रानी अवंतीबाई और 1857 का विद्रोह  

रानी अवंतीबाई और 1857 का विद्रोह  

सन 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के ख़िलाफ़ हुई बग़ावत ने कई हीरो पैदा किये । आज़ादी के इस संग्राम में देश के लिये जान निछावर करने वालों में पुरुष और महिलायें सब शामिल थे। इनमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी तो अमर हो गई लेकिन आंग्रेज़ों से जमकर टक्कर लेनेवाली, मघ्य प्रदेश के मंडला ज़िले की रहनेवाली दिलेर रानी अवंतीबाई की कहानी कहीं खो गई ।

डिंडौरी,जबलपुर से 138 किलो मीटर दूर, मांडला ज़िले का एक छोटा सा गांव है जो 19वीं सदी में रियासत रामगढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां की रानी अवंतीबाई ने नर्मदा की वादी में अंग्रेज़ों के विरुध्द हुई बग़ावत में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था।

दिलचस्प बात यह है कि जब मध्यप्रदेश के संदर्भ में, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात की जाती है तो सिर्फ़ बुंदेलखंड और मालवा का ज़िक्र किया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि उस इलाक़े में भी बग़ावत का बिगुल बजा था जिसे आज महाकौशल के नाम से जाना जाता है। इस इलाक़े को सन 1818 में अंग्रेज़ों ने नागपुर के मराठा राजाओं को पराजित कर अपने क़ब्ज़े में कर लिया था। तब यह इलाक़ा “सागर और नर्मदा प्रांत” के नाम से जाना जाता था। जिसके अंतरगत सागर,दमोह,जबलपुर,सिवनी,मंडला,नरसिंहपुर, होशंगाबाद और बेतूल ज़िले आते थे।

अंग्रेज़ों के आने के बाद इस इलाक़े में कई प्रशासनिक बदलाव हुये थे । भारी टैक्स लगाये जाने की वजह से ज़मीदारों और किसानों में असंतोष पैदा हो गया । सन 1851 के बाद अंग्रेज़ों ने एक के बाद एक ज़मीदारों के इलाक़े ज़ब्त करने शुरू कर दिये। उसके बाद उन्होंने जंगलों पर भी क़ब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया, जिन्हें तब तक आदिवासियों की सम्पत्ति माना जाता था । इस सबकी वजह से पूरे इलाक़े में असंतोष की लहर पैदा हो गई ।

 

6 अगस्त, सन 1831 को, यानी असंतोष के उसी दौर में, एक स्थानीय ज़मींदार राजा जुझर सिंह के घर रानी अवंतीबाई का जन्म हुआ। उनका विवाह, रामगढ़( डिंडौरी ) के ज़मींदार राजा गजसिंह के पोते विक्रमादित्य सिंह से हुआ। विक्रमादित्य अपनी बीमारियों और धार्मिक रूचियों की वजह से राजकाज ठीक से नहीं चला पा रहे थे। उनकी मृत्यू के बाद ,नाबालिग़ होने की वजह से उनके पुत्रों, अमन सिंह और शेरसिंह को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया और उनकी ज़मींदारी कोर्ट आफ़ वार्ड्स को सौंप दी गई।

17 मई 1857 को मेरठ से बग़ावत की शुरूआत हुई जो तुरंत ही उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से में फैल गई। जल्द ही यह ख़बर जबलपुर पहुंच गई। जबलपुर में पहले से ही अंग्रेज़ों की एक बड़ी फौज मौजूद थी। अंग्रेज़ों के लिये अगले चंद महीने आनेवाले ख़तरों की वजह से बेचैनी भरे थे। सितम्बर 1857 आते आते उन्हें पता लग गया था, कि गढ़-मंडला के गौंड़ राजा शंकरसिंह के नेतृत्व में बग़ावत की योजना बनाई जा रही है। दूसरे ही दिन यानी 18 सितम्बर 1857 को अंग्रज़ों ने राजा शंकरसिंह और उनके बेटे को गिरफ़्तार कर लिया और तोप के मुंह पर रखकर उड़ा दिया। इस घटना ने बग़ावत को और हवा दे दी । देखते ही देखते सागर, दमोह, मंडला, जबलपुर और सिवनी में बग़ावत शुरू हो गई।

जेम्स रामसे, सर जॉन वॉटसन गॉर्डन द्वारा डलहौज़ी के पहले मार्केस | विकिमीडिया कॉमन्स 

मंडला ज़िले में, दिसम्बर 1857 में रानी अवंतीबाई के नेतृत्व में बग़ावत शुरू हुई। रानी अवंतीबाई ने चार हज़ार की फ़ौज इकट्ठा की और अंग्रेज़ी फ़ौज को अपनी सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया। वह पहले मंडला शहर पर हमला करना चाहती थीं पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अफ़सर और ज़िला कमिशनर चार्ल्स वाडिंगटन ने उनकी योजना को विफल कर दिया। वाडिंगटन रानी को रामगढ़ की राजधानी में घेरना चाहता था। जैसे ही रानी को इस बात का पता लगा कि वाडिंगटन एक बड़ी फौज लेकर उनकी राजधानी की तरफ़ बढ़ रहा है,उन्होंने घने जंगलों से घिरी देवहरगढ़ की पहाड़ी पर मोर्चा संभाल लिया। देवहरगढ़ से ही उन्होंने गुरिल्ला युद्ध लड़ा जो मार्च 1858 तक जारी रहा।

अंग्रेज़ फौजियों के हमले तेज़ होते गये। उस निर्णायक युद्ध में आख़िरकार 20 मार्च 1858 को रानी अवंतीबाई शहीद हो गईं। कुछ लोगों का कहना है कि अंग्रेज़ों की गिरफ़्तारी से बचने के लिये उन्होंने ख़ुद ही अपनी जान दे दी।

बरगी-बांध,जबलपुर  | विकिमीडिया कॉमन्स 

आज़ादी की पहली जंग में बहादुरी से लड़ कर शहीद हुई रानी अवंतीबाई की याद में सरकार ने 20 मार्च,1988 को, एक डाक टिकट जारी किया। 19 सितम्बर 2001 को, महाराष्ट्र सरकार ने भी उनकी याद में एक टिकट जारी किया। मध्यप्रदेश सरकार ने भी जबलपुर के बरगी-बांध का नाम उन्हीं के नाम पर यानी, “ रानी अवंतीबाई लोधी सागर “ रखा है । रानी अवंतीबाई लोधी जाति की थीं। इसीलिये वह अपनी जाति के लिये गौरव का प्रतीक बन गईं। दलितों के दिलों में वह एक हीरो तरह बसी हुई हैं।

भारत सरकार द्वारा जारी किया गया डाक टिकट   | विकिमीडिया कॉमन्स 

रानी अवंतीबाई को एक ज़माने में बिल्कुल भुला दिया गया था लेकिन 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनेवाली इस लोधी रानी के बारे में जानने की उत्सुक्ता आज फिर बढ़ रही है।

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading