यह वह जगह है जहां दो पवित्र नदियों तुंगभद्रा और कृष्णा का संगम होता और यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं। इसीलिये इसे दक्षिण भारत की काशी भी कहा जाता है। तेलंगाना का आलमपुर सही मायने में निर्मलता में डूबा हुआ एक शहर है। इस आध्यात्मिक शहर की सबसे बड़ी ख़ासियत है यहां के नौ प्राचीन मंदिर जिन्हें नव ब्रह्मा मंदिर कहते हैं। ये मंदिर आरंभिक चालुक्य राजवंश की धरोहर हैं जो ज़्यादातर 7वी शताब्दी में बनाये गये हैं। भगवान शिव को समर्पित नव ब्रह्मा मंदिर चालुक्य वास्तुकला के शानदार उदाहरण हैं।
हैदराबाद शहर से क़रीब 215 कि.मी. दूर जोगुलम्बा गडवाल ज़िले में स्थित आलमपुर शहर हमेशा से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है। इसकी उत्पत्ति इतिहास और मिथक कथाओं में छुपी हुई है। इसे पहले हालमपुरम, हामालापुरम और आलमपुर के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि स्कंद पुराण में इस शहर और इसकी पवित्रता का उल्लेख है लेकिन मंदिरों में मिले कुछ अभिलेखों से 7वीं शताब्दी के बाद से इसके इतिहास की सही तस्वीर उभरती है। आलमपुर बादामी के चालुक्य (छठी शताब्दी), राष्ट्रकूट (8वीं शताब्दी), कल्याणी के चालुक्य (10वीं-12वीं शताब्दी), काकतीय (12वीं-14वीं शताब्दी), विजयनगर शासकों (14वीं-17वीं शताब्दी) और गोलकुंडा के क़ुतुब शाही (17वीं शताब्दी) के अधीन रहा था।
7वीं शताब्दी में बादामी के चालुक्य शासन के दौरान आलमपुर एक धार्मिक केंद्र बना था। आरंभिक चालुक्य राजवंश का छठी से लेकर 8वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत के प्रमुख हिस्सों पर नियंत्रण होता था। इसी दौरान कई स्मारकों का निर्माण हुआ था। ये स्मारक चट्टान काट कर बनाए गए थे। इसके अलावा साधारण स्मारक भी बनवाए गए थे। कर्नाटक की मालप्रभा नदी घाटी में एहोल, बादामी और पत्तदकल में फैले सैंकड़ों स्मारक और मंदिर इसके गवाह हैं। आरंभिक चालुक्य शासकों, जो कदंब राजवंश (345-525) के दास होते थे, ने छठी शताब्दी में ख़ुद को स्वतंत्र कर लिया था। हालंकि आरंभिक चालुक्य शासकों के बारे में इतिहास में कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती है लेकिन हम इतना जानते हैं कि इस राजवंश के तीसरे शासक पुलकेशिन प्रथम (540-566) ने सन 543 में बादामी को राजधानी बनाया था। चालुक्य शासकों ने अगले 200 साल तक शासन किया और पुलकेशिन-द्वतीय (610-642) के शासनकाल में इनका साम्राज्य नर्मदा से लेकर कावेरी तक फैल गया था।
कुछ भू-अनुदानों और चालुक्य शासक पुलकेशिन-द्वतीय, विक्रमादित्य-प्रथम तथा विनयादित्य के अभिलेखों से आधुनिक तेलंगाना में बादामी के चालुक्य शासकों के आधिपत्य के बारे में पता चलता है। नव ब्रह्मा मंदिरों पर अंकित कई छोटे अभिलेखों से पता चलता है कि बादामी के चालुक्य और फिर उनके बाद राष्ट्रकूट शासकों के समय आलमपुर में मंदिर का निर्माण होता रहता था।
माना जाता है कि इस क्षेत्र में आलमपुर के नव ब्रह्मा मंदिर का समूह सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से है। क़िलेबंदी से घिरे इन नौ मंदिरों के तीन तरफ़ खंदक़ें हैं और पूर्वी दिशा में तुंगभद्र नदी बहती थी। आंध्र प्रदेश सरकार ने इन प्राचीन स्मारकों को श्रीशैलम पनबिजली परियोजना में डूबने से इसे बचाने के लिये इस तरफ़ एक दीवार खड़ी कर दी है।
नव ब्रह्मा मंदिर शिव को समर्पित हैं। इनकी वजह से आलमपुर शिव-पंथ का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। इन सभी मंदिरों का निर्माण 7वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान बादामी के चालुक्य शासनकाल में हुआ था। मंदिर में चालुक्य वास्तुकला साफ़ झलकती है। इन नव ब्रह्मा मंदिरों के नाम हैं- बाल ब्रह्मा, कुमार ब्रह्मा, आर्क ब्रह्मा, वीर ब्रह्मा, विश्व ब्रह्मा, तारक ब्रह्मा, गरुढ़ ब्रह्मा, स्वर्ग ब्रह्मा और पद्म ब्रह्मा।
ऐसा कहा जाता है कि इन मंदिरों का संबंध रसविद्या से था। ये शिक्षा का एक प्राचीन स्कूल है जहां धातु विज्ञान, औषधि और तत्त्विज्ञान विषय पढ़ाए जाते थे। इसकी उत्पत्ति शिव-पंथ में है। परंपराओं के अनुसार धन के स्वामी कुबेर, जिनका संबंध रसविद्या से भी था, को अपने धातु विज्ञान संबंधी कार्यकलापों के लिये आलमपुर के पास की जगह उपयुक्त लगी होगी। चूंकि कहा जाता था कि कुबेर ब्रह्मा वंश के थे, इसलिये शायद मंदिरों के नाम ब्रह्मा पर रख दिये गये होंगे।
तारक मंदिर को छेड़कर बाक़ी सभी मंदिरों का नक़्शा एक जैसा है। मंदिरों में नागर वास्तुकला की उत्तर भारतीय शैली की झलक मिलती है। प्रत्येक मंदिर का गर्भगृह पूर्व दिशा की तरफ़ है जो एक गलियारे से घिरा हुआ है। गलियारे से पहले एक मंडप है। गर्भगृह के ऊपर नागर शैली के शिखर हैं जो पंक्तियों में बंटे हुए हैं। इन पंक्तियों पर रुपांकन और गोल धारीदार तत्व बने हुए हैं। गर्भगृह खंबों पर लंबित आयताकार हॉल के अंत में हैं। हॉल के मध्य में नैव है और किनारों पर खंबों की क़तारों वाले पथ बने हुए हैं। मंदिर में एक गलियारा भी है जिसकी छत बेतरतीब है।
कुमार ब्रह्मा मंदिर
माना जाता है कि नव ब्रह्मा मंदिरों में कुमार मंदिर सबसे पुराना है। इसका बाहरी हिस्सा साधारण है। मंदिर के सभागार के द्वार के फ़्रेम पर सात सिर बने हुए हैं। मंदिर के खंबों पर पत्तियां और छोटी आकृतियां बनी हुई हैं।
अर्क ब्रह्मा और बाला ब्रह्मा
ये दोनों मंदिर विक्रमादित्य प्रथम (655-681) के समय के हैं। इन मंदिर के निर्माण के साथ ही आलमपुर शिव-पंथ का एक बड़ा केंद्र बन गया था। अर्क मंदिर अब पूरी तरह नष्ट हो चुका है। मंदिर के अवशेषों में मिले अभिलेखों से इसके बनाने वालों, मूर्तियों और इसके महादेवायत्न या पहले शिव लिंग वाले मंदिर के बारे में जानकारी मिलती है।
दिलचस्प बात ये है कि बाला ब्रह्मा मंदिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आज भी पूजा होती है। ये मंदिर 7वीं शताब्दी का है। यहां कई मूर्तियां हैं जिनमें सप्तमातृका यानी सात देवियों की मूर्तियां भी शामिल हैं। पूर्व की दिशा में एक द्वार है जो नदी पर उतरता है। शिवरात्री और कार फ़ेस्टिवल पर यहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
स्वर्ग ब्रह्मा मंदिर
नव ब्रह्मा मंदिर परिसर में,सन 698 का बना स्वर्ग ब्रह्मा मंदिर है जो सबसे सुंदर और सबसे बड़ा मंदिर है। यहां अंकित अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक विनयादित्य (681-696) के शासनकाल में हुआ था। इसे विनयादित्य की महारानी महादेवी के सम्मान में बनवाया गया था। अलंकृत मूर्तियां और खंबो वाला बरामदा मंदिर की विशेषता है।
विश्व ब्रह्मा और गरुढ़ ब्रह्मा
शैलीगत तत्वों पर आधारित ये दोनों मंदिर विजयादित्य (696-733) के समय के हैं। अर्का मंदिर के पास स्थित विश्व ब्रह्मा मंदिर पर सुंदर महीन नक़्क़ाशी है। मंदिर का चबूतरा संगीतकारों, नृतकों, पत्तियां, परिंदें, हंस और गणिकाओं की छवियों से सजा हुआ है। मंदिर पर हिंदू ग्रंथों और पंचतंत्र की कथाओं की दृश्यावली भी बनी हुई है। गरुढ़ ब्रह्मा मंदिर देखने में विश्व ब्रह्मा मंदिर की तरह ही लगता है लेकिन इसमें वो सजावट नहीं है जो विश्व ब्रह्मा मंदिर में है। मंदिर में विष्णु का वाहन यानी उड़ता हुआ गरुढ़ बना हुआ है जिससे लगता है कि मंदिर में कभी विष्णु की मूर्ति भी रही होगी।
वीर ब्रह्मा
मंदिरों के समूह में जो मंदिर उत्तर दिशा की तरफ़ हैं उन्हीं में से एक मंदिर है वीर ब्रह्मा। इस मंदिर में एक मंडप, एक अंतराला और एक गर्भगृह है। मंदिर की कलाकृतियां तो समय के साथ ख़त्म हो गई लेकिन दीवारों के ऊपर स्वर्ग दृश्य बने हुए हैं। ऊपरी मध्य हिस्सा बाहर की तरफ़ निकला हुआ है।
तारक ब्रह्मा
तारक ब्रह्मा एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें दक्षिण शैली की एक बुर्ज, पिरामिड की तरह की सीढ़ियों वाला ढ़ाचा और प्रोजेक्शन है। कहते हैं कि कभी पास की दीवार में बने एक द्वार से ही मंदिर में प्रवेश किया जाता था। मंदिर को, देवी-देवताओं तथा अन्य छवियां को उकेर कर बढ़िया से सजाया गया है।
पद्म ब्रह्मा
नौ मंदिरों के समूह में पद्म ब्रह्मा मंदिर सबसे नया है। ये आंशिक रुप से ध्वस्त हो चुका है और इसका बुर्ज भी अधूरा है। इसमें प्रवेश द्वार भी नहीं है। मंदिर में एक चिकना शिवलिंग है। इन मंदिरों के पास आलमपुर पुरातत्व संग्रहालय है जहां चालुक्य के समय की मूर्तियां रखी हुई हैं। इनमें सबसे शानदार मूर्ति शिव की है। इसमें कई हाथों में हथियार लिये शिव को वामन के ऊपर नृत्य करते दर्शाया गया है।
चालुक्य राजवंश के इन मंदिरों के अलावा आलमपुर में जोगुलंब देवी का मंदिर है जो भारत में शक्ति पीठों में से एक है। वास्तुकला, इतिहास और धर्म ने ,कुल मिला कर इस स्थान को बेहद रोचक बना दिया है । आलमपुर शहर को कम से कम एक बार तो देखा ही जाना चाहिये।
फ़ोटो सौजन्य: Journeys Across Karnataka
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