शाह दौला के ‘चूहे’

पाकिस्तान के क़रीब हर शहर के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और अन्य सार्वजनिक स्थानों सहित मज़ारों और सूफ़ी संतों के दरबारों के बाहर कुछ अजीब-सी शक्ल-सूरत वाले बच्चे अक्सर दिखाई देते हैं। चूहे की शक्ल जैसे दिखने वाले इन बच्चों की तरफ़ देख अक्सर लोगों का दिल पसीज़ जाता है और अक्सर भिखारियों तथा भीख का विरोध करने वाले लोग भी ऐसे बच्चों की हथेली पर दस-बीस रूपये रखने के लिए ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं। पाकिस्तान के सभी शहरों में इन बच्चों को ‘चूहे’ (रैट चाईल्ड) कहा जाता है, जबकि क़रीब दो सदियों से इन ‘चूहों’ का गढ़ बन चुके पाकिस्तान के पंजाब राज्य के गुजरात शहर में लोग इन्हें ‘शाह दौला के चूहे’ कहते हैं।

गुजरात शहर के बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पर किसी भी टैक्सी, कार या बस के आने-जाने पर ये चूहे भीख माँगने के लिए झट से वहां जमा हो जाते हैं। जहां कोई इन्हें दुत्कारता नहीं है, बल्कि सब लोग इन्हें कपड़े, खाने-पीने की चीज़ें और पैसे देकर खुशी महसूस करते हैं।

वास्तव में रैट चाईल्ड की इस बीमारी को मेडिकल भाषा में माइक्रोसेफालिक कहा जाता है, जो कि एक जन्मजात रोग है। इस बीमारी की वजह से बच्चा बोल नहीं सकता और शारीरिक और मानसिक तौर पर अपाहिज (मंदबुद्धि) हो जाता है। उसकी खोपड़ी साधारण बच्चों से काफी छोटी और सुकड़ी हुई होती है और मुँह किसी चूहे की तरह आगे को उठा हुआ-सा होता है। मौजूदा दौर में गुजरात शहर में इन चूहों की मौजूदगी, वहां मौजूद शाह दौला दरबार और लोगों की आस्था के बीच एक पुल की भूमिका निभा रही है।

‘शाह दौला’ नाम से प्रसिद्ध हज़रत सैय्यद कबीरउद्दीन शाह का जन्म सन 1581 में हुआ था। बताते हैं कि शाह दौला के जन्म-दिन पर ही उनके पिता अब्दुल रहीम खां लोधी का देहांत हो गया और पाँच वर्ष की उम्र में उनकी मां का साया भी उनके सिर से उठ गया। इस दरबार के साथ जुड़ी लोक-मान्यता के अनुसार क़रीब 300 वर्ष पहले लंबे समय से बेऔलाद होने का अभिषाप झेल रहे एक दम्पति ने बाबा के दरबार में हाज़िर होकर संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगी, जिस पर दरबार के गद्दी-नशीन फ़क़ीर ने इसके बदले में उनके साथ एक सौदा किया। जिसके तहत उस बेऔलाद दम्पत्ति को अपनी पहली औलाद शाह दौला के दरबार में भेंट करनी थी।

जिसके लिए वे तुरंत मान गए। कुछ माह बाद उक्त दम्पत्ति को पता चला कि उन्हें औलाद सुख प्राप्त होने वाला है, किन्तु साथ ही उन्हें यह भी आभास होने लगा कि उनकी होने वाली औलाद चूहे की शक्ल जैसी दिखाई देने वाली है अर्थात छोटे सिर वाली अपाहिज औलाद पैदा होगी। जब कुछ माह बाद उनके बेटा पैदा हुआ तो वाकई वह छोटे सिर वाला बच्चा ही था, जिसे उन्होंने दरबार में भेंट कर दिया। इस पर उस फ़क़ीर ने उन्हें बताया कि अगर वे लोग अपना यह बच्चा शाह दौला के दरबार में न भेंट करतेतो ईश्वर की नाराज़गी की वजह से उनकी दूसरी औलाद भी अपाहिज ही पैदा होती।

आस्था का केंद्र बन चुका हज़रत शाह दौला का दरबार मौजूदा समय में, गुजरात शहर की मुख्य सड़क यानी शाह दौला रोड की शहरी आबादी में स्थित है, जबकि शाह साहिब की क़ब्र गुजरात शहर के गढ़ी शाह इलाक़े में है। मौजूदा दरबार का निर्माण एक ऊँचे टीले पर सन1898 में बाबा भवन शाह ने कर वाया था। जहां पूरे वर्ष औलाद प्राप्ति की मन्नत माँगने वाली महिलाओं की लंबी लाईनें लगी रहती हैं।

दरबार में पहुँचने वाली महिलाएं और पुरूष शाह दौला दरबार में मन्नत माँगने के बाद, यहां रहने वाली रैट वुमैन (महिला चूहा) नादिया माईं से आर्शीवाद लेना कभी नहीं भूलते। नादिया माईं जिसका पूरा चेहरा भद्दे दाग़ों से भरा हुआ है और सिर पर छोटे-छोटे बाल हैं, भले ही कुछ बोल-सुन नहीं पातीं और फ़ोटो खींचने पर वो थोड़ा सहम सी जाती हैं, लेकिन दान में दी जानेवाली राशि, श्रद्धालुओं के हाथों से छीनकर ,उसे अपने संरक्षकों के हाथों में थमाने में कभी नहीं चूकतीं।

सिख लेखकों ने अलग-अलग पुस्तकों में लिखा है कि इसी गुजरात शहर में धर्म शास्त्री फ़क़ीर शाह दौला को छठे गुरू श्री हरिगोबिंद साहिब के दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ था और गुरू साहिब ने शाह को फ़क़ीरी, पीरी, वैराग तथा त्याग के अर्थ समझाए थे। कहते हैं कि शाह दौला ने गुरू साहिब के ठाठ –बाट देखकर गुरू साहिब से चार सवाल पूछे थे :

  1. औरत क्या है और फ़क़ीरी क्या है?
  2. हिन्दू क्या है और पीरी क्या है?
  3. पुत्र क्या है?
  4. वैराग्य क्या है?, दौलत क्या है और त्याग क्या है?

इस पर गुरू साहिब के जवाब इस तरह थे:

1.औरत ईमान है,

2.पुत्र निशान है,

3.दौलत गुजरान है और,

4.फ़क़ीर न हिंदू और न मुसलमान है।

एक अन्य सिख विद्वान लिखते हैं कि गुरू हरिगोबिंद का स्वरूप देखकर शाह दौला ने सवाल किए, ”हयू सुनिया था गुरू नानक की गादी पर बैठा है। नानक गुरू त्यागी साधु थे। तुम शस्त्र धारण करे हैं, घौवे फयूज रखी है, सच्चा पातशाह कहावता है, कैसा साधू है?” इस पर गुरू साहिब ने कहा, ”बातन फ़क़ीरी, ज़ाहिर अमीरी, शस्त्र ग़रीब की रक्षा, ज़रवाने की भखिया। गुरू नानक संसार नहीं त्यागा, माया त्यागी थी।”

भाई काहन सिंह नाभा ‘महान कोष’ के पृष्ठ 654 पर शाह दौला के संबंध में लिखते हैं-”गुजरात निवासी महात्मा दरवेश शाह दौला का छठे गुरू श्री हरिगोबिंद के समय भाई गढ़िया से उस समय मिलाप हुआ,जब वह प्रचार के लिए कश्मीर जा रहे थे। सुखमणि साहिब का पाठ सुनकर शाह दौला सतिगुरू के श्रद्धालु हो गए और उनके दर्शन करके कृतज्ञ हुए। शाह दौला का देहांत दसवें गुरू के समय हुआ। उन्होंने गुरू गोबिंद सिंह जी को 100 तोले सोना भेंट स्वरूप भेजा। इस महात्मा के नाम पर गुजरात का नाम ‘दौला की गुजरात’ हो गया है। दौला की गुजरात मैं बसत सुलोक अपार।। (चरित्र 255)।”

शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी की धर्म प्रचार कमेटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गुरधाम दीदार’ के पृष्ठ 98 के अनुसार-”जब सतिगुरू हरिगोबिंद साहिब कश्मीर से वापसी पर गुजरात शहर से गुज़र रहे थे तो कुछ मुसलमानों ने गुरू साहिब के साथ मस्ख़री की। इस पर नाराज़ होकर गुरू साहिब ने श्राप दिया कि यह शहर ग़र्क़ होने के लायक़ है। जब यहां के, एक खुदा के प्यारे शाह दौला को इस श्राप का पता चला तो उन्हेंने झट से गुरू जी का घोड़ा पकड़कर प्रार्थना की कि हे सच्चे पातशाह!

इस शहर में तो मैं भी रहता हूँ, इसे श्राप से मुक्त करें। इस पर गुरू साहिब ने अपने परम कृपालु स्वभाव के अनुसार साईं शाह दौला की प्रार्थना पर यह वचन किया ‘शाह दौला ख़ुदा दा प्यारा, गुजरात मसखरियां दी’, जब दरिया इस शहर के पास आए तो बांध लगा देना तो शहर बच जाएगा। उन्होंने घोड़े से उतर कर शाह दौला को वर दिया कि तेरी मान्यता करने वाले बेऔलाद मुसलमानों को पुत्र प्राप्त होंगें लेकिन उनके पुत्रों के सिर छोटे होंगे। इसलिए आज तक मशहूर है कि शाह दौला जी के आर्शीवाद से पैदा हुए बच्चों के सिर छोटे होते हैं।“

हालांकि बहुत सारे विद्वानों का मत है कि पुस्तक ‘गुरधाम दीदार’ की उक्त जानकारी पर कतई विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि इतिहास गवाह है कि दसों गुरू साहिबान में से किसी ने भी अपनी ज़िन्दगी में किसी प्राणी को कोई श्राप नहीं दिया और न ही कहीं कोई चमत्कार ही दिखाया। इस पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता है कि गुरू साहिब ने अपने किसी प्यारे सेवक के लिए कभी ऐसा वचन किया होगा कि उसके आर्शीवाद से पैदा होने वाले बच्चे शारीरिक और मानसिक तौर पर अपाहिज पैदा होंगे। विद्वानों का यह भी कहना है कि उक्त पुस्तक सहित अन्य पुस्तकों में से समय रहते ऐसी मानसिक्ता और इतिहास को नुक़सान पहुँचाने वाली जानकारियों को हटाने के लिए सिख इतिहासकारों को आगे आना होगा।

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