सियाली रामामृत रंगनाथन : पुस्तकालय विज्ञान के महाजनक

सियाली रामामृत रंगनाथन : पुस्तकालय विज्ञान के महाजनक

पुस्तकालय-लाइब्रेरी यानी पुस्तकों का ख़ज़ाना।एक ऐसा ख़ज़ाना जहां विभिन्न विषयों की,विभिन्न भाषाओं की,विभिन्न लेखकों की लाखों किताबें, पत्र-पत्रिकाएं और जनरल्स सहेज कर रखे जाते हैं। किसी ज़माने में,पुस्तकों के ऐसे ख़ज़ाने से,अपनी ज़रूरत या अपनी पसंद की एक किताब तलाशना,समुद्र में ग़ौता लगाकर,मोती चुननेकी तरह मुश्किल काम हुआ करता था। इसीलिए इन किताबों को वैज्ञानिक तरीक़े से जमाने का ख़्याल आया  ताकि लाखों किताबों में से किसी एक किताब को खोजना आसान हो जाए। किताबों को क्रम से जमाने की इस व्यवस्था या कला को नाम दिया गया-लाइब्रेरी साइंस या पुस्तकालय विज्ञान। लाइब्रेरी के विकास में योगदान के लिए सबसे पहले एक नाम आता है……सियाली रामामृत रंगनाथन।

पद्मश्री से पुरस्कृत रंगनाथन को भारत में पुस्तकालय विज्ञान का पितामाह माना जाता है। लाइब्रेरी साइंस से जुड़े कुछ नियमों और प्रणालियों को उन्हीं की खोज माना जाता है। ये उन्हीं का योगदान है, कि अब बड़ी से बड़ी लाइब्रेरी में, किसी एक पुस्तक को तलाश करने में चंद मिनटों से ज़्यादा नहीं लगते।

रंगनाथन का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के सियाली तहसील में 9 अगस्त, सन 1892 को हुआ था। ज़मींदारों के परिवार में जन्में रंगनाथन सिर्फ़ छह बरस के थे, जब उनके पिता लम्बी बीमारी के बाद महज़ तीस साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए थे। अपने गाँव के स्कूल से मेट्रिक पास करने के बाद, उन्होंने मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से गणित में बी.ए और एम.ए. किया। रंगनाथन की गणित में गहरी रूचि थी और वे गणित के अध्यापक बनना चाहते थे।

सिटी सेंट्रल लाइब्रेरी, हैदराबाद में रंगनाथन की तस्वीर | विकी कॉमन्स

सन 1917 से लेकर सन 1923 तक रंगनाथन शिक्षक के तौर पर सक्रिय रहे। उन्होंने मेंगलूरु (कर्नाटक), कोयंबत्तूर, और मद्रास में अलजेब्रा, ट्रिग्नोमेट्री मैथ्स और स्टेटिस्टिक्स साइंस जैसे विषयों को पढ़ाया। इस दौरान, उनके गणित के इतिहास से जुड़े कई लेख प्रकाशित हुए और वे मद्रास टीचर्स गिल्ड के गणित और विज्ञान विभाग के सचिव भी रहे। रंगनाथन उस दल से भी जुड़े थे, जिसने अंग्रेज़ों की वेतन प्रणाली के ख़िलाफ़ विरोध किया था। तब भारतीय अध्यापकों को, अंग्रेज़ी अध्यापकों के मुकाबले कम तनख़्वाह मिलती थी। इस व्यवस्था का विरोध करने के बावजूद उनकी कोशिशें असफ़ल रहीं। फिर भी, उन्होंने अध्यापन-कार्य जारी रखा। लेकिन तब उन्हें ये नहीं पता था, कि उनकी क़िस्मत में कुछ और ही लिखा था।

सन 1923 में, मद्रास विश्वविद्यालय ने एक लाइब्रेरियन (पुस्तकालय अध्यक्ष) का नया पद शुरू किया और उसके लिए आवेदन मंगवाए गए। अपने साथियों के सुझाव पर, रंगनाथन ने भी अपना आवेदन भेज दिया। इस पद के लिए आवेदक के लिए, शोध विषय के बारे में जानकारी होना ज़रूरी था। रंगनाथन अपने गणित विषय के लेखों से ये बात साबित कर चुके थे। दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने आवेदन कर दिया। यह जनवरी, सन 1924 की बात है।  लगभग 900 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन इस के लिए चुना गया रंगानाथन को।

रंगनाथन इस पद पर आसीन तो हो गए, लेकिन कुछ ही महीनों में उनको ये आभास हो गया कि वे इस पद के क़ाबिल नहीं हैं। उन्होंने यह बात प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रिंसिपल को बताई और कहा, कि पुस्तकालय उनके लिए किसी क़ैदख़ाने से कम नहीं है। यहां पर काम करने में कुछ मज़ा ही नहीं है। जवाब में उनके प्रिंसिपल ने उनसे वादा किया, कि वो रंगनाथन को अपने साथ इंग्लैंड ले कर जाएंगे ताकि रंगानाथन को लाइब्रेरी साइंस की पश्चिम प्रणाली की जानकारी हासिल हो सके। प्रिंसिपल साहब ने यह भी वादा किया कि यदि, वापस आने के बाद भी ये विषय उन्हें रास नहीं आया तो उन्हें दोबारा गणित का अध्यापक बना दिया जाएगा। सितम्बर, सन 1924 में रंगनाथन इंग्लैंड के लिए रवाना हुए।

इंग्लैंड में ट्रेनिंग को दौरान, वहाँ की पुस्तकालय प्रणाली को देखते हुए, रंगानाथन के मन में यह सवाल पैदा होने लगा कि भारत जैसे विशाल देश को पुस्तकालय जैसे संस्थानों की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए ? और यह कि राष्ट्रीय विकास में इसका किस तरह उपयोग किया जा सकता है? इस विषय में उनकी रूचि बढ़ने लगी और वह नए मंसूबे तैयार करने लगे थे।

रंगनाथन के पुस्तकालय विज्ञान पर आधारित किताब | abebooks

जुलाई, सन 1925 में रंगनाथन वापस स्वदेश आ गए और वो मद्रास विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को एक नया चेहरा देने में जुट गए। उन्होंने सभी किताबों और पढने की अन्य सामग्री का विषयानुसार चयन किया और उनकी प्रणाली में वो सभी सुधार लाए, जिसके बूते पर एक सम्पूर्ण पुस्तकालय को तैयार किया जा सकता है। सन 1927 में मद्रास में कांग्रेस अधिवेशन के साथ-साथ अखिल भारतीय जन-पुस्तकालय कांफ़्रेंस का भी आयोजन हुआ। जिसकी वजह से रंगनाथन को कई प्रभावशाली राष्ट्रीय और स्थानीय राजनेताओं से मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला। उन्होंने पुस्तकालय के महत्व पर ज़ोर देते हुए उनका समर्थन प्राप्त किया। नतीजे में जनवरी, सन 1928 में मद्रास लाइब्रेरी एसोसिएशन की स्थापना हुई। इस एसोसिएशन ने मद्रास प्रेसीडेंसी प्रांत के सभी शहरों और गाँवों में पुस्तकालयों स्थापित करने के लिए ना सिर्फ़ प्रचार किया बल्कि कई गावों में बैलगाड़ी पुस्तकालयों की सुविधा भी उपलब्ध कर वाई। इन सबके लिए वित्तीय सहायता अधिकाँश, स्थानीय लोग देते थे।

रंगनाथन ने पुस्तकालय प्रणाली में सुधार लाने के साथ-साथ, पुस्तकालय विज्ञान पर गहन शोध भी किया। उनके शोध और मद्रास विश्वविद्यालय में कार्य का ये नतीजा निकला कि सन 1930 के दशक के दौरान उन्होंने कई नए सिद्धांत प्रस्तुत किए, जिन्हें विश्वस्तर पर बहुत तारीफ सराहा गया। इनमें सबसे पहला थे.. पुस्तकालय विज्ञान के पांच सिद्धांत :

  1. पुस्तकों का इस्तेमाल
  2. हर पाठक के लिए पुस्तक
  3. हर पुस्तक के लिए पाठक
  4. पाठक के लिए समय की बचत
  5. पुस्तकालय एक बढ़ता हुआ जीव है

इन्हीं में से एक और मुख्य खोज थी, द्विबिंदु वर्गीकरण या कोलन क्लासीफ़िकेशन। ये वही प्रणाली है, जिसके तहत पुस्तकालय संसाधनों को व्यवस्थित किया जाता है। ये वर्गीकरण में, विषयों के क्रम को परिभाषित करता है और पुस्तकों को उसी क्रम में जमाने की सलाह देता है। वहीँदोहराव की स्वीकृति या एकनॉलेजमेंट ऑफ़ डुप्लीकेशन के तहत, किसी भी किताब को उसके विषयानुसार एक से अधिक वर्गों में रखा जा सकता है।

रंगनाथन की शोहरत धीरे-धीरे मद्रास प्रेसीडेंसी की सीमाएं लांघ रही थी और उनके काम के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में पुस्तकालय विज्ञान स्थाई विषय बनता जा रहा था। इस काम के सम्मान में, सन 1935 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राव साहेब’ की पदवी से नवाज़ा। लेकिन विश्वविद्यालय में चल रही राजनीति और आला-अफ़सरों से मनमुटाव की वजह से, सन 1944 में रंगनाथन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। कहा जाता है कि उसी वजह से वे डिप्रेशन में चले गए थे।

लेकिन ये दुख अधिक दिनों तक क़ायम नहीं रहा। सन 1944 में रंगनाथन, भारतीय पुस्तकालय एसोसिएशन (इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन) के अध्यक्ष बनाए गए और सन 1953 तक वे इस पद पर आसीन रहे। सन 1945 में वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पुस्तकालय अध्यक्ष (लाइब्रेरियन) और पुस्तकालय विज्ञान के शिक्षक भी बनें। दो वर्ष बाद ही  उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय विज्ञान विभाग का शिक्षक बना दिया गया। सन 1948 में उन्हें डी.लिट्ट की उपाधि से सम्मानित किया गया।

दिल्ली में रहना रंगनाथन के लिए खुशियों की नई सौग़ात लेकर आया। यहाँ रहने से उनके काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ना सिर्फ़ ख्याति मिली, बल्कि उनके पेशेवर सम्बन्ध भी मज़बूत हुए। यही वजह रही, कि उन्हें कई विदेशों के दौरे करने के अवसर मिले । उत्तरी अमेरिका, जापान और यूरोप में, पुस्तकालय विज्ञान पर आधारित उनके कई शोध और किताबें प्रकाशित हुईं। उन्होंने कई पुस्तकालयों और उससे जुड़े संगठनों का उद्घाटन भी किया। सन 1950 में उन्होंने भारत सरकार के लिए पुस्तकालय विकास योजना बनाई, जिसके तहत उन्होंने हर राज्य में पुस्तकालय स्थापित किए जाने पर ज़ोर डाला। उसी के बाद से भारत में केन्द्रीय और राजकीय पुस्तकालयों के साथ, उससे जुड़े विषयों और शोध को गम्भीरता से लिया जाने लगा था।

सन 1992 में भारत सरकार द्वारा जारी किया हुआ रंगनाथन पर डाक टिकट

सन 1957 रंगनाथन के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। उसी वर्ष उन्हें भारत और ब्रिटेन दोनों में सम्मान मिला। भारत में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ब्रिटेन में उन्हें इंटरनेशनल फ़ेडरेशन फॉर इनफ़ार्मेशन एंड डॉक्यूमेंटेशन का सम्माननीय सदस्य भी बनाया गया। रंगानाथन ग्रेट ब्रिटेन की पुस्तकालय समिति के उपाध्यक्ष भी रहे।

रंगनाथन को बाद में अनेक संगठनों और विभिन्न पदों पर काम करने के मौक़े मिले। पुस्तकालय विज्ञान के बारे में उनके विचारों पर संयुक्त राष्ट्र और यूरोप में ख़ूब काम होने लगा । अपने जीवन के आख़िरी वर्षों में यानी सन 1962 में, उन्होंने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में  डॉक्यूमेंटेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की जहां वो पांच वर्ष तक सम्माननीय निदेशक रहे। ये संगठन भारत में पुस्तकालय और सूचना सेवाओं में सुधार करने वाले हर तकनीकी विकास को लागू करने में अनेक वैश्विक संगठनों के साथ काम करता है। सन 1965 में भारत सरकार ने उन्हें ‘राष्ट्रीय शोध प्रोफ़ेसर’ की पदवी से सम्मानित किया। सन 1972 में ब्रोंकाइटिस की बीमारी से, अस्सी वर्ष की उम्र में इस महान विद्वान ने दुनिया को अलविदा कहा।

सन 1992 में रंगनाथन के जन्म के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर उनके कई लेख और शोध-कार्य प्रकाशित किए गए । उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया। उनकी जीवनी ‘ए लाइब्रेरियन लुक्स बेक’ उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हो चुकी थी। आज, उनका जन्मदिन (9 अगस्त) है जो प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस के में मनाया मनाया जाता है।

हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading