नागौर – नागवंशों की नगरी

नागौर – नागवंशों की नगरी

नागीणा री धरती नामी, नर रत्ना री खान।
जनम्या हैै कई संत सूरमां, देश भक्त विद्वान।।
सियालो खाटू भलो, ऊनालो अजमेर
नागाणो
नित रो भलो, सावण बीकानेर।।

जी हाँ यह वही नागवंश शासको की पौराणिक नगरी अहिछत्रपुर (नागौर) की महिमा है जिसमें बताया गया है कि शीत ऋतु में नागौर जिले में स्थित खाटू गाँव अच्छा लगता है क्योंकि यहाँ की पहाड़ियों के पत्थर गर्म रहने से सर्दी कम होती है और गर्मी के दिनों में अजमेर शहर जहाँ आनासागर झील की शीतल लहरों से शहर ठण्डा रहता है मगर नागाणा (नागौर) शहर का तापमान बारह मास अनुकूल व अच्छा बतलाया गया है, वहीं सावण मास में बीकानेर शहर को उत्तम बताया गया है।

राजस्थान के मध्य हृदय स्थल पर बसा जिला मुख्यालय वर्तमान समय में नागौर नाम से जाना जाता है मगर प्राचीन काल में यह कस्बा नागपुर, नागदुर्ग, अहिच्छत्रपुर, नाम से भी जाना जाता था। इन सभी का शाब्दिक अर्थ नागों का नगर या वह नगर जिस पर नाग (सर्पों) का एक छत्र शासन है। इन सभी जानकारी से यह अर्थ निकलता है कि किसी समय यहाँ नाग जाति प्रमुख्ता से निवास करती थी। इतिहासकार कर्नल टाॅड ने भी आॅक्सफोर्ड यूनिर्वसिटी प्रेस के 1920 के एक प्रकाशन में इसे नागा दुर्ग के नाम से उल्लेखित किया है। वहीं दी इम्पीरियल गजेटियर आॅफ इंडिया 1908 के अनुसार नागौर का नाम इसके संस्थापक नागा राजपूतो के नाम से लिया गया है। महाभारत काल में यह क्षेत्र जांगल प्रदेश का हिस्सा रहा है। महाकाव्य रामायण के अनुसार समुद्र देव की प्रार्थना पर भगवान श्री राम ने इस क्षेत्र में आग्नेयास्त्र अमोघ ब्रहास्त्र का प्रयोग द्रुमकुल्य नामक समुद्र जो कि भारत के उत्तरी भाग में स्थित था जहां छोड़ने से दुष्टों का संहार हुआ और साथ ही वरदान से यह क्षेत्र दुर्लभ औषधियों का भण्डार हो गया। आज भी यहां की धरती पर बड़ी चमत्कारी औषधियों के रूप में कैर, कुमटी, धतूरा, खेजड़ी, शंखपुष्पी, बज्रदन्ती, गौखरू, खींप, नागबैल के सहित कई जीवनदायनी वनौषधियां पाई जाती है।

नागौर के किले का दूसरा द्वारा | लेखक

यहां के रेतीले धौरो में शंख, सीपी व घोंघे के अवशेष इस बात के प्रमाण है कि कभी यहां विशाल समुन्द्र रहा होगा। जिले के जायल, कठौती क्षेत्र में प्राचीन दृषद्धती नदी बहने के प्रमाण के रूप में यहां बिखरे गोलाश्म पत्थर आज भी मौजूद है।

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार पश्चिमी राजस्थान में मत्स्य शाखा के आर्य बसते थे। महाभारत तथा पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार श्री कृष्ण इसी जांगल (नागौर-मारवाड़) क्षेत्र में महर्षि गौतम के शिष्य उतंग मुनि से आशीर्वाद प्राप्त कर द्वारिका गये थे। मौर्य काल में वर्तमान नागौर जिला कई जातियों के गणराज्यों में बंटा हुआ था। बिन्दुसार के शासनकाल में नागौर प्रान्त अशोक के अधिकार क्षेत्र में रहा था। इस बात के प्रमाण जिला सीमा से कुछ ही दूरी पर स्थित वैराट (विराटनगर) जयपुर से अभिलेख से पुष्टि होती है। इसके बाद में शंुगवंश, यूनानी, सीथियन, कुषाण, शक, क्षहरात वंश के शासको के साम्राज्य के प्रमाण नागौर जिला सीमा पर स्थित नलियासर से प्राप्त हुई विभिन्न राजवंशों के शासकों की मुद्राओं से जानकारी मिलती है। इन राजवंशो के अभिलेख रेंवत, लगौंड़, डेगाना क्षेत्र में भी मिले है। वहीं आच्छोछाई गाँव में राजा परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय द्वारा नागो का दमन करने के बाद यहां तपस्या करने का उल्लेख मिलता है। नागौर और नागों के सम्बन्ध में डोडवैल द्वारा लिखे गये भारत के इतिहास के हवाले से महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई है। जिसमें बताया गया है कि नागौर नगर के चारो और नागवंशीयों के नाम पर अनेक गांव बसे हुए है। नगर परकोटे के भीतर नागौर का दुर्ग स्थित है जिसकी नींव चैथी शताब्दी में नाग वंश के शासको द्वारा रखी गयी मानी जाती है। चैहान शासक सोमेश्वर के सांमत कैमास द्वारा सन 1153 में दुर्ग का जीर्णोद्धार व अन्य विकास कार्य करवाये गये। चैहानो के पश्चात यहां गुर्जर प्रतिहारों ने अपना राज्य स्थापित किया। राठौड़ वंशीय शासक राव वीर अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण आज भी इतिहास में एक विशिष्ठ स्थान और महत्व रखता है।

अन्दर के दृश्य | लेखक

आठवीं सदी के बाद में प्रतिहार शासको के सामंत चैहान वंश ने अपना अधिकार किया था। नागौर के पास गोठ मांगलोद के प्राचीन मंदिर में गुप्त तिथि भी अंकित है। ईसा की छठी शताब्दी के मध्य में गुप्त साम्राज्य के प्रभाव के साथ ही नागौर क्षेत्र में नाग सत्ता का भी अंत हो गया था। दूसरी ओर चैहान और गुजरात के चैलुक्य वंश में लम्बे समय तक निरंतर संघर्ष होता रहा। जो ईस्वी 1192 के बाद भीमदेव द्वितीय चैलुक्य के बाद निर्बल शासक हुए अतः दोनों वंशो में संघर्ष समाप्त हो गया। कुछ समय तक दहिया राजवंश का नागौर में उदय हुआ। मूथा नैणसी की ख्यात के अनुसार ईस्वी 1141 में चैहान शासक आल्हण के पुत्र विजय ने दहियो से सांचोर जीत लिया था। जिले के किनसरीया गांव में स्थित कैवाय माता मंदिर लेख ई. 1243 अनुसार इनका परबतसर क्षेत्र में कब्जा रहा था। अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चैहान की हार के बाद सम्पूर्ण चैहान साम्राज्य मुसलमानों के अधीन हो गया था। अजमेर के साथ-साथ नागौर भी मुस्लिम सत्ता का प्रमुख केन्द्र बन गया।

जल बारादरी | लेखक

मौहम्मद गौरी ने गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासक बनाया तथा अमीर अली को नागौर का गर्वनर तथा हमीमुद्दीन नागौरी को नागौर का काजी नियुक्त किया था। अन्य अरबी व फारसी शिलालेखों के अनुसार तेहरवीं सदी के प्रारंभ तक नागौर पर मुसलमानों का अधिकार हो गया था। मेड़ता के पास पांडूका माता मंदिर परिसर लेख ई. 1301 के अनुसार दिल्ली के शासक अल्लाउद्दीन खिलजी का प्रतिनिधि ताजुद्दीन अली को मेड़ता क्षेत्र का हाकीम बनाया था। वहीं हरसौर गाँव के परकोटे पर फारसी लेख में भी 13वीं सदी में यहां मुसलमानों का कब्जा बताया गया है। बाद में इलियास, गयासुद्दीन बलबन के भाई किशलु खां को जागीर प्रदान की गई। ई. 1427 में शम्स खां के पुत्र फीरोज को हराकर महाराणा मोकल ने नागौर रणमल को दे दिया था। ई. 1458 में नागौर गुजरात के सुल्तान के अधिकार में चला गया। इसी बीच मारवाड़ में राठौड़ वंश का स्वर्णीम युग शुरू हुआ ई. 1459 में राव जोधा ने जोधपुर ई. 1462 में राव दूदा ने मेड़ता पर अपना अधिकार कर लिया। राठौैड़ वंश की बढती इस शक्ति के कारण मुस्लिम शासक इतिहास के हाशिये की तरफ खिसकने लगें। राव मालदेव के समय कुछ समय तक नागौर पर शेरशाह सूरी का अधिकार भी रहा था। इसके बाद नागौर पर अकबर, जहांगीर तथा ई. 1638 में शाहजहां ने जोधपुर के नरेश गजसिंह प्रथम के पुत्र वीर अमरसिंह राठौड़ को नागौर का परगना प्रदान किया। जोधपुर मारवाड़ नरेश जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने पूरा मारवाड़ खालसा कर लिया। कुछ समय बाद वीर दुर्गादास व अजीतसिंह ने पुनः मारवाड़ पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति तक नागौर राठौड़ों के अधीन ही रहा था।

वीर अमरसिंह राठौड़ का चित्र | लेखक

नागौर के वीर अमरसिंह राठौैड़:-

मारवाड़ राज्य के शासक गजसिंह प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह वीर और स्वतन्त्र विचारों के धनी थे। वहीं अमरसिंह अपने पिता के साथ कई युद्धों में भाग लिया था। ई. 1634 में अमरसिंह अपने पिता से मिलने लाहौर पहुचकर शाहजहाँ के दरबार में उपस्थित हुए। शाहजहाँ द्वारा अमरसिंह को राव का खिताब व नागौर की जागीर तथा तीन हजार का मनसब प्रदान किया था। ई. 1644 में अमरसिंह ने शाहजहाँ के दरबार में बख्शी सलावत खां की हत्या कर दी तथा अर्जुन गौड़ ने अमरसिंह पर गुप्त रूप से आक्रमण कर दिया जिस कारण वीरगति को प्राप्त हुए। अमरसिंह राठौड़ वीर, साहसी, स्वाभिमानी थे। इनके शौर्यकाल को कठपुतलियों व लोक गीतों के माध्यम से आज भी गाया जाता है। इसी गौरव गाथा को अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुचामन के ख्याल गायको द्वारा प्राचीन तरीके ‘‘कुचामणी ख्याल’’ खेल के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। इनके बाद नागौर ने कई उतार-चढ़ाव देखे है। एक और मारवाड़ जोधपुर, बीकानेर व मेड़ता के राठौड़ शासक दूसरी ओर मुगल, अप्पा जी सिंधिया की सेनाओं के साथ हुआ था। ई. 1833 में नागौर क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा था। इसके बाद अंग्रेजों ने ई. 1842 में मारवाड़ में नाथों के विरूद्ध कार्यवाही की थी। 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम के समय तख्तसिंह मारवाड़ के शासक थे। इन्होने अंग्रेजो की सहायता की थी। इनके बाद जसवंतसिंह द्वितीय के समय मारवाड़ की पहली रेल लाईन सांभर से नावां होते हुए कुचामन तक बिछाई तथा ई. 1875 से यातायात के लिए शुरू की गई थी। इसके बाद ई. 1891 में मेड़ता रोड़ से नागौर रेल मार्ग पर रेलगाड़ी चलने लगी। ई. 1893 में नागौर की टकसाल से विजेशाही रूपये बनाने की अनुमति कुचामन को प्रदान की गई थी।

दीवारों पर प्राचिन चित्र | लेखक

मारवाड़ नरेश उम्मेदसिंह के शासन काल के भारतीय स्वतंत्रता का समर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। इसी दौरान मारवाड़ हितकारारिणी सभा का गठन हुआ। 21 जून 1947 को हनुवंतसिंह महाराज बने मगर अंग्रेज सरकार द्वारा इनको शासक के रूप में मान्यता नहीं दी गई। अन्ततः 9 अगस्त 1947 को दिल्ली में सरदार पटेल के सचिव वी.पी. मेनन के समक्ष महाराजा ने भारत संघ में विलय के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिऐ। इस प्रकार इस प्रान्त में 700 वर्ष पुरानी मारवाड़ रियासत भारत संघ में विलीन हो गई।

स्वतंत्र भारत का गौरवशाली क्षण नागौर मुख्यालय पर पंचायतीराज का शुभारंभ 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था। देश की आजादी के लिए जिले के कई स्वतन्त्रता सेनानीयों ने अपना बलिदान दिया था। वहीं जिले के हजारो सैनिकों ने देशभक्ति की अनूढी मिशाल पेश की है। राजनीति के क्षेत्र में भी नागौर हमेशा अव्वल्ल रहा है। दूसरी ओर भामाशाह के रूप में भी नागौर जिले के कई परिवारों ने समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है। नागौर जिले का हस्तशिल्प उद्योग भारतीय इतिहास में अपनी अहम पहचान रखता है। मकराना का संगमरमर ने संसार को आगरा का ताजमहल व कोलकता का विक्टोरिया मेमोरियल जैसे नायाब तोहफे दिए है। नागौर शहर के लौहारपुरा मौहल्ले के कारीगरो द्वारा बनाऐ औंजार व नावां क्षेत्र की झील का नमक आज भी देश विदेश में निर्यात किया जाता है। नागौर जिले की खास पहचान जिले के नागौरी नस्ल के बैल अपनी सुडोल बनावट, ताकत के लिये विश्वप्रसिद्ध है इनके क्रय विक्रय हेतु जिले में राज्य के सबसे बड़े मैलो का आयोजन होता है। इनमे श्री रामदेव पशु मेला नागौर, वीर तेजाजी पशु मेला परबतसर, बलदेव पशु मेला मेड़ता प्रमुख है।

लेखक

नागौर जिले के रक्त रंजित इतिहास के बीच यहां धर्म, आध्यात्म, कला, साहित्य और संस्कृति का भी उदय हुआ था। जिले में शौर्य और भक्ति धारा के साथ स्थापत्य कला का भी विकास हुुआ था। प्रतिहार, चैहान, राठौड़ व मुगल कालीन स्थापत्य एवं मूर्ति कला के अनेक अनुपम उदाहरण मुख्यालय के साथ-साथ हर गांव -ढ़ाणी में स्थित है। इनमे गढ़, किले, मंदिर, बावड़ियां, छतरियां, हवेलियां़ आदि है। नागौर शहर में बंशीवाले का मंदिर, ब्रह्माणी माता का प्राचीन मंदिर, नाथों की छतरी बड़ली, नागौर का किला, राव अमर सिंह की छतरी व पैनोरमा, तारकीन शाह व बड़े पीर साहब की दरगाह, अकबरी मस्जिद, शाम की मस्जिद, बुलन्द दरवाजा सहित अन्य कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल जन आस्था के केन्द्र है।

आवरण चित्र: अहिच्छत्रपुर नागौर के किले का मुख्य प्रवेश द्वार

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