देहरादून का ऐतिहासिक  गुरुद्वारा

देहरादून का ऐतिहासिक गुरुद्वारा

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में देहरादून देश के सबसे लोकप्रिय हिल स्टोशनों में से एक है| लेकिन इस ख़ूबसूरत शहर का सिख धर्म के इतिहास के साथ गहरा संबंध रहा है। वास्तव में, देहरादून का नाम भी ‘डेरा’ (कैम्प) के नाम पर पड़ा है जिसकी स्थापना सन 1676 में सिख गुरु राम राय ने की थी। लेकिन सवाल ये है कि गुरु राम राय सिख धर्म के गढ़ पंजाब से 250 कि.मी. दूर यहां कैसे पहुंच गए? यह सब हुआ एक मुग़ल बादशाह की वजह से। पढ़िये पूरी कहानी।

17वीं शताब्दी में सिखों का अमूमन मुस्लिम शासकों के साथ टकराव होता रहता था। 1657 में शाहजहां जब गंभीर रुप से बीमार पड़ गए तब उनके पुत्र दारा शिकोह और औरंगज़ेब के बीच सत्ता संघर्ष छिड़ गया। उनका बड़ा पुत्र दारा शिकोह सूफ़ी मत का अनुयायी था और वह अन्य धर्मों का सम्मान करता था। कहा जाता है कि सातवें सिख गुरु हर राय ने कभी दारा शिकोह की किसी बीमारी का इलाज किया था और यही वजह थी कि वह सिखों के प्रति नरम रवैया रखता था। दूसरी तरफ़ औरंगज़ेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था और ग़ैर मुस्लिमों के प्रति असहनशील था।

सत्ता संघर्ष में औरंगज़ेब ने बाज़ी मार ली और सन 1658 में वह बादशाह बन गया। उसने धर्म से भटकने के आरोप में दारा शिकोह का सिर क़लम करवा दिया। सत्ता संभालने के बाद सन 1660 में औरंगज़ेब ने गुरु हर राय को दारा शिकोह के साथ उनके संबंधों के बारे में जानकारी लेने के लिये अपने दरबार में बुलवाया।

गुरु राम राय अपने पुत्रों श्री चंद और लखमी चंद के साथ गुरु नानक के पीछे बैठे थे। वे भाई मरदाना और भाई बाला की बात सुन रहे हैं। गुरु राम राय दरबार साहिब में पेंटिंग

गुरु हर राय पंजाब के कीरतपुर शहर में रहते थे। सन 1634 की अमृतसर की लड़ाई में सिखों को भारी नुकसान हुआ था और उन्हें वहां से पीछे हटना पड़ा था। बहरहाल, गुरु हर राय को औरंगज़ेब के इरादों के बारे में पता था इसलिये उन्होंने ख़ुद न जाकर अपने बड़े बेटे को भेजने का फ़ैसला किया। उन्होंने अपने पुत्र गुरु राम राय से कहा कि वह पूरे गर्व के साथ और बेख़ौफ़ होकर बादशाह के सामने पेश हों।

औरंगज़ेब को लगा कि गुरु राम राय शायद अगले सिख गुरु बनेंगे इसलिये उसने उन्हें बंधक बना लिया। औरंगज़ेब ने सिखों के पवित्र आदि ग्रंथ के एक पद्ध के बारे में उनसे पूछा। ये पद्ध था, असा दी वार जिसमें कहा गया था- “मिट्टी मुसलमान की पेड़े पई घुमियार, घड़ भांडे ईंटा कियां जलती करे पुकार।” इसका मतलब था कि कुम्हार की घड़ावन में जिस तरह हिंदूं की चिता की मिट्टी का उपयोग होता है उसी तरह मुसलमान की क़ब्र से उठाई गई मिट्टी का भी होता है। औरंगज़ेब को लगा कि इसमें मुसलमानों का अपमान है। गुरु राम राय ने बादशाह की नाराज़गी से बचने और उसे ख़ुश करने के लिये सफ़ाई दी कि इस छंद की ग़लत कॉपी हो गई है और उन्होंने मुसलमान शब्द को बेईमान शब्द से बदल दिया जिसे औरंगज़ेब ने स्वीकार कर लिया। सिख-मुग़ल लोक कथाओं में इस कहानी का बार बार ज़िक्र आता है।

माना जाता है कि गुरु राम राय की इस कायरना हरकत से उनके पिता नाराज़ हो गए और उन्होंने अपने छोटे पुत्र हर किशन को अगला सिख गुरु नामांकित कर गुरु राम राय की निंदा की। ये भी विडंबना है कि गुरु राम राय की इस हरकत की वजह से औरंगज़ेब का रवैया उनके प्रति नरम हो गया और बहुत जल्द दोनों दोस्त बन गए। दोस्ती के बाद औरंगज़ेब ने उन्हें रिहा भी कर दिया।

दून घाटी | विकिमीडिया कॉमन्स

इसके बाद गुरु राम राय बंजारों का जीवन जीते हुए अपने अनुयायी बनाने लगे। अपने दोस्त की मदद के लिये औरंगज़ेब ने गढ़वाल के राजा फ़तह शाह को गुरु राम राय को कुछ ज़मीन देने को कहा। इस तरह गुरु राम राय को गढ़वाल घाटी में जागीर मिल गई जिसमें खुरबुरा,राजपुरा और चमासारी जैसे सात गांव आते थे। जागीर मिलने के बाद गुरु राम राय ने यहीं बसने का फ़ैसला किया।

जल्द ही गुरु राम राय और उनके अनुयायियों ने गढ़वाल घाटी पहुंच कर वहां सन 1676 में डेरा की स्थापना की। इसके साथ ही एक नये संप्रदाय राम रैया की शुरुआत हुई। डेरा के आसपास बसने वाले नगर का नाम देहरादून पड़ गया।

सिक्के का दूसरा पहलू ये भी था कि औरंगज़ेब ने आत्मस्वार्थ में गुरु राम राय को स्थाई निवास दिया था। सन 1664 में आठवें गुरु, गुरु हर किशन (गुरु राम राय के भाई) का निधन हो गया। उनकी जगह गुरु तेग बहादुर ने ली जो नौवें गुरु बने। लेकिन गुरु राम राय को गढ़वाल के शासक की मदद से ज़मीन देने के एक साल पहले सन 1675 में औरंगज़ेब ने घर्मांतरण रोकने के आरोप में नौवें गुरु को मौत के घाट उतार दिया था। औरंगज़ेब को डर था कि गुरु राम राय, जिनका वह बहुत सम्मान करता था, को अगर एक ही जगह नहीं रखा गया तो वह कहीं उनके ख़िलाफ़ बग़ावत कर सकते हैं।

गुरु राम राय दरबार साहिब | 1858 में रॉबर्ट और हैरियट टाइटलर द्वारा फोटो खींचा गया

गुरु राम राय का सन 1687 में निधन हो गया। ये ख़बर जब औरंगज़ेब के पास पहुंची तो वह बहुत दुखी हो गया और उसने अपने दोस्त के सम्मान में एक स्मारक बनाने के लिये धन के साथ दस्तकार भेजे। ये स्मारक आज गुरु राम राय दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है। चूंकि ये स्मारक मुग़लों ने बनवाया था इसलिये ये अन्य सिख दरबार साहिबों से अलग है।

दरबार साहिब पर डिजाइन  | https://www.instagram.com/travelkarmas/

गुरु की चार विधवाओं में से सबसे छोटी माता पंजाब कौर ने मक़बरे की देखरेख की ज़िम्मेदारी ले ली। गुरु के मक़बरे के दिक्षिणी द्वार पर फ़ारसी भाषा में 66 पद्धों में गुरु राम राय और औरंगज़ेब की कहानी अंकित है। ये कहानी संगमरमर के स्लैब पर अंकित है जो औरंगज़ेब ने भिजवाया था। मुख्य मक़बरे और इसके आसापस के प्रवेश द्वारों पर मुग़ल वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है। इन पर फूलों के रुपांकन और सुलेख भी हैं। मक़बरे के अंदर एक सुंदर बाग़ है जो छोटे मुग़ल चारबाग़ का प्रतिरुप है।

परिसर में इमारतें इस तरह के खूबसूरत भित्ति चित्रों से भरी हैं  | https://www.instagram.com/travelkarmas/

इस दौरान दरबार साहिब में और भी कई स्मारकों का निर्माण हुआ जिन्हें राम रैया संप्रदाय के महंतों ने बनवाया था। मध्य दरबार के चार कोनों पर सन 1780 और सन 1817 के दौरान गुरु राम राय की पत्नियों की याद में छोटो छोटे मक़बरे बनवाए गए। पहाड़ी शैली के भित्ति चित्र दरबार साहिब की विशेषता हैं। इन भित्ति चित्रों का बहुत महत्व है क्योंकि ये देहरादून के सिवाय और कहीं नही मिलते। ये चित्र गढ़वाल स्कूल के हैं।

झंडा मेला

हर साल दरबार साहिब के परिसर में एक धार्मिक मेला लगता है जिसे झंडा मेला कहते हैं। ये मेला उन दिनों की याद दिलाता है जब गुरु राम राय का दोहरादून आगमन हुआ था। इस मेले में देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और झंडा फ़हराते हैं।

अरहट बाज़ार रोड पर स्थित गुरु राम राय दरबार साहिब आज उत्तराखंड में गहमा गहमी वाले देहरादून शहर का केंद्र है और ये हमें उस कठिन दौर की याद दिलाता है। ये मुग़ल-सिख-पहाड़ी वास्तुकला की लुप्त होती निशानी है।

मुख्य फोटो सौजन्य: कार्तिक सिंह

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com

आप यह भी पढ़ सकते हैं
Ad Banner
close

Subscribe to our
Free Newsletter!

Join our mailing list to receive the latest news and updates from our team.

Loading