मशहूर हिल स्टेशन नैनीताल से 25 किलो मीटर के फ़ासले पर एक और ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल है भीमताल। कुमायूं की पहाड़ियों पर आबाद भीमताल छोटी जगह है और कम जानी जाती है।भीमताल का नाम महाभारत के मशहूर चरित्र भीम के नाम पर ही पड़ा है। ताल के किनारे पर 17वीं सदी का एक शिव मंदिर है जिसकी एक दिलचस्प कहानी भी है।
कुमाऊं की पहाड़ियों पर मौजूद भीमताल, उत्तराखंड की पूर्वी दिशा में है। इसके उत्तर में तिब्बत, दक्षिण में उत्तरप्रदेश का तराई मैदानी इलाक़ा है और पश्चिम में गढ़वाल है। तीन शताब्दियों यानी सन 800 से 1100 तक यहां कत्यूरी वंश का राज रहा था। कुमाऊं का आधुनिक नाम कुरमांचल से ही आया है। कुरमांचल यानी कुरमा की भूमि । 11वीं शताब्दी से यहां चंद राजवंश की हुकूमत रही।ऐसा माना जाता है कि उनके सम्बंध कन्नौज के राजपूत जनजातियों से रहे थे ।
इतिहास बताता है कि भीमताल का नाम 14वीं शताब्दी में तब सामने आया , जब राजा त्रिलोकी चंद ने अपनी पहाड़ी सीमाओं की सुरक्षा के लिये भीमताल में क़िला बनाया था।
चंद राजाओं की श्रृंखला में ग्यानचंद( सन 1374 से 1419 ) को दिल्ली सल्तनत का संरक्षण मिला था। तब उसने अपना क्षेत्राधिकार तराई के मैदानी इलाक़ों तक बढ़ा लिया था। चंद राजवंश के दौर में कुमाऊं रियासत की राजधानी हमेशा चम्पावत ही रही। चम्पावत भीमताल से 137 किलो मीटर दूर पूर्वी की तरफ़ है। राजा कल्याणचंद ( सन 1563 ) ने चम्पावत के बजाय अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाया। अल्मोड़ा, भीमताल से 62 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में है। राजा बाज़बहादुर चंद, मुग़ल शहंशा शाहजहां का क़रीबी बन गया था और उसने गढ़वाल रियासत पर चढ़ाई के वक़्त मुग़ल सेना का साथ दिया था। इसी उपलक्ष में उसे मुग़ल शहंशाह की तरफ़ से बहादुर का ख़िताब मिला था। बाज़बहादुर चंद ने ही प्रति व्यक्ति टैक्स की परम्परा शुरू की थी जिसका एक हिस्सा सम्मान-राशि के रूप में मुग़ल बादशाह को दिया जाता था।
हाफ़िज़ रहमत खां के नेतृत्व में रोहिल्लाओं ने ( सन 1743) में, रुद्रपुर के युध्द में कल्याण चंद की सेना को हराया था। और लगभग तीन सौ साल तक चंद राजवंश की राजधानी रहे अलमोड़ा का घेराव कर लिया था। कल्याण चंद के उत्तराधिकारी दीपचंद ने रोहिल्लाओं से दोस्ती करली । रोहिल्लाओं ने तराई का मैदानी इलाक़ा अपने क़ब्ज़े में कर लिया और पहाड़ी इलाक़े के शहर दीपचंद को दे दिये।पानीपत की तीसरी जंग में भी दीपचंद ने मराठों के ख़िलाफ़ हाफ़िज़ रहमत ख़ां का साथ दिया था। लेकिन दीपचंद की मौत के बाद, आपसी लड़ाईयों, ख़ासकर दो ताक़तवर व्यकतियों, हरिराम जोशी और शिबदेव सिंह के बीच सत्ता संघर्ष की वजह से रियासत का नेतृत्व कमज़ोर पड़ गया था। वह दोनों ही अल्मोड़ा में अपनी स्थिती को मज़बूत बनाने के लिये रोहिल्लाओं की मदद ले रहा थे। सन 1777 में सेना अधिकारी मोहन सिंह ने राजा दीपचंद और उनके पुत्रों की हत्या कर अल्मोड़ा की गद्दी पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसने अपना नाम भी राजा मोहन चंद रख लिया था।
रोहिल्लाओं की सत्ता समाप्त होने के बाद , कुमाऊं का न्तृत्व अवध की श्रण में चला गया। क्योंकि रोहिलखंड में अब उनकी ही सत्ता थी। आपसी कलह और कुमाऊं की कमज़ोर होती सत्ता को देख नेपाल के महाराजा रण बहादुर ने सन 1790 में अल्मोड़ा पर हमला कर दिया। नैनीताल का पूरा ज़िला अब कुमाऊं गोरखा प्रांत का हिस्सा बन गया था। लेकिन 26 आप्रैल सन 1815 को अल्मोड़ा ने ब्रिटिश फौज के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया। लेफ़िटिनेंट कर्नल गार्डनर ने लगातार तीन महीने के संघर्ष के बाद इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
सन 1841 में एक ब्रिटिश व्यापारी ने एक पहाड़ी अभियान के दौरान इत्तेफ़ाक़ से नैनीताल की खोज की । अंग्रेज़ उस झील की सुंदरता से इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने नैनीताल को कुमाऊं प्रांत का मुख्यालय बना लिया।
भीमताल झील:
नैशनल इंफ़ार्मेशन सेंटर की वैबसाइट के मुताबिक़ “ सी “ आकार की भीमताल झील कुमाऊं इलाक़े की सबसे बड़ी झील है। इस समय इस झील का पानी 116 ऐकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।जबकि जलग्रहण क्षेत्र दस स्क्वायर मील में फैला है। यह झील समंदर की सतह से 4,500 फुट की ऊंचाई पर है। हालांकि नैनीताल डिस्ट्रिक्ट ग़ज़ट में एच.आर.नैविल( सन 1904) ने इसका कुल क्षेत्र 155 ऐकड़ बताया है। उनके अनुसार इसकी लम्बाई 5,580 फ़ुट और सबसे ज़्यादा फैलाव की जगह पर चौड़ाई 1,490 फ़ुट है। मंदिर के पश्चिम में, झील के बीच में,6-7 मीटर व्यास का छोटा सा द्वीप है जो किनारे से सौ गज़ की दूरी पर है। कुछ दिनों पहले पर्यटन विभाग ने द्वीप पर मछलियों का एक ऐक्वैरियम भी बनवाया है। सन 1895 में झील के ऊपरी किनारे पर एक बांध भी बनवाया गया था। इस बांध ने कुल 500 फ़ुट जगह घेरी है। इसकी ऊंचाई 48.5 फ़ुट है और इसका आधार 36 फ़ुट है। जलाश्य को दिवारों से मज़बूती दी गई है और पानी के बहाव को नियंत्रित करने के लिये लोहे की चादरों का उपयोग किया गया है।
बांध बनाने का असली मक़सद मछलियों को शिकारियों से बचाना था । पिछले सौ साल में बांध का क्षेत्र 30 ऐकड़ घट गया है । बारिश के मौसम में बहकर आनेवाला गाद या तिलछट, झील के लिये एक बड़ी समस्या है। हाल के दिनों में झील के किनारों पर हुये निर्माण से भी गाद की समस्या और बढ़ गई है। इसके अलावा पानी के बहाव के साथ आनेवाले कचरे से झील में घांस-फूस और जलकुम्भियां उग आती हैं , साथ ही गंदगी मिल जाने से पानी में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और झील के साफ़ पानी के लिये ख़तरे पैदा हो जाते हैं। भारत के झील ज़िले की चार झीलों के साथ भीमताल को भी, भारत सरकार के, पर्यावरण मंत्रालय के अंतरगत, राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना में शामिल कर लिया गया है।
भीमेश्वर मंदिर :
झील की दक्षिणी-पूर्वी दिशा में, बांध के किनारे पर एक बहुत पुराना शिव मंदिर है। मंदिर का मौजूदा ढ़ांचा राजा बाज़बहादुर चंद ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था। 19वीं शताब्दी की ब्रटिश यात्री,कलाकार और पैंटर मरियाना नार्थ, सन 1878 में नैनाताल होकर गुज़री थीं। उन्होंने मंदिर और झील का एक तेल-चित्र बनाया था। उन्होंने, मैक्मिलन एंड कम्पनी से, सन 1892 में प्रकाशित अपने संस्मरणों, “ रिक्लैक्शन आफ़ हैपी लाइफ़-वाल्यूम वन ” में मंदिर और झील का एक शब्द-चित्र भी खींचा है। वह कहती हैं, “ हरी झील के किनारे पर भूरे रंग के पत्थरों से बना एक छोटा-सा पुराना हिंदू मंदिर और एक द्वीप भी है। मैं झील के किनारे के अंत तक, ख़ूबसूरत चाय के पौधों के पास पहुंची। वहां से निकल कर शाहबलूत के सुंदर पेड़ों के क़रीब पहुंची। जिनके बीच मौजूद घास के मैदान पर कुछ अनौखे पशु घास चर रहे थे।“
सन 1895 में बांध बनने की वजह से वह ख़ूबसूरत स्मार्क छुप सा गया है। शिकारा या पहाड़ी के आकार का मंदिर पत्थरों का बना है। अब वहां छोटे छोटे कई कमरे बना दिये गये हैं। मंदिर का प्रमुख भाग अब नये बनाये गये बड़े हाल के अंदर आ गया है। मंदिर का ऊपर से पतला गुम्बद बाहर से दिखाई देता है। मंदिर की चहारदिवारी में पीपल का पवित्र पेड़ पुरानी विरासत की गवाही दे रहा है। सैम्युल बोल्ड के 150 साल पुराने पुरातत्व महत्व के चित्रों में भी इस पेड़ की तस्वीर है ।
भीमताल झील, चीड़ और शाहबलूत के पेड़ों से ढ़की पहाड़ियों और किनारे पर एक क़दीमी मंदिर के साथ, भारत के झीलों के ज़िले नैनीताल में, पर्यटकों के सैर-सपाटे के लिये एक अतिरिक्त पर्यटन स्थल तो है ही। यह झील पर्यटकों के मनोरंजन के अलाव स्नथानीय लोगों के लिये रोज़गार का एक बहुत बड़ा ज़रिया भी है। पर्यावरण विशेषग्यों के अनुसार झील के संरक्षण के लिये एक लम्बी अवधी की योजना की ज़रूरत है ताकि इसे बिना सोचे समझे किये जा रहे शहरीकरण,मैले और कचरे से होनेवाले ख़तरों से बचाया जा सके।
तो ठीक है। अगली बार जब भी नैनीताल जायें तो भीमताल और उसके पवित्र मंदिर को देखना न भूलें।
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