कंचनजंगा – ‘राक्षसों’ द्वारा संरक्षित भारत का सबसे ऊंचा पर्वत

कंचनजंगा – ‘राक्षसों’ द्वारा संरक्षित भारत का सबसे ऊंचा पर्वत

हिमालय पर्वतमाला में कुछ ऐसे चोटियां, हिमनद आदि हैं, जो हिन्दू और बौद्ध धर्म के अनुसार अपनीं धार्मिक महत्वता के लिए माने जाते हैं, जैसे नंदा देवी या कैलाश पर्वत। मगर क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा पर्वत भी है, जिसे भी धार्मिक कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर फ़तेह हासिल करने वालों में से, चंद ही हैं जो इस पर्वत पर चढ़ाई करने में कामयाब हो पाए हैं? जी हाँ, ये है….कंचनजंगा।

दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत कंचनजंगा बेहद ख़ूबसूरत है। यह पूर्वी हिमालय श्रृंखला से ताल्लुक़ रखता है और ये सिक्किम-नेपाल के सीमावर्ती इलाक़े में स्थित है। बहुत कम लोग ही जानते हैं, कि ये महज़ एक पर्वत ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों के लिए देवता भी है। कंचनजंगा पर्वत ने सिक्किम राज्य के इतिहास में भी अहम भूमिका निभाई है।

अगर भौगौलिक नज़रिए से देखा जाए तो हिमालय पर्वत का गठन दस मिलियन वर्ष पहले हुआ था (कुछ इतिहासकार 35 मिलियन वर्ष बताते हैं)। जब इंडियन प्लेट अपने मूल गोंडवाना के प्राचीन महाद्वीप से अलग होकर यूरेशियन प्लेट में जा मिली थी, उसी वजह से एक नई पर्वतमाला की रचना हुई थी। उसी को हिमालय का नाम दिया गया। हिमालय पर्वत-माला में कई चोटियाँ उभरी थीं…उन्हीं में से एक कंचनजंगा भी थी।

पेलिंग (सिक्किम) से कंचनजंगा का दृश्य | विकी कॉमन्स

इतिहास में कंचनजंगा का पहला ज़िक्र हमें आठवीं शताब्दी में  मिलता है, जहां बौद्ध मान्यताओं के अनुसार पद्मसंभव अर्थात गुरु रिन्पोचे ने इसको पहली बार एक देवी की संज्ञा दी थी। इसका ज़िक्र हमें चौदहवें शताब्दी के ग्रन्थ लामा गोंग्डू, और अन्य ग्रन्थों में भी मिलता है। तिब्बत्ती बौद्ध प्रणाली में कंचनजंगा को अनेक नामों से जाना जाता है । यह दो शब्दों से बना है ‘काचेन’ और ‘द्जोंग’ जिसका मतलब है एक क़िले-समान विशाल बर्फ –से ढ़का पर्वत । एक और अर्थ है ‘बर्फ के पांच ख़ज़ाने’। ऐसा माना जाता है, कि यहां पांच चोटियों में सोना, नमक, जवाहरात,  धर्मग्रन्थ और शस्त्र दफ़न हैं । दिलचस्प बात ये है कि कंचनजंगा वाक़ई में पांच चोटियों से बना है, ये हैं – कंचनजंगा प्रथम, कंचनजंगा मध्य, कंचनजंगा पश्चिम, कंचनजंगा दक्षिण और कांगबाचेन ।अक्सर इसको द्जोंगा भी कहा जाता है। वहीँ तिब्बत्ती बौद्ध समुदाय का एक वर्ग इसको बेयुल डेमोशोंग के नाम से जानता है, जिसका अर्थ एक छिपी घाटी, जो मृत्यु, बीमारी या पीड़ा से भी आगे की एक दुनिया है।

कंचनजंगा का, सिक्किम के लेपचा समुदाय से शुरुआत से ही रिश्ता रहा है। हालांकि, इस समुदाय की उत्पत्ति कैसे और कब हुई, यह आज भी एक रहस्य है। एक मान्यता ऐसी है, कि लेपचा का रिश्ता कंचनजंगा की बर्फ़ से है। इसी लिए वो इस पर्वत को पवित्र और खुद को ‘कंचनजंगा के बर्फ से उत्पन्न मनुष्य’ मानते हैं।

पद्मसंभव (गुरु रिम्पोचे) | विकी कॉमन्स

सिक्किम के इतिहास में महत्वपूर्ण बदलाव तेरहवीं शताब्दी से होना शुरू हुए, जब तिब्बत के खाम प्रान्त (वर्तमान अधिकृत चीन में) से तिब्बती लोग सिक्किम में आ बसे, जो अपने आपको ‘ल्हापो’ बुलाते थे और यही आगे चलकर भूटिया कहलाए जाने लगे। इस क्षेत्र में आगे चलकर भूटिया का प्रभाव काफ़ी बढ़ा गया था। भूटिया समुदाय ने लेपचा समुदाय के साथ मिलकर सत्रहवीं शताब्दी में नामग्याल साम्राज्य की स्थापना की थी । भूटिया समुदाय की वजह से ही लेपचा समुदाय का बौद्ध धर्म से परिचय हुआ। इसके बाद दोनों समुदाय कंचनजंगा को पूजने लगे। लेकिन इत्तेफ़ाक़ से जो भी कंचनजंगा की  चोटी के करीब गया उसका हश्र दर्दनाक हुआ।इसी वजह से इस मान्यता को दोनों समुदायों से बल मिलने लगा, कि इस पर्वत को राक्षसों का संरक्षण प्राप्त है, और राक्षस ही चोटी पर चढ़ाई करने वालों के लिए ख़तरे पैदा कर देते हैं। साथ ही एक मान्यता और भी है कि जब कंचनजंगा पर्वत खुश होता है, तब फ़सलें अच्छी होती हैं, और ख़ूब फूल खिलते हैं। नदियों में मछलियाँ की भरमार होती है। लेकिन जबपर्वत  नाराज़ होता है, तब क्षेत्र में बर्बादी होती है। इसी वजह से आज भी सिक्किम के बौद्ध लामा, अपनी धर्मशालाओं में कंचनजंगा को खुश करने के लिए नृत्य करते हैं।

दार्जिलिंग में लेपचा समुदाय के लोग | ब्रिटिश लाइब्रेरी

उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जब नेपाल के गुरखाओं ने उत्तर और पूर्वी भारत के कई इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में लेना शुरू किया तब उन्होंने सिक्किम के साम्राज्य के कुछ हिस्से भी अपने क़ब्ज़े ले लिए। इससे हताश होकर सिक्किम के राजा को अंग्रेज़ों से मदद लेनी पड़ी। आंगल-गोरखा युद्ध (1814-1816) में, गुरखाओं के हारने के बाद, सिक्किम गुरखाओं से हाथ से निकल गया था। अंग्रेजों को, सिक्किम से तिब्बत जाने का सुनहरा मौक़ा मिल गया। सन 1835 में एक समझौते के तहत, अंग्रेज़ों को दार्जीलिंग मिल गया। इस तरह अंग्रेज़ों को बंगाल की गर्मी से राहत मिल गई। फिर अंग्रेज़ों के लिए, दार्जिलिग से हिमालय पर्वतमाला के सर्वेक्षण का काम भी आसान हो गया।

1857 में बनाया गया कंचनजंगा का चित्र | विकी कॉमन्स

उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से लेकर बीसवीं शताब्दी के शुरूआती वर्षों तक, कंचनजंगा के आसपास की घाटियों, पहाड़ों, वनस्पतियों और पशुओं के सर्वेक्षण पर महत्वपूर्ण काम हुआ। हालांकि इसपर चढ़ाई की पहली कोशिश सन 1905 में हुई थी, जो विफल हुई। उसमें तीन क़ुली और एक यूरोपीय पर्वतारोही मारे गए थे ।उसके बाद लगभग पांच दशकों तक, इसकी मुख्य चोटी की चढ़ाई करने के कई अभियान लगातार नाकाम होते रहे । ग़ौरतलब है, कि उनके साथ गए क़ुलियों ने अपने क्षेत्र में प्रचलित मान्यताओं का ज़िक्र किया था, जिसका उल्लेख हमें कई किताबों में मिलता है। डगलस फ्रेशफ़ील्ड का,सन 1899 का वृत्तांत और गीता और हरीश कपाडिया की किताबइन्टू द् अनट्रेवल्ड हिमालय (2005)प्रमुख हैं। उन्होंने माना है, कि इस पर्वत की रक्षा एक राक्षस करता है। कई लोग ये भी मानते हैं कि यहाँ एक ख़तरनाक विशाल प्राणी ‘येती’ भी पाया जाता है, जिनसे कई लोगों का पाला भी पड़ चुका है। लेकिन पिछले कई साल से ऐसा कोई वाक़्या सुनने में नहीं आया है। ये जानना ज़रूरी है, कि कंचनजंगा दुनिया के सबसे दुर्गम और ख़तरनाक पर्वतों में गिना जाता है। एवेरेस्ट फ़तह करनेवालों में से चंद ही कंचनजंगा या उसके आसपास की चोटियों की सफलतापूर्वक चढ़ाई करके जीवित वापस आए होंगे। बाक़ी या तो चढ़ाई करते समय मारे गए या वहाँ पहुँच ही नहीं पाए।

1903 में कंचनजंगा और उसके पास के इलाके का नक्शा | विकी कॉमन्स

सन 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कई रियासतों का भारत में विलय हुआ। मगर सिक्किम उस दौरान स्वतंत्र रहा। उसके राज-परिवार ने कंचनजंगा की पवित्रता क़ायम रखी। सन 1955 में इसीलिए कंचनजंगा पर पहली बार सफलतापूर्वक चढ़ाई करने वाले एक ब्रिटिश दल से ये आश्वासन लिया था, कि स्थानीय लोगों की धार्मिक मान्यता का मान रखते हुए, वह चोटी से छह फ़ुट पीछे ही रहेंगे। ये परम्परा आज भी क़ायम है।

सन 1975 तक, उत्तराखंड राज्य के नंदा देवी को भारत के सबसे ऊंचे पर्वत का दर्जा हासिल था। जब सिक्किम राज्य का भारत में विलय हुआ, तब कंचनजंगा को ये दर्जा मिला। इसके ठीक दो साल बाद सन 1977 में कर्नल नरेन्द्र कुमार के नेतृत्त्व में भारत ने कंचनजंगा पर पहली बार फ़तेह हासिल की थी। इसी वर्ष, कंचनजंगा के आसपास के जंगल और घाटियों के सर्वेक्षण को ध्यान में रखते हुए, इसको राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया गया था। सन 2016 में इसका नाम यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में दर्ज हुआ।

कंचनजंगा पर सबसे पहले चढ़ाई करने वाले पहले पर्वतारोही | विकी कॉमन्स

आज कंचनजंगा भारत और नेपाल दोनों देशों की शान है। लेकिन इसपर चढ़ाई करने का वैध रास्ता सिर्फ़ नेपाल से ही जाता है। सन 2000 में एक ऑस्ट्रियाई पर्वतारोहण दल ने, सिक्किम के लोगों को बीस हज़ार डॉलर की रिश्वत देकर, सिक्किम की ओर से कंचनजंगा पर चढ़ाई की योजना बनाई थी। लेकिन बात खुल गई और लोग बहुत ख़फ़ा हो गए। भारत ने अपने क्षेत्र से कंचनजंगा पर चढ़ाई करने पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी। अब पर्वतारोहियों को नेपाल के रास्ते से जाना होता है।

क्या आप जानते हैं?

मशहूर फ़िल्मकार सत्यजित रे की पहली रंगीन फ़िल्म का नाम “कंचनजंगा” (1962/ भाषा: बंगाली) था I कई फ़िल्म विशेषज्ञों का मानना है कि ये दुनिया की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसकी पटकथा या स्क्रीनप्ले में हाइपरलिंक नरेशन का इस्तेमाल किया गया था। जब किसी फ़िल्म की कहानी के एक अंश का ताल्लुक़ फ़िल्म में घट रहे दूसरे अंश से होता है और दोनों दृश्यों को पर्दे पर एक साथ  दिखाया जाता है, उसे हाइपरलिंक कहा जाता है।

मुख्य चित्र साभार: Met Museum

हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading