त्रिपुरा सुंदरी मंदिर: बांसवाड़ा में आस्था का केंद्र

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर: बांसवाड़ा में आस्था का केंद्र

क्या आप जानते है कि राजस्थान में बांसवाड़ा के पास एक मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये पहली सदी का मंदिर है? आस्था और लोक कथाओं का प्रतीक ये त्रिपुरा सुंदरी मंदिर आज एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार ये मंदिर पहली शताब्दी में बनवाया गया था । इसका निर्माण कुषाण राजा कनिष्क के शासनकाल या फिर उसके पहले हुआ था। इसे एक शक्ति पीठ माना जाता है जहां हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

राजस्थान के शहर उदयपुर से क़रीब 165 कि.मी. दूर बांसवाड़ा नगर के पास एक गांव है तलवाड़ा जहां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर है। लेकिन हम मंदिर के बारे में बात करें, इससे पहले हम इस क्षेत्र के बारे में जानते हैं जिसका इतिहस बहुत पुराना है। बांसवाड़ा राजस्थान में वागड़ क्षेत्र का हिस्सा है। वागड़ उत्तर में राजस्थान के मेवाड़, दक्षिणपूर्व और पूर्व में मध्य प्रदेश के मालवा और पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में गुजरात से लगा हुआ है। बांसवाड़ा अहाड़ संस्कृति का एक पुराना स्थान था जिसका इतिहास चार हज़ार साल पुराना है। अहाड़ संस्कृति ताम्रपाषाण कालिक पुरातत्व संस्कृति थी जो राजस्थान की अहाड़ नदी के तट पर हुआ करती थी। इसका इतिहास 3000 से लेकर 1500 ई.पू. के बीच का है। राजस्थान यूं तो रेगिस्तानी इलाक़ा है लेकिन बांसवाड़ा क्षेत्र में बहुत हरियाली है और यहां कई द्वीप हैं। कहा जाता है कि इसका नाम बांस के पेड़ों की वजह से पड़ा है जो यहां बहुत पाये जाते हैं।

बांसवाड़ा का एक दृश्य | लिव हिस्ट्री इंडिया 

दसवीं शताब्दी में परमार राजवंश के शासनकाल के दौरान ये क्षेत्र सुर्ख़ियों में आया। बगड़ के परमार शासक पहले मालवा के ज़मींदारों के रिश्तेदारों के रुप में और बाद में गुजरात के सोलंकी या चालुक्य के ज़मींदारों के रुप में क्षेत्र पर राज करते थो। उथुनका (आधुनिक समय में अरथुना) उनकी राजधानी हुआ करती थी। 12वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक सामंत सिंह ने परमार शासकों को सत्ता से बेदख़ल कर दिया। लेकिन ये क्षेत्र एक बार फिर गुजरात के चालुक्य शासकों के हाथों में चला गया जिन्होंने यहां 13वीं शताब्दी तक शासन किया। इसके बाद सामंत सिंह के उत्तराधिकारी गहिलोत (गहलोत) अवतरित हुए। इस समय से ही त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का इतिहास जुड़ा है।

मंदिर परिसर  | लिव हिस्ट्री इंडिया 

बांसवाड़ा से क़रीब 14 कि.मी. दूर तलवाड़ा गांव में आपको त्रिपुरा सुंदरी मंदिर मिलेगा। तलवाड़ा गांव में कई प्राचीन मंदिरों के अवशेष हैं जिनसे हमें इस गांव के इतिहास के बारे में पता चलता है। पास के ही शहर अरथुना में मिले सन 1109 के अभिलेख से पता चलता है कि तलवाड़ा का पुराना नाम तलपातक था जो उस समय बहुत समृद्ध था। जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, 10वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान राजस्थान में मेवाड़ के शासक बगड़ परमार और गुजरात के सोलंकी शासक इस क्षेत्र पर शासन करते थे। ये शासक त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में पूजा किया करते थे और कहा जाता है कि वे इस मंदिर के संरक्षक भी थे।

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को तरतई माता मंदिर भी कहा जाता है। ये मंदिर त्रिपुरा सुंदरी देवी को समर्पित है जो पार्वती या शक्ति देवी का एक रुप है। माना जाता है कि त्रिपुरा सुंदरी देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती की त्रिमूर्ति की शक्ति का प्रतीक है। ऐसा कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है जिससे मंदिर का इतिहास साबित किया जा सके लेकिन मंदिर से जुड़ी कई लोक कथाएं और कहानी-क़िस्से हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि ये मंदिर कुषाण राजा कनिष्क के यहां शासनकाल के दौरान या फिर उसके पहले पहली सदी में बना था।

मंदिर में मौजूद एक शिलालेख | लिव हिस्ट्री इंडिया 

ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र में कभी तीन दुर्ग शक्तिपुरी, शिवपुरी और विष्णुपुरी होते थे। इन तीन दुर्गों के बीच स्थित देवी का नाम त्रिपुरा और बाद में मंदिर का नाम त्रिपुरा सुंदरी मंदिर पड़ गया।

कहा जाता है कि स्थानीय पंचाल समुदाय ने 16वीं शताब्दी में मंदिर की मरम्मत करवाई थी। आज भी पंचाल सोसाइटी त्रिपुरा मंदिर सुंदरी मंदिर की देखभाल करती है। मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार बहुत उत्कृष्ट है। मंदिर के गर्भगृह में बाघ पर सवार देवी की एक सुंदर मूर्ति है जिसके 18 हाथ हैं। प्रत्येक हाथ अलग अलग प्रतीकों को दर्शाता है।

मंदिर का प्रवेश द्वार | लिव हिस्ट्री इंडिया 

इस मूर्ति के आसपास 9-10 छोटी मूर्तियां हैं जिन्हें महाविद्या (पार्वती के दस रुप) और नव दुर्गा (दुर्गा के नौ रुप) कहा जाता है। मूर्ति के नीचे एक श्रीयंत्र खुदा हुआ है जिसका अपना तांत्रिक महत्व है। मंदिर शायद किसी समय तंत्रमंत्र पूजा का केंद्र रहा होगा।

मंदिर के अंदर माँ त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ती | लिव हिस्ट्री इंडिया 

इस परिसर में और भी मंदिर थे। मंदिर के पीछे त्रिदेव, दक्षिण में काली और उत्तर में अष्टभुजा सरस्वती का मंदिर था। इन मंदिरों के अवशेष आज भी मौजूद हैं।

त्यौहारों ख़ासकर नवरात्री पर मंदिर में बहुत रौनक़ होती है। इस मौक़े पर मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे पड़ौसी राज्यों से यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। विश्वास किया जाता है कि ये मंदिर भारत में शक्ति देवी को समर्पित शक्ति पीठों में से एक पीठ है। दिलचस्प बात ये है कि त्रिपुरा राज्य में भी एक त्रिपुरा सुंदरी मंदिर है जिसे शक्ति पीठ माना जाता है। लेकिन बांसवाड़ा का त्रिपुरा सुंदरी मंदिर अनंतकाल से आस्था और अर्चना का केंद्र रहा है।

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