त्रिपुरा का शाही परिवार और भारत की पहली सेल्फ़ी

त्रिपुरा का शाही परिवार और भारत की पहली सेल्फ़ी

“तस्वीर बनाता हूं, तस्वीर नहीं बनती”

एक ज़माना यह भी था। और आज यह वक़्त आ गया है, कि आपको अपनी खुद की तस्वीर खिंचवाने के लिये किसी और की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। इस कला को सेल्फ़ी कहा जाता है। आज सेल्फ़ी का चलन बच्चों के खेल की तरह की तरह हो गया है। लेकिन भारत में सेल्फ़ी का रिवाज बहुत पुराना है।

त्रिपुरा के माणिक्य वंश के महाराजा बीर चंद्र माणिक्य देव बर्मन (शासनकाल 1862- 1896) और उनकी तीसरी रानी खुनम चानू मनमोहिनी (जन्म तिथि अज्ञात-मृत्यु 1905) को भारत में फोटोग्राफ़ी के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। उन्होंने न केवल फ़ोटोग्राफ़ी के क्षेत्र में काम किया और उसे प्रोत्साहित किया, बल्कि अपने ख़ुद के चित्र के रूप में अपनी सेल्फी भी ली, जो भारत की पहली सेल्फ़ी मानी जाती है। दिलचस्प बात यह है, कि बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं, कि त्रिपुरा की खुनम चानू मनमोहिनी भारत की उन शुरुआती महिलाओं में से एक थीं,जो फोटोग्राफ़ी का हुनर जानती थीं।

महाराजा बीर चन्द्र माणिक्य | विकी कॉमन्स

माणिक्य वंश की शुरूआत के बारे में बहुत कम जानकारी है। त्रिपुरा के राजाओं ‘राजमाला’ के 15वीं शताब्दी के इतिहास में दावा किया गया है, कि इनका शासन 13वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ था, जो 16वीं शताब्दी की शुरुआत में दक्षिण में सुंदरबन और उत्तर में अहोम क्षेत्र (आधुनिक असम) की सीमाओं तक फैल गया था। उनकी राजधानी उदयपुर (अब आधुनिक त्रिपुरा में) हुआ करती थी। लेकिन 17वीं शताब्दी के दौरान पूर्व में मुग़ल प्रभाव बढ़ने के साथ ही उनके गौरवशाली दिन समाप्त हो गये, और 18वीं शताब्दी में बंगाल के नवाबों के शासनकाल के दौरान त्रिपुरा एक सहायक प्रांत बनकर रह गया। स्थानीय कुकी जनजातियों के साथ झड़पों के डर से और अंग्रेज़ों के साथ, जिनका प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाई में उनकी जीत के बाद अधिकार क्षेत्र अब धीरे-धीरे बढ़ रहा था, बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए अगरतला को राजधानी बनाया, जो अब त्रिपुरा की राजधानी है। 19वीं शताब्दी में त्रिपुरा ब्रिटिश संरक्षित राज्य हो गया।

दूसरी ओर, त्रिपुरा के शासकों के अपने पड़ोसी मणिपुरी शासकों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। दोनों के बीच अक्सर आंतरिक संघर्ष होते रहते थे, जो आख़िरकार 18वीं शताब्दी के अंत में तब समाप्त हुये, जब राजधर माणिक्य-II (शासनकाल 1785-1806) ने मणिपुर की राजकुमारी हरिश्वरी देवी से शादी रचाई थी। शासक बीर चंद्र माणिक्य देव बर्मन के शासनकाल के दौरान इस परंपरा का एक नया दौर शुरु हुआ। उन्होंने राजकुमारी निंगथेन चानू भानुमती और ईश्वरी राजेश्वरी महादेवी (काबोकले) से शादी की। बाद में उन्होंने भानुमती की भतीजी खुनम चानू मनमोहिनी से तीसरी शादी की, जो सिर्फ 13 साल की थीं।

प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक राजा राम मोहन राय (1772-1833) की विचारधारा और दर्शन से प्रेरित होकर बीर चंद्र ने अपनी रियासत में कई सुधारों की शुरुआत की, जिसे कई इतिहासकार एक ‘पुनरुत्थानवादी आंदोलन’ होने का दावा करते हैं। उन्होंने ग़ुलामी और सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया तथा विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया। माणिक्य ने अपने शासन के पहले वर्ष से अगरतला का शहरीकरण किया, और अगरतला नगर पालिका की स्थापना की। उन्होंने यूरोपीय मॉडल की तर्ज़ पर शिक्षा और प्रशासन में कई सुधार किये।

त्रिपुरा रियासत का शाही ध्वज | विकी कॉमन्स

वह कला, संगीत और साहित्य के बड़े संरक्षक थे, और उन्होंने वैष्णव पदावली पर आधारित कई कविताओं की रचना की।प्रशासन, कला और विज्ञान में उनके योगदान के साथ-साथ वो चीज़ जो बीर चन्द्र सबसे अलग बनाती है, वो थी फोटोग्राफ़ी के क्षेत्र में उनका योगदान। कहा जाता है, कि सत्ता संभालने के पहले से ही वह फ़ोटोग्राफ़ी क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों पर नज़र रखते थे। वह इंदौर के राजा दीन दयाल (1844-1905) के बाद दूसरे भारतीय राजा थे, जिनके पास कैमरा था। इनके अलावा जयपुर के शासक सवाई राम सिंह- द्वितीय (शासनकाल1835- 1881) का, इसी अवधि के दौरान एक अंग्रेज़ मेहमान ने इस कला से परिचय कराया था।

शुरु में, बीर चंद्र को प्रिंट और फ़ोटोग्राफ़ी की सामग्री प्राप्त करने में कठिनाई हुई। तब ये सामान कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) से मंगवाया जाता था। इस वजह से उन्होंने अपने शाही महल (उज्जयंता) में एक डार्क रूम बनवाया, जहां उन्होंने न सिर्फ़ फ्रेम बनाने और कोटिंग की प्रक्रिया को सीखा, बल्कि वह यूरोप से ख़ुद के लिये, फ़ोटोग्राफ़ी का ज़रूरी रसायन और सहायक उपकरण मंगवाने लगे। उन्होंने एक स्टूडियो भी बनवाया, जहां अक्सर तस्वीर खींचने के लिये बैकग्राउंड और सजावट का सामान बदला जाता था।

उज्जयंता महल, अगरतला | विकी कॉमन्स

सन 1880 ईस्वी का दशक बीर चंद्र के लिए एक महत्वपूर्ण दशक साबित हुआ। एक तरफ़ वह अपनी पहली पत्नी भानुमति की मृत्यु (1882 में) के शोक में डूबे हुये थे, और इसी दुख में उन्होंने “प्रेम मरीचिका काव्य” उपन्यास लिखा, जिसकी वजह से वह प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर (1861-1941) के क़रीब हो गये। वह उनके साथ अपने रचनात्मक विचारों का आदान-प्रदान करते थे। दूसरी तरफ़ उन्होंने फोटोग्राफ़ी की कला में बड़े पैमाने पर काम किया। फ़ोटोग्राफ़ी की नई तकनीकों को ध्यान में रखते हुए, बीर चंद्र ने अपनी छोटी पत्नी मनमोहिनी को फोटोग्राफ़ी की कला सिखाई, जिन्हें इसमें गहरी दिलचस्पी थी। उन्होंने न सिर्फ़ कम समय में ये कला सीखी, बल्कि तस्वीरें खींचना, फ़िल्म विकसित करना, और प्रिंट करना भी सीख लिया। इस तरह वह पहली भारतीय महिला फ़ोटोग्राफ़र बन गईं।

एक तरफ़ जहां उपमहाद्वीप के फ़ोटोग्राफ़र, पारंपरिक तरीक़ों यानी तरह-तरह के पृष्ठभूमि, वेशभूषा और अन्य चीजों के साथ फ़ोटो खींच रहे थे। वहीं बीर चंद्र नये-नये प्रयोग कर रहे थे। एक बार बीर चंद्र ने कैमरे के साथ एक लम्बा तार जोड़ा, उस तार में एक शटर लगाया, एक सादा-सा बैकग्राउंड बनाया और फिर मनमोहिनी के साथ थोड़ा अंतरंग मुद्रा में (एक शाही जोड़े के लिए असामान्य) कैमरे के सामने पोज़ किया और शटर दबाया। इस तरह उन्होंने अपनी खुद की तस्वीर खींची । इस तस्वीर को भारत के पहले सेल्फ़-पोर्ट्रेट के रूप में जाना जाता है। इसे किसी भी भारतीय जोड़े की पहली ‘सेल्फ़ी’ भी कहा जा सकता है!

महारानी खुमान चानू मनमोहिनी | विकी कॉमन्स

बीर चंद्र ने “दि कैमरा क्लब ऑफ़ द पैलेस ऑफ़ अगरतला” नामक एक क्लब बनाया था, जहां वह अपने और मनमोहिनी की खींची गई तस्वीरों की प्रदर्शनी आयोजित करते थे। इसे भारतीय उपमहाद्वीप की फ़ोटोग्राफ़ी की पहली प्रदर्शनी मानी  जाता है। उनके फ़ोटोग्राफ़ीके क्षेत्र में योगदानका ज़िक्र अमेरिका कीफ़ोटोग्राफ़ी की पत्रिका ‘प्रैक्टिकल फ़ोटोग्राफ़र’, में किया गया था जिसके एक अंक (तारीख़ अज्ञात) में महाराजा की सचित्र जीवनी प्रकाशित की गई थी। फोटोग्राफ़िक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की पत्रिका के, मई सन 1890 ईस्वी के अंक में बीरचंद्र का भेजा गया एक पत्र प्रकाशित हुआ था। पत्र के साथ-साथ वो तस्वीरें भी छपी थीं, जो उन्होंने और उनकी पत्नी मनमोहिनी ने खींची थीं। पत्र में उनके क्लब के बारे में भी जानकारी दी गई थी। ज़्यादातर तस्वीरें मनमोहिनी ने प्रिंट की थीं। महराजा की खींची गई तस्वीरों पर महाराजा का नाम और महारानी की खींची तस्वीरों पर महारानी का दिया गया था।

सन 1896 ईस्वी में बीर चंद्र और सन 1905 ईस्वी में मनमोहिनी के देहांत के बाद उनके बच्चों ने उनकी विरासत आगे बढ़ाई। समरेंद्र चंद्र देव बर्मन (जन्म और मृत्यु अज्ञात) भी फ़ोटोग्राफ़र बन गये थे। फ़ोटोग्राफ़ी पर उनका काम और लेखन प्रमाण लिखित रुप में मौजूद है। उनके द्वारा एक आदिवासी लड़की की खींची गई तस्वीरें बहुत चर्चित हुई थी, और ये एक ब्रिटिश पुस्तकालय में लगाई गई थी। उन्होंने भारत के गर्म और उमस भरे मौसम में तस्वीरों के निगेटिव सुरक्षित रखने के तरीकटों के साथ भी प्रयोग किया था।

त्रिपुरा को फ़ोटोग्राफ़ी के नक़्शे पर लाने वाले उपकरणों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन शाही परिवार, बीर चंद्र, मनमोहिनी और उनके बच्चों द्वारा खींची गई कुछ तस्वीरों की प्रदर्शनी देशभर में आयोजित करता रहता है। इनमें सबसे ख़ास वह पहली ‘सेल्फ़ी’ होती है, जो भारत के उत्तर-पूर्व के एक शासक ने अपनी उस पत्नी के साथ ख़ुद खींची थी, जिन्हें भारत की पहली महिला फ़ोटोग्राफ़र होने का श्रेय प्राप्त है।

मुख्य चित्र: महारानी खुमान चानू मनमोहिनी और महाराजा बीर चन्द्र माणिक्य के साथ खींची गयी तस्वीर, भारत की पहली सेल्फ-पोर्ट्रेट- विकी कॉमन्स

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