मुग़ल औरते जिन्होंने बदला समाज  

मुग़ल औरते जिन्होंने बदला समाज  

मुग़ल शासन काल से भारतीय संस्कृति का एक नया और अनोखा दौर शुरू हो चुका था । यह बात तो हम सब जानते हैं कि किस बादशाह ने कौनसी इमारत बनवाई, किस बादशाह ने किस कला को प्रोत्साहन दिया और किस बादशाह ने क्या क्या लिखा । मुग़ल ख़ानदान की चंद बेगमों और शहज़ादियों के बारे में भी जानकारियां मिलती हैं लेकिन फिर भी कुछ ऐसी भी बेगमें और शहज़ादियां रही हैं जिनके बारे में हमारी जानकरी काफ़ी कम है या फिर है तो न के बराबर है । वह महिलाएं न सिर्फ़ बेहद पढ़ी-लिखी थीं बल्कि समाज और साहित्य में भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी इस मैदान में उनका महत्वपूर्ण योगदान भी रहा है। कई मुग़ल महिलाएं बुद्धिजीवी, प्रगतिशील और समाज का भला चाहने वाली थीं। आईए आज ऐसी ही कुछ ख़ास बेगमों और शहज़ादियों के बारे में बात करते हैं।

गुलबदन बेग़म | विकिमीडिया कॉमन्स

गुलबदन बेगम ने लिखा था हिमांयूनामा

सबसे पहले हम बात करते हैं गुलबदन बेगम की जो प्रथम मुग़ल बादशाह बाबर की बेटी और हुमायूँ की सौतेली बहन थीं । गुलबदन बेगम ने ‘हुमायूँनामा’ लिखा था जो उस समय का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है । गुलबदन बेगम की परवरिश हुमायूँ की माँ माहम बेगम ने की थी और शायद यही वजह रही कि उनका हुमायूँ के प्रति विशेष लगाव था । अकबर उनका बहुत आदर करते थे । गुलबदन की मौत पर उनके जनाज़े को अकबर ने ख़ुद कंधा भी दिया था। अकबर के कहने पर ही 1576 में गुलबदन बेग़म ने ‘हुमायूँनामा’ लिखा था ।

‘हुमायूँनामा’ की सबसे ख़ास बात ये है कि इसे पढ़कर न सिर्फ़ उस समय की महिलाओं की स्थित ही नहीं बल्कि उस समय के हालात को भी समझने में मदद मिलती है । ‘हुमायूँनामा’ वो दस्तावेज़ है जिससे पता चलता है कि मुग़ल शाही परिवार और दरबार में महिलाओं की कितनी इज़्ज़त की जाती थी । इसमें जहां बेगमों और शहज़ादियों के मनोरंजन, उनकी शालीनता, विनम्रता और उनके आपसी कड़वे-मीठे संबंधों के बारे में पता चलता है और तैमूर वंश की शाही सभाओं के बारे में भी जानकारी मिलती है।सर्वप्रथम हैं गुलबदन बेग़म, जो प्रथम मुग़ल बादशाह बाबर की बेटी और हुमायूँ की सौतेली बहन थी और जिनका लिखित ‘हुमायूँनामा’ उस समय के देश-काल परिस्थियों का एकमात्र विवरण प्रस्तुत करता हैं। गुलबदन बेग़म का पालन-पोषण हुमायूँ की माँ माहम बेग़म ने किया था और शायद इसलिए उनका हुमायूँ के प्रति विशेष लगाव था। अकबर उनका बहुत आदर करते थे। उनकी मौत पर उनके जनाज़े को उन्होने खुद कंधा भी दिया। अकबर के ही दरखास्त पर 1576 में गुलबदन बेग़म ने यह किताब लिखी।

‘हुमायूँनामा’ इसलिए भी ख़ास हैं क्यूँकि महिला विकास और अध्ययन के बढ़ते हुए समय में उस समय की स्थिति समझने के लिए ये अनुपम कृति हैं। इससे हमें पता चलता हैं कि उस समय मुग़ल शाही परिवार और दरबार में महिलाओं को अत्यंत सम्मान प्राप्त था। इस संस्करण में शाही स्त्रियों के मनोरंजन, बड़प्पन, प्रतिशोध और परस्पर स्नेह के बारे में जहाँ लिखा वहीं तैमुरी वंश के शाही मजलिसों पर भी अच्छा प्रकाश डाला है।

नूरजहां | विकिमीडिया कॉमन्स

नूरजहां : जिसने मुग़लकाल में हुकुमत भी की थी

अब बात करते हैं नूरजहां की । नूरजहां 17वीं सदी की भारत की सबसे ताक़तवर और अकेली महीला थीं जिन्होंने मुग़ल काल में शासन भी किया था । वह मुग़ल शासक जहांगीर की सबसे पसंदीदा बेगम थीं । विशाल मुग़ल शासन को चलाने में नूरजहां का अहम योगदान था । उन्होंने एक से एक शानदार शहर, महल, मस्जिदें और मक़बरे बनवाए थे । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित एतमाद उदौला का मक़बरा जो दरअसल नूरजहाँ के पिता मिर्ज़ा ग़यास बेग का मक़बरा है । मिर्ज़ा ग़यास बेग, जहांगीर के दरबार में मंत्री थे और एतमाद उदौला उनका ख़िताब था । वास्तुकला के विशेषज्ञों का मानना है कि ताज महल के बाद, एतमाद उदौला का मक़बरा मुग़लकालीन वास्तुकला का सबसे शानदार नमूना है।

एतमाद उदौला का मक़बरा | विकिमीडिया कॉमन्स 

जहांगीर से शादी के कुछ ही दिनों बाद नूरजहां ने अपना पहला शाही फ़रमान जारी कर कर्मचारियों के लिए ज़मीनें सुरक्षित कर दीं थीं । इस फ़रमान पर उनके दस्तख़़त थे-नूरजहां बादशाह बेगम । इससे इस बात का अंदाज़ा लगया जा सकता है कि सत्ता पर नूरजहां कितनी मज़बूत पकड़ थी । नूरजहां के योगदान पर नज़र डालें तो पता चलता है कि वह अपने वक़्त की एक असाधारण महिला थीं । जब जहांगीर को बंदी बना लिया गया था तब उन्हें बचाने के लिए नूरजहां ने सेना का नेतृत्व भी किया था । यही वजह रही कि नूरजहां का नाम लोगों के ज़हन और इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया ।

जहाँआरा बेगम | विकिमीडिया कॉमन्स 

जहांआरा बेगम : जिन्होंने बनवाया था ख़ूबसूरत चांदनी चैक

जहाँआरा बेगम बादशाह शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज़ महल की सबसे बड़ी और लाडली बेटी थीं, ज़िन्होंने मज़हबी तालीम हासिल की और वो मुक़ाम पाया जो उस वक़्त की कोई भी महिला हासिल नहीं कर पाई थी । शाहजहां अपनी बेटी जहांआरा को इतना चाहते थे कि उन्होंने जहांआरा को बहुत ही कम उम्र में सहीबत अल ज़मानी और पादशाह बेगम या बेगम साहिबा के ख़िताबों से नवाज़ दिया था । जहांआरा मुग़ल सल्तनत की एक मात्र शहज़ादी थीं जिन्हें आगरा के क़िले के बाहर, अपने ख़ुद के महल में रहने की इजाज़त थी ।

चांदनी चौक | विकिमीडिया कॉमन्स 

जहाँआरा का ऐसा रुतबा था कि हर महत्वपूर्ण फ़ैसला उनकी सलाह से लिए जाते थे l शाहजहाँनाबाद जिसे हम आज पुरानी दिल्ली कहते हैं का नक्शा जहाँआरा बेग़म ने अपनी देखरेख में बनवाया था l 1648 में बने नए शहर शाहजहाँनाबाद की 19 में से 5 इमारतें उनकी देखरेख में बनी थीं l उस समय का सबसे सुंदर बाज़ार चांदनी चौक भी उन्हीं की देन है l जहाँआरा वो राजकुमारी थी जिसने अपने पैसो से हज़ारो लोगो को हर साल हज करवाया साथ साथ गैर मुस्लिम उसे एक देवी के रूप में जानने लगे थे क्योंकि वो कभी भी गैर मुस्लिमो को मदद करने के लिए पीछे नही हटती थी।

जे़बउन्निसा बेगम का चित्र जो अबिनिन्द्रनाथ टैगोर ने बनाया था | विकिमीडिया कॉमन्स  

ज़ेबुन्निसा : जिन्होंने सबसे बड़ी लाइब्रेरी तैयार कराई

आखिर में बात करते हैं जे़बुन्निसा बेगम की । जे़बुन्निसा बादशाह औरंगज़ेब और उनकी ख़ास मलिका दिलरस बानों बेगम की सबसे बड़ी औलाद थीं । जे़बुन्निसा ने गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य की पढ़ाई की और फ़ारसी, अरबी और उर्दू ज़बानें न सिर्फ़ सीखीं बल्कि इन भाषाओं में महारत भी हासिल की । उनकी लिखावट बहुत सुदर थी । जे़बुन्निसा ने 14 साल की उम्र से फ़ारसी में ग़ज़लें कहनी भी शुरू कर दीं थीं । उनका तख़ल्लुस अर्थात उपनाम था ‘मख़फ़ी’। उनकी लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं,उस ज़माने में ,उतनी किताबें किसी और के पास नहीं थीं। उन्होंने विभिन्न भाषाओं के साहित्यिक पर काम करने और पांडुलिपियों की नक़ल बनाने के लिए विद्वानों को मोटी-मोटी तनख़्वाहों पर रखा था । दरअसल उन्होंने बादशाह अकबर की किताबों के संग्रहलय से प्रेरित होकर ख़ुद अपनी लाइब्रेरी बनाई थी । जे़बुन्निसा बेहद रहमदिल इंसान थीं और ज़रूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करती थीं । ख़ासकर विधवाओं और अनाथों की सबसे बड़ी हमदर्द थीं।

इन सभी महान महिलाओं का सामाजिक योगदान न सिर्फ़ अपने वक़्त में बल्कि आज के ज़माने में भी सभी के लिए, ख़ासकर महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है । इन्होंने महज़ इमारतें बनवाकर ही शोहरत हासिल नहीं की, बल्कि सामाज में बदलाव लाने की कोशिशों में भी नाम कमाया ।

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