ताज महल देखने हर साल लाखों लोग आगरा आते हैं। सब जानते हैं कि आगरा का संबंध मुग़ल बादशाह शाहजहां से है लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है या याद है कि आगरा शहर का पुराना नाम अकबराबाद भी था। अकबराबाद शहर मुग़ल बादशाह अकबर ने बसाया था। अकबर की क़ब्र 12 कि.मी. से भी कम फ़ासले पर शहर के उत्तर पश्चिम दिशा में है।
27 अक्टूबर सन 1605 को अकबर- दरबार के इतिहासकार इनायतुल्लाह लिखते हैं, “जब जहांपनाह 65 साल के हो गए, वो अपनी राजधानी आगरा को अलविदा कहकर मोहब्ब्त की जन्नत में चले गए।अकबर के तीन पुत्रों में से मुराद और दानियल शराब की भेंट चढ़ चुके थे। उनका तीसरा पुत्र सलीम जब उनसे मिलने पहुंचा, तब वह बोलने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने अपनी शाही पगड़ी सलीम के सिर रखने और तलवार कमर में लटकाने का इशारा किया। जब सलीम कमरे से बाहर निकला तो लोगों ने जहांगीर ( विश्व विजेता) नाम से उनकी जयजयकार की।”
सलीम अपने पिता का ताबूत लेकर उनके भव्य आगरा क़िले के दौलतख़ाना-ए-ख़ास-ओ-आम में गए। वहां से दरबार के अमिरों ने ताबूत ले लिया। इसके बाद सूफ़ी और अमीर जनाज़ा लेकर नंगे पांव और नंगे सिर आगरा की सड़कों पर निकल पड़े और मुग़ल सड़क से होते हुए लाहौर रोड तथा कश्मीर रोड की तरफ़ निकल पड़े। सारे रास्ते अल्लाह-हो-अकबर के नारे लग रहे थ और लोगों को पैसा तथा मिठाईयां बांटी जा रही थीं।
अकबर को बहिश्ताबाद में दफ़्न किया गया। मुग़लों के समय सिकंदरा का नाम बहिश्ताबाद था। उस समय बहिश्ताबाद शहर बन ही रहा होगा क्योंकि इसका निर्माण कार्य दो साल पहले ही शुरु हुआ था। लेकिन जब जहांगीर सन 1607 में आगरा वापस आया और निर्माण कार्य देखने सिकंदरा गया तो उसने पाया कि वास्तुकारों को सलाह देने वाला कोई नहीं था और उन्होंने अपनी मर्ज़ी से जो ठीक समझा उसी तरह से स्मारक बना दिया था। जहांगीर ने उसमें कई चीज़ें पसंद नहीं आईं।
ये सब देखने के बाद जहांगीर ने वास्तुकारों और इंजीनियरों की एक नयी टीम तैयार की तथा स्मारक का डिज़ाइन फिर से बनवाया। जहांगीर ने स्मारक के कई हिस्से गिरवाकर फिर बनवाए। जहांगीर के फ़ैसलों की झलक सिकंदरा में दिखाई पड़ती है जो एक तरह से अधूरा भी नज़र आता है। जहांगीर ने अपने पिता के मक़बरे के लिए परिसर की उत्तर दिशा में एक भव्य प्रवेश द्वार बनवाया और संगमरमर के चार मीनार भी बनवाये। पूरा परिसर सन 1612-13 के लगभग बनकर तैयार हुआ और इस पर क़रीब 15 लाख रुपये ख़र्च हुए।
पत्थरों की ऊंची प्राचीर की वजह से ये बहिश्ताबाद मक़बरा कम क़िला ज़्यादा लगता है। अनोखे प्रवेश द्वार पर ईरानी वास्तुकला का प्रभाव दिखता है। इसके अंदर अकबर की क़ब्र पर किसी समय मुल्ला-मौलवी लगातार क़ुरान का पाठ किया करते थे। द्वार के दोनों तरफ़ संगमरमर पर क़ुरान की आयतों की बजाय फ़ारसी में छंद लिखे हुए हैं जबकि ताज महल की दीवारों पर क़ुरान की आयतें लिखी हुई हैं। प्रवेश द्वार के ऊपर नक्कार ख़ाना (म्यूज़िक गैलरी) है जहां से बादशाह के सम्मान में सुबह और शाम नगाड़े बजाए जाते थे।
द्वार से एक रास्ता मुग़ल चार बाग़ की तरफ़ जाता है। बाग़ के मध्य में अकबर की क़ब्र है। ये क़ब्र क़रीब 100 फ़ुट ऊंची है और ऊपर आते आते इसका हर स्तर छोटा होता जाता है। क़ब्र के ऊपर सफ़ेद संगमरमर का काम है। कब्र की ऊपरी मंज़िल हर तरफ़ से क़रीब 157 फ़ुट लम्बी-चौड़ी है। साइज़ में ये निचली मंज़िल की लगभग आधी है। इस खुले अहाते के बीच में अकबर का स्मारक है।
प्रमुख प्रवेश द्वार से मक़बरे की तरफ़ जाने पर एक छोटा फ़ाटक मिलता है जो लाल, हरे और नीले रंग का है और इस पर सोने की कशीदाकारी तथा अभिलेख अंकित हैं। यहां से अंधेरे में डूबी हुईं पत्थरों की सीढ़ियों से आप तहख़ाने में पहुंचते हैं जहां अकबर की असली क़ब्र है। सीढ़ियों के अंत में एक मेहराबदार सभागार है जो 38 वर्ग फ़ुट है। किसी समय सभागार की छतें पर नीले और सुरहरा पलस्तर हुआ करता था। यहां कभी बेहतरीन क़ालीन और सोने तथा चांदी की प्लेट हुआ करती थीं। इसके अलावा यहां बादशाह की किताबें, कवच और हथियार भी हुआ करते थे। सभागार के बीच में संगमरमर की एक साधारण फ़र्शी पर अकबर के “अवशेष” रखे हुए हैं।
सन 1688 में औरंगज़ेब के ज़ुल्मों से तंग आकर भरतपुर के जाटों ने अपने नेता राजा राम सिंह के नेतृत्व में सिकंदरा पर हमला कर दिया था। उन्होंने अपनी तोपों से नाज़ुक मीनारों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। उन्होंने द्वार तोड़कर मक़बरे को लूट लिया जहां सजावट की महंगी चीज़ों के अलावा सोने चांदी की प्लेटें होती थीं। जो सामान वो नहीं ले जा सके उसे उन्होंने नष्ट कर दिया। एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने क़ब्र खोदकर अकबर की अस्थियां जला दी थीं।
सन 1899 में जब लॉर्ड कर्ज़न भारत का गवर्नर जनरल बन कर आया तो उसने पूरे भारत का दौरा किया । वह आगरा भी आया था और इस शानदार स्मारक की जर्जर हालत देखी। ये सब देखकर उसने कई स्मारकों की मरम्मत का काम शुरु करवाया जिसमें सिंकदरा भी शामिल था। सात फ़रवरी सन 1900 को एशियेटिक सोसाइटी में दिए भाषण में कर्ज़न ने कहा, “मैंने भारत आने के बाद अकेले आगरा में मरम्मत पर 40 से 50 हज़ार पाउंड ख़र्च किए हैं। आगरा की बेशक़ीमती ख़ूबसूर्ती को फिर दुनिया को सौंपा जाएगा।” भारत से लौटने के पहले उसने आख़िरी काम सिकंदरा की टूटे मीनारों की मरम्मत ररवाने का किया था।
बंगाल के विभाजन की विभाजन के मुद्दे पर बंगाली भले ही तमाम वाइसरॉस के मुक़ाबले कर्ज़न से सबसे ज़्यादा नफ़रत करते हों लेकिन भारत में ऐतिहासिक स्मारकों, ख़ासकर आगरा और सिकंदरा के स्मारकों के संरक्षण में उसके योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
सिकंदरा आज सबसे अच्छी तरह संरक्षित मुग़ल स्मारकों में से एक है। स्मारक के आसपास बाग़ बग़ीचे हैं। कुछ साल पहले प्रशासन ने यहां कुछ हिरण भी पाले थे। स्मारक में अनुशासन सख़्ती से लागू किया जाता है और सैलानी घास पर नहीं चल सकते। इसी वजह से हिरणों की संख्या बढ़कर 200 से ज़्यादा हो गई है जिसमें 90 से ज्यादा काले हिरण हैं। बाग़ के उत्तरी दिशा में जंगल है। बाग़ का उत्तरी द्वार जार्ण हालत में है हालंकि बाक़ी तीन द्वार ठीकठाक हैं। सैलानियों के लिये दुख की बात ये है कि मक़बरे की छत पर जाने की इजाज़त नहीं है क्योंकि वहां अकबर का स्मारक है जहां अल्लाह के 99 नाम खुदे हुए हैं और फूलों वाले भित्ति चित्र हैं।
अकसर ताज महल और हुमांयू के मक़बरे को सबसे ख़ूबसूरत मुग़ल स्मारक माना जाता है लेकिन अगर सही मायने में वास्तुकला देखनी हो तो वो सिकंदरा में अकबर के मक़बरे में मिलेगी।
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