जस्तरवाल में भी मौजूद है श्रवण कुमार की समाधि

श्रवण कुमार की कहानी तो आमतौर पर सभी को याद है, लेकिन यह शायद ही किसी को पता हो, कि उनकी समाधी कहां है? श्रवण कुमार की समाधि अमृतसर की तहसील अजनाला के गांव जस्तरवाल में है। लेकिन उनकी समाधि से कई सवाल पैदा हो रहे हैं। इन सवालों के जवाब या तो इतिहास के पन्नों से ग़ायब हो चुके हैं, या इन सवालों के जवाब इतिहास  में कभी शामिल ही नहीं किए गए।

अजनाला से उमरपुरा गांव  होते हुए जस्तरवाल पहुँचा जा सकता है। रास्ता भले ही ज्यादा लंबा नहीं है, लेकिन उबड़-खाबड़ होने की वजह से थका देने वाला ज़रूर है। श्रवण कुमार की समाधी जस्तरवाल के बाहर खेतों में बनी हुई  है। सदियों से इस समाधि के बारे में यही प्रचार किया जाता रहा है, कि यह छोटी-सी समाधि अयोध्यापति श्री रामचंद्र के पिता राजा दशरथ के हाथों, अनजाने में मारे गए श्रवण कुमार की  है। गांव के बड़े-बुज़ुर्गों का दावा है, कि पहले इस गांव का नाम दशरथवाल था, जिसे बाद में बदल कर जस्तरवाल कर दिया गया।

गांव जस्तरवाल में मौजूद श्रवण कुमार की समाधि क़रीब 15 डिग्री तक झुकी हुई है। यह समाधि एक बहुत बड़ी ढाब (पोखर) के किनारे स्थापित की गई थी। बाद में उस ढाब को एक विशाल सरोवर में तब्दील कर दिया गया, और आज इस सरोवर पर कई लोगों के अवैध कब्जे क़ायम हो चुके हैं। कई वर्षों से इस सरोवर और समाधि की ज़मीन पर  सिंघाड़े, भें(कमल ककड़ी) और कौल चपनियां उगाने के साथ-साथ खेतीबाड़ी भी की जाती है। समाधि तक पहुँचने के लिए कोई रास्ता या पक्की पगडंडी न होने के कारण बहुत-से सैलानी गांव में पहुँचने के बावजूद इस समाधि तक पहुँच नहीं पाते हैं। गांव के लोग समाधि की दीवारों पर श्रवण कुमार की कहानी लिखी हुई है। गांव वाले इसी को इतिहास मानकर, पक्के तौर पर दावा करते आ रहे हैं, कि इसी समाधि के स्थान पर श्रवण कुमार की हत्या की गई थी। गांव वाले पूरे विश्वास के साथ उस जगह को भी दिखाना नहीं भूलते, जहां पर खड़े होकर राजा दशरथ ने तीर चलाया था। चलिए, पहले आपको यह बताते हैं कि उक्त समाधि की दीवारों पर इतिहास का बयान किस तरह किया गया है।

इस समाधि पर लिखा गया है कि श्रवण कुमार की माता का नाम ज्ञानवती और पिता का नाम सतवन था। उनकी कोई औलाद नहीं थी। उन्होंने नारद मुनि के कहने पर बारह वर्ष तक ब्रह्मा जी की भक्ति की तब उन्हें पुत्र प्राप्ति का आर्शीवाद मिला। उन्होंने नारद मुनि से पूछा कि उन्हें इससे पहले पुत्र प्राप्ति का आर्शीवाद क्यों नहीं मिला था। इस पर नारद जी ने उन्हें बताया, “जब तुम युवा थे, तब तुमने एक गर्भवती चूहिया को तड़पा-तड़पा कर मारा था। तब उस चूहिया ने श्राप दिया था, कि जिस तरह मैं अपनी औलाद का मुँह देखे बग़ैर मर रही हूँ, इसी प्रकार तुम्हारा भी अपनी औलाद का मुँह देखे बगैर अंत होगा।”

जब श्रवण कुमार बड़ा हुआ तो वह अपने माता-पिता की आँखों की रोशनी वापस लाने के लिए अयोध्या गया। वहां लोगों ने उसे बताया, कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें पाने के लिए अपनी आँखों की रोशनी गंवा दी थी। इसीलिए उसने अपने माता-पिता को यात्रा पर ले जाने के लिए तैयार किया और अपनी पत्नी से कहा कि तुम घर पर ही रहो। यात्रा के पहले चरण में उसने माता-पिता को तीन नदियों का स्नान करवाया और फिर ये तीनों बद्रीनाथ पहुँचे और वहां दो दिन रहे। उसके बाद श्रवण कुमार की पत्नी भी वहां पहुंच गई, और उसे देख वे सब हैरान हो गए।

गांव जस्तरवाल में, श्रवण कुमार की समाधि पर लिखी गई यह कथित एतिहासिक जानकारी हैरान से ज़्यादा गुमराह करने वाली लगती है।

वास्तव में श्रवण (सरवन) कुमार की कथा का उल्लेख तो वाल्मीकि रामायण के अयोध्या-कांड में मौजूद है, परन्तु इस में अंधमुनि के पुत्र का नाम तापस कुमार लिखा गया है।

ऐसा माना जाता है, कि तापस कुमार/श्रवण कुमार की माता शुद्र और पिता वैश्य थे। वे दोनों नेत्रहीन थे। श्रवण अत्यंत श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करते थे। एक बार उनके माता-पिता की इच्छा तीर्थ-यात्रा करने की हुई। श्रवण कुमार ने कांवड़ बनाई और उसमें दोनों को बैठाया और कांवड़ कंधे पर उठाकर यात्रा शुरू कर दी। जब वे यात्रा के दौरान अयोध्या के एक जंगल में पहुँचे, तो उसी दौरान राजा दशरथ भी शिकार के लिए वहां आए हुए थे। रात्रि के समय माता-पिता को प्यास लगीतो श्रवण, घड़ा लेकर पानी लेने के लिए सरयू नदी के तट पर पहुँचे। लेकिन जैसे ही उन्होंने अपना बर्तन पानी में डुबोया, उसकी आवाज़ सुनकर, राजा दशरथ को लगा कि वहां कोई हिरणया हाथी पानी पी रहा है। उन्होंने बाण से तीर छोड़ दिया, जो सीधा श्रवण कुमार की छाती में लगा और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया।

जब राजा दशरथ ने इस घटना की जानकारी श्रवण के माता-पिता को दी, तो उन्होंने राजा दशरथ की सहायता से पुत्र का अंतिम संस्कार करवाया और उसी चिता में स्वयं भी अग्नि समाधि ले ली। लेकिन उससे पहले शोकाकुल नेत्रहीन मुनि ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि उसे भी, उनकी ही तरह पुत्र वियोग में प्राण त्यागने पड़ेंगे।

माना जाता है, कि वास्तव में जिस स्थान पर श्रवण कुमार ने प्राण त्यागे थे, वह मौजूदा समय में, उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले का सरवन गांव है । जहां श्रवण कुमार के माता-पिता ने प्राण त्यागे थे, वहां आज समाधां गांव आबाद है। वह स्थान जहां से राजा दशरथ ने तीर चलाया था वह मौजूदा समय में सरवारा गांव में बताया जाता है। उन्नाव शहर , कानपुर से 18 कि.मी. और लखनऊ से 60 कि.मी. दूर है।

सन 1850 के आस-पास प्रकाशित हुए ब्रिटिश गज़ेटीयर स्टेट्स में भी उन्नाव के सरवन गांव में श्रवण की समाधि और पत्थर की प्रतिमा होने की जानकारी दर्ज है। यह सच है, कि आज भी हर सोमवार को, आस-पास के गांव वाले इस स्थान पर दर्शनों के लिए पहुँचते हैं, लेकिन रख-रखाव के अभाव की वजह से, इसका अस्तित्व क़रीब-क़रीब ख़त्म हो  चुका है। सन 1616 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने श्रवण कुमार की तस्वीर वाले आधे आने (दो पैसे) के सिक्के भी जारी किए थे। इस सबके बावजूद, यह भी संभव है, कि अजनाला के गांव जस्तरवाल में जिसे श्रवण कुमार की समाधि बताया जा रहा है, वह वाक़ई में श्रवण कुमार की समाधि ही हो। क्योंकि इतिहास में पूर्ण भक्त, राजा भर्तहरि, सिख सेनापति हरी सिंह नलवा सहित कई हस्तियों की एक से ज़्यादा समाधियां होने की जानकारी दर्ज है।

संभव है कि बहुत पहले श्रवण कुमार के किसी उपासक या किसी महंत ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव से, श्रवण कुमार की समाधि की मिट्टी, दरिया रावी के क़रीब तहसील अजनाला के गांव जस्तरवाल लाकर श्रवण कुमार की एक अन्य समाधि क़ायम कर दी हो। इस में कोई शक नहीं है, कि उन्नाव तथा जस्तरवाल में मौजूद दोनों समाधियां श्रवण कुमार से संबंधित हैं और दोनों की हालत दयनीय है। पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारों का यह दायित्व है, कि उन दोनों स्मारकों के बारे में शोध करवाएं, ताकि इन स्मारकों को जल्द-से-जल्द दोबारा बनवाया जा सके।

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