सरस्वती महल पुस्तकालय तंजौर (तंजावुर), तमिलनाडु में स्थित है। यह एशिया में सबसे प्राचीनतम पुस्तकालयों में से एक है। सरस्वती पुस्तकालय तंजावुर पैलेस के समूह के अन्तर्गत में है। आगन्तुक संरक्षित पुस्तकों का अवलोकन कर सकते हैं और पुस्तकालय परिसर में बैठकर पढ़ सकते हैं। यह पुस्तकालय आम लोगों के लिए खुला है। पहले इस पुस्तकालय का नाम ‘तंजावुर महाराजा शेरोफजी सरस्वती महल’ था।
यहाँ खजूर के पत्तों पर तमिल, मराठी, तेलुगु, मराठी और अंग्रेज़ी सहित अनेक भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों व पुस्तकों का असाधारण संग्रह मौजूद है। तंजावुर स्थित यह पुस्तकालय विश्व के चुनिंदा मध्यकालीन पुस्तकालयों में से एक है। सरस्वती महल पुस्तकालय को तंजावुर के शासक के लिए ‘रॉयल लाइब्रेरी’ के रूप में प्रारम्भ किया गया था, जिसने 1535-1675 ईसा पश्चात् शासन किया था। मराठा शासक जिन्होंने तंजावुर पर 1675 ई. में कब्ज़ा किया था, स्थानीय संस्कृति को संरक्षित किया और 1855 ई. तक रॉयल पैलेस लाइब्रेरी का विकास किया। 1918 से सरस्वती महल पुस्तकालय तमिलनाडु राज्य की सम्पत्ति बन गया। पुस्तकालय की गतिविधियों का कम्प्यूटरीकरण 1998 में शुरू किया गया। 1791 में छपी मद्रास पंचांग, और सन 1791 में एम्सटर्डम में छपी सचित्र बाइबिल के रूप में कुछ दुर्लभ पुस्तकें पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। पुस्तकालय के महत्व के बारे में लोगों के मध्य जागरूकता उत्पन्न करने हेतु एक संग्रहालय भी पुस्तकालय भवन में स्थित है।
मद्रास सरकार ने 1918 में इसे सार्वजनिक रूप दे दिया था। ‘तमिलनाडु पंजीयन अधिनियम, 1975’ के अंतर्गत इसका एक समुदाय के रूप में पंजीकरण 1986 में हुआ था।
सरस्वती महल पुस्तकालय को तंजावुर के शासक के लिए ‘रॉयल लाइब्रेरी’ के रूप में प्रारम्भ किया गया था, जिसने 1535-1675 ईसा पश्चात् शासन किया था। मराठा शासक जिन्होंने तंजावुर पर 1675 ई. में कब्ज़ा किया था, स्थानीय संस्कृति को संरक्षित किया और 1855 ई. तक रॉयल पैलेस लाइब्रेरी का विकास किया। मराठा शासक के शैरोफजी द्वितीय (1798-1832 ई.) सबसे अधिक प्रभावशाली थे, जो शिक्षण तथा कला की कई शाखाओं में एक प्रतिष्ठित दार्शनिक थे। उन्होंने पुस्तकालय की समृद्धि के लिए अत्यधिक रुचि प्रदर्शित की और उत्तर भारत तथा अन्य दूर-दराज के इलाकों में संस्कृत शिक्षण के सभी ख्याति प्राप्त शिक्षण केन्द्रों से कई कार्यों के संग्रहण, खरीद तथा प्रति प्राप्त करने के लिए कई पंडितों को नियोजित किया। 1918 से सरस्वती महल पुस्तकालय तमिलनाडु राज्य की सम्पत्ति बन गया। पुस्तकालय का सरकारी नाम महान रॉयल मराठा संरक्षक के सम्मान में रखा गया।
पुस्तकालय की गतिविधियों का कम्प्यूटरीकरण 1998 में शुरू किया गया। 1791 में छपी मद्रास पंचांग, और सन 1791 में एम्सटर्डम में छपी सचित्र बाइबिल के रूप में कुछ दुर्लभ पुस्तकें पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। पुस्तकालय के महत्व के बारे में लोगों के मध्य जागरूकता उत्पन्न करने हेतु एक संग्रहालय भी पुस्तकालय भवन में स्थित है।