क्या आपको पता है कि इंडोनेशिया में प्रम्बानन मंदिर परिसर में 240 से भी ज़्यादा मंदिरों के अवशेष हैं और ये स्थान इंडोनेशिया में हिंदू मंदिरों का सबसे बड़ा स्थान है? 9वीं शताब्दी में स्थापित प्रम्बानन शिव, ब्रह्मा और विष्णु को समर्पित विशाल और भव्य मंदिरों के लिये जाना जाता है।
प्रम्बानन को स्थानीय जावानीस भाषा में लारा जोंग्गरंग कहा जाता है। ये मध्य जावा और योग्यकर्ता प्रांतों की सीमा के बीच जकार्ता से 550 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
इतिहासकारों का कहना है कि प्रम्बनन में मुख्य मंदिरों की नींव मेदांग साम्राज्य के संजय राजवंश के राजा रकाई पिकातन ने रखी थी। मेदांग साम्राज्य को माताराम साम्राज्य भी कहा जाता है। प्राचीन जावा में 8वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान ये साम्राज्य बहुत संपन्न था। रकाई पिकातन के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने भी कई मंदिरों का निर्माण करवाया था।
संजय राजवंश हिंदू धर्म को बहुत बढ़ावा देता था। हिंदू धर्म व्यापारियों, नाविकों, विद्वानों और पुरोहियों के ज़रिये पहली शताब्दी में इंडोनेशिया पहुंचा था। छठी शताब्दी से यहां जावा संस्कृति और हिंदू विचारों का विलय (फ़्यूज़न) हुआ था जिससे यहां बौद्ध धर्म की अवधारणा बनी। इस तरह यहां इंडोनेशियई हिंदू धर्म ने जन्म लिया।
स्थानीय लोग प्रम्बानन मंदिर के भवन निर्माण का श्रेय जावा की राजकुमारी को देते हैं। किवदन्तियों के मुताबिक़ लारा जोंग्गरंग नाम की एक राजकुमारी थी। माना जाता है कि ऐतिहासिक मेडंग राज्य के अर्ध-मिथकीय स्वरुप मेदांग कमुलन के राजा बक़ा की बेटी थी। बांडुंग बंदवासा नाम के राजकुमार ने जब राजा के सामने से लारा से विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो राजा ने कहा कि अगर उसने युद्ध में उसे हरा दिया तो वह अपनी बेटी का हाथ उसे दे देगा। युद्ध में राजकुमार ने राजा को हरा दिया लेकिन राजकुमारी अपने पिता के हत्यारे से शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन सीधे सीधे मना करने से भी डर रही थी। ऐसे में राजकुमारी ने शर्त रखी कि वह उससे तभी शादी करेगी, जब वह एक ही रात में एक हज़ार मंदिर बना दे।
बंडुंग ने अपने पिता की मदद से मंदिर बनवाने के लिये आत्माओं की फ़ौज बुलवाई। अब राजकुमारी की समझ में नही आया कि वह क्या करे। उसकी एक दासी ने राजकुमारी को धान कूटने को कहा। जब राजकुमारी धान कूटने लगी, आसपास के मुर्ग़ें जाग गए और बांग देने लगे। आत्माओं को लगा कि सुबह हो गई है और वे वापस लौट गईं क्योंकि उन्हें सूरज की रौशनी से डर लगता था। मंदिरों का निर्माण अधूरा रह गया लेकिन जब राजकुमार को राजकुमारी की करतूत के बारे में पता चला कि तो उसने उसे पत्थर बनने का श्राप दे दिया। लेकिन भगवान शिव की कृपा से राजकुमारी एक मंदिर की सुंदर मूर्ति में तबादील हो गई।
आप जैसे ही प्रम्बानन में प्रवेश करते हैं, वहां तीन मंदिर के गगनचुंबी मीनारों को देखकर दंग रह जाएंगे । ये मंदिर दूर से ही नज़र आ जाते हैं। तीनों में सबसे बड़ा बीच वाला है जो क़रीब 150 फुट ऊंचा है और ये शिव को समर्पित है।
शिव मंदिर में मुख्य प्रकोष्ठ के अलावा चार छोटे छोटे प्रकोष्ठ भी हैं जो चार दिशाओं में बने हुए हैं। पूर्वी दिशा के प्रकोष्ठ से श्रद्धालु मुख्य प्रकोष्ठ में प्रवेश करते हैं जहां शिव की तीन मीटर ऊंची प्रतिमा है। शिव कमल पर खड़े हुए हैं और कमल एक चौकोर योनी पर बना हुआ है। इसके अलावा प्रकोष्ठ काफ़ी साधारण है। दक्षिण वाले प्रकोष्ठ में ऋषी अगस्त्या की मूर्ति है जबकि पश्चिम दिशा वाले प्रकोष्ठ में गणेश की मूर्ति है। उत्तरी प्रकोष्ठ में दुर्गा महीसासुरमर्दनी की प्रतिमा है। माना जाता है कि जब राजकुमार ने राजकुमारी को पत्थर बनने का श्राप दिया तो वह दुर्गा की मूर्ति बन गई थी।
प्रकोष्ठों के बाहर मंदिर के चारों ओर एक परिक्रमा पथ है। परिक्रमा करते समय आपको मंदिर की बाहरी दीवारों पर नक़्क़ाशी तथा रामायण की कथा के पैनल दिखाई पड़ेंगे। इन पैनलों पर रामायण की घटनाओं के सुंदर चित्रण हैं।
ब्रह्मा को समर्पित क़रीब के मंदिर में भी इसी तरह के पैनल हैं। तीसरा मंदिर विष्णु को समर्पित है। इन दोनों मंदिरों में एक ही प्रकोष्ठ है और इनमें ब्रह्मा तथा विष्णु की मूर्ति स्थापित है। विष्णु मंदिर की बाहरी दीवारों पर भगवत पुराण में वर्णित भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण है।
इन तीनों भव्य मंदिरों के सामने तीन छोटे मंदिर हैं जो तीनों भगवान के वाहनों को समर्पित हैं। शिव मंदिर के सामने नंदी बैल का, ब्रह्मा मंदिर के सामने हंस का और विष्णु मंदिर के सामने गरुड़ का मंदिर है। दिलचस्प बाद ये है कि गरुड़ इंडोनेशिया का राष्ट्रीय चिन्ह भी है।
इन छह मंदिरों के अलावा दो और छोटे मंदिर हैं जिनका पुन:निर्माण हुआ है। लेकिन ये मंदिर किसे समर्पित हैं, ये कोई नहीं जानता। इन आठ मंदिरों के अलावा परिसर में बाक़ी मंदिरों के सिर्फ़ अवशेष ही रह गए हैं। लोक कथा के अनुसार यहां क़रीब एक हज़ार मंदिर बनाए गए थे लेकिन पुरातत्विदों को सिर्फ़ क़रीब 240 मंदिरों की नींव ही मिली है। इन सैंकड़ों छोटे मंदिरों को कैंडी परवारा (संरक्षक या अनुपूरक मंदिर) कहते हैं।
10वीं शताब्दी के मध्य में संजय राजवंश के बाद इसयाना राजवंश आया। इसके शासक मपू सिंडोक ने मध्य जावा की जगह पूर्वी जावा को अपनी राजधानी बनाया। राजधानी शिफ़्ट करने की वजह या तो उत्तर प्रम्बानन में स्थित मेरापी पर्वत से फूटने ज्वालामुखी होगा या फिर सत्ता संघर्ष रहा होगा। बहरहाल, इसी के साथ मंदिर परिसर के बरबाद होने की शुरुआत हो गई। उसका स्वर्णिम काल ख़त्म हो गया और ये वीरान भी हो गया।
सन 1584 में मध्य जावा में भीषण भूकंप आया था जिसमें मंदिर परिसर नष्ट हो गया। इसके बाद 19वीं शताब्दी में प्रम्बानन पर फिर ध्यान गया। सन 1811 में डच ईस्ट इंडीज़ के छोटे से अंग्रेज़ शासनकाल के दौरान थॉमस स्टेमफ़ोर्ड रैफ़ल्स (डच ईस्ट इंडीज़ का लेफ्टिनेंट गवर्नर) के सर्वेक्षक कॉलिन मैकेंज़ी की नज़र इत्तफ़ाक़ से मंदिरों पर पड़ी। हालंकि सर थॉमस ने बाद में अवशेषों के सर्वे का आदेश दिया था लेकिन इसके पहले सदियों तक ये परिसर उपेक्षित ही रहा था। नीदरलैंड के निवासी अपने बाग़ीचों को सजाने के लिये मूर्तियां ले गए थे जबकि गांव के लोग नींव के पत्थर का प्रयोग भवन निर्माण में करने लगे थे।
20वीं शताब्दी के मध्य में प्रम्बानन में खुदाई हुई जिसमें मुख्य मंदिरों का पता चला। खुदाई के दौरान शिव मंदिर के बीच एक प्रीपिह (पत्थर का डिब्बा) मिला। ये डिब्बा कोयले, मिट्टी और जलाए गए पशु के अवशेषों के ढ़ेर के ऊपर रखा हुआ था। यहां सोने की पत्तियों के पत्तर भी मिले जिन पर वरुण (समुद्र के देवता) और पर्वत (पर्वत के देवता) का उत्कीर्णन था। डिब्बे में तांबे के पत्तर, कोयला, मिट्टी, बीस सिक्के, आभूषण, ग्लास, सोने और चांदी की पत्तियों के टुकड़े, समुद्री सीपियां और 12 सोने की पत्तियां मिली। सोने की पत्तियों में से पांच पत्तियां कछुए, ड्रेगन, पद्म, वेदी और अंडे के आकार में कटी हुई थीं।
सन 1991 में सेवु, बुबराह और लुमबुंग के बौद्ध मंदिर परिसरों सहित प्रम्बानन को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया। आज इंडोनेशिया में एक हज़ार साल पुराने प्रम्बानन में भारी संख्या में लोग आते हैं जिसे भारत के बाहर हिंदू धर्म का प्रतीक माना जाता है।सन 1960 के दशक से पूर्णिमा की रात ओपाक नदी के पार त्रिमूर्ति ओपन थिएटर में जावानीस नृत्य नाटिका के द्वारा रामायण की कथा सुनाई जाती है। नवंबर सन 2019 में मंदिर परिसर को शुद्ध और पवित्र करने के लिये अभिशेष किया गया था। इसका उद्देश्य मंदिर को उसका प्राचीन सांस्कृतिक महत्व वापस दिलाना और सिर्फ़ पर्यटक स्थल ही नहीं बल्कि एक धार्मिक स्थल के रुप में उसे फिर स्थापित करना था। ये प्रम्बानन के इतिहास में एक बड़ा मोड़ है और आशा की जाती है कि भविष्य में सैलानी और श्रद्धालू बड़ी संख्या में प्रम्बानन मंदिर परिसर आएंगे।
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