पूरे भारत में इडली घर घर में बनाई जाती है, सड़कों पर बेची जाती है और उडुपी तथा महंगे रेस्तरां में लोग इसे बड़े शौक़ से खाते हैं। इडली उन कुछ व्यंजनों में से है जो कालातीत है और पूरे भारत में लोकप्रिय है। लेकिन आश्यर्च की बात ये है कि इडली व्यंजन की उत्पत्ति भारत में नहीं हुई थी।
खाद्य इतिहासकार ए.के. अच्चया के अनुसार इडली मौजूदा समय के देश इंडोनेशिया से क़रीब 800-1200 में भारत में आई होगी। उस समय इंडोनेशिया के एक हिस्से पर शैलेंद्र, इसयाना और संजय राजवंशों के हिंदु शासक राज करते थे। इडली इंडोनेशिया में बनाए जाने वाले केडली से काफ़ी मिलती जुलती है और हो सकता है कि शाही परिवारों के भारतीय ख़ानसामा इस व्यंजन की विधि वहां से अपने साथ भारत लाए हों।
अच्चया का कहना है कि सन 920 में शिवकोटी आचार्य के कन्नड भाषा में लिखे साहित्य में वड्डाराधने में इडली का इड्डलागे नाम से उल्लेख है। इसी तरह सन 1130 में राजा सोमेश्वरा-तृतीय के लिखे संस्कृत मनसोल्लास जैसे अन्य साहित्यिक रचनाओं में भी इड्डरिका के नाम के व्यंजन का उल्लेख मिलता है। लेकिन उनमें आधुनिक समय में इडली बनाने की विधि की तीन चीज़ों का ज़िक्र नहीं है। आज इडली चावल के आटे और उड़द की दाल से बनाई जाती है। चावल के आटे और उड़द की दाल को मिलाकर काफी देर तक रखकर छोड़ दिया जाता है ताकि इसमें ख़मीर पैदा हो जाए। इसके बाद इसे मुलायम बनाने के लिये किसी बंद बर्तन में रखकर भाप दी जाती है।
इडली की इस उत्पत्ति से खाद्य इतिहासकार लिज़ी कॉलिंघम सहमत नहीं हैं। उनका दावा है कि इसकी उत्पत्ति इंडोनेशिया में नहीं बल्कि कहीं और हुई थी। क़ाहिरा स्थित अल-अज़हर लाइब्रेरी में उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर कॉलिंघम दावा करती हैं कि अरब व्यापारी इडली अपने साथ लाए थे। वे शादी करके दक्षिणी पट्टी में बस गए थे और इस तरह वहां इडली आई।
कॉलिंघम और टीवी शेफ़ द्वारा संपादित खानपान के इतिहास के विश्व कोष (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) और हैज़र चार्ल्स बी. द्वारा इस विषय पर लिखी गई किताब सीड टू सिवलीज़ेशन (हारवर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) के अनुसार कहा जाता है कि दक्षिण पट्टी में आकर बसे अरब लोग अपने खानपान पर ख़ास ध्यान देते थे। वे पारंपरिक इस्लामिक क़ानून के तहत सिर्फ़ हलाल भोजन ही खाते थे। भोजन हलाल है या नहीं, इस भ्रम को दूर करने के लिये उन्होंने चावल के लड्डू बनाने शुरु किये जिसे वे नारियल के रसे(शोरबे) के साथ खाते थे। चावल के ये लड्डू पूरी तरह गोल न होकर कुछ चपटे होते थे। कहा जाता है कि चावल के इन लड्डुओं का स्वाद आज की इडली से अलग होता था।
चावल के आटे और उड़द की दाल को मिलाकार उसे ख़मीरी बनाने की विधि बाद में आई क्योंकि उस समय इस विधि का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
बहरहाल, इडली की उत्पत्ति को लेकर कितना भी भ्रम हो लेकिन आज ये व्यंजन पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय है और इसे तरह तरह से बनाया जाता है। आज तश्तरी के आकार की थट्टे इडली से लेकर छोटी इडली, गोवा की सन्नास, मैंगलोर की खोटिग्गे और मुड्डे इडली बनाई जाती है। इन्हें पत्तों में लपेटकर भाप पर पकाया जाता है। आज पूरे उप-महाद्वीप में लोग इसका लुत्फ़ उठाते हैं।
क्या आप जानते हैं ?
डिफ़ेस फ़ूड रिसर्च लैबोरेट्री ने भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन को देखते हुए अंतरिक्ष यात्रियों के लिये “स्पेस इडली”, चटनी पावडर और सांबर तैयार किया है।
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