हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से क़रीब 215 कि.मी. दूर आपको भारत के सबसे शानदार क़िलों में से एक क़िला नज़र आएगा। व्यास नदी की उप-नदियों… बाणगंगा और पातालगंगा के संगम पर स्थित, इस क़िले की, इस क्षेत्र के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह क़िला 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि ये क़िला कान के आकार का बनाया गया था और कांगड़ा घाटी का नाम कानगढ़ के नाम पर ही पड़ा था। प्रसिद्ध पहाड़ी राजा संसार चंद ने ही यहां की हिमालयाई पहाड़ियों से मशहूर कांगड़ा कला का बीज बोया था। बाद में घमंड और अतिमहत्वकांक्षा की वजह से उनका और उनके साम्राज्य का पतन हो गया।
कटोच राजवंश द्वारा 11वीं शताब्दी में आरंभ हुआ था। कांगड़ा क़िले ने कई हमले झेले थे। इस पर मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने भी वर्ष 1333 में हमला किया था। तुग़लक़ ने क़राचिल अभियान के तहत कुल्लु-कांगड़ा क्षेत्र के ज़रिए सेना भेजने की बेवक़ूफ़ी की थी। बाद में 16वीं सदी में बदाउनी और फ़रिश्ते जैसे मुग़ल इतिहासकारों ने लिखा कि ये दरअसल चीन पर हमला करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा था। लेकिन हिमाचल में कटोच राजवंश ने तुग़लक़ की सेना के छक्के छुड़ा दिए और उसके क़रीब सभी दस हज़ार सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
सदियों बाद 1550 के दशक में युवा मुग़ल बादशाह अकबर ने उत्तर की तरफ़ कूच किया और सन 1556 में कांगड़ा पहुंचा। मुगल सेना की ताक़त देखकर त्तत्कालीन राजा धरम चंद ने अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उपहार देने पर राज़ी हो गए। बाद में जागीर के रुप में कांगड़ा अकबर के प्रिय वज़ीर बीरबल को दे दिया गया। कटोच राजा को क़िले पर हक़ हासिल करने के लिये बीरबल को क़रीब दो सौ किलो सोना देना पड़ा था। लेकिन वर्ष 1620 में मुग़ल बादशाह जहांगीर ने कटोच राजा हरी चंद को मारकर कांगड़ा साम्राज्य को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। इसके बाद लगभग डेढ़ सदी तक ये मुग़लों के पास रहा।
18वीं शताब्दी के मध्य से मुग़ल साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा था। ऐसे हालात में राजा धरम चंद के उत्तराधिकारियों में से एक 16 साल के संसार चंद ने इसका फ़ायदा उठाने का फ़ैसला किया। संसार चंद ने कन्हैया मिसल( सिख जत्था ) से गठबंधन किया। कन्हैया मिसल उन बारह सिख जत्थों में से एक था जो महाराजा रणजीस सिंह के पहले पंजाब पर शासन करते थे। राजा संसार चंद ने सन 1774 में दोबारा कांगड़ा क़िले पर कब्ज़ा कर लिया। 154 साल के बाद कांगड़ा मुगलों से आज़ाद हो गया और संसार चंद का एक हीरो तथा रक्षक के रुप में स्वागत किया गया। इसके साथ ही कांगड़ा घाटी और इस क्षेत्र के स्वर्णिम युग की शुरुआत हुई।
अपना साम्राज्य फिर हासिल करने और पुश्तैनी क़िले में बसने के बाद संसार चंद ने अपने साम्राज्य के विस्तार पर ध्यान देना शुरु किया। उन्होंने चंबा, मंडी, सुकेत, नाहन और बिलासपुर से लेकर जम्मू की सीमा तक कई क्षेत्रों को जीता। चंबा, मंडी, सुकेत, नाहन और बिलासपुर मौजूदा समय में हिमाचल प्रदेश में आते हैं। 1800 के दशक के आते आते संसार चंद इस क्षेत्र के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक हो गए थे। उनका साम्राज्य लगभग 27 हज़ार स्क्वैयर मील तक फैला हुआ था जिसमें मौजूदा समय के हिमाचल प्रदेश के अधिकतर हिस्से आते थे।
कांगड़ा साम्राज्य के विस्तार के साथ ही शाही घराने की संपत्ति में भी इज़ाफ़ा हुआ। इस धन का जिस तरह से संसार चंद ने इस्तेमाल किया उसी ने उनकी छाप छोड़ी। संसार चंद स्वप्नदर्शी और कलाप्रेमी थे। वह कला के बड़े संरक्षकों में से एक थे। उन्होंने छत्तीस कारख़ाने स्थापित किए और हर कारख़ाना एक अलग कला और शिल्प को समर्पित था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था चित्रकारी का कांगड़ा स्कूल। उनके संरक्षण में चालीस हज़ार से ज़्यादा पैंटिंग्स बनाई गईं जिन्हें पूरे देश में ख्याति मिली। वह वास्तुकला के भी संरक्षक थे और उन्होंने कांगड़ा से बाहर टीरा सुजानपुर (मौजूदा समय में हिमाचल प्रदेश का हमीरपुर ज़िला) में एक क़िला बनवाया। इस क़िले में एक शानदार दरबार सभागार, महल, मंदिर और बाग़ थे। संसार चंद की प्रसिद्धी इतनी थी कि लोग उन्हें पहाड़ी बादशाह कहा करते थे।
पहाड़ी बादशाह के लिये सब कुछ ठीक होता अगर उनमें अपना साम्राज्य और फ़ैलाने की चाह नहीं की होती। महान संसार चंद का पतन तब हुआ जब उन्होंने सन 1805 में छोटे से साम्राज्य कहलूर (मौजूदा समय में बिलासपुर) पर आक्रमण करने का फ़ैसला किया। ये उनकी बड़ी भूल साबित हुई।
हमला होने पर कहलूर के राजा ने नेपाल के शक्तिशाली गोरखाओं से मदद की गुहार लगाई। गोरखा पहाड़ों पर युद्ध करने में माहिर थे और वे ज़बरदस्त लड़ाकू होते थे। पहाड़ों के छोटे राजाओं को पहाड़ों पर लड़ने की कला नहीं आती थी। दूसरी तरफ़ संसार चंद की सेना में ज़्यादातर सैनिक रोहलखंड के रोहिल्ला पठान थे जिन्हें भाड़े पर लाया गया था। 40 हज़ार गोरखाओं की सेना ने सतलज नदी पारकर संसार चंद के साम्राज्य पर हमला बोल दिया। उन्होंने संसार चंद की सेना को रौंद दिया और एक के बाद एक क़िले पर कब्ज़ा करते गए। सन 1809 के आते आते कांगड़ा पर गोरखाओं का ख़तरा मंडराने लगा।
ज़बरदस्त हार के बाद संसार चंद ने पश्चिम में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। इस दौरान उन्होंने गोरखाओं से वार्ता भी जारी रखी। गोरखाओं के ख़िलाफ़ मदद के बदले संसार चंद ने महाराजा रणजीत सिंह को कांगड़ा का क़िला और इसके आसपास के 76 गांव देने का वादा किया। बाक़ी हिस्सा वह ख़ुद अपने पास रखना चाहते थे। यही पेशकश उन्होंने गोरखाओं के सामने भी रखी ताकि उनसे पीछा छूट सके। चालाक रणजीत सिंह को संसार चंद की योजना समझ में आ गई। संसार चंद चाहते थे कि सिख और गोरखा आपस में लड़ते रहें और वह कांगड़ा पर आराम से राज करते रहें।
आख़िरकार सिखों ने गोरखाओं की रसद आपूर्ति का मार्ग बंद कर दिया और उन्हें बुरी तरह हरा दिया। इसके बाद रणजीत सिंह ने संसार चंद से उनका वादा निभाने को कहा। लेकिन इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से संसार चंद आश्चर्यचकित रह गए थे और उन्होंने टालमटोली की कोशिश की। रणजीत सिंह ने संसार चंद के पुत्र अनिरुद्ध चंद को बंदी बनाकर कांगड़ा क़िले की तरफ़ कूच किया।
47 साल तक शासन करने के बाद संसार चंद की सन 1823 में मृत्यु हो गई। सन 1849 में सिख साम्राज्य के पतन के बाद कांगड़ा पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया। कांगड़ा में संसार चंद संग्रहालय है जिसमें बेशक़ीमती कांगड़ा पेंटिग्स रखी हुई हैं। आज ये महान राजा की एकमात्र धरोहर है।
आख़िरकार संसार चंद ने उनके पास जो कुछ था वो लगभग सब गवां दिया। लाहौर दरबार को दो लाख रूपये के उपहार के बदले उन्हें सिखों से एक छोटी सी जागीर मिली।
ये एक ऐसे व्यक्ति का शर्मनाक पतन था जिसने लगभग पूरे हिमाचल प्रांत पर राज किया था और जिसने पहाड़ी बादशाह का ख़िताब अर्जित किया था।
संसार चंद ने अपने अंतिम दिन हमीरपुर ज़िले के टीरा सुजानपुर में अपनी जागीर में बिताये। अब उनकी अन्य क्षेत्रों को जीतने की महत्वकांक्षा ख़त्म हो चुकी थी और वह अपने आलीशान दरबार का आनंद लेने लगे थे। यहां उन्होंने कवियों और कलाकारों को संरक्षण दिया। टीरा सुजानपुर के शानदार वॉल पेंटिंग्स और मंदिर उनके निर्वासित जीवन की यादगार हैं।
47 साल तक शासन करने के बाद संसार चंद की सन 1823 में मृत्यु हो गई। सन 1849 में सिख साम्राज्य के पतन के बाद कांगड़ा पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया। कांगड़ा में संसार चंद संग्रहालय है जिसमें बेशक़ीमती कांगड़ा पेंटिग्स रखी हुई हैं। आज ये महान राजा की एकमात्र धरोहर है।
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