भूत-प्रेम, आत्मा, जिन व बेताल के किस्से व किवंदतिया अक्सर हम सभी सुनते रहते हैं। क्या वास्तव में भूत-प्रेत आदि यह सभी होते हैं या नहीं, इस संबंध में देश-विदेश में कई शोध कार्य हो रहे हैं, जिनमें यह बात सामने आ रही है कि इन सभी का अस्तित्व शायद होता है मगर कुछ लोग इनकी घटनाओं को सत्य मानते हैं और कुछ इन्हें कपोल कल्पित मानते हैं। लेकिन कई ऐसी बाते सुनने में ज़रूर आती हैं जो बड़ी ही रोमांचकारी होती है। आज आपको एक ऐसी ही घटित घटना से रूबरू करवा रहे हैं। तो चलिए हमारे साथ मारवाड़ क्षेत्र के रणसी गाँव में जो जोधपुर से लगभग 90 किमी दूरी पर बोरून्दा के पास स्थित है।
मंडोर (मारवाड़) के शासक राव रणमल के निधन के बाद यहां राठौड़ राज्य पर संकट के बादल छा गए थे। मंडोर के प्राचीन किले पर मेवाड़ी सेना का अधिपत्य हो गया था। वस्तुतः राव जोधा की स्थिति उस समय बड़ी शोचनीय थी लेकिन जोधा ने हिम्मत नहीं हारी ओर अपने पैतृक राज्य की प्राप्ति का सतत प्रयत्न जारी रखा ओर कई युद्धों के बाद आखिरकार ई. 1453 (वि.सं. 1510) को मंडोर पर अधिकार हो गया।
मंडोर किले को असुरक्षित जानकर जोधा ने समीप की एक पहाड़ी पर नवीन दुर्ग की आधार शिला रखकर अपने नाम से नया जोधपुर शहर बसाया। इसके बाद आस-पास के विजित प्रदेशों एवं भूभाग की सुरक्षा के लिए अपने भाई बन्धु व पुत्रों में बांट दिए। इस प्रकार भाई चांपा को बनाड़ व कापरड़ा गांव का क्षेत्र दिया गया था।
इन्हीं के वंशज चांपावत कहलाते हैं। भंवर परीक्षित सिंह बताते हैं कि संवत् 1600 के लगभग इनके वंश के ठाकुर जयसिंह उर्फ जैसाजी को एक बार जंगल से गुजरते समय एक संत महात्मा ने कहां कि कहीं गांव बसाने जा रहे हो तो जिस स्थान पर रणसिंघा वाद्ययंत्र की आवाज सुनाई दे वहीं पर नया गांव आबाद करना है। जब वह वर्तमान रणसी गांव वाले क्षेत्र में पहुंचे तब अचानक यंत्र की आवाज़ सुनी तो यहीं पर गांव की स्थापना की थी।
भूत बावड़ी और महल:- गांव के बाहर इस विशाल कलात्मक बावड़ी को भूत की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। लाल मजबूत कठोर पत्थर से निर्मित यह बावड़ी लगभग 250 फीट गहरी हैं इसमें नकक्शीदार चौदह विशाल पोल द्वार ओर अन्दर पानी तक पहुँचने के लिए करीब दो सौ सीढ़िया बनी हुई है। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि इतने बड़े-बड़े शिलाखण्डों को लाॅक तकनीक जैसे इस प्रकार से जोड़े हुए है कि आधे से भी ज्यादा झुके होने के बाद भी आज तक इतने सालों बाद भी गिरे नहीं है। बावड़ी की सीढियों पर दो बड़े-बड़े पांवों के चिन्ह भी बने हुए हैं जिन्हें ग्रामीण भूत के पांव मानते हैं।
बावड़ी में प्रवेश करते ही एक पत्थर पर एक चित्र उत्कीर्ण किया हुआ है जिसमें एक व्यक्ति उड़ते हुए एक भूत को पकड़े हुए है। वहीं अन्तिम सीढ़ी के पास एक ही पत्थर से निर्मित देव आकृति प्रतित होती है। इसी बावड़ी का मीठा पानी जोधपुर शहर को वर्षों तक रेलगाड़ी के माध्यम से भेजा जाता था।
बावड़ी के पास स्थित राजसी अश्वशाला के घोड़े व घोड़ियों ने अपनी पहचान देश-विदेश तक बनाई है। यह गांव चूना पत्थर (लाईम स्टोन) के कारण भी विख्यात है। चांपावत वंश की यह भूमि कई वीरों की जननी भी रही है। गांव में स्थित तपस्वी शिवनाथ बाबा की स्थली, महल व विशाल बावड़ी को देखने प्रति वर्ष पर्यटक आते रहते हैं।
मगर इस बावड़ी और भवन निर्माण से एक बड़ी रोचक कहानी जुड़ी है, वो भी एक भूत की कहानी, जिसकी वजह से इसे भूत बावड़ी कहा जाता है।
एक बार ठाकुर जैसा जब अपने घोड़े पर सवार होकर जोधपुर की ओर से आ रहे थे रास्ते में चिरढ़ाणी गांव के पास रात्रि हो गई। गांव के पास बरसाती नाले के समीप नटयाली नाडी में पानी पीने के लिए रूके। जैसे ही पानी पीने लगे तब अचानक एक आकृति ने उनसे कहां कि पहले मुझे पानी पिला दिजिये में कई दिनों से प्यासा हूँ। मगर मैं पानी को छू नहीं सकता। तब ठाकुर को आश्चर्य हुआ। वो देवी के उपासक व निर्भीक भी थे अतः उन्होने उस भूत को पानी पिलाकर अपने पास रखी कुछ मदिरा व खाद्य सामग्री देकर भूत को तृप्त किया। थोड़ी ही देर बाद उस भूत ने ठाकुर को कुश्ती लड़ने की चुनौती दी। तब ठाकुर हैरान रहे गये मगर घबराये नहीं ओर अपनी कुलदेवी को याद कर भूत से मल्ल युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। आपस में लड़ते-लड़ते सुबह होने लगी तो भूत की शक्ति क्षीण हो गई ओर वो हार कर ठाकुर की अधीनता स्वीकार करते हुए कुछ निर्माण कार्य करने का वादा किया। भूत ने कहां मैं अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करूंगा यानी आप जो भी निमार्ण कार्य करेगें वो अचानक सौ गुना बढ़ जाएगा। तब ठाकुर ने रणसीगांव में महल, विशाल बावड़ी तथा नगर परकोटा बनाने का आदेश दिया। मगर भूत ने इस भेद को किसी अन्य को नहीं बताने की शर्त रखी।
अब भूत के सहयोग से महल और बावड़ी निर्माण कार्य शुरू हो गया। रात्रि में आश्चर्यजनक रूप से इस प्रकार इमारतों का निर्माण कार्य होने से पूरे गाँव में कौतूहल का वातावरण बन गया। रात्रि में पत्थरों को तोड़ने की आवाजे सुनाई दी मगर निर्माण स्थल पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था कि कौन इतने बड़े-बड़े पत्थरों की चुनाई कर रहा है। ठाकुर से उनकी पत्नी व लोगों ने इस रहस्य के विषय में जानकारी मांगी तो शर्त अनुसार उन्होंन किसी को कुछ नहीं बताया। ठुकरानी ने अन्न जल जोड़ने का बोला जब उन्होने यह रहस्य बता दिया। इस प्रकार भूत व ठाकुर के बीच हुई संधि के टूटते ही उनका सात मंजिला महल सिर्फ दो मंजिल ही रह गया तथा बावड़ी की अंतिम दीवार व नगर परकोटा अधुरा ही रह गया था।
वर्तमान में गांव के मध्य बने हुए इस शानदार महल व बावड़ी परिसर में ठाकुर जयसिंह के वंशज रहते हैं। इनके परिवार के लोग आज भी इस अद्भूत घटना को सुनाकर अपने पूर्वज को याद करते हैं
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