गोवा के अद्भुत मंदिर

गोवा के अद्भुत मंदिर

गोवा से मंदिरों के रिश्ते की बात सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है। लेकिन ये सच है, कि सुंदर समुद्रीय तटों, चहल-पहल और रौनक़ से भरी रातों की वजह से सैलानियों की पसंदीदा जगह गोवा का मंदिरों से भी गहरा रिश्ता रहा है। यहां बारहवीं सदी के कई मंदिर हैं। इनकी विशिष्ट वास्तुकला शैली की वजह से कई बार आप इसे यूरोपीय हवेली समझने की भूल कर सकते हैं।

गोवा पौराणिक कथाओं और इतिहास से भरा पड़ा है। पुरानी कथाओं के अनुसार, इस क्षेत्र का निर्माण विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने करवाया था।

उन्होंने समुद्र के देवता वरुण से क्षेत्र को दोबारा हासिल किया था। प्राचीन काल में गोवा को गोमांतक, गोवापुरी और गोवे जैसे नामों से जाना जाता था। इन नामों के कई अर्थ हैं, जिनमें से एक का अर्थ है उपजाऊ भूमि। महाकाव्य महाभारत में इस क्षेत्र का नाम गोपराष्ट्र या चरवाहों की भूमि के रूप में उल्लेख मिलता है।

प्राचीन काल से गोवा कई महत्वपूर्ण बंदरगाहों वाला क्षेत्र रहा है। यहां सातवाहन (दूसरी सदी ई.पू.- तीसरी सदी), गोवा के भोज (तीसरी- छठी सदी) और बादामी चालुक्य (छठी- आठवीं सदी) जैसे कई शक्तिशाली राजवंशों का शासन रहा था। दसवीं – चौदहवीं सदी में गोवा पर कदंब शासकों का शासन था, और चंदोर उनकी राजधानी हुआ करती थी। बाद में यह विजयनगर साम्राज्य (चौदहवीं- पंद्रहवीं सदी) के अधीन हो गया और फिर आदिल शाही (पंद्रहवीं- सोलहवीं सदी) के अधीन हो गया। सोलहवीं शताब्दी में गोवा पर पुर्तगालियों का शासन हो गया था, जिसका यहां की संस्कृति पर गहरा प्रभाव आज भी दिखाई पड़ता है।

गोवा के प्रिओल गांव में स्थित मंगेश मंदिर | विनयराज- विकिमीडिआ कॉमन्स

मंदिर, प्राचीन काल से गोवा का अभिन्न अंग रहे हैं। एक समय यहां सामाजिक और सांस्कृतिक सभाएं हुआ करती थीं। सोलहवीं शताब्दी में धर्मांतरण के दौरान, यहां कई मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। इन मंदिरों की मूर्तियों को पुर्तगाली क्षेत्रों की सीमाओं से बाहर पड़ोसी क्षेत्रों में सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया, जिन्हें स्थानीय शासकों की देख-रेख में रखा गया था। दिलचस्प बात यह है, कि इस कारण गोवा में दो प्रकार के मंदिर देखे जा सकते हैं- एक स्थानीय देवताओं के और दूसरे उन देवी-देवताओं के जिन्हें पुर्तगाली शासन के दौरान सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया था। दोबारा लाये गये देवी-देवताओं की मूर्तियों को शुरू में साधारण गुप्त आवासों में रखा गया था।

सत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दी में इन मूर्तियों के लिये मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया, और इस तरह इनकी खोई हुई गरिमा फिर बहाल हुई। जो चीज़ इन मंदिरों को विशिष्ट बनाती है, वह है इनकी रूपरेखा। इन मंदिरों में हिंदू और पुर्तगाली वास्तुकला का आकर्षक मिश्रण है। मंदिर का मूल नक़्शा तो हिंदू वास्तुकला के अनुसार है, लेकिन इनकी सजी हुई दीवारों, मेहराबों, भित्ती स्तंभों, खंबों और फ़ानूस में यूरोपीय प्रभाव देखा जा सकता है। कुल मिलाकर इन मंदिरों की वास्तुकला की वजह से वे यूरोपीय हवेली और चर्चों की तरह दिखते हैं।

आईये… एक नज़र डालते हैं गोवा के कुछ सबसे आकर्षक मंदिरों पर-

ताम्बड़ी सुर्ला महादेव

ताम्बड़ी सुर्ला महादेव | विकिमीडिआ कॉमन्स

ताम्बड़ी सुर्ला गांव में अनमोद घाट के तल के पास स्थित गोवा का ये सबसे पुराना मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण बारहवीं शताब्दी में कदंब शासकों ने करवाया था। ये मंदिर जैसा था वैसा ही है, क्योंकि यह एक दुर्गम क्षेत्र में स्थित है  जो चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ है। बेसाल्ट पत्थर का बना यह गोवा का एकमात्र मंदिर है, जो आज भी अपने मूल रूप में है। ये कदंब वास्तुकला की नुमाइंदगी करता है। मंदिर का नाम इस क्षेत्र में पाई जाने वाली भूरी-लाल मिट्टी (ताम्बडी का अर्थ लाल) से पड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि, वैसे तो यह शिव मंदिर है, लेकिन इसकी दीवारों पर वैष्णव संप्रदाय से जुड़े कई चित्र बने हुए हैं।

श्री सप्तकोटेश्वर

श्री सप्तकोटेश्वर मंदिर | विकिमीडिआ कॉमन्स

कदंब काल का एक और मंदिर है, सप्तकोटेश्वर मंदिर। ये कोंकण क्षेत्र में शिव मंदिरों के छह महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। ताम्बडी मंदिर, जहां बारहवीं शताब्दी में बना था, वहीं कदंब मंदिर का पुनर्निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में किया गया था। कहा जाता है, कि धर्मांतरण के बाद  शिव लिंग को सोलहवीं शताब्दी में नारायण शेनवी सूर्यराव नामक एक स्थानीय व्यक्ति चुपके से ले गया था और बाद में इसे दिवार द्वीप के पास एक मंदिर में स्थापित किया गया था। सत्रहवीं शताब्दी में मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था।

श्री सप्तकोटेश्वर मंदिर का एक और दृश्य | विकिमीडिआ कॉमन्स

मंदिर के नाम के साथ एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। इसके अनुसार शिव सात ऋषियों की भक्ति से प्रसन्न होकर इस स्थान पर निवास करने के लिए सहमत हुए थे, जिन्होंने सात करोड़ वर्षों तक पूजा की थी (सप्त का अर्थ होता है सात और कोटेश्वर का अर्थ होता है करोड़ों का स्वामी)। कहा जाता है, कि शिव का यह रूप बारहवीं शताब्दी के आसपास कदंब शासकों के प्रमुख देवताओं में से एक था। इस युग के कदंब शासकों के सिक्कों में कदंब राजा जयकेशी के साथ देवता सप्तकोटेश्वर के नाम का उल्लेख है। मंदिर स्थापत्य शैली का एक मिश्रण है, जिसमें ढ़लान वाली टाइलों की छतों पर एक गुंबद, यूरोपीय शैली के मंडप और एक विशाल दीपस्तंभ है।

श्री शांता दुर्गा

कवले का शांता दुर्गा मंदिर | अमोल गाईतोंडे - विकिमीडिआ कॉमन्स

कवले का शांता दुर्गा मंदिर विभिन्न धर्मों की विभिन्न स्थापत्य शैलियों के मिश्रण के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। पिरामिड आकार, शिखर, ढ़लान वाली छतें, रंगीन शीशे वाली रोमन धनुषाकार खिड़कियां और झूमर इस मंदिर को अनोखा बनाते हैं। दुर्गा का एक रूप, शांता दुर्गा गोवा में सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से पूजे जाने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। स्थानीय रूप से इन्हें शांतिरी भी कहा जाता है। इन्हें एक अभिभावक के रूप में पूजा जाता है, जिसने विष्णु और शिव के बीच मध्यस्थता की थी। पुराणों के अनुसार शांता दुर्गा के रूप में देवी पार्वती ने विष्णु और शिव के बीच युद्ध में हस्तक्षेप किया था। देवी ने अपने हाथों में दो नाग पकड़ रखे हैं, जो विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

श्री मंगेश

मंगेश मंदिर | निखिल - विकिमीडिआ कॉमन्स

पहाड़ी इलाक़े में उत्तरी गोवा के प्रिओल गांव में स्थित मंगेश मंदिर गोवा में सबसे अधिक देखे जाने वाले और व्यापक रूप से पूजे जाने वाले मंदिरों में से एक है। ये मंदिर हालांकि बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन ये इंडो-पुर्तगाली डिज़ाइन की एक अच्छी आनुपातिक संरचना है।

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के साथ एक दिलचस्प कथा जुड़ी हुई है। पासे के खेल में पार्वती से सब कुछ हारकर भगवान शिव इस क्षेत्र में निवास करने लगे थे। जब पार्वती उनकी तलाश में आईं,  तो भगवान शिव ने उन्हें डराने के लिए बाघ का रूप धारण कर लिया, जिसे देखकर वह चीख़कर बोली त्राहि माम गिरीश (पहाड़ों के भग्वान मुझे बचाओ)। समय के साथ माम गिरीश शब्द शिव के साथ जुड़ गया और मंदिर को मंगुइरिषा या मंगेश के नाम से जाना जाने लगा।

श्री महालसा नारायणी

महालसा नारायणी मंदिर | विकिमीडिआ कॉमन्स

उत्तरी गोवा के मर्दोल शहर में महालसा नारायणी मंदिर देवी महालसा नारायणी को समर्पित है, जिन्हें विष्णु, मोहिनी का स्त्री रूप माना जाता है। दिलचस्प बात यह है, कि देवी महालसा की अराधना की दो परंपराएं हैं- एक परंपरा में उन्हें एक मोहिनी रूप में एक स्वतंत्र देवी की तरह पूजा जाता है, जबकि दूसरी परंपरा में उन्हें खंडोबा (शिव का एक रूप) की पत्नी (पार्वती) के रूप में पूजा जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार देवी को राहु-मथनी (राहु का वध करने वाली) भी कहा जाता है। उन्हें एक कटे हुए सिर और पीने के कटोरे को पकड़े हुए, एक दानव पर खड़े होकर और एक यज्ञनोपवित (पवित्र धागा) पहने हुए दिखाया गया है । यज्ञनोपवित का आमतौर पर देवताओं से संबंध होता है। मंदिर का पुनर्निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में किया गया था।

महालसा नारायणी मंदिर का एक हिस्सा

सौंदर्य से भरपूर ये अनोखे मंदिर गोवा की जीवंत संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं।

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