अजमेर का क़िला: जहां जहांगीर ने दी थी अंग्रेज़ों को व्यापार करने की अनुमति

अजमेर का क़िला: जहां जहांगीर ने दी थी अंग्रेज़ों को व्यापार करने की अनुमति

राजस्थान का अजमेर शहर महानसम्राट पृथ्वीराज चौहान(सन1177से 1192)और सूफ़ी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की वजह से दुनिया भर में मशहूर है। इसके अलावा यह शहर पर्यटन ,पुरातत्व ,कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रमुख स्थान रखता है। फ़िल्मों,  धारावाहिक और विज्ञापनों की शूटिंग के लिए तीर्थराज पुष्कर और किशनगढ़ फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद रहेहै। इस शहर का तारागढ़ क़िला (गढ़ बीढली) सैंकड़ों युद्धों का गवाह रहा है। इसे राज्य का जिब्राल्टर भी कहा जाता है। दिल्ली के बाद अजमेर शहर मुग़लों और अंग्रेज़ों की पहली पसंद रहा है। ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाने वाले सत्यार्थ प्रकाश का पहला प्रकाशन भी अजमेर में हुआ था। इस प्रकार की कई घटनाओं की दुर्लभ जानकारी आज भी अजमेर के राजकीय संग्रहालय में संरक्षित  है। चलिए आज आपको एक ऐसे क़िले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से रूबरू करवाते हैं, जहां से छल कपट के व्यापार का फ़रमान अंग्रेज़ों ने मुग़ल बादशाह से प्राप्त किया था। जी हां, अजमेर के गोल प्याऊ के सामने स्थित इस क़िले के प्रवेश-द्वार की एक खिड़की ने भारत देश को ग़ुलामी की अंधेरी खाई में धकेल दिया था। ये अजमेर का वही क़िला है ।

अजमेर का क़िला

अजमेर में दो क़िले हैं; एक राजपूत काल का तारागढ़ क़िला, जो अरावली पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है, दूसरी ओर अजमेर का क़िला। इसे अकबर या मुगल का क़िला या मैगज़ीन या दौलत ख़ाना के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में यहां राजकीय संग्रहालय स्थित है। मुग़ल काल का शाही अंदाज़, मराठा शासकों की अद्भुत शक्ति व शौर्य और अंग्रेज़ों की राज और शासन नीति इन सभी का साक्षात गवाह रहा है, नया बाज़ार में स्थित अजमेर का यह क़िला।

अबुल फ़ज़ल के ‘अकबरनामा’ के अनुसार, जहां आज अजमेर का क़िला मौजूद है, यहां पहले भी एक प्राचीन दुर्ग था, जिसकी जानकारी फिलहाल अज्ञात है। वहीँ इस भव्य कलात्मक क़िले के निर्माण की  कहानी सन 1562 से 1579 के मध्य से शुरू होती है, जब तीसरे मुग़ल बादशाह अकबर(सन 1556 से1605) ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की ज़ियारत करने आते थे। इस दौरान यहां पर ठहरने के लिए इस क़िले का निर्माण करवाया था। सन 1570 में इस क़िले का निर्माण प्रारंभ किया , जो 3 वर्ष में पूर्ण हुआ था। फिर जब भी बादशाह अकबर अजमेर आये, ये क़िला उनका ठिकाना रहा।

अजमेर का क़िला (संक्षिप्त चित्र) | लेखक

अजमेर वर्त के संरक्षित स्मारक एवं प्रमुख कला पुरा सामग्री राजस्थान पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग की पुस्तक(प्रथम संस्करण सन 2017 में प्रकाशित) के लेखक जफ़र उल्लाह ख़ां के अनुसार, इस क़िले के मध्य स्थित दीवान-ए -ख़ा का निर्माण नागौर ज़िले के खाटू की पहाड़ी के भूरे रंग के पत्थर से किया गया है। दिलचस्प बात ये है, कि यहीं पर प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध, 18 जून सन 1576 के लिए मुग़ल सेना की योजना पर मंत्रणा हुई थी।

क़िले के चारों कोनों पर दो मंज़िला चार कमरे और इनके मध्य भाग में एक बड़ा हॉल है। कमरों के मध्य भाग में बरामदे और इनमें चौकोर स्तम्भ पर हिंदू स्थापत्य कला शैली के ललाट उर्फ़ बिंब लगे हुए हैं। इस क़िले का मुख्य प्रवेश-द्वार लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। ऊपरी कक्ष में रंगीन अराईस एवं सुंदर बेल बूटो का अंकन किया हुआ है। यह सोलवीं शताब्दी में प्रचलित स्थापत्य शैली के सुंदर उदाहरण हैं। आयताकार क़िलेनुमा परिसर के चारों बाहरी कोनों पर सुरक्षा की दृष्टि से चार अष्टकोण बुर्ज बने हुई हैं। दो बुर्जों में गोलाकार खुले भाग में चार कक्ष बने हुए हैं। पीछे के दोनों बुर्ज  पर लदाव की छत डाली हुई है। यहीं पर बने छोटे कक्षों को एक दूसरे से गलियारों से जोड़ा गया है। एक बुर्ज में मुग़ल काल का शाही हमाम भी बना हुआ है। यहां बने हुए दोनों हौज़ों में ठंडे और गर्म पानी की व्यवस्था भी की हुई थी। इस क़िले की चारों बुर्जों में आने जाने के लिए बरामदे-नुमा कमरे बने हुए हैं। क़िले के चारों ओर दोहरी सुरक्षा व्यवस्था और इसकी ऊंची दीवारों के बाद एक और चहारदीवारी बनी हुई थी। इस शहर की चहारदीवारी शहरी परकोटा के दरवाज़ों में एक कोतवाली दरवाज़ा यहीं  है। परकोटे में दिल्ली दरवाज़ा,मदार गेट, आगरा गेट ,अलवर गेट आदि  बने हुए हैं।

अजमेर के क़िले के भीतर मौजूद इमारतों का वर्णन | लेखक

अजमेर के क़िले का मुग़ल बादशाह जहांगीर (सन 1605 से 1627) के जीवन में अधिक महत्त्व रहा था। क़िले के मुख्य प्रवेश-द्वार का निर्माण बादशाह जहांगीर ने करवाया था। सन 1613 से 1616 तक बादशाह यहीं पर रहा और कहते हैं,कि यहीं पर नूरजहां की मां सलमा ने गुलाब से इत्र बनाने का अविष्कार भी किया था। बादशाह जहांगीर ने मुग़ल सत्ता संभालने के बाद तत्कालीन परिस्थितियों के मद्देनज़र इस क़िलेनुमा विश्राम स्थली में, सन 1613 से 1616 तक निवास किया था। इन तीन वर्षों में अजमेर को हिंदुस्तान की राजधानी के समान दर्जा भी प्राप्त हुआ था। जहांगीर ने शहजादा ख़ुर्रम को मेवाड़ राज्य से युद्ध करने के लिए इसी क़िले से रवाना किया और ख़ुर्रम सफल संधि करके भी लौटा था। यही ख़ुर्रम आगे चलकर शाहजहां के नाम से जाना जाने लगा।

अजमेर के क़िले के भीतर मौजूद मुग़ल बादशाह जहांगीर और सर थॉमस रो की भेंट का प्रदर्शित दृश्य | लेखक

इस दौरान, 10 जनवरी सन 1616 रोज़ की तरह मुग़ल सम्राट जहांगीर झरोखे में बैठकर जन सुनवाई कर रहे थे। इसी वक्त़ ब्रिटिश हुकूमत के राजा जेम्स-। का राजदूत सर थॉमस रो मुग़ल बादशाह के सामने उपस्थित हुआ और हिंदुस्तान में व्यापार प्रारंभ करने की इजाज़त मांगी। इस पर जहांगीर ने ईस्ट  इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर दी थी। यहां से इजाज़त मिलते ही अंग्रेज़ों ने अपनी कंपनी के माध्यम से बड़े पैमाने पर व्यापार किया और संपूर्ण देश को ग़ुलाम बना लिया। उसके बाद क़रीब 250वर्षों तक राज किया। अगर जहांगीर की ओर से अनुमति नहीं मिलती तो शायद भारत देश कभी ग़ुलाम नहीं होता। याचक बनकर आए अंग्रेज़ सन 1947 में भारत से लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर यानि लगभग साढ़े 3 हज़ार करोड़ रुपए लूटकर ले गए थे।

अट्ठारहवीं सदी में जब उत्तर भारत में मुग़ल सत्ता डावांडोल हो रही थी, तभी मराठों का उदय हुआ।  मराठों का प्रभाव, वर्तमान पाकिस्तान के कई इलाक़ों तक फ़ैल चुका था।  इसके तहत अजमेर भी मराठों के अधीन में रहा था। फिर जब अंग्रेज़ उन्नीसवीं सदी में एक प्रभावशाली ताक़त के तौर पर उभरे, तब25 जून ,सन 1818 को महाराजा दौलतराव सिंधिया और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए समझौते के बाद अजमेर को अंग्रेज़ों के अधीन कर दिया गया था। सन 1858 में भारत में औपचारिक रूप से ब्रिटिश राज स्थापित हो गया था। ब्रिटिश काल में अजमेर के क़िले का उपयोग शस्त्रगार के रूप में होने लगा। किले के बाहर कोतवाली गेट की तरफ वाले रास्ते पर वर्तमान में पार्किंग स्थल परिसर में एक भवन है, जिसे मैगजीन के नाम से पुकारा जाता है। मैगज़ीन के मुख्य भाग की लंबाई 108 फ़ुट चौड़ाई 28 फ़ुट और ऊंचाई 20 फ़ुट और दीवारों की मोटाई 5 फ़ुट है ।अंदर से लदाव की छत गोलाकार है। इसमें गोला बारूद रखने के कारण, सुरक्षा की दृष्टि से, इसे मुख्य परिसर के बाहरी भाग में  बनाया गया है। ब्रिटिश काल में अजमेर सीधे अंग्रेज़ों के नियंत्रण में रहा, इसलिए यहां  सैनिकों की छावनी भी बनाई गई थी।  सन 1863 में यहां से  शस्त्रागार हटाकर तहसील कार्यालय स्थापित किया गया।

राजकीय संग्रहालय में प्रदर्शित प्राचीन शिलालेख | लेखक

सन 1908 में अजमेर के क़िले में राजपूताना म्यूज़ियम की स्थापना की गई। राजस्थान में यह एक ऐसा संग्रहालय है, जहां पर्यटकों को उत्खनन  (5000 से 4000 ईसा पूर्व) प्राचीन सेंधव कालीन संस्कृति की पुरातत्व सामग्री से लेकर ब्रिटिश काल तक की कला पुरातत्व सामग्री के साथ शिला-लेख मूर्तियां, सिक्के ,अस्त्र-शस्त्र  सहित अन्य दुर्लभ चीज़ें यहां देखी जा सकती हैं । मोहनजोदड़ो से प्राप्त उत्खनन सामग्री में मिट्टी के बर्तन, प्राचीन सिक्के, पत्थर और धातु की मूर्तियां, शिला-लेख दीघा में भारतीय अभिलेखों का सबसे पुराना शिला-लेख बडली से प्राप्त है, जो कि ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है। इसके अलावा नगरी (चित्तौड़गढ़), बसंतगढ़ (सिरोही) लाडनूं (नागौर), बयाना( भरतपुर), पुष्कर (अजमेर) सहित अन्य जगहों से प्राप्त दुर्लभ शिला-लेख मौजूद हैं। महान चौहान शासक विग्रहराज द्वारा लिखित दो संस्कृत नाटक ‘हरिकेली’ के कुछ भाग भी यहां पर प्रदर्शित किए हुए हैं। इसके अलावा विभिन्न राजवंशों के राजाओं के जारी किए गए ताम्रपत्र (तांबे की प्लेटें) भी संरक्षित हैं। यहां मूर्ति कक्ष में आठवीं से सोलवीं सदी की भगवान विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य, चामुंडा देवी और जैन तथा बौद्ध धर्म  की मूर्तियां भी प्रदर्शित की हुई है।  इस संग्रहालय का प्रस्ताव पुरातत्वविद सर जॉन मार्शल ने तैयार किया था। इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा को यहां प्रथम क्यूरेटर बनाया गया था ।भारत की स्वतंत्रता के पश्चात इसका नाम राजकीय संग्रहालय रखा गया।

राज्य का पहला फ़िल्म अभिलेखागार/ हाईटेक फ़िल्म लाइब्रेरी

क़िले में मौजूद, यहराजस्थान काएकमात्र ऐसा संग्रहालय है, जहां पर पुरानी ब्लैक एंड वाइट मूवी और डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए दो थिएटर बने हुए हैं।अजमेर के इस राजकीय संग्रहालय की पुरानी हेरिटेज बिल्डिंग में बने फ़िल्म अभिलेखागार में पर्यटक यहां पर पारम्परिक, शैक्षिक  राजस्थानी और सदाबहार ब्लैक एंड वाइट फिल्में भी देख सकते हैं। यहां बने फ़िल्म थिएटर में प्रोजेक्ट और रोल  मशीन के माध्यम से फ़िल्मों का आनंद ले सकते हैं। यह हाईटेक फ़िल्म लाइब्रेरी पुणे फ़िल्म डिवीज़न के बाद देशभर में दूसरे नंबर पर आती है। यहां लगभग चार हज़ार  से भी अधिक फ़िल्में संग्रहित की गई हैं। कभी इन फ़िल्मों को दूरदराज़ गांव में जाकर चौपाल और राजकीय स्कूलों में दिखाया जाता था। यहां महात्मा गांधी सहित कई महापुरुषों के जीवंत फ़िल्म फ़ुटेज, विभिन्न विषयों की डॉक्यूमेंट्री भी संग्रह की हुई हैं। यह फ़िल्म अभिलेखागार आकर्षण का मुख्य केंद्र बना हुआ है।

संग्रहालय की हेरिटेज बिल्डिंग में संचालित फिल्म अभिलेखागार | लेखक

अजमेर क़िला, राजस्थान का ऐसा क़िला है जिसके साथ मुग़लों के शाही इतिहास और अंग्रेज़ी हुकूमत की दिलचस्प दास्तां जुड़ी हुई है।

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