया जाता है कि वे सीधे दर्शकों के दिलों में समा जाते हैं। इस शैली की राग- रागनियां और रंगते भी सीधी सपाट होने के कारण पूरी प्रस्तुति दर्शकों को रस विभोर कर देती है। साथ ही इसकी लय, ताल, अभिनय, नृत्य और भाव-विभाग पूरे कथ्य को स्पष्ट करते प्रतीत होते हैं। यह शैली अपनी मौलिकता के लिए जानी जाती है। यह ख्याल राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ क्षेत्र में बहुत लोक प्रिय है।

कुचामन शहर   | विकिमीडिआ कॉमन्स

इस शैली की एक और विशेषता यह है कि नारी पात्रों की भूमिका पुरूष ही निभाते हैं। परम्परागत सौंदर्य प्रसाधन, श्रृंगार एवं वेशभूषा में सजे यह नारी पात्र नारी पात्र की नज़ाकत को इस भांति से प्रस्तुत करते है कि दर्शक भ्रमित हो जाते हैं। इस शैली की एक ओर विशेषता यह है कि ख्याल की गायकी, संवाद अदायगी, हास्य आदि बहुत ही मनोरंजक, शिक्षाप्रद और सकारात्मक होने के कारण परिवार एवं समाज के सभी सदस्य एक साथ बैठकर आनन्द ले सकते हैं।

इस शैली के लोक नाट्य ख्याल लगभग तीन सौ हैं। इनमें से प्रमुख सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र, राजा मोरध्वज, गोग चौहान, मीरां मंगल, वीर अमरसिंह राठौड़, जगदेव -कंकाली, भक्त पूरणमल, गोपीचन्द भरथरी, ढ़ोला मरवण, वीर तेजाजी, भक्त प्रहलाद, नौटंकी शहजादी, श्रवण कुमार आदि लोक देवताओं और पौराणिक पात्रों के जीवन चरित्र पर आधारित नाटकों का मंचन किया जाता है। इन ख्यालों में शौर्य, साहस, त्याग, बलिदान, श्रृंगार के संयोग और वियोग के साथ काव्य के सभी रसों से रूबरू होने का अवसर दर्शकों को बख़ूबी मिलता है।

पं. लच्छीराम एक सम्पूर्ण कला पुरूष थे जिन्हें माँ सरस्वती ने अपनी सभी विधाओं से संवारा था। वे अच्छे लेखक, कवि, गीतकार, संगीतकार, अभिनेता, निर्देशक के अलावा कुशल संगठक भी थे। जिन्होंने अपनी नाट्य मण्डली तैयार कर इस शैली को देश-विदेश तक पहुँचा दिया। इतनी सारी विधाएँ किसी एक ही व्यक्ति में विधमान होना आश्चर्यजनक बात लगती है। इनके बारे में लोग कहते हैं कि उनके द्वारा रचित आशु कविता की ख्याति दूर-दूर पहुँच जाने से बूडसू के ज़मींदार ने जब उनकी कला प्रेम और काव्य रचना की चर्चा सुनी तब उन्हें बुलाकर एक विषय दिया और रात भर में उस पर एक ख्याल रचने की चुनौती दी गई। लेकिन उन्होंने दूसरे ही दिन न केवल रचना तैयार की बल्कि उसे मंचित भी करके दिखा दिया था। दाढ़ी एवं मूछें होते हुए भी लच्छीराम को, अपनी दाढ़ी को सलीक़े से बांधकर घूंघट निकालकर ज़नाना भूमिकाएँ निभाने में महारत हासिल थी। श्रृंगार प्रेमी एवं अल्मस्त तबियत से वे स्त्रियों के स्वर्ण आभूषण पहन कर नायिका का श्रृंगार करते थे।

पं. लच्छीराम ने अपनी एक व्यावसायिक मंडली का गठन किया था और वह मारवाड़ के विभिन्न गाँवों में घूमते हुए “ख्याल” का प्रदर्शन किया करते थे। रात्रि के समय इनकी मंडली गाँवों के चैपालों पर मंच बना कर नगाड़ा, ढ़ोलक और हारमोनियम जैस संगीत के यंत्रों पर मधुर लोक भजनों, क़िस्सों के साथ दर्शकों को भाव-विभार कर देते थे। कुछ समय बाद वो कुचामन शहर में बस गये। कुचामन मारवाड़ (पूर्व जोधपुर राज्य) का प्रसिद्ध क़स्बा है। यह प्रमुख ठिकानों में से एक है। यहाँ के लोकप्रिय ठाकुर को राजा साहिब का ख़िताब भी प्राप्त था। वहीं सेठों एवं व्यापारियों की यह नगरी हमेशा से ही साहित्य, संस्कृति, कला एवं स्थापत्य का प्रमुख केन्द्र रही है। इसी नगर के नाम से यह ख़्याल प्रचलित है। पं. लच्छीराम की एक लम्बी शिष्य-परम्परा रही है।

राजस्थान के नक़्शे पर मारवाड़   | विकिमीडिआ कॉमन्स

कुचामन के अतिरिक्त मारवाड़ राज्य के अनेक गांव-क़स्बों में भी इस ख्याल के लिए मंडलियां प्रारम्भ हुई थीं। कुछ ऐसे उस्ताद ख्याल के लेखक भी थे। इनमें से पूनमचंद सिखवाल, धन्नालाल, मोतीलाल, भीकमचंद, नन्दलाल और पं. उगमराज खिलाड़ी मेड़ता रोड़ के अलावा कई अन्य हुए हैं जिनके लिखे ख्यालों का तत्कालीन समय में अधिक प्रचलन रहा था। प्रमुख मण्डलियाँ:- राजस्थान में कुचामणी ख्याल को प्रदर्शित करने वाली अनेक मंडलियां हैं जो कई क़स्बों, नगरों, गाँवो में आज भी सक्रिय रूप से इस प्राचीन खेल परम्परा को जीवित रखे हुए हैं। इनमें कुचामण के गणपतलाल, परता और सुरजा, महबूब अली चुई, महबूब अली मोकाला व उगमराज खिलाड़ी एण्ड पार्टी हैं।

इनके द्वारा वर्तमान में राज्य की विभिन्न जगहों पर ख्याल प्रदर्शित किया जाता है। पं. लच्छीराम के बाद इस ख्याल को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय पं. उगमराज खिलाड़ी व बंशीलाल चुई व मारवाड़ लोक कला मण्डल, राम रहीम कला मण्डल, सहित अन्य मण्डलों को दिया जाता है। जिन्होंने नीदरलैंड में अलारिपु संस्थान के सहयोग से भक्त शिरोमणि मीरांबाई के जीवनवृत पर ‘‘मीरा मंगल’’ ख्याल बनाकर उसका निर्देशन एवं प्रदर्शन देश-विदेश में किया है। वर्तमान समय में राजकीय लोक सांस्कृतिक मंचों पर मेड़ता क्षेत्र के अनेक कलाकार आज भी इस अनमोल विरासत को संजोय हुए हैं।

ख़्याल की विषयवस्तु-
लेखक अपने ख़्यालों का जो शीर्षक देते हैं, उनके शीर्षकों से उनके विषयों का पता चल जाता है।साथ ही परिवार, समाज और तत्कालीन व्यवस्था तंत्र भी उनकी लेखकीय दृष्टि से ओझल नहीं रहे है। कुचामनी ख्यालों को विषय-वस्तु की दृष्टि से ऐतिहासिक, श्रृंगारिक, सामाजिक, धार्मिक प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।

ख्याल नाटक की प्रस्तुति | नरेन्द्रसिंह जसनगर

पं. लच्छीराम के गुरु:- उनके उस्ताद को लेकर एक किंवदन्ती है जो उन्हीं के कविता से प्रमाणित है और वह काफ़ी लोकप्रिय भी है। लच्छीराम हुकमीचन्द पोखरणा को अपना गुरु स्वीकार कर चुके थे। हालांकि उनकी कभी भेंट तक नहीं हुई थी। यह गुरु और शिष्य का क़िस्सा द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा से भी अद्भूत है। लच्छीराम अपने उस्ताद या गुरु से कभी भी मिले नहीं । उन्हें यह भी पता नहीं था कि हुकमीचन्द कहां के रहने वाले थे और क्या वह स्वयं भी किसी ख्याल पद्धति के प्र्रवर्तक रहे थे। मगर लच्छीराम अपनी ख्याल शैली में गुरु वंदना कुछ इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं:-
नाम सुण उस्ताद थरदियो
पिछलो धरम निभायो है
हुकमीचन्द जी पोकरणा रो
म्हे दर्शन नहीं पायो है।
कवि काव्य छंद कुछ नहीं जाणूं
आ गुरुवां की माया है
शार्गिद होय बदल जावे तो
व्हो सतमुता का जाया है।

नाम सुनकर गुरु स्वीकार करना और उसे अपनी पूरी प्रतिभा समर्पित कर देना, उस महान
कलाकार की महानता के परिचायक है।

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading