अंग्रेज़ सरकार की सन 1947 में भारत-पाकिस्तान के दरमियान बँटवारे वाली खींची गई रेखा ने दोनों मुल्कों की आपसी दूरी इतनी बढ़ा दी कि महज़ पौने दो मील का फ़ासला तय करने में पूरी पौनी- सदी गुज़र गयी। हम बात कर रहे हैं सिख धर्म की आस्था के केंद्र तथा हिंदू, मुस्लिम और सिखों की सांझ के प्रतीक पाकिस्तान के ज़िला नारोवाल में स्थित गुरूद्वारा श्री दरबार साहिब करतारपुर की।
विश्वभर में गुरूद्वारा श्री करतारपुर साहिब नाम से प्रख्यात यह वह मुक़द्दस स्थान है, जहां बाबा गुरू नानक ने ज़ात-पात और ऊँच नीच के अंधेरे में डूबे संसार को रौशनी की राह दिखाई और सतिनाम की प्रचार फेरी करते हुए 70 वर्ष और 4 माह की उम्र पूरी कर 22 सितम्बर 1539, 23 अस्सू वदी 10, 1596 को अकाल पुरख की ओर प्रस्थान कर गए।
विद्वानों का कहना है कि गुरू साहिब के ज्योति जोत समाने के पश्चात उनके सिख और मुसलमान अनुयाईयों के बीच मतभेद पैदा हो गए। सिख कहते थे कि ये हमारे संत हैं, हम इनका दाह संस्कार करेंगे। जबकि मुस्लिम कहने लगे कि ये हमारे पीर हैं और हम इन्हें दफ़न करेंगे। कुछ समझदार लोगों के कहने पर जब गुरू साहिब की पवित्र देह से चादर उठाई गई तो वहां फूलों के अलावा कुछ और नहीं था। मतभेद निपटाने के लिए चादर को बराबरी से फाड़ा गया। सिखों ने आधी चादर का पूरे अदब के साथ संस्कार कर दिया और वहां पर ‘संत नानक देव जी की समाधि’ बना दी। मुसलमानों ने आधी चादर दफ़ना कर ‘नानक पीर की मज़ार’ बना ली। ये दोनों स्थान आज भी गुरूद्वारा साहिब में मौजूद हैं।
कुछ विद्वानों का कहना है कि जब श्री गुरू नानक साहिब निरंकार में विलीन हो गए तो मुसलमानों ने गुरू साहिब की अंतिम यादगार के तौर पर एक मस्जिद और कुँआ बनवाया । कलानौर के अहलकार दूनी चंद करोड़ी का गुरू साहिब के प्रति अंहकार टूटने पर , उसने 100 एकड़ भूमि उन्हें भेंट की थी। पंथ रतन ज्ञानी ज्ञान सिंह के अनुसार 13 माघ सम्वत् 1572 को गुरू नानक साहिब ने बाक़ायदा धार्मिक रीति के साथ करतारपुर की नींव रखी थी। गुरूद्वारा साहिब के पास ही दूनी चंद ने एक धर्मशाला भी बनवाई, जो अब लुप्त हो चुकी है। बाद में गुरू जी का परिवार यहीं आकर बस गया। इस स्थान पर गुरू जी ने अपनी गृहस्थी संभाली, स्वयं खेती की और ‘किरत करो, वंड छको’ का उपदेश दिया। उन्होंने अपने परिवार सहित क़रीब 18 वर्ष तक यहीं निवास किया और यहीं पर भाई लहिणा जी को सिखों का दूसरा गुरू थाप कर गुरू अंगद देव बनाया। भाई लहिणा जी ने छः वर्ष तक करतारपुर में रह कर गुरू जी की सेवा की।
राजा चूनी लाल हैदराबादी ने भी उक्त स्थान की सेवा करवाई। उसके बाद सन 1827 में महाराजा रणजीत सिंह ने पालकी तथा गुंबद पर सोना चढ़वाया। गुरूद्वारा करतारपुर साहिब की मौजूदा इमारत लाला शाम दास ने सन 1911 में बनवाई थी। भाई काहण सिंह नाभा ‘महान कोष’ में नगर के निर्माण के संबंध में इस प्रकार लिखते हैं-“इस नगर को बसाने में भाई दोधा और भाई दूनी चंद (करोड़ी मल) की कोशिशें शामिल हैं, जिन्होंने गुरू साहिब के लिए गांव बसाकर धर्मशाला बनवाई। बाद में करतारपुर चारों ओर से दरिया रावी में लुप्त हो गया।“
दरिया रावी के किनारे गुरूद्वारा साहिब की मौजूदा इमारत का निर्माण सन 1929 में महाराजा पटियाला भूपिन्द्र सिंह ने करवाया । जिस पर 1लाख 35 हज़ार 600 रूपये खर्च हुये । अभी यह इमारत बन ही रही थी कि देश के बँटवारे के कारण निर्माण कार्य रोक दिया गया । 3 जून 1947 को हुई घोषणा के मुताबिक़ जब ज़िला गुरदासपुर की हदबंदी करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी ने गुरदासपुर का बँटवारा किया तो वह इस कार्य को सही ढंग से करने में पूरी तरह से असमर्थ रहा। पहले तो उसने पूरे का पूरा गुरदासपुर ज़िला ही पाकिस्तान की ओर कर दिया, परंतु जब पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा कुछ अन्य प्रमुख सिख प्रतिनिधियों की कोशिशों से, इस पर दोबारा विचार हुआ तब गुरदासपुर के दो हिस्से किए गए; एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिंदुस्तान में रह गया। इस दोबारा हुई हदबंदी से करतारपुर सरहद के पार पाकिस्तान की तरफ़ चला गया।
गुरूद्वारा श्री करतारपुर साहिब जो कि देश के बँटवारे से पहले गाँव दोधा, ज़िला गुरदासपुर, तहसील शक्करगढ़ में आता था, अब लाहौर-नारोवाल रेलवे लाईन पर, रावी दरिया से महज़ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। करोड़ों की तादाद में गुरू नानक नाम लेवा प्राणी, सन 1947 के बाद से प्रतिदिन की अरदास में शामिल पंथ से बिछड़े, गुरूद्वारों और गुरधामों के खुले दर्शन, सेवा, दान और बख़्शिश करने की अनुमति की फ़रियाद करते आ रहे हैं।
उनमें गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान ननकाना साहिब तथा गुरूद्वारा करतारपुर साहिब का विशेष स्थान है। सिख संगत दोनों ओर की सरकारों से श्री करतारपुर साहिब के दर्शनों के लिए बिना वीज़ा के डेरा बाबा नानक से एक सांझा रास्ता (काॅरीडोर) बनाने की बड़ी शिद्दत से अपील करती आ रही थी और अब पूरे 72 वर्ष के इंतज़ार के बाद ,9 नवम्बर को दोनों सरकारें, सरहद पार गुरूद्वारा श्री करतारपुर साहिब के खुले दर्शन के लिए गलियारा खोला जा रहा है।
इस काॅरीडोर को शुरू करने का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 1999 में उस वक़्त उठा था, जब भारत-पाक के बीच बस की शुरूआत की गई थी। उस वक़्त विशेष निमंत्रण पर पाक पहुँचे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाक सरकार के समक्ष करतारपुर काॅरीडोर खोलने की बात रखी थी। उसके अगले ही वर्ष गुरू नानक गुरूपर्व पर पाक की ओर से काॅरीडोर खोलने का ऐलान कर दिया गया था। वर्ष 2001 में गुरूद्वारा सुधार मुहिम के दौरान जेतो के मोर्चे में शहीद होने वाले बाबा सतनाम सिंह के पौत्र जत्थेदार कुलदीप सिंह वडाला ने ‘करतारपुर साहिब रावी दर्शन अभिलाशी जत्था’ क़ायम करके इस मुद्दे को बहुत बड़े स्तर पर उठाया, जिस को देश-विदेश की संगतों ने आगे बढ़ाया । इसके बाद इस कार्य को अंजाम तक पहुँचाने के लिए क़रीब आधा दर्जन संस्थाएं सामने आईं, जिन्होंने इस कार्य को सफल बनाने के लिए बड़ी जद्दोजहद की। वर्ष 2008 में जब भारत के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी विशेष तौर पर डेरा बाबा नानक पहुँचे तो उन्होंने वहां विश्वास दिलाया कि ‘करतापुर साहिब-डेरा बाबा नानक सांझा गलियारा’ बनाने के लिए भारत सरकार कोशिश करती रहेगी। और जल्दी इसके लिए पाक सरकार से बात की जाएगी।
जहां एक तरफ़ जत्थेदार बडाला ने उक्त गलियारे के खोले जाने के लिए डेरा बाबा नानक से, हर अमावस्या को अरदासों का सिलसिला शुरू किया, वहीं युनाईटेड सिख मिशन तथा तेरी सिखी संस्था आदि संगठनों ने भी इस कार्य को मुक़ाम तक पहुँचाने के लिए कारवाईयां शुरू कीं। दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा खालसा एक्शन कमेटी भी इस गलियारे के लिए लगातार आवाज़ें बुलंद करती रहीं।
भले ही इसके बाद गलियारा खोलने के लिए अरदासों और अपीलों का सिलसिला जारी रहा, परंतु एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मामला कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पाक यात्रा के दौरान तब उठा जब वे इमरान खान के निमंत्रण पर उनके प्रधानमंत्री पद शपथ- समारोह में पहुँचे थे।
इसके बाद जब पाकिस्तान ने 28 नवम्बर को करतारपुर काॅरीडोर खोलने के लिए नींव पत्थर रखने का ऐलान किया, तो स्थिति को भाँपते हुए इस काॅरीडोर को लेकर एक लंबी चुप्पी के बाद गुरू नानक देव जी के 549वें गुरूपर्व से एक दिन पहले अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी काॅरीडोर खोलने की घोषणा कर दी। 26 नवम्बर को ज़िला गुरूदासपुर के डेरा बाबा नानक के पास गांव मान में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गलियारे का शिलान्यास किया।
भारत में काॅरीडोर के लिए नींव रखे जाने के दो दिन बाद ही पहले से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, 28 नवम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भी नारोवाल में करतारपुर काॅरीडोर का उद्घाटन कर दिया।
करतारपुर काॅरीडोर, सड़क और पुलों से बनने वाला ऐसा रास्ता है, जो एक ओर धार्मिक यात्रा का शुभारंभ करेगा, वहीं ये दोनों देशों के कड़वे रिश्तों को अच्छे संबंधों में बदलने के लिए एक मज़बूत पुल भी साबित हो सकता है। इस काॅरीडोर की शुरूआत को, गुरू नानक का नाम लेनेवाले करोड़ों इंसानों की, वर्षों की अरदासों का परिणाम माना जा रहा है। पहले पातशाही बाबा गुरू नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही है, जब भारतीय सिख संगत को बिना वीज़ा, मात्र यात्रा परमिट के सरहद पार, ज़िला नारोवाल की तहसील शक्करगढ़ में सुशोभित गुरूद्वारा श्री दरबार साहिब करतारपुर के दर्शन संभव हो सकेंगे। भले ही इस एक तरफ़ा बनने वाले काॅरीडोर से पाकिस्तानी सिख भारत नहीं आ सकेंगे, परंतु फिर भी वे यह गलियारा खुलने को लेकर बेहद उत्साहित हैं।
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