भारत की संसद में एक किताब रखी है जिस पर काले चमड़े का कवर है और जिसके ऊपर सुनहरे पैटर्न बने हुए हैं। देखने में ये एक मामूली-सी किताब लग सकती है लेकिन कवर पर जो शब्द अंकित हैं उससे हमें इसकी एहमियत का अंदाज़ा होता है। ये भारत का संविधान है। सुंदर चित्रों से सुसज्जित और हस्तलिखित ये दस्तावेज़ भारत का सर्वोच्च क़ानून है। ये एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसमें देश के प्रशासन का हर पहलू शामिल है और एक नागरिक होने के नाते ये हमें हमारे अधिकारों और दायित्वों की जानकारी देता है। ये भारतीय संविधान की मूल प्रति है, वो प्रति जिसे 26 जनवरी सन 1950 में देश के कानून का दर्जा मिला।
सभी भारतीय संविधान के बारे में जानते हैं, और ये भी जानते हैं कि ये विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है, कि डॉ भीमराव अंबेडकर संविधान का मसौदा तैयार करने और कुछ प्रावधान बनाने की समिति के अध्यक्ष थे लेकिन ये बात कम लोगों को मालूम है कि संविधान की जो पहली प्रति सामने आई थी, वह अपने आप में एक कलाकृति थी। बहुत मेहनत से हस्तलिखित इस सचित्र दस्तावेज़ में राष्ट्र के कई चिन्ह हैं और इसे राष्ट्र के इतिहास का एक लघु रुप कहा जा सकता है। आज हम आपको संविधान के इसी पक्ष के बारे में बताने जा रहे हैं।
भारत के संविधान की दो सचित्र पांडुलिपियां, सन 1940 के दशक के अंतिम तथा सन 1950 के दशक के आरंभिक वर्षों में, इसे स्वीकार करते समय बनाई गईं थीं। प्रमुख पांडुलिपि अंग्रेज़ी में थी जो रोमन लिपि में लिखी गई थी और दूसरी पांडुलिपि हिंदी में थी जो देवनागरी लिपि में लिखी गई थी। ये दोनों प्रतियां भारतीय संसद में हीलियम गैस से भरे एक संदूक़ में रखी हुई हैं, ताकि इन्हें बहुत लम्बे तक सुरक्षित रखा जा सके। संविधान का प्रत्येक पन्ना 45.7 से.मी. चौड़ा और 58.4 से.मी. लम्बा है। ये पन्ने पार्चमेंट( भेड़ या बकरे की खाल से बना काग़ज़) काग़ज़ है, जो एक हज़ार साल तक ख़राब नहीं होता है।
संविधान के अंग्रेज़ी संस्करण में 1 लाख,17 हज़ार और 369 शब्द हैं जिन्हें प्रेम बिहारी रायज़ादा ने बहुत मेहनत से लिखा था। चित्र नंदलाल बोस के नेतृत्व में एक टीम ने बनाए थे। नंदलाल बोस ने भारत के प्रतीक चिन्ह के अलावा भारत रत्न और अन्य नागरिक पुरस्कारों की भी डिज़ाइन तैयार की थी। भारत सरकार भारत रत्न और अन्य नागरिक पुरस्कारों से किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट योगदान करने वालों को सम्मानित करती है। संविधान की अंग्रेज़ी प्रति पर संविधान सभा के सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर कर इसे पारित किया था।
सन 1901 को जन्में प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने दिल्ली के सेंट स्टीफ़ंस कॉलेज से स्नातक किया था। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया था और उनके दाद-दादी ने उनका पालन-पोषण किया था। उनके दादा मास्टर राम प्रसाद सक्सेना फ़ारसी और अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान थे। उन्होंने ही प्रेम बिहारी नारायण को ख़त्ताती यानी सुलेख की कला सिखाई थी। रायज़ादा को इटैलिक शैली में पूरा संविधान लिखने में छह महीने का वक़्त लगा था। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने इस काम का कोई मेहनताना नहीं लिया था। उन्होंने बस प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से दस्तावेज़ पर उनका और उनके दादा का नाम लिखने की इजाज़त मांगी थी।
संविधान की प्रति में कुल 230 पन्ने हैं। देहरादून में, सर्वे ऑफ़ इंडिया ने फ़ोटोलिथोग्राफ़ी तकनीक के ज़रिए इसकी एक हज़ार प्रतियां छापी थीं।
नंदलाल बोस का जन्म सन 1882 में बिहार के मुंगेर ज़िले में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता में कला की पढ़ाई की थी। वह अवनींद्र नाथ टैगोर की कला से बहुत प्रभावित थे और आगे चलकर उन्होंने शांतिनिकेतन में कला भवन की बागडोर संभाली थी। बोस, भारतीय कला के नवरत्नों में से एक हैं। ऐसे समय में जब भारतीय कला में पश्चिमी अवधारणा और रुपांकनों का बोलबाला हुआ करता था, तब बोस ने भारतीय विषयों और तकनीक को ही अपनाया था।
बोस ने कला भवन के कलाकारों के दल के साथ संविधान के लिए चित्रण किया था। कला भवन की स्थापना रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी । स्वतंत्रता संग्राम में भी नंदलाल बोस ने अपनी चित्रकारी से योगदान किया था। डांडी मार्च में हाथ में लाठी लिए महात्मा गांधी का जो प्रसिद्ध चित्र है, वो बोस ने ही बनाया था।
मूल संविधान में 22 अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय की शुरुआत में हाथ से बना चित्र है जिसका संबंध इतिहास और भारत की पौराणिक कथाओं से है। ये चिन्ह सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के दृश्यों पर आधारित हैं। बोस इन चित्रों के माध्यम से भारत के इतिहास को समय के हिसाब से क्रमबद्ध करना चाहते थे। प्रत्येक पन्ने का बॉर्डर सुनहरे रंग का है। कुछ पन्नों की शुरुआत और अंत में अंदर की तरफ़ भी एक बॉर्डर है। ये बॉर्डर मुग़ल दरबारों की भारतीय पांडुलीपियों से प्रेरित हैं।
संविधान की प्रस्तावना वाले पन्ने पर जो जटिल पैटर्न बना हुआ है वह बोहर राममनोहर सिन्हा ने बनाया था।
कला भवन के चित्रकारों ने कला का बहुत अध्ययन किया हुआ था और वे देश के कोने-कोने की कला से प्रेरित थे। यही वजह है कि संविधान की पुस्तक पर बनाए गए चित्रों पर अजंता और बाघ, मध्य प्रदेश के भित्ति चित्रों, राजस्थान और दक्कन की लघुचित्र-परंपरा से लेकर पहाड़ी, मुग़ल और कोर्णाक, महाबलीपुरम तथा भरहुत की कला का भी प्रभाव देखा जा सकता है। दस्तावेज़ के कवर पर जो कमल बना हुआ है वो अजंता में बने हुए कमल से काफ़ी मिलता जुलता है।
दस्तावेज़ पर बने चित्र वास्तविक इतिहास और देश की पौराणिक कथाओं तथा ग्रंथों से प्रेरित हैं। इसमें सिंधु घाटी सभ्यता की सांड के चित्र वाली मोहर, रामायण के राम, सीता और लक्ष्मण, बादशाह अकबर और रानी लक्ष्मीबाई की आकृतियों के अलावा महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस की छवियां बनी हुई हैं। हर चित्र पर उसे बनाने वाले चित्रकार के हस्ताक्षर हैं।
भारतीय संविधान में निहित विषयवस्तु ही नहीं बल्कि इसकी कला भी प्राकृति से दूरदर्शी है। इसमें देश भक्ति और आशावाद की भावना दिखाई पड़ती है जिसमें देश के राजनेता ही नहीं बल्कि वे सामान्य लोग भी शामिल हैं जो ऐसे भारत का निर्माण कर रहे थे जो अपने अतीत के साथ भविष्य की ओर देख रहा था। भारत का संविधान बनाना कोई आसान उपलब्धी नहीं थी बल्कि ये उन लोगों का संकल्प था जिन्हें आने वाले युगों के लिए एक दस्तावेज़ तैयार करने का ज़िम्मा सौंपा गया था जो उन्होंने बख़ूबी निभाया।
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