दिल्ली के अतीत को समझने के लिए 5 स्मारक

दिल्ली शहर का सबसे पहला संदर्भ महाभारत में मिलता है। इसके अनुसार, यमुना के तट पर पांडवों की राजधानी शानदार और भव्य इंद्रप्रस्थ का स्थान था। तब से, दिल्ली का एक लंबा इतिहास रहा है, और कई साम्राज्यों की राजधानी के रूप में भारत का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र रहा है। शहर के इस महत्व को इसके विभिन्न स्मारकों के माध्यम से समझा जा सकता है। आज हम आपको ऐसे ही 5 स्मारकों की सैर पर ले चलते हैं।

1- लौह स्तंभ

क़ुतुब मीनार परिसर में स्थित विशाल लौह-स्तंभ भारत की अजूबी धरोहरों में से एक है। यह अपने आप में प्राचीन भारतीय धातुकर्म की पराकाष्ठा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि लोहे का स्तंभ 1500 साल पुरना है लेकिन इसमें आज तक ज़ंग नही लगा है।

दिल्ली शहर के बीचों बीच महरौली है जो कभी राजधानी हुआ करती थी। महरौली में ही क़ुतुब मीनार परिसर है जो यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल हैं। इसे देखने हज़ारों लोग आते हैं। क़ुतुब परिसर में बेशुमार स्मारक हैं जो दिल्ली पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों ने बनवाये थे। स्मारकों के निर्माण का ये सिलसिला 12वीं शताब्दी से लेकर अंगरेज़ों के भारत आने तक चलता रहा।

ये स्तंभ मस्जिद की मेहराबों के सामने है। स्तंभ के एक तरफ़ शाफ़्ट पर अभिलेख अंकित है जो संस्कृत भाषा और ब्रह्मी लिपि में है। प्राचीन शिला-लेखों के अध्ययन करने के विज्ञान के अनुसार ये अभिलेख चौथी सदी का है जिसे गुप्त ब्रह्मी कहा जाता है। ये नाम गुप्त साम्राज्य के नाम पर रखा गया था। चौथी और 7वीं सदी में उत्तर और मध्य भारत में गुप्त शासकों का साम्राज्य हुआ करता था। इन अभिलेखों से स्तंभ के उद्भव के बारे में पता चलता है। और पढ़ें

 

2 – लोधी गार्डन

दिल्ली में लोधी गार्डन लोगों की एक पसंदीदा जगह है। लोग शहर की हलचल से भागकर थोड़ा तफ़रीह के लिये यहां आते हैं। लेकिन इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिये लोधी गार्डन में कई दिलचस्प चीज़ें हैं। यहां सैयद, लोधी और मुग़ल काल के कई स्मारक, मक़बरे और अन्य भवन मौजूद हैं।

सफ़दरजंग मक़बरे और ख़ान मार्केट के बीच लोधी रोड पर स्थित लोधी गार्डन 90 एकड़ भूमी पर फैला हुआ है। 13वीं शताब्दी में इसे बाग़-ए-जुड़ या जोड़ बाग़ कहा जाता था। इससे पता चलता है कि शायद तब भी ये एक बाग़ हुआ करता था। दिलचस्प बात ये है कि गार्डन का दक्षिणी इलाक़ा आज जोर बाग़ नाम से जाना जाता है।

इतिहासकार और लेखिक डॉ. स्वपना लिडल अपनी किताब “दिल्ली 14: हिस्टॉरिक वॉक्स” (2011) में लिखती हैं कि ये इलाक़ा उस समय बाग़ के लिये मुनासिब था क्योंकि तब यहां यमुना की एक सहायक नदी बहती थी।

15वीं और 16वीं शताब्दी के बाद ये बाग़ एक तरह से शाही मकबरों का स्थान बन गया था। 15वीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत पर सैयद वंश का कब्ज़ा था। तैमूर के हमले के बाद वे सत्ता में आए थे। तुर्क-मुग़ल हमलावर तैमूर के हमले के बाद तुग़लक़ वंश (1320-1414) का पतन हो गया था। और पढ़ें

3 – लाल क़िला

भारत में लाल क़िला एक ऐसा स्मारक है जिसे देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इसमें इतिहास के उतार-चढ़ाव हैं। भीड़भाड़, शोरग़ुल और ख़रीदारों की गहमागमी वाली पुरानी दिल्ली में स्थित लाल क़िले का इतिहास किसी दिलचस्प कहानी से कम नही है।

लाल क़िला बनने में नौ साल लगे थे। जब ये बनकर तैयार हुआ था तब शहर के अंदर ही एक शहर बस गया था जहां महल, छावनियां, बाज़ार, सभागार आदि सब कुछ हुआ करता था। शाहजहां यहां सन 1648 में आया और यहीं से उसने सगभग एक दशक तक शासन चलाया।

लेकिन क्या आपको पता है कि लाल क़िला हमेशा से लाल नहीं था? क़िले की दीवारें तो लाल बलुआ पत्थर की बनी थीं लेकिन अंदर के महल लाल और सफ़ेद पत्थरों के बने थे,यह दोनों रंग मुग़ल बादशाहों के प्रिय रंग हुआ हुआ करते थे। क़िले में शाही ख़ानदान के लिये गुलाब जल के फव्वारों और भाप से नहाने का इंतज़ाम हुआ करता था। अगर आप आज लाल क़िले जाएं तो आपको दिवान-ए-आम, रंग महल, मुमताज़ महल, हयात बख़्श गार्डन, सावन, भादो पवैलियन, छोटा चौक बाज़ार और नौबत ख़ाने में उस समय के क़िले की भव्यता की झलक मिलेगी। नौबत ख़ाना में संगीतकार एकत्र होते थे। और पढ़ें

4 – इंडिया गेट

भारत की राजधानी दिल्ली के राजपथ को कई लोग राष्ट्रीय सड़कमानते हैं। यह वही जगह है जहां हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड होती है। इसकी पश्चिम दिशा में राष्ट्रपति भवन और पूर्वी दिशा में इंडिया गेट है। यह दोनों इमारते अंगरेज़ों की बनवाई हुई हैं। राष्ट्रपति भवन अंगरेज़ों के लिये, दक्षिण एशिया में उनकी शक्ति का प्रतीक था, वहीं इंडिया ब्रिटिश सरकार से वफ़ादारी और उसके ख़ातिर किये गये बलिदान का प्रतीक था, जिसकी वजह से ब्रिटिश साम्राज्य बना।

इंडिया गेट उन 70 हज़ार ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की याद में बनवाया गया था जिन्होंने सन 1914 और सन 1921 के बीच अपनी जानें गंवाईं थीं पहले प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में और उसके बाद तृतीय एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध (1919) में।

इस गेट की डिज़ाइन भी, नई दिल्ली को रूप देने वाले शिल्पकार एडविन लुटियंस ने बनायी थी। जैसे जैसे इंडिया गेट शक्ल ले रहा था, उसी के साथ साथ राजधानी नई दिल्ली भी बनती जा रही थी। यह मुग़लों की राजधानी शाहजहांबाद से सिर्फ़ दस किलोमीटर दूर , एकदम नये सिरे से बन रही थी। ख़ुशवंत सिंह ने लिखा है कि पत्थर काटनेवाले यानी संगतराश आगरा और दिल्ली के ही थे और वह मुग़लों के क़िले बनाने वाले कारीगरों के ख़ानदान के ही थे। नई दिल्ली के निमार्ण में तीस हज़ार मज़दूर लगाये गये थे। उनमें से ज़्यादातर राजस्थान से थे जिन्हें बागरी के नाम से जाना जाता है। उन लोगों के रहने के लिये निर्माण कार्य के आसपास ही अस्थाई प्रबंध किये गये थे। और पढ़ें

5- शाहजहानाबाद का जैन मंदिर

श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली का पुराना और प्रसिद्ध जैन मंदिर है। यह ऐतिहासिक चांदनी चौक क्षेत्र में लाल किले के ठीक सामने है। यह मंदिर हमें जैन समुदाय के मुग़ल योगदान के इतिहास के बारे में बताता हे। और जानने के लिए देखे यह वीडियो

शीर्षक चित्र यश मिश्रा

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