भारत में इस्लाम सबसे पहले अरब व्यापारियों के साथ आया था। अगर आप केरल जाएंगे तो वहां आपको एक अरब व्यापारी द्वारा निर्मित भारत की सबसे पुरानी मस्जिद, चेरामन जुमा मस्जिद मिलेगी, जिसे सन 629 में बनवाया गया था।। इसी के साथ पवित्र क़ुरान भी भारत आया लेकिन बहुत बाद में यानी उत्तरी भारत में, इस्लामी राजवंशों के साथ। 13वीं सदी की शुरुआत के साथ क़ुरान का दर्जा एक किताब से कहीं ज़्यादा बढ़ गया।शाही ख़ानदानों के लिये बड़े और भव्य क़ुरान तैयार होने लगे। इस तरह के क़ुरान ख़ूबसूरत ख़त्ताती (लिखावट) से लिखे जाते थे और उन्हें हीरे जवाहरों से सजाया जाता था।
भारत को इस बात पर गर्व है कि उसके पास दुनिया के कुछ बेहतरीन क़ुरान हैं। इनमें से कुछ के बारे में हम आपको बताते हैं।
भारत के सबसे अनूठे क़ुरानों में से एक और वास्तव में पूरे विश्व का एक अनोखा क़ुरान है उत्तर प्रदेश के रामपुर के रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह में। इस क़ुरान की ख़ास अहमियत है,क्योंकि यह हज़रत अली यानी पैग़म्बर मोहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद के हाथ का लिखा हुआ है। हज़रत अली की शादी, पैग़म्बर मोहम्म्द की बेटी फ़ातिमा से हुई थी।
सातवीं सदी में लिखा गया यह क़ुरान रामपुर के नवाब कल्बे अली ख़ान( 1865-1887) ने सन 1872 में अपनी हज यात्रा के दौरान लिया था। इस क़ुरान की लिपि बहुत सरल है और जानवरों की खाल से बने काग़ज़ पर लिखा गया है। इस क़ुरान की चौड़ाई सिर्फ़ 2 से.मी और लम्बाई सिर्फ 3 सें.मी. है।
क़ुरान की एक और दिलचस्प हस्थलिखित, छोटे से आकार की पांडुलिपि है जो हैदराबाद के सालार जंग संग्रहालय में रखी है। हैदराबाद के मशहूर सालार जंग परिवार की तीन पीढ़ियों ने क़ुरान की कई दुर्लभ प्रतियां और पांडुलिपियां जमा की थीं। इन्ही में से एक है 9वीं शताब्दी का हस्थलिखित छोटे आकार का क़ुरान, जिसकी ख़ूबसूरत ख़त्ताती देखने लायक़ है। इसकी लम्बाई भी 3 से.मी. और चौड़ाई 2 से.मी. है।
यह 31 पन्नों पर छपा है और इसमें बेहतरीन कारीगिरी दिखाई गई है। दुनिया में इस करह के सिर्फ़ दो ही क़ुरान हैं, एक सालार जंग संग्रहालय में और दूसरा ईरान में।
रामपुर में सरल कुरान के मुक़ाबले , मुगल बादशाह औरंगज़ैब का क़ुरान काफी भव्य है। कहा जाता है कि औरंगज़ैब अपने हाथ से क़ुरान लिखता था और उससे जो आमदनी होती थी, उसे ख़ैरात कर देता था। सन 2010 में, संयुक्त अरब अमारात में हुई नीलामी में एक क़ुरान भी रखा गया था। बताया गया था कि वह बादशाह औरंगज़ैब के हाथ का लिखा था। यह क़ुरान मूल्यवान खनिजों से बनी रौशनाई( सियाही) से लिखे गये हैं । रौश्नाई माणिक,राजवर्त रत्न और रक्तमणि जैसे क़ीमती पत्थरों को मिलाकर बनाई जाती थी।
कहा जाता है कि औरंगज़ैब ने चंद पन्ने ख़ुद लिखे थे और फिर बाक़ी का काम पूरा करने के लिये, दूसरे कलाकारों को सौंप दिया था। उन कलाकारों के लिये महल में एक ख़ास जगह भी बनाई गई थी। हर पन्ने पर सोने की रौशनाई से बाउंड्री बनाई गई थी, उसके अंदर लिखाई की थी। लिखाई, प्राकृतिक खनिजों और चावल को मिला कर हाथ से बने काग़ज़ पर हुई थी। यह क़ुरान एक निजी संग्रह में रखी हुई है।
एक और क़ुरान है जो कपड़े पर छपा हुआ है जिसे मुग़ल शिल्पकारी का अद्भुत नमूना माना जाता है। मुंशी अब्द ख़ान अल क़ादरी ने पूरे कपड़े पर क़ुरान की आयतें लिखीं थीं। उन्हें यह काम पूरा करने में कुल दो साल लग गये थे। उन्होंने 31 जुलाई सन 1718 को काम शुरू किया था जो 11 जुलाई 1720 में पूरा हुआ था। वह क़ुरान उस समय के, इलाहबाद के मुग़ल सूबेदार अमीर अब्दुल्लाह को भेंट किया गया था।
कपड़े पर लिखा गया यह क़ुरान काफ़ी लम्बा था यानी 9.5 फ़ुट लम्बा और 5 फ़ुट चौड़ा। सबसे दिलचस्प बात यह थी कि रौशनाई( सियाही) सोना,चांदी, हीरों के बुरादे , बेशक़ीमता पत्थरों और सीपियों को मिला कर बनाई गई थी। यह क़ुरान अब टोरोंटो (कनाडा) के आग़ा ख़ान संग्रहालय में रखा है।
यह चंद अद्भुत क़ुरान हैं जो आज भी सुरक्षित हैं और जिनके बारे में हमें पता भी है। अनोखी चीज़ों को जमा करने के शौक़ीनों के पास, इनके अलावा भी अन्य अद्भुत क़ुरान हो सकते हैं।
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