1980 के दशक में राजस्थान के जयपुर में सिटी पैलेस के एक ऐसे कमरे का पता चला जिसमें पुराने कैमरे के उपकरण, ग्लास प्लेट निगेटिव, फ़ोटो प्रिंट और कैमिकल रखे हुए थे। ये एक राजपूत राजा का “फ़ोटो का कारख़ाना” था। आज, 21वीं सदी में फ़ोटोग्राफ़ी हमारे जीवन का हिस्सा बन गई हैं, लेकिन ये बेहद दिलचस्प बात है कि सालों पहले यानी 19वीं शताब्दी में जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह-द्वितीय भी तस्वीरें खींचते थे। वह जहां जाते थे वहां के जन-जीवन और जगहों की तस्वीरें खींचते थे। सवाई राम सिंह को एक सुधारवादी राजा के रुप में जाना जाता है लेकिन उनके कैमरा ख़ुद बदलाव का ज़रिया बन गए थे।
भारत में फ़ोटोग्राफ़ी 19वीं शताब्दी के मध्य में पहुंच गई थी। ये वो समय था जब चार्ल्स शेफ़र्ड, सैमुअल बॉर्न, थॉमस बिग्ज़ जैसे अंग्रेज़ फोटोग्राफ़र भारत में आकर प्राकृतिक दृश्यों और स्मारकों की तस्वीरें लेते थे। फ़ोटोग्राफ़ी का प्रभाव और असर ज़बरदस्त होता था। सन 1850 के दशक में बाम्बे, कलकत्ता और मद्रास में फ़ोटोग्राफ़ी सोसाइटी और फ़ोटोग्राफ़ी स्टूडियों खुलने लगे थे। इनमें सबसे मशहूर स्टूडियो था कलकत्ता का बॉर्न एंड शेफ़र्ड स्टूडियो जिसकी स्थापना सन 1863 में हुई थी। जयपुर शहर भारत में उन चंद जगहों में से था जिसने महाराजा सवाई राम सिंह-द्वितीय के नेतृत्व में इस दृश्य-कला को अपनाया गया।
जयपुर शहर की स्थापना कछवाहा शासक सवाई जय सिंह-द्वतीय ने आमेर से राजधानी बदलने के बाद सन 1727 में की थी। सन 1800 के शुरुआती सालों में जयपुर अंग्रेज़ो के संरक्षण में आ गया और ये उनके अधिकार क्षेत्र का हिस्सा बन गया। प्रशासनिक बदलाव के इसी दौर में तब के सबसे प्रबुद्ध शासकों में से एक राम सिंह का जन्म जयपर में 1833 में हुआ। उनके पिता सवाई जय सिंह-तृतीय (1818-1835) की संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद राजकुमार राम सिंह को सन 1835 में तख़्त पर बैठा दिया गया और उनके लिये एक हाकिम नियुक्त कर दिया गया। शुरुआती दिनों में ही राम सिंह की बुद्धिमत्ता दिखने लगी थी। युवा राम सिंह ने न सिर्फ़ अंग्रेज़ी, उर्दू और संस्कृत बल्कि देशज भाषाएं भी सीखीं। उन्होंने जिमनास्टिक, घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और निशानेबाज़ी का प्रशिक्षण लिया।
कैमरा किंग
राम सिंह जब बड़े हो रहे थे तब अंग्रेज़ों का, जयपुर रियासत के मामलों में प्रभाव बढ़ता जा रहा था। इस वजह से युवा महाराजा का पश्चिमी संस्कृति से परिचय हुआ और उन्हें अंग्रेज शिक्षकों ने शासन करने के लिये तैयार किया। 19वीं सदी के आते आते जयपुर व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। उस समय कई यात्री, कलाकार और फोटोग्राफ़र जयपुर आने लगे थे। माना जाता है कि अंग्रेज़ निवासियों और एजेंट के साथ उनके मेलजेल की वजह से ही उनकी दिलचस्पी फ़ोटोग्राफ़ी में जागी। ऐसा भी माना जाता है कि सन 1864 में फ़ोटोग्राफ़र टी. मरे जयपुर आए थे और तभी राम सिंह को उनसे फ़ोटोग्राफ़ी की प्रेरणा मिली। लेकिन कुछ विद्वानों का ये भी कहना है कि उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी का ज्ञान सन 1850 के दशक से ही था। सन 1860 के दशक में अपना पहला कैमरा हासिल करने के बहुत पहले क़रीब, एक दशक तक महाराजा, बंगाल फ़ोटोग्राफिक सोसाइटी के सदस्य रहे थे। मुमकिन है कि मरे जैसे पेशेवर फ़ोटोग्राफ़रों की सोहबत में उनकी फ़ोटोग्राफ़ी कला में निखार आया हो।
राम सिंह एक बहुमुखी शासक थे जो कला और शिक्षा को संरक्षण देते थे। इसके अलावा वह एक कुशल प्रशासक भी थे। उनके समय में, ख़ासकर शिक्षा के क्षेत्र में हुए सुधारों को देखकर लगता है कि वह अपने समय से बहुत आगे थे। उन्होंने कई संस्थान खोले जो जयपुर में पहली बार बने थे। उन्होंने स्कूल, अस्पताल और सार्वजनिक पार्क बनवाए। सन 1866 में उन्होंने जयपुर स्कूल ऑफ़ आर्ट्स खोला था। उन्होंने प्रशासानिक फेरबदल किए और शहर के विकास के लिये काम किया।
महाराजा का विविध संकलन
राम सिंह को आज ‘फोटोग्राफर किंग या ‘फोटोग्राफर प्रिंस’ के रुप में याद किया जाता है। जयपुर के सिटी पैलेस में सवाई मानसिंह-द्वतीय म्यूज़ियम की पैंटिंग और फ़ोटोग्राफ़ी गैलरी में उनके फ़ोटोग्राफ़ और उनकी फ़ोटोग्राफ़ी का संकलन देखा जा सकता है। उन्होंने महल में फ़ोटो-स्टूडियों यानी तस्वीर ख़ाना बना रखा था। उनकी तस्वीरों के संकलन में उनकी ली गई ख़ुद की तस्वीरें(सेल्फ़ पोर्ट्रेट) भी शामिल हैं। उन्होंने अलग-अलग जगह अलग-अलग मूड में ख़ुद की तस्वीरें खींची थीं। उनकी ख़ुद की तस्वीरें बहुत दिलचस्प हैं क्योंकि इन्हें देखकर लगता है कि वह शासक के परे भी एक शख़्सियत थे। इन तस्वीरों में वह कई मुद्राओं में नज़र आते हैं जैसे अपने पालतू कुत्तों और घोड़े के साथ, स्टूडियो के टेबल पर थकेमांदे बैठे हुए, कई तस्वीरों में उनका राजसी ठाटबाट भी नहीं दिखता है।
उनकी कुछ तस्वीरें शिव भक्त या राजपूत योद्धा के रुप में भी हैं। उनके समकालीन शासक जहां पूरे राजसी ठाटबाट के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाते थे, वहीं राम सिंह की तस्वीरों में हमें शासक के अलावा उनके दूसरे पहलू नज़र आता है। उन्होंने अपने दरबार के लोगों की भी ख़ूब तस्वीरें खींची थीं। कुछ तस्वीरें बच्चों और दरबारियों की भी हैं।
शाही ज़नान-ख़ाने की महिलाओं की तस्वीरों का संकलन भी बहुत चर्चित है। इन तस्वीरों से हमें 19वीं सदी की ज़नाना की राजपूत महिलाओं के जीवन की झलक मिलती है। राजपूत महलों में महिलाओं के लिये अलग विशेष कमरे, बरामदे और छतें होती थीं। यहां महिलाएं परदे में रहती थीं और उनके पति, क़रीबी रिश्तेदारों और कुछ नौकरों के सिवाय उन्हें और कोई नहीं देख सकता था। सन 1860 और सन 1870 के दशक में ली गईं तस्वीरों में उन्होंने ज़नान-ख़ाने की महिलाओं को दिखाया है। इनकी पहचान का कोई पक्का प्रमाण नहीं है लेकिन कहा जाता है कि ये महिलाएं गणिका, नृतकी या फिर शाही महिलाएं रही होंगी।
विद्वान और इतिहासकार लौरा विंस्टीन ने “एक्पोज़िंग द ज़नाना-महाराजा सवाई राम सिंह-द्वतीय फ़ोटोग्राफ़्स ऑफ़ वीमैन इन पर्दा” नाम के अपने पर्चे में लिखा है,“सन 1860 तक राजस्थान की दृश्य कलाओं के लंबे इतिहास में पर्दानशीं राजपूत महिलाओं की, कला के किसी भी माध्यम में तस्वीरें बिल्कुल नदारद थीं। राम सिंह ने ,इन महिलाओं की तस्वीर लेकर आधुनिक युग का एक दिलेरी का काम किया था। उन्होंने इस मामले में कई पुरानी परंपराओं को तोड़ दिया था।” ये तस्वीरें उस समय की महिलाओं और उनकी स्थिति को लेकर चले आ रहे कई मिथकों को धराशायी करती हैं। इन तस्वीरों को देखकर हमें उनके ज़ेवरों और पहनावे के बारे में पता चलता है। “महाराजा सवाई राम सिंह-द्वतीय ऑफ़ जयपुर, फ़ोटोग्राफ़र प्रिंस, 1996”, किताब के लेखक यदुवेन्द्र सहाय लिखते हैं कि राम सिंह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में बिना पर्दे की महिलाओं की तस्वीरें ली थीं।
इतिहास में हर समय विभिन्न शासक देश के कोने कोने का सफ़र करते रहे थे। लेकिन जब राम सिंह सफ़र करते थे तब वह अपने साथ कैमरा रखते थे। उन्होंने यात्रा के दौरान दिल्ली, आगरा, लखनऊ, जोधपुर, कानपुरऔर अजमेर की तस्वीरें ली थीं जो उनके संकलन का हिस्सा हैं। उन्होंने दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा के ताज महल, जोधपुर के मेहरानगढ़ क़िले और लखनऊ में अंग्रेज़ों के रिहाइशा इलाक़ों आदि की तस्वीरें खींची थीं।
महाराजा की तस्वीरों के संकलन में कुछ ऐसी भी तस्वीरें हैं जो उन्होंने नहीं खींची थीं। यात्रा के दौरान वह यादगार के रुप में निगेटिव, प्रिंट्स और अल्बम जमा करते थे। उन्होंने अपने शहर जयपुर की भी बहुत तस्वीरें खींची थीं। उनकी तस्वीरों में 19वीं शताब्दी के जयपुर शहर की झलक मिलती है।
राम सिंह अपने दरबार में आने वाले शाही मेहमानों की भी तस्वीरें खींचा करते थे। महाराजा की ख़ुद की तस्वीरों में अन्य शासक और शाही मेहमान दिखाई पड़ते हैं। इनमें पड़ौसी राजपूत राज्यों के शासक जैसे मेवाड़ के सज्जन सिंह, अंग्रेज़ प्रशासक, यूरोपीय परिवार और दूसरे मेहमान शामिल हैं।
सेटिंग और उपकरण
उनके छायाचित्रों की पृष्ठभूमि और सामान भी कम दिलचस्प नहीं है। भव्य पृष्ठभूमि में विक्टोरियन फ़र्नीचरऔर ईरानी क़ालीन दिखाई पड़ते हैं। ये सब शायद स्टूडियों में हुआ करता था। ज़्यादातर छायाचित्रों की पृष्ठभूमि में यूरोपीय शैली की सजावट दिखती है जैसे अग्निकोष्ठ (फ़ायर प्लेस) का ऊपरी हिस्सा, भारी पर्दे और पीठिकाएं। स्टूडियो में तमाम चीज़े क़रीने से लगाई जाती थीं। राम सिंह के फ़ोटो कारख़ाने में उनके सहायक भी होते थे।
जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय में राम सिंह का कैमरा, उपकरण आदि रखे हुए हैं। इनमें एक बड़ा पोर्ट्रेट लैंस और कुछ कैमिकल प्लेट्स शामिल हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने सन 1870 में (1 जनवरी से 4 अगस्त तक) यानी आठ महीने तक डायरी भी लिखी थी जिससे हमें फ़ोटोग्राफ़ी के उनके शौक़ के बारे में जानकारी मिलती है। एक और दिलचस्प बात ये है कि जब भी वह कार्ड पर अपनी तस्वीर लगाते थे, उस पर अपनी निजी मोहर ज़रुर लगाते थे जो ख़ास तरह की थी यानी उस लिखावट में उभार होता था जिसे छूकर भी महसूस किया जा सकता था।
राम सिंह फ़ोटोग्राफ़ी के अपने ज्ञान में हमेशा वृद्धी और प्रयोग भी करते रहते थे। जब भी पश्चिमी देशों से मेहमान जयपुर आते थे, महाराजा उनसे फ़ोटोग्राफ़ी की नयी तकनीक के बारे में जानकारियां लेते थे। इसके अलावा वह जब भी वह ख़ुद सफ़र करते थे, उन जगहों, लोगों और परिदृश्य की तस्वीरें लिया करते थे।
सन 1866 में फ़्रांस के लेखक और यात्री लुइस रोसलेट जयपुर आकर राम सिंह से मिले थे। लुइस को डार्करुम फ़ोटोग्राफ़ी का माहिर माना जाता था। उन्होंने लिखा है,“बातचीत (राम सिंह से) फिर फ़ोटोग्राफ़ी पर शुरु हो गई (वह न सिर्फ़ इस कला केप्रशंसक थे बल्कि ख़ुद भी एक अच्छे फ़ोटोग्राफ़र थे), और फिर इसके बाद फ़्रांस पर बात होने लगी जो काफी लंबी चली।” महाराजा सवाई मानसिंह-द्वतीय संग्रहालय की सलाहकार और इस विषय पर शोध करने वाली मृणालिनी वेंकटेश्वरन ने अपने एक लेख में लिखा है कि राम सिंह फ़ोटोग्राफ़ी, प्रिंटिंग और कैमिकल की जांच पड़ताल में कई दिनों तक काम करते थे यानी वह एक एक फ़ोटो के लिए पूरी महनत करते थे। इसके अलावा वह नये कैमरे की तलाश में दुकानों में भी जाते थे। उन्हें ख़राब हो गए कैमिकल की भी पहचान थी जिसे वह ठीक कर देते थे।
सन 1880 में उनके निधन के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने उनके फ़ोटो स्टूडियों पर थोड़ा काम काम होता था, लेकिन तब तक फ़ोटोग्राफ़ी, एक विधा के रुप में स्थापित हो चुकी थी। बहरहाल, जयपुर दरबार ने फ़ोटोग्राफ़ी जारी रखी। उनके कुछ समकालीन शासक भी फ़ोटोग्राफ़ी के कायल थे लेकिन कोई भी इसमें वो महारत हासिल नहीं कर पाया जो उनकी थी। आज जयपुर शहर किसी भी फ़ोटोग्राफ़र के लिये आनंदित करने वाली जगह है लेकिन ये शहर भारत के पहले और बेहतरीन “फ़ोटोग्राफ़र किंग” की एक शानदार विरासत भी है।
* फोटो सौजन्य: Jaipurthrumylens and Maharaja Sawai Man Singh II Museum Trust, Jaipur
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