बैंगन: धन और सेहत का रखवाला

साढ़े चार हज़ार साल पहले हरियाणा के गांव फ़रमाना में एक परिवार बैंगन खाने बैठा जो सरसों के तेल में बना हुआ था और उसमें लहसुन, अदरक और हल्दी डली हुई थी। परिवार के सदस्यों ने बैंगन की सब्ज़ी का लुत्फ़ जौ और बाजरा के बने पराठों से उठाया। ये भारत में खाने की सबसे पुरानी विधि मानी जाती है। ये निष्कर्ष पुरावनस्पतीशास्त्री और पुरातत्विद अरुणिमा कश्यप ओर स्टीव वेबर ने खाने के टूटे बर्तनों के गहन अध्ययन के बाद निकाला है। ये बर्तन हरियाणा की घाघर घाटी में फ़रमाना गांव में खुदाई में मिले थे। ये खुदाई प्रो. वसंत शिंदे के नेतृत्व में हुई थी। फ़रमाना में खुदाई की वजह से ही हमें पता चला कि बैंगन भोजन का सबसे पुराना पौधा है।

बैंगन भारत के हर हिस्से में पाया जाता है। भारत के हर हिस्से में बैंगन की अपनी ख़ास क़िस्म होती है और इसे बनाने की विधि भी अलग-अलग है। हैदराबाद में बघारे बैंगन बनते हैं तो उत्तर भारत में बैंगन का भर्ता. इसी तरह कश्मीर में शोख़ वांगुन, महाराष्ट्र में भारलेली वांगी, गुजरात में रिंगना बाटाका नू शाक, राजस्थान में बरवां बैंगन, तमिलनाडु में कातीरि काई वारुवल या कातीरि काई कोझुंबु, केरल में कातीरिका थीयाल और पूर्वी भारत में बेगुन भाजा जैसी बैंगन की विधि प्रसिद्ध है।

अमेरिका में बैंगन के पौधे को एगप्लांट कहते हैं जबकि यूरोपीय देशों में इसे ओबेजींस कहते हैं। अंग्रेज़ी में इसे ब्रिंजल कहते हैं। ये सभी एक ही जाति के हैं और ये आलू, टमाटर तथा शिमला मिर्च के रिश्तेदार हैं। बैंगन की पैदावार दुनियां के हर हिस्से में होती है जो साल भर बाज़ार में मिलता है। वैसे अगस्त और दिसंबर में पैदा हुआ बैंगन सबसे अच्छा माना जाता है। पारंपरिक रुप से इन महीनों में बैंगन उगाया जाता है। माना जाता है कि बैंगन सबसे पहले भारत में ही उगाया गया था।इसका प्रमाण फ़रमाना की खुदाई में मिलता है।

ये पहले विश्व के पूर्वी हिस्सों में होता था और दूसरी सदी के बाद चीन में इसकी खेती होती थी। पश्चिमी देशों में बैंगन ज़रा देर से पहुंचा। बैंगन का आरंभिक उल्लेख आयर्वेद के जाने माने लेखक शुश्रुता और चारवाक के लेखन में मिलता है। चीन में पहली सदी इसा पुरवी में वांग बाओ ने बैंगन का बहुत विस्तार से विवेचना की है। उन्होंने बैंगन को कांटे वाला एक हरे रंग का फल बताया था। प्राचीन यूनानी शहर लासो में मिली पत्थरों की क़ब्रों पर अंकित चित्रण में पहली बार पश्चिमी विश्व में बैंगन का उल्लेख देखने को मिलता है। भोजन के कई इतिहासकारों को लगता है कि शायद एलेक्ज़ेंडर की फ़ौज बैंगन को वापस यूरोप में लाई थी।

बैंगन दरअसल बहुत ही दिलचस्प पौधा है। पहले ये छोटा, गोल, पीला और हरे रंग का होता था। इस पर गुलाबी और सफ़ेद रंग की धारियां होती थीं और इसके फूलों की पंखुड़ियों में कांटे होते थे। इसका स्वाद भी कड़वा होता था। जब इसका इस्तेमाल खाने में होने लगा तो लोगों ने इसकी बेहतर नस्ल करनी शुरु कर दी जो कम कड़वी होती थी और उसका रंग भी अलग, ख़ासकर जामुनी था जो हम आज देखते हैं। आज बैंगन हर तरह के रंगों और आकार में आते हैं। गोल, लंबे पतले और छोटे जैसे बैंगन के कुछ आकार हैं जो हम बाज़ारों में देख सकते हैं। रंग भी सफ़ेद से लेकर गहरा जामुनी होता है और इस पर हरे, गुलाबी और सफ़ेद रंग की धारियां होती हैं। कुछ बैंगनों पर गहरे हरे रंग की धारियां भी होती हैं लेकिन ये कम दिखाई पड़ते हैं।

भारत में बैंगन बहुत ही सामान्य सब्ज़ी है जिसे लोग खाते हैं। हालंकि इसी वजह से सवर्ण वर्ग इसे कम ही खाता है। जैनी भी इसे नहीं खाते क्योंकि इसमें कभी-कभी कीड़े निकलते हैं। जैन धर्म हत्या के ख़िलाफ़ है भले ही वो जीव जंतु क्यों न हों। इसके बावजूद भारत में जैन को छोड़कर ऐसा कोई समुदाय नहीं है जो बैंगन न खाता हो और जिसे बैंगन बनाने की विधियां न मालूम हों।

बैंगन की ख़ास विधि के लिए ख़ास तरह के बैंगन उगाये जाते हैं। जामुनी और काले रंग के बड़े बैंगन ख़ासकर भर्ते के लिए उगाए जाते हैं। बंगाली मालडा बैंगन का इस्तेमाल भर्ता या बेगुन पोड़ा बनाने के लिये करते हैं जो बड़ा और हल्के पीले रंग का होता है। महाराष्ट्र में बैंगन की कई क़िस्में होती हैं। रायगढ़ के लोगों को जामुनी रंग का लंबा बैगन बहुत पसंद है जिसे वे दोवली ची वांगी कहते हैं। इस पर गहरे हरे रंग की धारियां होती हैं। मिराज शहर का बड़ा सफ़ेद बैंगन स्वास्थ के लिये अच्छामाना जाता है और स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल गर्भधारण के लिये भी करते हैं। मैंगलोर में बैंगन की उडुपी क़िस्म बहुत ही दिलचस्प है। इसे स्थानीय भाषा में मट्टू गुल्ला कहते हैं। ये एकदम गोल होता है और इसका रंग हल्का हरा होता है। इसके ऊपर गहरे हरे रंग की धारियां होती हैं। इसकी पैदावार उडुपी के पास मट्टू गांव में होती है जिसे जीआई (GI) टैग मिला हुआ है। तो इस पूरे उप महाद्वीप में बैंगन अलग अलग तरीक़े से बनाकर चाव से खाया जाता है। कुछ इसे तलते हैं, कुछ इसे भाप में पकाते हैं जबकि कुछ लोग इसकी रसेदार सब्ज़ी बनाते हैं।

बैंगन ईरान, इराक़, पश्चिम एशिया और भूमध्यसागरीय देशों में बहुत लोकप्रिय है। इसे भूमध्यसागरीय ख़ुराक़ का अहम हिस्सा माना जाता है। पूरे पश्चिम एशिया में भर्ता बनाया जाता है जिसे बाबा घानौश कहते हैं और यहां के लोग ये दावा करते रहते हैं कि उन्होंने बैंगन की खोज की है। बैंगन फ़्रांस, स्पेन, मिस्र और मोरक़्क़ो में भी ख़ूब पसंद किया जाता है। चीन में भी इसे पसंद किया जाता है और वहां इसे बनाने की कई विधियां हैं। बैंगन को घर घर तक पहुंचाने में चीन की भी बड़ी भूमिका रही है। विश्व में बैंगन के उत्पादन का 62% उत्पादन चीन में होता है जबकि भारत में इसका उत्पादन 25% है।

बैंगन में कई महत्वपूर्ण विटामिन और कैमिकल होते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है एंथोस्यानिन जिसे नैसुनिन कहते हैं। ये ऑक्सीकरण रोधी होता है जो सेल की झिल्लियों को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। इस तरह बैंगन दिमाग़ के लिये बहुत अच्छा माना जाता है। बैंगन में विटामिन के(K) और सी(C) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अध्ययन से पता चला है कि रोज़ बैंगन खाने से दिल की बीमारियां कम होती हैं और ये डायबिटीज़ को भी नियंत्रित करने में भी मदद करता है।

बैंगन की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि ये हर जगह अलग अलग मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है। इसकी गिनती सस्ती सब्ज़ियों में होती है। इस तरह बैंगन धन और सेहत दोनों का रखवाला है।

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