केरल में सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है शबरीमाला, जो भगवान अयप्पा को समर्पित है। यहां पारंपरिक रूप से 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के लिए प्रवेश निषेध है। लेकिन राज्य में एक मंदिर और भी है, जिसे ‘महिलाओं की शबरीमाला‘ कहा जाता है। दरअसल, इस मंदिर में एक पोंगल उत्सव आयोजित किया जाता है। य़ह उत्सव गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है!
अट्टुकल भगवती मंदिर, मशहूर श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर से 2 किमी दूर है। कहा जाता है, कि देवी अट्टुकल भगवती महाकाली की अवतार थीं। इस मंदिर के इतिहास के बारे में हम ज़्यादा नहीं जानते हैं, लेकिन इसके साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं।
एक दंतकथा के अनुसार देवी भगवती एक जाने-माने मुल्लुवीट्टिल परिवार से एक परम भक्त के सपने में प्रकट हुईं, और उन्हें तीन पंक्तियों के साथ चिन्हित एक पवित्र स्थान पर एक कावु (झाड़ियों की पवित्र भूमि) के पास एक मंदिर बनाने के लिए कहा। कहा जाता है, कि भक्त वर्षों से इस मंदिर की देखभाल कर रहे हैं, ओर मरम्मत करवा रहे हैं। उन्होंने यहां देवी का एक भव्य मूर्ति भी स्थापित की। कहा जाता है, कि इस देवी का अभिषेक बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ने किया था।
दिलचस्प बात यह है, कि इस मंदिर के देवता का संबंध, तमिल साहित्य के पहले महाकाव्य सिलप्पातिकरम (नूपुर की कहानी) के रचियिता इलंगो अडिगल (सम्मानित तपस्वी राजकुमार) से है। ऐसा माना जाता है, कि देवी अट्टुकल भगवती सिलप्पातिकरम की नायिका कन्नगी का दिव्य रूप हैं। कथाओं के अनुसार, कन्नगी का विवाह एक धनी व्यापारी के पुत्र कोवलन से हुआ था। शादी के बाद उसकी मुलाक़ात माधवी नाम की एक नर्तकी से हुई, और उसने अपनी सारी दौलत उस पर लुटा दी। अपनी सारी दौलत खोने के बाद वह वापस कन्नगी के पास लौटा आया और उन दोनों ने अपने पास बची एकमात्र क़ीमती चीज़- कन्नगी की एक पायल बेचने का फैसला किया। जब कोवलन ने मदुरै में पायल बेचने की कोशिश कर रहा था, तब उसे चोर समझ लिया गया क्योंकि कन्नगी की पायल, रानी की पायल की तरह लगती थी। राजा के सैनिकों ने उसका सिर क़लम कर दिया। इससे नाराज़ होकर कन्नगी राजा के महल में घुस गई और उसने अपनी दूसरी पायल तोड़ दी, जिसमें रुबी (माणिक) लगे हुए थे, जबकि रानी की पायल में मोती जड़े हुए थे। उसने मदुरै शहर को श्राप दे दिया। इसके बाद कन्नगी केरल पहुंची। जब वह कोडुंगल्लूर जा रही थी, तब वह अट्टुकल में रुकी। इस मंदिर से जुड़ी कहानियां की वजह से ये तिरुवनंतपुरम के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक माना जाता है।
केरल और तमिल वास्तुकला की शैली से मिलाकर बनाया यह मंदिर महिषासुरमर्दिनी, देवी काली, राजराजेश्वरी, देवी पार्वती, भगवान शिव जैसे कई देवी-देवताओं की सुंदर आकृतियों से सुशोभित है। मंदिर के गलियारे में विष्णु के दशावतार की कहानियों के विभिन्न दृश्य अंकित हैं। मंदिर के गोपुरम के दोनों ओर कन्नगी की कहानी उकेरी गई है।
मंदिर में देवी की दो मूर्तियां हैं। मूल मूर्ति पत्थरों से जड़े सजावटी सोने से ढकी हुई है. और दूसरी मूर्ति मूल मूर्ति के बगल में स्थापित है। ऐसा कहा जाता है, कि शुरुआत में मंदिर की देख-रेख एक पारिवारिक समूह करता था जिनमें ज़्यादातर जेनमिस या ज़मींदार थे। 20वीं शताब्दी तक, ये एक सार्वजनिक मंदिर बन गया।
इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण अट्टुकल पोंगल त्योहार है, जो दस दिन तक चलता है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, मकरम-कुंभम (फ़रवरी-मार्च) के महीने में मनाया जाने वाला अट्टुकल पोंगल केरल में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। दरअसल इसे केरल में सबसे पुराना पोंगल उत्सव भी माना जाता है। तो इस पोंगल की ख़ास बात क्या है?
कथाओं के अनुसार, जब कन्नगी अपने पति के क़त्ल का बदला लेने के बाद अइट्टुकल में रुकी थी. तो उसका बड़ा आदर-सत्कार किया गया था।यह त्योहार उसी आदर-सत्कार की याद में मनाया जाता है। लेकिन जो बात इस त्योहार को ख़ास बनाती है, वह यह है, कि इस उत्सव में केवल महिलाओं को भाग लेने की अनुमति है। अट्टुकल पोंगल दस-दिवसीय लंबे त्योहार के नौवें दिन मनाया जाता है। इस दिन मंदिर की देवी को प्रसाद के लिए महिलाएं,मिट्टी के बर्तनों में तैयार चावल, गुड़, नारियल और बादाम से पोंगल (शाब्दिक अर्थ उबला हुआ) पकवान तैयार करती हैं। पकवान बनाने की रस्म सुबह-सुबह शुरू हो जाती है।
पोंगल की तैयारी पंडारा अदुप्पु मंदिर के चूल्हे में जली हुई आग पर बर्तन रखने से शुरू होती है। इसके बाद मंदिर का मुख्य पुजारी स्त्रियों पर पवित्र जल छिड़क कर उन्हें आशीर्वाद देता है। दिलचस्प बात यह है. कि मंदिर के आस-पास के जिस बड़े क्षेत्र में, पोंगल अनुष्ठान आयोजित किया जाता है, उसमें लोगों के मकान, खुले मैदान, व्यावसायिक संस्थान और सरकारी कार्यालयों के परिसर शामिल हैं।
जो बात इस त्योहार को दिलचस्प बनाती है, वह यह है कि लाखों महिलाएं, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या पंथ की हों, उत्सव में भाग लेती हैं। वास्तव में, इसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में महिलाओं की सबसे बड़ी वार्षिक सभा के रूप में घोषित किया जा चुका है। 23 फ़रवरी,सन 1997 को लगभग 15 लाख महिलाओं ने पोंगाल अनुष्ठान में भाग लिया था, और 10 मार्च,सन 2009 को यह संख्या बढ़कर 25 लाख तक पहुंच गई थी!
आज अट्टुकल पोंगल केरल की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु आते हैं।
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