पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, भारत का भूगोल भगवान शिव को समर्पित मंदिरों से भरा है। उनकी पूजा, जिसे शैववाद कहा जाता है, भारत में धर्म के सबसे पुराने रूपों में से एक है, जो 2000 से अधिक वर्षों से मौजूद है। शिव की सबसे पुरानी और सबसे शानदार प्रतिमाएँ एलिफेंटा और एलोरा में चालुक्य और राष्ट्रकूट द्वारा निर्मित गुफा मंदिरों में मिलती हैं।
वर्षों से, शिव के भक्तों ने अपने भगवान के लिए विस्तृत मंदिरों का निर्माण किया है। आज हम आपको इनमें से 5 मंदिरों के भ्रमण पर ले चलते हैं। उनमें से एक भारत से बाहर भी है, जो दक्षिण भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया में शैव धर्म की यात्रा करने का एक उदाहरण है।
1- लिंगराज मंदिर, ओडिशा
क्या आप जानते हैं कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर का नाम शिव को समर्पित त्रिभुवनेश्वर (तीन विश्वों के भगवान) के नाम पर पड़ा है? और यह भी कि ओडिशा के सबसे बड़े और सबसे पुराने में से एक मंदिर लिंगराज में त्रिभुवनेश्वर का वास है?
लिंगराज मंदिर, कलिंगा की उत्कृष्ट शिल्पकारी को अपने शुद्ध और परिपक्व रूप में पेश करता है।इतिहासकार के.सी.पाणिग्राही के अनुसार सोमवंशी राजा यायाती-दिव्तीय ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ 11वीं शताब्दी में करवाया था। उदितोता केसरी के शिलालेख निकटवर्ती खंडगिरी गुफाओं में पाए जाते हैं जो उनके शासन और भुवनेश्वर क्षेत्र में और आसपास की वास्तुकला गतिविधियों में शामिल होने का सुझाव देते हैं| दिलचस्प बात यह है कि सोमवंशी राजवंश के बाद ओडिशा पर शासन करनेवाले गंगा राजवंश ने भी वहां कुछ नये निर्माण करवाये थे, वह आज भी मौजूद हैं।
लिंगराज मंदिर के चार प्रमुख भाग हैं- विमान (ढ़ांचा जिसमें गर्भगृह शामिल है), जगनमोहन (सभा-स्थल), नट-मंदिर (उत्सव-स्थल) और भोग मंडप (प्रार्थना स्थल)। नृत्य स्थल जो उस दौर में मौजूद देवदासी प्रथा के उत्थान के साथ जुड़ा था। और पढ़ें
2 – भोजेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश
भोपाल से क़रीब 28 कि.मी. दूर मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में बेतवा नदी के तट पर एक छोटा-सा गांव है भोजपुर। यहां मंदिर का निर्माण मालवा के परमार शासक राजा भोज (1010-1055) ने करवाया था। राजा भोज अपनी राजधानी धार में रहते थे और वह कला, साहित्य और विज्ञान के बड़े संरक्षक थे। लोक कथाओं के अनुसार राजा भोज ने भोपाल बसाया था जिसे तब भोजपाल कहा जाता था।
कहा जाता है कि राजा भोज ने भोजपुर में मिट्टी के तीन बड़े बांध बनवा और एक बड़ा तालाब भी बनवाया जिसमें पानी जमा किया जाता था लेकिन बाद में मालवा के सुल्तान होशंग शाह ने इन्हें नष्ट कर दिया। इस मानव निर्मित तालाब के किनारों पर उन्होंने भोजेश्वर नाम से एक विशाल मंदिर बनवाने की योजना तैयार करवाई थी। मंदिर के लिए जो शिव लिंग बनवाया गया था वह 7.5 फ़ुट ऊंचा है और 17.8 फ़ुट इसकी परिधि है। ये शिवलिंग एक चौकोर प्लेटफ़ार्म पर बना हुआ है जिसके किनारे 21.5 फुट लंबें हैं। प्लेटफ़ार्म सहित लिंगम की कुल ऊंचाई 40 फ़ुट से अधिक है। इसी वजह से ये भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग है। ये तीन बड़े चूना-पत्थर का बना है जो एक दूसरे पर चढ़े हुए हैं।
मंदिर निर्माण का सही समय तो ज्ञात नहीं है लेकिन इतिहासकार डॉ. कीर्ति मनकोडी के अनुसार ये मंदिर राजा भोज के बाद के शासनकाल में क़रीब 11वीं शताब्दी के मध्य में बना था। मंदिर निर्माण का कार्य बीच में ही रुक गया था और ये कभी पूरा नहीं हो सका। और पढ़ें
3- अंबरनाथ मंदिर, महाराष्ट्र
मुंबई के पास अंबरनाथ रेल्वे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर अंबरनाथ शिवालय न सिर्फ़ महाराष्ट्र बल्कि भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है | ये मंदिर भूमिज शैली में बना है, मंदिर बनाने की ये शैली ९वीं और १३वीं सदी के दौरान मध्य और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित थी | यह मंदिर बनाने का काम उत्तर कोंकण के शिलाहार राजवंश के १२वें शासक महामंडलेश्वर श्री छित्तराजदेव (सन १०२२- १०३५) के शासनकाल में शुरू हुआ था और सन १०६० में १४ वें शासक महामंडलेश्वराधिपती श्री माम्वणीराज के शासनकाल में मंदिर बनकर तैयार हो गया था | उत्तर कोंकण शिलाहार शाखा के राजदरबार के राजकवि सोढ्ढल के उदयसुंदरी कथा नामक ग्रंथ में हमें छित्तराजदेव, नागार्जुन और माम्वणी इन तीन शिलाहार शासक भाईयों के बारे में जानकारी मिलती है |
इस मंदिर की बाहरी दिवारों पर भगवान शिव के अनेक रुप बने हुए हैं जिसमें मार्कंडेयानुग्रह शिव, त्रिपुरांतक शिव, भिक्षाटन शिव, गजासूरवध शिव के साथ साथ यह मंदिर महिषासुरमर्दिनी, गणेश, विष्णु, कार्तिकेय, नरसिंह, चंडिका आदि देवी- देवताओं की सुंदर मुर्तियों से सजा है | इस मंदिर की सबसे सुंदर मूर्तियों में गजासूर वध शिवमूर्ति और महिषासुरमर्दिनी है | इन मूर्तियों में भगवान शिव और देवी दुर्गा त्रिशूल से असुरों का वध करते हुए दिखाई देते हैं | इस मंदिर पर हरिहर पितामहसूर्य प्रतिमा भी दिखाई देती है |
यह मूर्ति विष्णु (हरी), शिव (हर), ब्रह्मदेव (पितामह) और सूर्य की मिलीजुली प्रतिमा है. इसके अलावा मंदिर के अंदर के स्तंभ और बाहरी दीवारों पर ब्रह्मदेव की कम से कम ८ प्रतिमाएं हैं | ठाणे और नाला सोपारा में भी ब्रम्हादेव की प्राचीन मूर्तियां मिली हैं जिससे हमें पता चलता है कि प्राचीन काल में यहां ब्रह्मदेव की उपासना होती थी | और पढ़ें
4- प्रम्बानन मंदिर, इंडोनेशिया
क्या आपको पता है कि इंडोनेशिया में प्रम्बानन मंदिर परिसर में 240 से भी ज़्यादा मंदिरों के अवशेष हैं और ये स्थान इंडोनेशिया में हिंदू मंदिरों का सबसे बड़ा स्थान है? 9वीं शताब्दी में स्थापित प्रम्बानन शिव, ब्रह्मा और विष्णु को समर्पित विशाल और भव्य मंदिरों के लिये जाना जाता है।
इतिहासकारों का कहना है कि प्रम्बनन में मुख्य मंदिरों की नींव मेदांग साम्राज्य के संजय राजवंश के राजा रकाई पिकातन ने रखी थी। जावा में 8वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान ये साम्राज्य बहुत संपन्न था।
संजय राजवंश हिंदू धर्म को बहुत बढ़ावा देता था। हिंदू धर्म व्यापारियों, नाविकों, विद्वानों और पुरोहियों के ज़रिये पहली शताब्दी में इंडोनेशिया पहुंचा था। छठी शताब्दी से यहां जावा संस्कृति और हिंदू विचारों का विलय (फ़्यूज़न) हुआ था जिससे यहां बौद्ध धर्म की अवधारणा बनी। इस तरह यहां इंडोनेशियई हिंदू धर्म ने जन्म लिया।
20वीं शताब्दी के मध्य में प्रम्बानन में खुदाई हुई जिसमें मुख्य मंदिरों का पता चला। खुदाई के दौरान शिव मंदिर के बीच एक प्रीपिह (पत्थर का डिब्बा) मिला। ये डिब्बा कोयले, मिट्टी और जलाए गए पशु के अवशेषों के ढ़ेर के ऊपर रखा हुआ था। यहां सोने की पत्तियों के पत्तर भी मिले जिन पर वरुण (समुद्र के देवता) और पर्वत (पर्वत के देवता) का उत्कीर्णन था। डिब्बे में तांबे के पत्तर, कोयला, मिट्टी, बीस सिक्के, आभूषण, ग्लास, सोने और चांदी की पत्तियों के टुकड़े, समुद्री सीपियां और 12 सोने की पत्तियां मिली। सोने की पत्तियों में से पांच पत्तियां कछुए, ड्रेगन, पद्म, वेदी और अंडे के आकार में कटी हुई थीं। और पढ़ें
5- कांची कैलाशनाथ मंदिर तमिलनाडु
कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरम की सबसे पुरानी संरचना है। भारत के तमिलनाडु में स्थित, यह तमिल स्थापत्य शैली में एक हिंदू मंदिर है। मंदिर 685-705 ई.पू. से पल्लव राजवंश के शासक (नरसिंहवर्मन द्वितीय) द्वारा बनाया गया था। और जानकारी के लिए देखें यह वीडियो
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