केरल यानी भारत की मसालों की राजधानी। इन मसालों की वजह से प्राचीन समय से व्यापारी और यात्री केरल आते रहे थे। लेकिन क्या आपको मालूम है, कि 9वीं शताब्दी में केरल में मौजूद एक बंदरगाह इतनी मशहूर हुई, कि कई महान यायावरों के गढ़ होने के साथ-साथ इसपर एक कैलेंडर का नाम भी रखा गया था ?
तिरुवनंतपुरम से लगभग 65 किमी दूर स्थित कोल्लम, काजू उत्पादन और नारियल के छिलकों से वस्तुएं बनाने का एक बड़ा केंद्र है। लेकिन प्राचीन काल में यह मालाबार तट के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों में से एक था।
मालाबार में बड़ी मात्रा में मसालों पाये जाते थे, जिसकी वजह से विदेशी व्यापारी यहां आते थे। मालाबार तट पर व्यापारियों के साथ इन मसालों का व्यापार होता था। कोल्लम अपनी उपजाऊ ज़मीन पर पैदा होने वाले मसालों और उनकी गुणवत्ता के लिए मशहूर था। यह काली मिर्च, अदरक, इलायची, ब्राज़ील लकड़ी, सागौन की लकड़ी, कपड़े और खुशबूदार उत्पादों के मामले में समृद्ध था। इन उत्पादों में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ थी… काली मिर्च।
कोल्लम सिर्फ़ मसालों की वजह से ही खुशहाल नहीं था, बल्कि उसके अन्य कारण भी थे जिनकी वजह से इसका विकास हुआ। कोल्लम के विकास का एक प्रमुख कारण था, इसकी भौगोलिक स्थिति। कोल्लम ज़मीन के साथ-साथ समुद्री मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ था। यह स्थान समुद्र और अष्टमुडी झील (केरल की एक अनूप झील) के बीच स्थित है। अष्टमुडी की ये आठ शाखाएं क्षेत्र के भीतरी गांवों से जुड़ी हुई थीं, जिसकी वजह से व्यापारियों और गांवों के बीच सीधा व्यावसायिक संबंध था।
9वीं शताब्दी में कोल्लम चेरा पेरुमल और बाद में वेनाड शासकों के शासनकाल में महत्वपूर्ण स्थान के रूप में उभरा। वेनाड 12वीं शताब्दी के आसपास चेरों से अलग होकर एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में स्थापित हुए और उन्होंने कोल्लम को अपनी राजधानी बनाई, जिसके कारण कोल्लम में और ख़ुशहाली आई। चोल शासकों की व्यापारिक गतिविधियां फैलती जा रहा थीं और उनका पहले से ही सीलोन (श्रीलंका) और कोरमंडल (भारतीय प्रायद्वीप की दक्षिण-पूर्वी तटरेखा) पर नियंत्रण था। चेरा शासक इसका मुक़ाबला करना चाहते थे। नतीजतन उन्होंने पश्चिमी तट पर व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरु किया और इस काम में कोल्लम उनका प्रमुख बंदरगाह बना। शाम देशों से ईसाई प्रवासियों और व्यापारियों का आना कोल्लम के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। ईरानियों ने उनके साथ ख़ूब व्यापार किया। ईसाई आप्रवासियों के नेता मारसपोर ने स्थानीय शासक अय्यानाडिकल तिरुवाडिकल का विश्वास हासिल किया। मारसपोर के बारे में कुछ विद्वानों का मानना है, कि कोल्लम बंदरगाह की स्थापना उन्होंने ही की थी, जिसका उल्लेख सन 849-50 में क्विलोन सीरियन के समय के तांबे के अभिलेखों में है। अभिलेखों के अनुसार राजा ने मारसपोर को कोल्लम में कई अधिकारों और विशेषाधिकारों के साथ एक चर्च बनाने की अनुमति भी दी थी।
अरबों के अलावा, कोल्लम के चीन के साथ भी व्यापारिक संबंध थे, जो चीनी के चार राजवंशों- तंग (शासनकाल 7वीं-10वीं शताब्दी), सोंग (10वीं-13वीं शताब्दी), युआन (13वीं-14वीं शताब्दी) और प्रारंभिक मिंग (14वीं-17वीं शताब्दी) के आरंभिक शासनकाल तक चले। 9वीं शताब्दी के आसपास यहां आए ईरानी व्यापारी सुलेमान ने लिखा है, कि भारत में कोल्लम एकमात्र बंदरगाह होता था, जिसका उपयोग चीनी जहाज़ चीन से फ़ारस की खाड़ी में माल भेजने के लिये किया करते थे। चीनी जहाज़ों को बंदरगाह शुल्क के रुप में कोल्लम में एक हज़ार दीनार की भारी राशि देनी पड़ती थी। कोल्लम चीन और पश्चिमी भारत के बीच मुख्य बंदरगाह हुआ करता था। दिलचस्प बात यह है, कि उस समय कोल्लम भारत में गोदाम की हैसियत रखनेवाला एकमात्र बंदरगाह था। कोल्लम चीन को काली मिर्च, नारियल और मसालों का निर्यात करता था, और वहां से रेशम, चीनी मिट्टी के बरतन और लोहे की चादर या पतरे जैसी वस्तुओं का आयात किया करता था।
इस तरह कोल्लम, शाम देशों से लेकर चीन तक एक लंबा व्यापारिक मार्ग बन गया और व्यापारी यहां अगली यात्रा के लिये रुकने लगे। हफ़्तों यहां रुककर वो अनुकूल समय का इंतज़ार करते थे । इसकी वजह से कोल्लम में बहुत ख़ुशहाली आई।
शासकों और व्यापारियों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्तों की वजह से कोल्लम जल्द ही एक समृद्ध और संपन्न शहर बन गया था। जैसे-जैसे व्यापारिक गतिविधि बढ़ी, वैसे-वैसे समाज भी संपन्न होने लगा। विभिन्न समुदायों के बीच व्यापारिक संबंधों की वजह सेइतिहास में कोल्लम का नाम एक समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक शहर के रुप में दर्ज हो गया।
अपने समृद्ध व्यापारिक इतिहास के कारण, दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध यात्री यहां आए थे। वेनिस के मार्को पोलो ने 13वीं शताब्दी में क्विलोन (कोल्लम) का दौरा किया था। उन्होंने कोल्लम में, उन दिनों की व्यापारिक गतिविधियों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है, “मंजी, और शाम देशों से व्यापारी अपने देश से माल के साथ, जहाज़ों के ज़रिये इस राज्य में आते हैं, और यहां से जहाज़ों में माल लादकर वापस चले जाते हैं।”
भारत में कोल्लम उन पांच बंदरगाहों में से है, जहां मशहूर यात्री इब्न बतूता 14वीं शताब्दी में आये थे। उन्होंने कोल्लम को मुलैबार भूमि (मालाबार) में सबसे बेहतरीन शहरों में से एक बताया था, जहां कई बाज़ार और अमीर व्यापारी थे।
पुर्तगालियों के आने के साथ ही स्थितियां बदल गईं। सन 1498 में “खोज के युग” के दौरान पुर्तगाली कोझीकोड पहुंचे, और यूरोप से भारत के लिए एक सीधा समुद्री मार्ग शुरू किया। सन 1502 में पुर्तुगाल, कोल्लम के तांगसेरी में एक व्यापारिक केंद्र स्थापित करने वाला पहला यूरोपीय देश बना। कोल्लम जल्द ही, पुर्तगालियों के लिये काली मिर्च के व्यापार का केंद्र बन गया। यूरोपीयों के आने के साथ ही स्थानीय शासकों के अधिकार उनके हाथों से निकलने लगे थे। पुर्तगालियों और अरबों के बीच दुश्मनी की वजह से कोल्लम में व्यापार के साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों भी असर पड़ा। 17वीं शताब्दी के आते-आते डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुर्तगालियों की जगह ले ली, जिसका प्रभाव काली मिर्च के व्यापार पर भी पड़ा और इस तरह इस गौरवशाली बंदरगाह का महत्व भी कम हो गया। 18वीं शताब्दी में जब कोल्लम त्रावणकोर शासन के अधीन आयातब स्थितियों में थोड़ा सुधार हुआ, और उसके बाद अंग्रेज़ों का कोल्लम पर नियंत्रण हो गया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोल्लम शहर पर कब्ज़ा कर लिया और इसके व्यापारिक महत्व को देखते हुए यहां एक छावनी का निर्माण हुआ। सन 1808 में कोल्लम में अंग्रेज़ों के कब्ज़े को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी की एक टुकड़ी और त्रावणकोर साम्राज्य के बीच झड़प हो गयी, जिसका नेतृत्व दीवान वेलु थंपी दलवा कर रहे थे। लड़ाई केवल 6 घंटे चली जिसके बाद अंग्रेज़ों ने युद्ध में भाग लेने वाले सभी बागियों को मैदान में फांसी पर लटका दिया गया।
दिलचस्प बात यह है, कि कोल्लम एक प्रसिद्ध बंदरगाह तो है ही, इसके अलावा इसका मलयालम कैलेंडर से भी संबंध है। मलयालम कैलेंडर कोल्लावर्षम की उत्पत्ति सन 825 ईस्वी में हुई थी, और इसका नाम शहर के नाम पर ही पड़ा था। लेकिन अफ़सोस की बात यह है, कि इस कैलेंडर की उत्पत्ति को लेकर कोई एक मत नहीं है। इसके कई कारण बताये गये हैं, जिनमें नए बंदरगाह का निर्माण, आदि शंकराचार्य का यहां से प्रस्थान और कोल्लम में शिव मंदिर का निर्माण भी शामिल हैं।
सन 2014 में केरल ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (केसीएचआर) ने कोल्लम बंदरगाह से कई चीनी सिक्के और चीनी मिट्टी के बरतन खोज निकाले, जिससे पता चलता है, कि मध्ययुगीन काल में कोल्लम और चीन के बीच व्यापारिक संबंध थे।
कोल्लम को आज भी, काजू का निर्यात करने वाले विश्व के सबसे बड़े शहरों में से एक होने का गर्व हासिल है।
हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.