कर्नाटक में हम्पी में एक बड़ी चट्टान को तराश कर बनाये गये विशाल रथ और और संगीत की विभिन्न तरंगें पैदा करने वाले पत्थर के खम्बों का आनंद तो बहुत लोगों ने लिया होगा। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा, कि अगर कॉलिन मैकेंज़ी न होते, तो शायद हमें इस जगह का वर्षों तक पता नहीं चलता। हम्पी के साथ आंध्र प्रदेश का अमरावती शहर भी बहुत मशहूर पुरातात्विक और पर्यटन स्थल है। इन दोनों में एक बात और भी समान है। इन दोनों जगहों की खोज भारत के पहले सर्वेयर जनरल कॉलिन मैकेंज़ी ने की थी, जो दक्षिण भारत का विस्तृत नक्शा तैयार करने वाले पहले व्यक्ति थे।
सन 1754 में स्कॉटलैंड में जन्मे कॉलिन मैकेंज़ी एक ब्रिटिश सेना अधिकारी, विद्वान और प्राच्यविद् थे। दिलचस्प बात यह है, कि भारत के साथ उनका जुड़ाव गणित की वजह से शुरू हुआ था। मैकेंज़ी की गणित में गहरी दिलचस्पी थी। मैकेंज़ी को फ्रांसिस नेपियर ने भारत भेजा था। फ़्रांसिस नेपियर,मशहूर अंग्रेज़ गणितज्ञ जॉन नेपियर पर जीवनी रुपी संस्मरण लिखवाना चाहते थे। उस काम के बारे में जानकारी हासिल करने में मदद के लिए मैकेंज़ी को नियुक्त किया गया था। जॉन नेपियर ने लघुगणक की खोज की थी।
नेपियर ने मैकेंज़ी को सन 1783 में हिंदू गणितीय परंपराओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए ब्राह्मणों के साथ बातचीत करने का काम सौंपा था।
हालांकि, वह जीवनी पूरी नहीं हो सकी, लेकिन मैकेंज़ी की पुराने ज़माने की चीज़ों में दिलचस्पी पैदा हो गई, जो फिर कभी ख़त्म नहीं हुई।
अपने करियर के शुरुआती तेरह साल तक मैकेंज़ी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में बतौर एक अधिकारी अपने सैन्य कर्तव्य निभाने में व्यस्त रहे थे, क्योंकि उस समय भारत अकाल और युद्ध के कठिन दौर से गुज़र रहा था।
लगभग उसी दौरान अंग्रेज़ों को दक्षिण भारत में उनके शासन के तहत आने वाले स्थानों के भूगोल को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक विस्तृत नक़्शा तैयार करने की ज़रुरत महसूस हुई। यह काम उन्होंने नवाबों और मराठों के साथ हुई लड़ाईयों के बाद शुरू किया था। नतीजे में, मैकेंज़ी को दक्षिण भारत का स्थलाकृतिक सर्वेक्षण (टोपोग्राफ़िकल सर्वे) करने का काम सौंपा गया। सन 1792 से लेकर सन 1799 तक मैकेंज़ी ने निज़ाम के रियासती इलाक़ों का सर्वेक्षण किया।
सन 1799 में, अंग्रेज़ों ने मैसूर के शासक टीपू सुल्तान को श्रीरंगपटनम की लड़ाई में हरा दिया था। जंग के दौरान, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में इंजीनियर के रुप में काम कर रहे मैकेंज़ी ने इस क्षेत्र के कई चित्र और रेखाचित्र बनाये थे, जिनसे अंग्रेज़ों को टीपू सुल्तान के कई क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने में मदद मिली थी। युद्ध के बाद, मैकेंज़ी को राज्य की सीमाओं के निर्धारण के साथ-साथ क़ब्ज़े में लिये गये नये इलाक़ों की भौगोलिक जानकारी हासिल करने के लिए मैसूर का सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया।
मैकेंज़ी के सर्वेक्षण सिर्फ़ स्थलाकृति (Topography) तक ही सीमित नहीं रहे। इन सर्वेक्षणों के दौरान उन्होंने कई स्थानों, पांडुलिपियों, मंदिरों, क़िलों और स्थानीय लोगों के इतिहास, रीति-रिवाजों और परंपराओं की खोज भी की।
इतिहासकार पीटर रॉब लिखते हैं, “मैकेंज़ी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सर्वेक्षण को सिर्फ़ शासन करने या विजय प्राप्ति में सहायता करने के लिए विशिष्ट विशेषताओं को परिभाषित करने और नापने का एक तरीक़ा नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने का एक ज़रिया माना।”
चूंकि मैकेंज़ी भारतीय भाषाओं से अच्छी तरह वाक़िफ़ नहीं थे, इसलिए उन्होंने स्थानीय अनुवाद कों और दुभाषियों की एक टीम अपने साथ रखी, जिसने सर्वेक्षण में उनकी मदद की। उनके प्रमुख दुभाषिये, बोरैया ने मैकेंज़ी के सर्वेक्षण को एक निश्चित रुप देने में अहम भूमिका निभाई। कहा जाता है, कि बोरैया ने मैकेंज़ी को कर्नाटक क्षेत्र के इतिहास को लिखने में उपयोगी, लगभग 35 वस्तुओं की एक विस्तृत सूची मुहैया कराई थी। इसमें विभिन्न परिदृश्य, आदिवासी समूह, उनके रीति-रिवाज, धर्म, शहर, प्राचीन स्थल, जलवायु, व्यापार और वाणिज्य तथा अन्य चीज़ें भी शामिल थीं।
सन 1810 में मैकेंज़ी को मद्रास प्रेसीडेंसी का सर्वेयर-जनरल और बाद में यानी सन 1815 में भारत का पहला सर्वेयर-जनरल नियुक्त किया गया। हालांकि उनका मुख्यालय कलकत्ता में था, लेकिन सर्वेक्षणों का काम पूरा करने और उसे पुनर्गठित करने के लिए वह सन 1817 तक मद्रास में ही रहे।
सन 1798 में निज़ाम की रियासत वाले क्षेत्रों के स्थलाकृतिक सर्वेक्षण के लिए मैकेंज़ी आंध्र प्रदेश के ओंगोल में रह रहे थे, और तभी उन्होंने अमरावती में प्राचीन वस्तुओं की खोज के बारे में सुना। इसके बाद उन्होंने अपनी टीम के साथ उस स्थान का दौरा किया, और यात्रा का एक संक्षिप्त विवरण प्रकाशित किया, जिसमें कुछ रेखाचित्र और मूर्तियों के चित्र शामिल थे। इस तरह वह इस स्थल की जांच करने वाले पहले यूरोपीय विद्वान बन गये। लेकिन उन्होंने भारत के सर्वेयर-जनरल बनने के लगभग 20 साल बाद, सन 1816 में इस स्थान पर विस्तृत काम किया। उन्होंने सहायकों और सर्वेक्षकों की एक टीम के साथ इस जगह पर व्यापक कार्य किया। इस दौरान इसके आस-पास के इलाक़ों सहित जगह का विस्तृत सर्वेक्षण के अलावा नक़्शा भी तैयार किया गया। सहायकों और सर्वेक्षकों की एक टीम के साथ, उन्होंने साइट पर व्यापक कार्य किया और स्थल के रेखाचित्रों की एक श्रृंखला भी तैयार की। उन्होंने सर्वेक्षण के बाद और स्थानीय लोगों से एकत्रित जानकारी के साथ इस स्थल की एक संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार की, जिसमें अमरावती का इतिहास और इसके पौराणिक संबंधों के बारे में जानकारियां भी थीं। सन1821 में मैकेंज़ी के निधन के बाद सन 1822 में ये रिपोर्ट “इंडियन एंटीक्यूटीज़” शीर्षक से कलकत्ता जर्नल के वॉल्यूम IV में प्रकाशित हुई।
मैकेंज़ी ने विजयनगर साम्राज्य के पतन के 200 साल बाद सन 1799-1800 में मैसूर के सर्वेक्षण के दौरान हम्पी की खोज की थी। मैकेंज़ी ने अपने मैसूर सर्वेक्षण के दौरान घने जंगल के बीच खंडहर के रुप में पड़े हम्पी की खोज की, जो किसी समय एक शानदार शहर होता था। उन्होंने स्मारकों की वाटर कलर से कुछ पेंटिंग बनाईं, और पेंसिल से यहां का नक़्शा तैयार किया जो आज ब्रिटिश संग्रहालय में एक पुस्तक का एक हिस्सा है।
सन 1799-1816 के बीच, मैकेंज़ी ने अपनी टीम के साथ महाबलीपुरम के स्मारकों के दस्तावेज़ तैयार किये। हालांकि वह इसकी खोज नहीं कर पाये थे, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से इसके अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनके सहायक लक्ष्मय्या ने सन 1799-1803 के बीच महाबलीपुरम का दौरा किया और उस जगह के लिखित तथा मौखिक इतिहास की बेशक़ीमती जानकारी जमा की। इसके बाद रथों पर पाए गए कई अभिलेखों की प्रतियों सहित स्मारकों की कई विस्तृत योजनाएँ और चित्र बनाए गए।
मैकेंज़ी को सारनाथ में पहली व्यवस्थित खुदाई करने का भी श्रेय दिया जाता है।
सबसे प्रसिद्ध और पवित्र बौद्ध स्थलों में से एक, सारनाथ के प्रति 19वीं सदी की शुरुआत में विद्वानों का ध्यान जाने लगा था। सन 1815 में, मैकेंज़ी ने यहां जांच-पड़ताल की थी। उन्होंने उस जगह पर मिली प्राचीन चीज़ें कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में भेज दीं थीं। उनकी खोज के बाद,सन1835-36 में भारत के तत्कालीन महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां खुदाई करवाई थी।
सन 1821 में, कलकत्ता में मैकेंज़ी का देहांत हो गया था । उनकी गुज़र जाने के बाद दस्तावेज़ों और पुरावशेषों का उनका विशाल संग्रह इस बुरी तरह अव्यवस्थित था, कि उनमें से अधिकांश चीज़ें बेमतलब की हो गईं थीं। तीन दशकों में उन्होंने संस्कृत, तमिल, तेलुगु और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी प्राचीन पांडुलीपियां, सोने, चांदी, तांबे के सिक्के, कई तमिल शिलालेखों की प्रतियां और भी बहुत कुछ इकट्ठा किया था। उनकी पत्नी ने ये दस्तावेज़ सरकार को बेच दिये थे। सरकार ने उन्हें सूचीबद्ध करने का काम किया।
मैकेंज़ी लेखागार में 1,568 साहित्यिक पांडुलिपियां, 2,070 स्थानीय किताबें, 8,076 अभिलेख, 215 अनुवाद, 79 योजनाएं, 2,630 चित्र, 6,218 सिक्के और 14 छवियां शामिल हैं। आज ये दस्तावेज़ भारत और ब्रिटेन के विभिन्न संग्रहालयों और पुस्तकालयों में संरक्षित हैं।
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