मध्य भारत के सबसे पुराने नचना मंदिर

मध्य भारत के सबसे पुराने नचना मंदिर

इसमें कोई शक नहीं, कि खजुराहो वास्तुशिल्प का अजूबा है। खजुराहो के मंदिर शायद भारत में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक हैं, जहां हज़ारों सैलानी आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं, कि यूनेस्को की इस विश्व धरोहर से लगभग 100 किमी दूर नचना गांव में मध्य भारत के सबसे पुराने सुंदर बनावट वाले मंदिर हैं। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना ज़िले में दो प्राचीन नचना मंदिर हैं। इनमें से एक पार्वती मंदिर मध्य भारत में पत्थरों को काटकर बनाये गये सबसे पुराने मंदिरों में से एक है । यह मंदिर 5वीं-6वीं शताब्दी के हैं।

मंदिर, भारत के इतिहास का एक अभिन्न अंग रहे हैं। चाहे वह चंदेल वंश के खजुराहो मंदिर (10वीं-11वीं शताब्दी) हों, या चोल वंश के बृहदीश्वर मंदिर (11वीं शताब्दी), अधिकांश प्राचीन और मध्यकालीन राजवंशों ने विशाल मंदिर बनवाये थे। सबसे प्राचीन मंदिर लगभग चौथी शताब्दी के हैं, जो गुप्त काल में बनवाये गये थे।

हालांकि इससे भी पुराने समय के मंदिर रहे होंगे, लेकिन विद्वानों का मानना है, कि हो सकता है इनके निर्माण में लकड़ी जैसी कमज़ोर चीज़ों का उपयोग किया गया होगा, इसीलिए वे समय के साथ नष्ट हो गये होंगे।

“सांची 17” मंदिर को भारत का सबसे पुराना मंदिर कहा जाता है, जो 5 वीं शताब्दी गुप्त काल में बनवाया गया था। गुप्त राजवंश ने तीसरी से छठी शताब्दी तक शासन किया था। यह राजवंश प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था। इसी अवधि के दौरान मंदिर-वास्तुकला का विकास शुरू हुआ था। “सांची 17” मंदिर के अलावा तिगावा में विष्णु मंदिर, भुमरा में शिव मंदिर और देवगढ़ में दशावतार मंदिर इस काल के कुछ आरंभिक और सबसे प्रमुख मंदिर हैं।

“सांची 17” मंदिर

नचना पर लगभग चौथी शताब्दी के आसपास से गुप्त वंश का शासन रहा था। गुप्त शासकों के सामंत उच्छकल्प वंश और परिव्राजकों ने लगभग 5वीं और 6वीं शताब्दी से इस क्षेत्र पर शासन किया था। कुछ विद्वान पुराणों में बताये गये कंचनक नगर को ही नचना मानते हैं। उनका मानना है, कि कंचनक वाकाटक शासक प्रवरसेन की राजधानी थी।

हालांकि मंदिर बनने की सही तारीख़ आज भी बहस का विषय है, लेकिन विद्वानों का मानना है, कि अपनी वास्तुकला के हिसाब से नचना का पार्वती मंदिर 5वीं-6वीं शताब्दी का हो सकता है। नचना मंदिरों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक अलेक्ज़ेंडर कनिंघम की कोशिशों की वजह से लोगों का ध्यान इस मंदिर की तरफ़ गया था। उन्होंने सन 1885 में इस के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।

कनिंघम ने सन 1883-84 के आसपास नचना गांव का दौरा किया था। दिलचस्प बात यह है, कि उन्होंने पाया था, कि स्थानीय लोग मंदिरों के बारे में जानते थे, और वे अक्सर वहां जाया करते थे। नचना गांव को पहले कुठारा के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है, कि नचना प्राचीन काल में बुंदेलखंड क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था।

नचना के खंडहरों में उन्हें केवल दो मंदिर अच्छी हालत में मिले, एक पार्वती मंदिर और दूसरा चतुर्मुख मंदिर। कनिंघम का मानना था, कि नक़्क़ाशी और मूर्तियों की वजह से पार्वती मंदिर गुप्त काल का है। वे लिखते हैं, “जो मंदिर मैंने देखे हैं, उनमें पार्वती का मंदिर सबसे अनोखा और दिलचस्प मंदिर है। इस पर किया गया काम बिल्कुल अलग है। क्योंकि इसकी बाहरी दीवारों पर जो काम किया गया है, वह चट्टानों पर किये गये पारंम्पारिक काम की नक़ल है। दिलचस्प बात ये है, कि ऐसा लगता है, जैसे यहां चट्टान को काटकर बनाये हुए मंदिरों की पुरानी शैली को बरक़रार रखा गया है। बाहरी दीवारों और प्रवेश-द्वार पर सभी मूर्तियां गुप्त काल की मूर्तिकला शैली की हैं।

पार्वती मंदिर की जाली | विकिमीडिआ कॉमन्स

कहा जाता है, कि नचना पार्वती मंदिर हिंदू मंदिर वास्तुकला के नमूने की तरह है। यह दो मंज़िला मंदिर डिज़ाइन के मामले में, बाक़ी मंदिरों के मुक़ाबले में साधारण है। इसमें एक मंडप, एक गर्भगृह है, और इसकी छत सपाट है। मंदिर के प्रवेश-द्वार को ख़ूबसूरती से सजाया गया है, जिस पर दो नदियों यानी देवी गंगा और देवी यमुना की छवियां बनी हुई हैं। दिलचस्प बात यह है, कि प्रवेश-द्वार पर उकेरी गई छोटी मानव मूर्तियां में गुप्त काल के समय के लोगों की एक झलक दिखाई देती हैं। कनिंघम के अनुसार मंदिर में पुरुषों की मूर्तियों के बाल उस समय के सिक्कों पर अंकित गुप्त राजाओं के बालों की तरह हैं, जो घुंघराले और किसी न्यायाधीश की विग की तरह लगते हैं।

नचना में मौजूद मूर्ती | विकिमीडिआ कॉमन्स
पार्वती मंदिर में मौजूद मूर्तियां | विकिमीडिआ कॉमन्स

नचना का एक अन्य मंदिर चतुर्मुख मंदिर है, जिसे चतुर्मुख महादेव मंदिर भी कहा जाता है। पार्वती मंदिर के मुक़ाबले, यह मंदिर बहुत पहले का है। प्रतिहार वास्तुकला शैली का ये मंदिर शायद लगभग 8वीं-9वीं शताब्दी का है।

डिजाइन में पार्वती मंदिर से एकदम अलग ये मंदिर एक ऊंचे मंच पर बना है जिसके गर्भगृह के ऊपर एक लंबा शिखर है जो मंदिरों की वास्तुकला में सिलसिलेवार विकास को दर्शाता है। हो सकता है, दोनों मंदिरों में एकमात्र सामान्य विशेषता इनके प्रवेश-द्वारों पर बनी बारीक नक़्क़ाशी है।

चौमुखनाथ मंदिर की एक अलंकृत जाली, नचना | विकिमीडिआ कॉमन्स

इस मंदिर का मुख्य आकर्षण गर्भगृह के भीतर मौजूद शिवलिंग है । मंदिर का नाम इसी की वजह से पड़ा है। लगभग 4 फ़ुट ऊंचे शिवलिंग की चारों दिशाओं में चार मुख हैं। शिवलिंग पर मुख, शिव के पंचमुख पहलओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उत्तर मुख, वामदेव (जल) सृजन का, पूर्व मुख तत्पुरुष (वायु) रखरखाव का, पश्चिम मुख सद्योजाता (पृथ्वी) आत्मनिरीक्षण का जबकि दक्षिण चेहरा अघोर (अग्नि) विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। शीर्ष पर पांचवां मुख है, जिसे इससे पहले शायद ही चित्रित किया गया है, ईशान (आकाश) के रूप में जाना जाता है।

यह अंतरिक्ष, समय और दिशाओं से परे है और निराकार हिंदू धर्मशास्त्र का प्रतिनिधित्व करता है। शिव के पांच मुख ब्रह्मांड के पांच पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। चतुर्मुख मंदिर में शिवलिंग के मुख ख़ूबसूरती से उकेरे गए हैं जिनमें से तीन में शांत और मुस्कुराते हुए भाव हैं जबकि खुले मुंह, उभरी हुई आँखें और नथुने वाला अघोर का मुख शिव के भयानक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। चारों मुखों को बहुत अच्छी तरह से सजाया गया है।

चौमुखनाथ, नचना | विकिमीडिआ कॉमन्स

हालांकि दोनों मंदिरों की दीवारों पर कोई अभिलेख नहीं है, लेकिन नचना के पास एक चट्टान पर 5वीं शताब्दी का एक अभिलेख मिला था, लेकिन अफ़सोस कि यह अधूरा था। इस पर केवल व्याघ्रदेव नामक व्यक्ति के नाम का उल्लेख था, जिसने इसे लिखवाया था। व्याघ्रदेव, पृथ्वीसेन का एक सामंत हुआ करता था। यह शिलालेख विद्वानों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ विद्वानों का मानना है, कि जिन राजाओं का इसमें उल्लेख किया गया है, वो वाकाटक राजवंश के पृथ्वीसेन-I और उच्छकल्प राजवंश के व्याघर हैं, जिन्होंने 5वीं और 6वीं शताब्दी के दौरान मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। शिलालेख के आधार पर विद्वानों का मानना है कि 5वीं शताब्दी में नचना एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा होगा।

व्याघ्रदेव का अभिलेख | विकिमीडिआ कॉमन्स

हालांकि यहां सिर्फ़ दो मंदिर ही बचे हैं, लेकिन पत्थर पर बनी कई नक़्क़ाशियां हैं, जो कभी मंदिरों के अवशेषों का हिस्सा रही होंगी। इनमें से कुछ रामायण के दृश्यों को दर्शाने वाली सबसे पुरानी नक़्क़ाशियों में से एक हैं। आज मध्य भारत के इस क्षेत्र के अन्य लोकप्रिय स्थलों के बीच इन सबसे पुराने मंदिरों को भुला दिया गया है। ये दोनों मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के भोपाल सर्कल के अंतर्गत आते हैं।

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