हरि सिंह ‘उप्पल’ से कैसे बने ‘नलवा’ सरदार?

हरि सिंह ‘उप्पल’ से कैसे बने ‘नलवा’ सरदार?

अपनी तलवार के एक वार से शेर की गर्दन उसके तन से जुदा करने वाले हरि सिंह नलवा की शहादत अफ़ग़ानों के हाथों हुई थी। उनकी शहादत की ख़बर सुनकर  शेर-ए- पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद कहा था , “मेरे वीर सेनापति हरि सिंह का वियोग मेरे लिए असहनीय है। आज खालसा राज्य के मज़बूत क़िले का बुर्ज ढह गया।” महाराजा के प्रिय और बहादुर सेनापति सरदार हरि सिंह नलवा की शहादत, 30 अप्रैल 1837 को, पाकिस्तान के पख़्तूनख़्वा के क़िले जमरोद में हुई थी।महाराजा रणजीत सिंह के वो शब्द बिल्कुल सच साबित हुए और सरदार नलवा की शहादत के साथ ही खालसा राज्य की नींव में दरारें पड़ गईं थीं । उसी के बाद से सिख राज्य का पतन शुरू हो गया था ।

एक बार जब महाराजा जंगल में शिकार के लिए गए थे, तब शेर ने अचानक हरि सिंह पर हमला कर दिया था।  हरि सिंह ख़िदमतगार के तौर शिकार के वक़्त भी हमेशा महाराजा के साथ होते थे। शेर ने झपट्टा मारकर उन्हें घोड़े से नीचे गिरा दिया। यह सब इतनी तेज़ी से हुआ, कि हरि सिंह म्यान में से तलवार भी नहीं खींच सके। इसके बावजूद, इस बहादुर योद्धा ने हिम्मत नहीं हारी और अपने दोनों हाथों से शेर के जबड़े पकड़ लिए। उन्होंने शेर को पूरी ताक़त से हवा में घुमा दिया। इस तरह शेर की पकड़ ढ़ीली पड़ गई  और  हरि सिंह को अपनी म्यान से तलवार निकालने का मौक़ा मिल गया। फिर क्या था,पलक झपकते ही शेर का सिर, धड़ से अलग हो गया। इस संबंध में दीवान अमरनाथ ने फ़ारसी में लिखी गई किताब ‘ज़फ़रनामा रणजीत सिंह’ में कुछ इस तरह लिखा है, “महाराजा ने हरि सिंह से ख़िदमतगरी का पद छुड़ा कर उन्हें सरदारी की उपाधि भेंट की और आठ सौ सवार और पैदल सेना का अधिकारी नियुक्त कर सम्मान बख़्श कर हौसला अफज़ाई की।“

सरदार हरि सिंह नलवा की तस्वीर | लेखक

महाराजा रणजीत सिंह ने  राजा नल का एक चित्र देखा था। राजा नल निशध देश के चंद्रवंशी राजा बीरसेन के सुपुत्र थे और उनका विवाह विदर्भपति भीम की पुत्री दमयंती से हुआ था। उस चित्र में  राजा नल ने हरि सिंह की तरह अपनी तलवार से एक शेर का शिकार किया था। महाराजा रणजीत सिंह उस चित्र  से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने अपने बहादुर जरनैलहरि सिंह की वीरता से प्रसन्न होकर कहा, “आज से आप भी हमारे ‘नलवा’ सरदार हैं।” अगले ही दिन, महाराजा नेहरि सिंह नलवा को शेर-दिल रेजीमेंट का सरदार-ए-आला मुक़र्रर कर दिया।

महाराजा ने शिकार पर साथ गए दरबारी चित्रकार पंडित बिहारी मल से हरि सिंह का शेर से लड़ाई करते हुए का चित्र तैयार करवाया।  महाराजा ने, उस चित्र की तीन नक़लें तैयार करवाईं थीं। जिन में से दो हरि सिंह नलवा को दे दीं और एक अपने पास रख ली। इन चित्रों में से एक चित्र सरदार नलवा ने, 8 जनवरी 1821 को बैरन हुगल को भेंट कर  दिया, जिसे देखकर वे बहुत हैरान हुए। उसने अपनी पुस्तक ‘ट्रैवल्स इन कश्मीर एंड पंजाब’ में इसका उल्लेख किया है। एक अन्य इतिहासकार मि. विजन लिखते हैं, कि सरदार हरि सिंह नलवा ने वह तलवार दिखाई थी, जिससे उन्होंने एक ही वार में शेर के सिर को धड़ से अलग कर दिया था।

मौलाना अहमद दीन ‘मुकम्मल तारिख़-ए- कश्मीर’, खंड 3,में लिखते हैं , “नलवा के मुतल्लक मशहूर है कि राजा नल ज़माना क़दीम में एक बहादुर और शुजाह राजा था, लोगों ने उसे (हरि सिंह) को नल से नलवा बना दिया। नलवा से मुराद शेर को मारने वाला शेर अफ़गन है। चूंकि हरि सिंह ने भी शेर मारे थे, इसलिए उसका नाम नलवा मशहूर हुआ।”

इतिहासकार एन.के. सिन्हा अपनी पुस्तक ‘रंजीत सिंह’ में लिखते हैं कि हरि सिंह को ‘नलवा’ ख़िताब इसलिए मिला, क्योंकि उन्होंने अपने हाथों से शेर का सिर मरोड़कर मार डाला था।कई इतिहासकारों ने लिखा है, कि अफ़गानी हमलों के बाद सरदार हरि सिंह नलवा के नाम का डर अफ़गानों में इस क़दर फैल गया था, कि अफ़गानी महिलाएं अपने बच्चों को सरदार नलवा का नाम लेकर डराती थीं।

हरी सिंह नलवा हाथी पर अपने सैनिकों के साथ | विकी कॉमन्स

सैयद मुहम्मद लतीफ़ ‘हिस्ट्री ऑफ़ द् पंजाब’ में लिखते हैं, कि सरदार नलवा का दबदबा अफ़गानों के दिलों में इस क़दर समाया हुआ था, कि आज भी पेशावर और आसपास के इलाक़ों में माताएं उसका नाम ‘हरिया’ (हरि सिंह नलवा) ले कर अपने बच्चों को डराती हैं। एलफ़ कैरो के अनुसार, आज भी पठान औरतें अपने शैतान बच्चों को ‘हरिया रागले’ (हरि सिंह आ गया) कहकर डराती हैं।

मौलाना मीर अहमद ‘तवारीख़ सरहदी पेशावर’ में लिखते हैं , “इसके (हरि सिंह) के नाम से लोग डरा करते थे। पेशावर में तो इस क़द्र उसका खौफ़ था, कि माएँ अपने शरारती बच्चों को कहा करती थीं कि अगर तुम नेक (अच्छे) नहीं बनोगे तो हरि सिंह तुम्हें पकड़ कर ले जाएगा और छोटे बच्चे तो हरि सिंह को एक हव्वा (खौफ़ ) ख़्याल किया करते थे।” शमशेर सिंह अशोक ‘वीर नायक हरि सिंह नलवा’ में लिखते हैं, कि पठान औरतें के बच्चे जब बिना कारण रोते रहते थे, तो वह उन्हें यह कहकर चुप कराया करती थीं, “चुप शा बच्चा, हरिया रागले।”

पेशावर में नलवा द्वारा जारी किये गए सिक्के | विकी कॉमन्स

ख़ैर, सरदार हरि सिंह को शेर-ए-पंजाब ने जो ‘नलवा’ ख़िताब दिया था,वह उनके बाद उनके वंशजों ने भी अपनाया लिया था। आज भी इस परिवार के लोग अपने नाम के साथ, अपना गोत्र ‘उप्पल’ लगाने के बजाय ‘नलवा’ लिखते हैं। यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि हरियाणा, दिल्ली और विदेशों में रहने वाले अन्य लोग भी अपने नाम के साथ ‘नलवा’ उपनाम लिखते  हैं, जिनका हरि सिंह नलवा के खानदान से कोई संबंध नहीं है। हो सकता है कि ये लोग उस राजपूत समुदाय से संबंधित होंगे जिन्हें बहादुरी के लिए ‘नलवा’ ख़िताब मिला होगा। हालांकि, यह साफ़ नहीं है कि इन (राजपूतों) को यह ख़िताब किससे और कब मिला।

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