उत्तराखंड की शिवालिक पहाड़ियों के साय़ में छुपा हुआ, भारत का यह सबसे पुराना इंजीनियरिंग कालेज, इंडियन इंस्टिट्यूट आफ़ टैक्नालाजी रुड़की है। इसकी ख़ास बात यह है कि यह कालेज एक सानदार स्मार्क तो है ही इसकी कहानी भी सम्मोहक है । आईआईटी रुड़की को आपातकालीन स्थिति में स्थापित किया गया ता ताकि वह एक राष्ट्रीय आपात स्थिति में अपने देश को बचा सके।
सन 1837-38 में, आगरा में पड़े भयानक अकाल से आठ लाख लोग प्रभावित हुए थे और बचाव कार्यों पर एक करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे। उसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दोआब क्षेत्र यानी गंगा और यमुना नदियों के बीच की भूमि के लिए सिंचाई व्यवस्था क़ायम करने का फ़ैसला किया। इस समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंन 500 मीटर लम्बी नहर बनाने के बारे में सोचा ताकि भविष्य में इस तरह की भयानक स्थिति को रोका जा सके।
यह प्रोजेक्ट सन 1842 में प्रारंभ हुआ लेकिन जल्द इंजीनियरिंग कठिनाईयों से घिर गया। प्रोजेक्ट के अधीक्षक जनरल कर्नल प्रोबी काटले को समझ में आ गया कि यह प्रोजेक्ट कुशल सहयोगियों के बिना पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने उत्तर-पश्चिम परांत के लेफ़्टिनेंट गवर्नर सर जैम्स थाम्सन( 1843-1852 तक अपनी बात पहुंचाई। जैसा कि कहा जाता है..बाक़ी सब इतिहास है…
उस आपात स्थिति में सिविल इंजीनियरों की व्यवस्थित ट्रैनिंग के लिए रुड़की कालेज खोला गया जो पहले थामसन कालेज और बाद में आआईटी रुड़की कहलाया। गंगा-नहर बनाने के लिए ब्रिटिश अफ़सरों और फ़ौजियों को, भारत में निर्माण-कार्य के लिए और इसमें इस्तमाल होने वाले सामान की विचित्रताओं के लिए भारतीय भाषा में निर्देशों की अवश्यकता थी। सोचा यही गया था कि अगर स्थानीय लोगों को उचित शिक्षा दी जाए तो वह उनके अनुभवों और स्थानीय मौसम के अभयस्त होने की वजह से बहुत उपयोगी साबित हों सकेंगे।
इस कालेज की वजह से, इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए जिस विज्ञान की ज़रूरत थी, वही विज्ञान आगे चलकर,इसके रख-रखाओ, इसे बेहतर बनाने और इसे आगे बढ़ाने के भी काम आना था। इस तरह भारत में सबसे पहले इंजीनियरिंग कालेज की बुनियाद रखी गई। 19 अक्तूबर 1847 को लेफ़्टिनेंट आर.मैक्लागन को इस कालेज का प्रिंसपल नियुक्त किया गया तब उनकी उम्र महज़ 27 वर्ष की थी।फिर 25 नवम्बर को इसका पाठ्यक्रम जारी किया गया। उसके बाद प्रिंसपल के अलावा एक हैड मास्टर, एक वास्तु-नक्शानवीस शिक्षक और दो अन्य भारतीय शिक्षक नियुक्त किए गए। हालांकि इस कालेज में पहला छात्र एक जनवरी 1848 को ही भरती हो पाया। तब वहां कोई ज़मीन उपलब्ध नहीं थी इसलिए कक्षाएं तम्बू में लगती थीं। लेकिन आज वही आईआईटी-रुडकी कालेज 365 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।
नवमबर सन1952 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने, इस कालेज को, इसकी योग्यता, उपयोग्यता और नए भारत की अवश्यक्ताओं को देखते हुए इसे आज़ाद भारत के पहले इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय का दर्जा दिलवा दिया था। इस कालेज से, सन 1852 में डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय राय बहादुर कन्हैयालाल थे।उन्होंने लाहौर के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में तीस साल तक अपनी सेवाएं दीं। उस दौरान उनकी देख रेख में बड़े पैमाने पर निर्माण और मरम्मत के काम हुए जिनमें मेयो स्कूल आफ़ आर्ट और शाहदरा इलाक़े में बने जहांगीर तथा आसिफ़ खां के मक़बरे भी शामिल थे। इस विश्वविद्यालय को सन 2001 में इंडियन इंस्टिट्यूट आफ़ टैक्नालाजी में तब्दील कर दिया गया।
यह इंस्टिट्यूट जितना पुराना माना जाता है, दस्तावेज़ बताते हैं कि यह उससे भी पुराना है। समाचार ऐजेंसी प्रैस ट्रस्ट आफ़ इंडिया की ख़बर के मुताबिक़ यहां कि महात्मा गांधी सेंट्रल लायब्रेरी में विलियम शेक्सपीयर के नाटकों की असली प्रतियां रखी हैं जो सन 1623 यानी शेक्सपीर की मृत्यु के ठीक सात साल बाद प्रकाशित हुईं थीं। पूरी दुनिया में उस समय की महज़ 235 कापियां मौजूद हैं। सन 2001 में, न्यूयार्क में क्रिस्टी की निलामी में, उनमें से ही एक कापी 44.15 करोड़ रुपय में निलाम हुई थी।
इस लायब्रेरी में एक और महत्वपूर्ण तस्तावेज़ रखा है। जो शायद उतना महत्वपूर्ण न हो, लेकिन उसका वह भावनात्मक रूप से महत्वपूरेण है। यह है, “गैंगीज़ चैनल वर्क्स बाय काटले” । इसमें गंगा-नहर (Canal) निर्माण के आरंभ से लेकर सन 1954 में इसके पूरा होने तक की तफ़्सील दर्ज है।एक अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है विज़िटर्स रजिस्टर जिसमें जवाहरलाल नेहरू के अंग्रेज़ी,हिंदी और उर्दू में दस्तख़त हैं, साथ ही 15 नवम्बर सन 1949 तारीख़ भी डली है।
क्या आप जानते हैं?
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान आआईटी रुड़की के कनवेंशन हाल का उपयोग विमानों को रखने के लिए भी किया गया था और यह कि सन 1990 तक यहां के छात्रों को बावरची रखने की इजाज़त भी थी।
नोट- कालेज आफ़ गुइंडी (चैन्नाई) का दावा है कि वह सबसे पुराना कालेज है। उसकी आधारशिला सन 1794 में रखी गई थी। इस हिसाब से इसे सबसे पुराना तक्नालाजी कालेज माना जाना चाहिए। लेकिन सच यह है कि सन 1794 में स्कूल आफ़ सर्वे क़ायम किया गया था। इसे मद्रास विश्वविद्यालय के अंतरगत कालेज का दर्जा सन1859 में दिया गया था।
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