प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भारत में सात पवित्र नदियां हैं। गंगा नदी जहां देश की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है, वहीं नर्मदा एकमात्र ऐसी नदी है, जिसकी तीर्थ-यात्री परिक्रमा करते हैं।
मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ियों से निकली, नर्मदा नदी को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। नदी का उल्लेख महाकाव्य रामायण, महाभारत और पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी जैसे विदेशी ग्रंथों में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये नदी तांडव करते वक़्त भगवान शिव के पसीने से निकली थी। यही वजह है, कि इसे भगवान शिव की पुत्री माना जाता है।
मध्य भारत में अन्य नदियों की तुलना में नर्मदा ज़्यादा पवित्र नदी मानी जाती है, जो पश्चिमी दिशा में, एक हज़ार तीन सौ बारह किलोमीटर तक बहती है, और गुजरात में खंभात की खाड़ी से होते हुए अरब सागर में मिल जाती है। दरअसल ये देश के उत्तर और दक्षिण को विभाजित करती है।
ये पवित्र नदी तीर्थ-यात्रियों को सदियों से आकर्षित करती रही है जो बहुत पुरानी परम्परा के मुताबिक़ इसकी परिक्रमा करते हैं। नर्मदा परिक्रमा के रूप में जानी जाने वाली तीर्थ-यात्रा बहुत कठिन होती है। तीर्थ-यात्री, जीवन में शांति, इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ आत्म-जागरूकता और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए यह परिक्रमा करते हैं।
दिलचस्प बात यह है, कि इस तीर्थ-यात्रा के इतिहास के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ कथाओं के अनुसार सबसे पहली तीर्थ-यात्रा ऋषि मार्कंडेय ने की थी। नर्मदा परिक्रमा कब शुरू हुई थी, इसके बारे में तो पता नहीं, लेकिन इस तीर्थ-यात्रा की कहानी बहुत रोचक है। इसकी परिक्रमा दो हज़ार छह सौ किलोमीटर लम्बी होती है। यह यात्रा, अमरकंटक में नदी के स्रोत से लेकर गुजरात में इसके संगम तक और वापस नदी के स्रोत तक होती है। तीर्थ-यात्रा शुरू करने का कोई निश्चित तरीक़ा नहीं है, लेकिन परिक्रमा तभी पूरी मानी जाती है, जब तीर्थ-यात्री, दो हज़ार छह सौ किलोमीटर का फ़ासला तय कर लेते हैं। फिर यात्रा चाहे किसी भी बिंदू से शुरु हो।
पारंपरिक विधि के अनुसार यह परिक्रमा, तीन वर्ष, तीन महीने और तेरह दिन की निर्धारित अवधि में नंगे पांव करनी होती थी! हालांकि आज इसे तीन-चार महीने में पूरा किया जा सकता है। लोग आज भी नंगे पांव चलते हैं, लेकिन परिक्रमा को पूरा करने के लिए बस और कार जैसे परिवहन के अन्य साधनों का भी उपयोग किया जाने लगा है।
परंपरागत रूप से परिक्रमा की शुरूआत में नदी, तीर्थ-यात्रियों के दाहिनी ओर होती है। पूरी परिक्रमा के दौरान तीर्थ-यात्रियों को कुछ सख़्त नियमों का पालन करना होता है। उन्हें यह परिक्रमा निहायत सादगी से करनी होती है। वो लोग रास्ते में आश्रमों और धर्मशालाओं में रहकर थोड़ा आराम भी कर सकते हैं। इस परिक्रमा के दौरान तीर्थ-यात्री नर्मदा के किनारे पर स्थित विभिन्न मंदिरों के दर्शन करते हैं।
तीर्थ-यात्रा के मार्ग पर कुछ सबसे महत्वपूर्ण मंदिर जैसे उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और उनमें एकमात्र दक्षिणमुखी मूर्ति है। हालांकि इस मंदिर के निर्माण की सही तारीख़ पता नहीं है, लेकिन मौजूदा मंदिर सन 1734 ईस्वी में, मराठा सेनापति रानोजी सिंधिया ने बनावाया था, और बाद में 18वीं शताब्दी के अंत में महादजी सिंधिया ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। इस मंदिर के अलावा तीर्थ़-यात्री,काल भैरव जैसे शहर के अन्य मंदिरों के दर्शन करते हैं।
वहीँ नर्मदा नदी पर मांधाता द्वीप में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर (मध्य प्रदेश) भी भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस क्षेत्र में एक और शिव मंदिर है ममलेश्वर, जो नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। कहा जाता है, कि आदि शंकराचार्य ने ओंकारेश्वर में ही अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से एक गुफा में मुलाक़ात की थी। यह गुफा शिव मंदिर के ठीक नीचे स्थित है, जिसमें आदि शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित की गई है। यहीं पर नर्मदा नदी का कावेरी नदी में संगम होता है, और इसी वजह से तीर्थ-यात्रियों के लिए इस स्थान की पवित्रता और बढ़ जाती है।
नर्मदा कुंड और माई की बगिया, अमरकंटक- नर्मदा कुंड वह स्थान है जहां से नर्मदा नदी निकलती है। यहां नर्मदा मंदिर के अलावा और भी कई पवित्र मंदिर हैं, जैसे शिव मंदिर, दुर्गा मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर आदि।नर्मदा कुंड से लगभग 5 किमी दूर स्थित, माई की बगिया पेड़ों का एक प्राकृतिक उपवन है, जो देवी नर्मदा को समर्पित है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, देवी नर्मदा अपनी सहेली के साथ यहां खेला करती थीं। यह स्थान आम और केले के पेडो साथ अन्य फलों के पेड़ों से भरा हुआ है। यह जगह गुलाब के साथ अन्य फूलदार पौधों से भी घिरी हुई है। तीर्थ-यात्री इस स्थान को भी बहुत पवित्र मानते हैं।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, जबलपुर- त्रिपुरा सुंदरी मंदिर मध्य प्रदेश में जबलपुर के पास तेवर गांव में स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर, 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मंदिर देवी त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की मूर्ति ज़मीन से निकली थी।
दक्षिण काशी (प्रकाश)- दक्षिण काशी महाराष्ट्र के शाहदा में तापी नदी के तट पर स्थित एक गांव है। यहां भी शिव मंदिरों है। इसी वजह से यह एक पवित्र स्थल माना जाता है।परिक्रमा मार्ग पर कुछ अन्य मंदिर भी हैं जैसे में खरगोन में नवग्रह मंदिर, जबलपुर में शंकराचार्य मंदिर, भोपाल में लक्ष्मी नारायण मंदिर।
आज भी नर्मदा परिक्रमा की सदियों पुरानी परंपरा जारी है, और सैकड़ों तीर्थ-यात्री इस कठिन तीर्थ-यात्रा हिस्सा लेते हैं।
हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.