गुजरात हमेशा भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक रहा है। 4000 साल पहले भी, यह धोलावीरा और लोथल के संपन्न सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों का घर था। समय के साथ, इसका इतिहास और विरासत समृद्ध होता गया। आज का प्रमुख शहर, अहमदाबाद कभी मध्यकालीन दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक था। इसके आसपास एक व्यापक नेटवर्क था जिसने इस क्षेत्र को युग के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक बना दिया। उस समय, अहमदाबाद के अलावा, खंभात, सूरत और भरूच जैसे शहरों को हिंद महासागर व्यापार और शिपिंग नेटवर्क से जोड़ा गया था, जबकि चंपानेर और पाटन जैसे अन्य गुजराती शहर प्रशासनिक और उत्पादन केंद्र होने के कारण बड़ी, विविध आबादी कायम रहे।
आज हम आपको गुजरात के 5 ऐसे मध्ययुगीन स्थलों के भ्रमण पर ले चलते हैं जो उन भूले हुए समय की याद दिलाते हैं।
1- शामलाजी मंदिर
मेहसाणा-उदयपुर राजमार्ग 8 पर एक छोटा-सा नगर है जिसे शामलाजी कहते हैं। ये शहर गुजरात के अरावली ज़िले में मेश्वो नदी के तट पर स्थित है। भारत के सबसे व्यस्त राजमार्ग पर ये मुसाफ़िरों के आराम करने का एक महत्वपूर्ण ठिकाना है। अरावली पर्वत श्रंखला में दाख़िल होने के पहले शामलाजी अंतिम स्टॉप है। यहाँ शामलाजी में एक सुंदर मंदिर है जो शामलाजी के अवतार में कृष्ण और विष्णु भगवान को समर्पित है। 15वी-16वीं शताब्दी का ये आधुनिक शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान पर स्थित है।
शामलाजी का मंदिर शहर की प्रमुख विशेषता है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई तरह की लोक कथाएं हैं। एक लोक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने यहां एक हज़ार साल तक तपस्या की थी और जब भगवान शिव प्रसन्न हो गए, तो उन्होंने ब्रह्मा से यज्ञ करने को कहा। यज्ञ के दौरान भगवान शामलाजी के रुप में प्रकट हुए। दूसरी लोक कथा के अनुसार देवों के वास्तुकार विश्वकर्मा ने यहां आकर एक रात में मंदिर बना दिया था लेकिन इसके पहले कि वह मंदिर ले जाते दिन निकल गया और इस तरह उन्हें मंदिर यहीं छोड़ना पड़ा। तीसरी लोकयहाँ शामलाजी में एक सुंदर मंदिर है जो शामलाजी के अवतार में कृष्ण और विष्णु भगवान को समर्पित है। 15वी-16वीं शताब्दी का ये आधुनिक शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान पर स्थित है। कथा काफ़ी संभव लगती है। इसके अनुसार एक स्थानीय आदिवासी को शामलाजी की मूर्ति मिली थीं। उसने मूर्ति की पूजा शुरु कर दी और उसकी खेतीबाड़ी अच्छी होने लगी। इस बात का पता चलने पर वैष्णव संप्रदाय के एक व्यापारी ने एक मंदिर बनवाकर वहां इस मूर्ति की स्थापना करवा दी। इसके बाद इडर रियासत के शासकों ने मंदिर में और काम करवाकर इसे सुंदर बनाया। शामलाजी इडर रियासत में आता था। हाल ही के इतिहास से पता चलता है कि एक धनवान व्यापारिक परिवार ने भी इसका जीर्णोद्धार करवाया था।और पढ़ें
2- वडनगर के भव्य तोरण
गुजरात का वडनगर एक छोटा सा शहर है लेकिन इसका इतिहास बहुत वैभवशाली और समृद्ध है । यहां आज भी कई प्राचीन और मध्यकालीन स्मारक देखे जा सकते हैं । इनमें सबसे प्रेरक हैं कीर्ति तोरण जो सोलंकी साम्राज के समय के हैं ।
कुछ इतिहासकार और पुरातत्व विशेषग्य मानते हैं कि वडनगर 2000 साल पुराना है और इसकी स्थापना “सामान्य युग” के शुरुआती वर्षों में हुई थी । वडनगर कि खुदाई में बोद्ध समय के समृद्ध अवशेष मिले हैं जिनमें गुप्त काल की बुद्ध की एक प्रतिमा, ख़ोल चूड़ियां, कलाकृतियां और स्तूप सहित कई भवनों के अवशेष शामिल हैं।
वडनगर का सबसे उल्लेखनीय पहलू हैं प्रसिद्ध कीर्ति तोरण जो शर्मिष्ठा झील के तट पर स्थित हैं । बताया जाता है कि सोलंकी राजाओं ने 12वीं शताब्दी में तोरण का निर्माण करवाया था । ये शहर की उत्तरी दिशा में हैं । ये शैली और आकार में एक जैसे हैं । ये क़रीब 40 फुट लंबे हैं और लाल तथा पीले बलुआ पत्थर के बने हुए हैं । और पढ़ें
3- अहमदाबाद के पोल
अहमदाबाद शहर गुजरात की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे आधुनिक शहरो मे से एक माना जाता है | पर आधुनिकता की चकाचौंद के पीछे छिपे हे अहमदाबाद के पारम्परिक मोहल्ले , जिन्हे पोल कहा जाता है | इन पोलों मे कदम रखते ही आपको ऐसा लगता है की आप किसी टाइम मशीन मे बैठकर सदियों पीछे चले गए है | अहमदाबाद के पोल हमे एक बीते हुए काल की याद दिलाते है |
अहमदाबाद शहर का निर्माण सं १४११ मे गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने किया , जिनके नाम पर ही शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा | समय के साथ हर धर्म , सम्प्रदाय और जाती के लोग यहाँ आकर बस गए और अहमदाबाद भारत के प्रमुख व्यापारी केन्द्रो में से एक बन गया |
प्राचीन काल से भारतीय शहर पारम्परिक वसाहतो मे विभाजित हुआ करते थे जिनमे अलग अलग पेशे और संप्रदाय के लोग रहते थे | उत्तर भारत में उन्हें मोहल्ला कहा जाता था, महाराष्ट्र में पेठ , बंगाल में पारा और गुजरात में पोल। ‘पोल ‘ ये शब् सनस्क्रीत शब् ‘प्रतोली ‘ से आया है जिसका अर्थ हैं ‘दरवांजा’ | हर पोल की सुरक्षा के लिए एक बड़ा दरवाज़ा हुआ करता था जिससे इन मोहल्लो का नाम ‘पोल ‘ पड़ा | और पढ़ें
4- रानी की वाव
भारत की अद्भुत धरोहरों में से एक है रानी की वाव। सदियां बीत जाने के बावजूद ये इसलिए बची रही क्योंकि ये ज़मीन में दबी हुई थी। रानी की वाव देश में ही नहीं बल्कि विश्व में एक ऐसी बावड़ी है जो देखते ही बनती है। गुजरात के पाटन शहर में स्थित ये बावड़ी एक ऐसी राजधानी की गवाह है जो यहां एक हज़ार साल पहले हुआ करती थी। इसकी झलक सन 2018 में जारी सौ के नोट पर भी देखी जा सकती है ।
एक समय पाटन का नाम अन्हिलवाड़ा हुआ करता था। ये सोलंकी (चालुक्य) राजवंश की राजधानी हुआ करता था। 10वीं और 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में गुजरात और राजस्थान के हिस्सों पर सोलंकी राजवंश का शासन था। उनके शासनकाल में आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में बहुत तरक़्क़ी हुई। उन सुनहरे दिनों को सोलंकी शासकों द्वारा बनवाए गए स्मारकों में देखा जा सकता है। इनमें सोमनाथ और मोढ़ेरा के मंदिर, सहस्त्रलिंग तालाब जैसे जलाशय और पाटन में रानी की वाव जैसे स्मारक शामिल हैं।
जैन विद्वान मेरुतुंगा ने अपने संस्कृत ग्रंथ प्रबंध चिंतामणि में लिखा है कि सीढ़ियों वाली बावड़ी राजा नवघड़ा खेनगाड़ा की पुत्री राजकुमारी उदयमति ने 1964 में बनवाई थी। उदयमति सोलंकी राजा भीम प्रथम की पत्नी थी और उन्होंने पति की स्मृति में ये वाव बनवाई थी।
पुरातत्वविद डॉ. कीर्ति मंकोडी के अनुसार- आकार, मूर्ति की प्रचुरता और शिल्प के स्तर के मामले में ये वाव अद्भुत है। सीढ़ियों से वाव में उतरते हुए आप पाएंगे कि एक इंच भी ऐसी जगह नहीं है जो अलंकृत न हो। ये स्मारक उस समय की शिल्पकला को दर्शाता है जो तब अपने उत्कर्ष पर थी। ये स्मारक हालंकि आज काफ़ी जर्जर अवस्था में हैं लेकिन फिर भी 400 प्रमुख और लगभग एक हज़ार छोटे मोट स्मारक मौजूद हैं जो धार्मिक, पौराणिक और धर्मनिरपेक्ष चित्रकारी को दर्शाते हैं।और पढ़ें
5- ऊपरकोट क़िला
गिरनार पर्वत के चरणों में मौजूद गुजरात का जूनागढ़ शहर पूरी तरह इतिहास में डूबा हुआ है। और उस इतिहास की बेहतरीन नुमाइंदगी करता है, शहर का सबसे पुराना हिस्सा यानी ऊपरकोट क़िला। माना जाता है कि यह प्राचीन किला 319 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त द्वारा बनाया गया था, हालांकि इसमें कई बार बदलाव हुआ है। और जानने के लिए देखें यह वीडियो
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