शिवरानी देवी: बाल विधवा से लेकर मशहूर लेखिका तक का संघर्ष

गोदान, और सदन जैसे उपन्यास और ईदगाह, और पूस की रात जैसी बेहतरीन कहानियां लिखने वाले प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महान लेखक माने जाते हैं। उनकी कहानियां आज के सामाजिक परिवेश में भी उतनी ही मायने रखती हैं, जितनी अपने रचना के समय में रखती थीं। मगर प्रेमचंद की कामयाबी के पीछे एक हस्ती और थी जिसका नाम छिपा ही रहा,दुनिया के सामने उस तरह नहीं आ पाया जिस तरह आना चाहिए था। वह हस्ती ना सिर्फ उनकी कुछ कहानियों की प्रेरणास्त्रोत थीं, बल्कि वो भारत की पहली महिला लेखकों में से एक भी थीं! हम बात कर रहे हैं, प्रेमचंद की दूसरी पत्नी शिवरानी देवी के बारे में, जिन्होंने कई मशहूर कहानियों की रचना की, जो आज लोकप्रिय भी हैंI दुर्भाग्यवश, हिंदी साहित्य के इतिहास में आज भी उनकी दास्तॉ गुमनामी के अंधेरों में खोई हुई है।

शिवरानी के आरम्भिक वर्षों के बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं हैं। अपनी जीवनी ‘प्रेमचंद घर में’ (1944) में उन्होंने प्रेमचंद की जन्म तिथि का ज़िक्र तो किया है, मगर अपनी जन्म तिथि का ज़िक्र नहीं किया है I उपलब्ध जानकारी के अनुसार शिवरानी सलेमपुर गाँव, फ़तेहाबाद ज़िला (उत्तर प्रदेश) से थींI  ग्यारह वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया था। लेकिन तीन महीने के भीतर ही वे विधवा हो गईं थीं। 

ये बात है सन 1905 की, जब धनपत राय श्रीवास्तव का भी बाल-विवाह हुआ था जो नौ साल के बाद समाप्त हो गया था I एक आर्य समाजी होने के नाते, धनपत ने एक विधवा से विवाह करने का प्रण लिया, जो उस ज़माने में एक साहसिक निर्णय था । ये वही धनपत थे, जो आगे चलकर ‘प्रेमचंद’ के नाम से प्रख्यात हुए।

‘कायस्थ बाल विधवा उद्धारक पुस्तिका’ में शिवरानी के पिता द्वारा जारी किया गया वैवाहिक इश्तहार देखकर, धनपत ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। उसके बाद दोनों का विवाह हो गयाI अपनी जीवनी में शिवरानी बताती हैं कि विवाह से पहले वे अशिक्षित थींI मगर प्रगतिशील विचारों वाले धनपत ने उन भाषा और कथा-लेखन के गुर सिखाएI अक्सर धनपत अंग्रेजी अखबार पढ़कर शिवरानी को अनुवाद सुनाते, उन्हें भाषा और कहानी लेखन के गुर सिखाते थे तो कभी अपनीं रचनाएँ सुनाते थे। इसी माहौल में किताबों में शिवरानी की रूचि भी बढती गई। 

उस दौर में, धनपत ‘नवाब राय’ उपनाम से कहानियां लिखते थेI मगर जब उनके कहानी-संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ पर अंग्रेज सरकार ने पाबंदी लगाई , तब उन्होंने नए उपनाम ‘प्रेमचंद‘ से अपना लेखन जारी रखा और वहीँ दूसरी ओर, शिवरानी का साहित्य जगत से मेल-मिलाप भी बढ़ाI शुरूआती दौर में उनको नाकामी मिली , क्योंकि वो अपनी लिखी कहानियों पर या तो प्रेमचंद की आलोचना सुनतीं, या फिर खुद नाखुश होकर फाड़ देतीं ।

घर-गृहस्थी में व्यस्त होने के कारण लेखन से उनका नाता छूटता चला गयाI मगर वह प्रेमचंद के साथ अपने भाव और विचार साझा करता रहती थीं और प्रेमचंद उन पर कहानियां लिखते थे। उन्होंने प्रेमचंद को कई बार अपने सुझाव और भाव बांटें, फिर भी वह कहानियां लिखती रहीं । उनके लेखन का दौर उत्कर्ष पर तब आया, जब सन 1924 में उनकी पहली कहानी ‘साहस’, ‘चाँद’ (पत्रिका) में छपी, कहानी “साहस”, कहानी “साहस” “चॉद” पत्रिका में छपी। वही पत्रिका जिसमें प्रेमचंद कार्यरत थेI जिस समय भारत में एक औरत की पहचान, उसके परिवार के पुरुष सदस्यों के पीछे छिप  जाया करती थी ,एक प्रगतिशील लेखक की हैसियत से, प्रेमचंद ने शिवरानी को उनके कथा-लेखन के लिए बहुत प्रोत्साहित किया। 

शिवरानी ने अपने जीवनकाल के दौरान, कुल 46 लघु-कहानियां लिखीं। ये कथाएँ ‘नारी हृदय’ (1933) और ‘कौमुदी’ (1937) कथा- संग्रहों में देखी गईं और कुछ आज भी असंकलित हैं। हालांकि कौमुदी अपने पहले छपाई के सत्तर साल बाद एक बार फिर प्रकाशित हुई है, ‘नारी हृदय’ आज भी अनुपलब्ध है । वहीँ अपनी जीवनी ‘प्रेमचंद घर में’ में उन्होंने नारीवाद का सटीक चित्रण पेश किया है। उन्होंने प्रेमचंद के कुछ अनजाने पहलूओं पर भी प्रकाश डाला है। 

शिवरानी की कहानियों की ख़ासियत थी, उनके महिला चरित्र, जिनके आत्मविश्वास और दृढ़ता पर वे प्रकाश डालती हैं। उदाहरण के तौर पर, ‘विध्वंस की होली’ कहानी की मुख्य पात्र उत्तमा एक भूकम्प में अपना सबकुछ खोने के बाद भी होली मनाने से पीछे नहीं हटती। वो सबसे ये कहती है:

“भाइयों और बहनों! खूब गाओ! खूब आनंद मनाओ! जो गए उनपर क्या रोओगे? जो हैं, उनकी खैर मनाओ! उनको आशीर्वाद दो!’ 

अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि शिवरानी के नाम से जो कहानियां लिखी गई हैं, दरअसल उनके लेखक प्रेमचंद ही थे I वहीँ प्रेमचंद, ने अपनी पत्नी का साथ देते हुए सार्वजनिक तौर साफ़ किया कि वह कहानियां दरअसल उनकी नहीं, बल्कि शिवरानी की ही लिखी हुई हैं। उन कहानियों को शिवरानी ने ही

 सोचचा सोचा और लिखाI वो प्रेमचंद ये भी,सोचा और लिखा। प्रमचंद कहते थे शिवरानी द्वारा लिखे हर लफ़्ज़ में उनके स्वतंत्र और निर्भीक भाव छलकते थे, जिसकी कल्पना मैं नहीं कर सकता था। 

बहुत कम लोग जानते हैं, कि शिवरानी और प्रेमचंद ने पांच ऐसी कहानियां लिखीं थी, जिनके शीर्षक समान थे, मगर उनकी वास्तु और रूपरेखा एक-दुसरे से बहुत अलग थी, ये कहानियां थीं: सौत, बूढी काकी, पछतावा, बलिदान और विमाता’ । जहां ‘पछतावा’ और ‘विमाता’ आज ‘कौमुदी’ में पढ़ी जा सकती हैं, वहीं ‘सौत’, ‘बूढी काकी’ और ‘बलिदान’ आज भी असंकलित हैं ।

लेखन के साथ-साथ शिवरानी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी सक्रिय रहीं । सन 1921 में असहयोग आन्दोलन के तहत जब प्रेमचंद गोरखपुर में सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर लेखन में पूरी तरह से सक्रिय हो गए, तब शिवरानी ने ताउम्र ज़ैवर ना पहनने की क़सम खाई । गांधीवादी विचारों से प्रभावित शिवरानी ने महिला आश्रम का हिस्सा बनकर सामाजिक कार्य किया और कई बैठकों में शामिल भी हुईं।  उन्होंने अक्सर जेल का भी रास्ता देखा । प्रेमचंद हर क़दम पर उनके साथ रहे ।

मगर ये साथ 8 अक्टूबर,सन 1936 को प्रेमचंद के निधन के साथ छूट गया। शिवरानी देवी के जीवन-वृतांत में डॉ. लक्ष्मीशंकर पाण्डेय ने ‘विस्मृत कथाकार शिवरानी देवी’ (2020) में बताया है, कि शिवरानी अपने पति के निधन के बाद भी ‘हंस’ के प्रकाशन में सक्रिय रहीं, जिसके सम्पादकीय आज भी असंकलित हैं । वो सन 1944 तक लेखन में सक्रिय रहीं थीं, मगर उसके बाद के उनके जीवन के बारे में जानकारी आज भी रहस्य की चादर में ढ़की हुई है । 5 दिसम्बर, सन 1976 को शिवरानी ने आख़िरी सांस लीं । 

शिवरानी ने उस काल में कहानियां लिखीं, जब औरतों की स्वतंत्रता सीमित दायरे में बंधी थीI एक सफल और स्वतंत्र लेखिका होने के बावजूद, वो आज भी हिंदी साहित्य जगत में एक गुमनाम दास्ताँ की तरह हैं, जिस पर शोध होने की ज़रूरत है ।

मुख्य चित्र:दि पेट्रियट

 

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