भारत के जंगलों में कई इतनी ख़ूबसूरत जगहें मौजूद हैं जिनकी मिसाल पूरी दुनिया में ढ़ूंढ़ने से नहीं मिल सकती। उनमें से एक है नीलकंठेशवर महादेव, दरअसल यह शिव मंदिर है जो पूरी तरह पानी में डूबा हुआ है और पानी में तैरता हुआ लगता है। यही नहीं यह चारों तरफ़ से घने जंगलों से घिरा हुआ भी है। यह इतना ख़ूबसूरत नज़ारा है कि यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि आप कहीं कोई सपना तो नहीं देख रहे हैं। यह सुंदर स्थान गोहिल राजपूतों की पुरानी राजधानी जुनाराज की बची-खुछी निशानी है। इस पुराने शहर में आज सिर्फ़ यह मंदिर और कुछ दीवारें देखने को मिलती हैं।
राजपीपला का इतिहास 14वीं सदी तक फैला हुआ है। मध्य भारत में, उज्जैन (मालवा) के, परमार राजपूत राजघराने के उत्तराधिकारी राजकुमार चौकराना ने अपनी रियासत छोड़कर पश्चिम में जंगल और पहाड़ों की तरफ़ कूच किया और एक नये राज्य की खोज की। शुरूआत में उन्होंने करजन नदी के किनारे, दूरदराज़ के गांव नंदीपुर को अपनी राजधानी बनाया था । राजकुमार चौकाराना का सम्बंध राजा भोज के ख़ानदान से था। राजा भोज आपनी क़ाब्लियत और इंसाफ़ पसंदी के लिये मशहूर थे। इस लिये राजकुमार चौकाराना ने भी अपने सिंहासन को राजा भोज के राज सिंहासन की तर्ज़ पर बनवाया था जिस पर बत्तीस परियों की छवी बनी थीं। नंदीपुर गांव आज नानदोड़ कहलाता है जो राजपीपला शहर का हिस्सा है। कुछ दिनों बाद ही राजधानी को नंदीपुर से हटा कर पश्चिम के सतपुड़ा में पुराना राजपीपला या जुनाराज ले जाया गया। नई राजधानी लगभग ढ़ाई हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पर होने की वजह से ज़्यादा सुरक्षित थी। साथ ही यह जंगल, पहाड़ियों और वादियों से भी घिरी थी।
गुजरात में, अहमदाबाद से 180 किलो मीटर दूर बसा है ऐतिहासिक शहर राजपीपला जो 1947 तक गोहिल राजपूतों की राजधानी हुआ करता था। शहर के बाहर करजन नदी पर बना करजन बांध है जिसके रोके गये पानी से घिरे शूलपनेश्वर वाइल्ड लाइफ़ सेंक्चुरी के घने जंगल हैं। यहां से जुनाराज पहुंचने के लिये,बांध के पास से, नाव लेनी होती है। दूसरी तरफ़ पहुंचकर चार किलो मीटर पैदल जंगल से गुज़रना होता है।फिर दूसरी नाव में बैठकर जुनाराज पहुंचा जाता है।
राजपीपला में मंदिर और चंद मज़बूत दीवारों के अलावा कुछ नहीं बचा है। पुराने शहर की इन्हीं मज़बूत दीवारों ने कभी अकबर की मुग़ल फौज का मुक़ाबा किया था।
चौकराना परमार की बेटी का विवाह ठाकुर मोखदाजी रानोजी ( सन 1309-1347) से हुआ था। वह गोहिल राजपूत थे ओर घोघा रियासत के प्रमुख थे। खंभात की खाड़ी इलाक़े में उनकी राजधानी पिरमबेट थी। उनके पुत्र कुमार श्री समरसिंहजी मोखदाजी गोहिल को उनके नाना चौकराना परमार की मौत के बाद गद्दी इसलिये मिली थी क्योंकि उनका कोई बाटा नहीं था । सन 1340 के आसपास गद्दी पर बैठने के बाद समरसिंहजी ने अर्जुन सिंहजी नाम धारण कर लिया और राजपीपला के पहले गोहिल राजपूत राजा बन गये। सन 1947 तक उनके राजघराने ने राजपीपला रियासत पर राज किया।
घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद जुनाराज रियासत को कई हमलों का शिकार होना पड़ा। सन 1403 में गुजरात के सुल्तान मुहम्मद-1 के हमले के बाद राणा गोमेल सिंहजी को अपनी राजधानी जुनाराज छोड़कर सतपुड़ा के जंगलों की तरफ़ भागना पड़ा था। राणा गोमेल सिंहजी ने, इदर और चम्पानेर रियासतों के राजाओं से मिलकर मालवा के सुल्तान होशंगशाह को, सुल्तान अहमद शाह-1 की रियासत गुजरात पर हमला करने की दावत दी। लेकिन मोडासा की जंग में, सुल्तान अहमद शाह के हाथों उन्हें पराजय स्विकार करनी पड़ी।
दिलचस्प बात यह कि लगभग एक शताब्दी के बाद जब सन 1567 में सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तोड़ को फ़तह कर लिया तो मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने भी जुनाराज में शरण ली थी। तब जुनाराज में गोहिल राजघराने के 11वें महाराणा भैरवसिंह का शासन था।
गोहिल राजवंश के 26वें महाराणा वेरीसलजी-1, सन 1705 में गद्दी पर बैठे। मुग़ल साम्राज्य को कमज़ोर होता देख वेरीसलजी अपनी आज़ादी को मनवाने लगे थे और उन्होंने पश्चिम-दक्षिण गुजरात की ओर कूच कर दिया था। औरंगज़ैब ने उनके मुक़ाबले के लिये फ़ौज भेजी थी लेकिन उन्होंने मराठा राजा धामाजी जाधव के साथ मिलकर मुग़ल सेना को रतनपुर के युध्द में परास्त कर दिया था। सन 1730 आते आते मुग़ल सेना ओर से ख़तरे कम होते गये । इसीलिये राजधानी को जुनाराज से बदल कर राजपीपला कर दिया गया।
वक़्त के साथ लोग राजपीपला में बसने लगे और जुनाराज शहर सुनसान होता गया। सन 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महाराणा वेरीसलजी-।। ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी। वह कई महीनों तक अंग्रेज़ों के दबदबे से आज़ाद रहे और जुनाराज के आसपास के जंगलों से अपनी फ़ौज के साथ अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ते रहे। आख़िरकार, सन 1860 में अंग्रेज़ों की जीत हुई और विरसलजी-।। को अपनी हुकुमत त्यागनी पड़ी।
राजपीपला के अंतिम शासक थे महाराणा विजय सिंहजी, जिन्होंने राजपीपला को एक आधुनिक और प्रगतिशील रियासत में तब्दील दिया। सन 1947 में देश की आज़ादी के बाद राजपीपला पहले बाम्बे राज्य का हिस्सा बना । बाद में वह गुजरात राज्य में शामिल कर लिया गया।
में जब करजन नदी पर बांध बनाया गया तो जुनाराज का पूरा इलाक़ा डूब गया था। जो लोग वहां रह रहे थे उन्हें अन्य जगहों पर बसा दिया गया। आज पुराने शहर के नाम पर जो कुछ भी दिखाई देता है, वह है झील के बीचों-बीच मौजूद भव्य मंदिर।
हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com