सर सैमुएल स्विंटन जैकब उर्फ़ सड़क साहब

जयपुर में अल्बर्ट हॉल, बीकानेर में लालगढ़ पैलेस और इंदौर में डेली कॉलेज भारत के मशहूर और ख़ूबसूरत भवनों में गिने जाते हैं। पत्थर पर कारीगरी, जाली और छज्जे इन भवनों की ख़ासियत हैं और ये इंडो-सरसेनिक वास्तुकला (भारतीय-अरबी वास्तुकला) के बेहतरीन नमूने हैं, जिनमें मुग़ल और राजपूत वास्तु शैली का संगम भी देखा जा सकता है। दिलचस्प बात ये है, कि इनकी डिज़ाइन जिस वास्तुकार ने बनाई थी, वो एक अंग्रेज़- सर सैमुएल स्विंटन जैकब था। जैकब जयपुर लोक निर्माण विभाग के प्रमुख थे और उन्हें स्थानीय लोग प्यार से सड़क साहब बुलाते थे।

सर सैमुएल स्विंटन जैकब उर्फ़ सड़क साहब उर्फ़ याकूंब साहब का जन्म दक्षिण अफ़्रीका में सन 1841 में हुआ था। उनके पिता का नाम कर्नल विलियम जैकब और मां का नाम जेन स्विंटन था। विलियम जैकब बॉम्बे तोपख़ाने में काम करते थे। पारिवारिक परंपरा के अनुसार सैमुएल को भी स्कूल की पढ़ाई के लिये इंग्लैंड भेजा गया। बाद में उन्होंने एडिसकॉम्बे, सरे में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक कॉलेज में दाख़िला ले लिया। स्नातक होने के बाद, वह सन 1858 में अपने पिता की तरह बॉम्बे तोपख़ाने में बतौर लेफ़्टिनेंट के पद पर काम करने लगे।

सन 1862 में इंडियन स्टाफ़ सेना में शामिल होने के बाद, वह सन 1865-66 तक एडन फ़ोर्स में बतौर फ़ील्ड इंजीनियर के तौर पर काम करने लगे और सन 1870 में कैप्टन, सन 1884 में लेफ़्टिनेंट कर्नल और सन 1888 में कर्नल बनें। सन 1862 से लेकर सन 1896 तक उन्होंने जयपुर रियासत के लोक निर्माण विभाग में काम किया और सन 1893 में वह सुप्रीटेंडिंग इंजीनियर बन गये।

जैकब यूरोपियन इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प के संरक्षक थे, जिसे हम आज इंडो-सरसेनिक वास्तुकला (भारतीय-अरबी वास्तुकला) शैली के नाम से जानते हैं। उन्होंने भारत की देसी वास्तुकला के पुनुरुत्थान की पुरज़ोर वकालत की।

“जयपुर पोर्टफ़ोलियो ऑफ़ आर्कीटेक्चुरल डिटेल्स, लंदन 1890-1913,” की प्रस्तावना में सर सैमुएल स्विंटन जैकब लिखते हैं, “लोक निर्माण विभाग द्वारा किए जा रहे वास्तुशिल्पीय कार्य प्राच्य वास्तुकला के लिए नीरस, मानकीकृत और असंगत थे तथा रुढ़िबद्ध थे।”

भारतीय-अरबी शैली को स्थानीय स्थापत्य की तरह दर्शाया जाए, यह पूरी तरह से ब्रिटिश परिकल्पना थी, जिसमें पूर्व स्थापत्य की धरोहर और वर्तमान की आधुनिक सुविधाओं का संगम किया गया था, जो पश्चिमी अभिरुचियों के क़रीब थी।

जैकब राजपूत और मुग़ल वास्तुकला शैली से बहुत प्रभावित थे। उनका आकर्षण इन शैलियों की ऐतिहासिक इमारतों के सजावटी विवरणों पर केंद्रित था।

उनका विचार था, “हालांकि इमारतों को एक ऐसे युग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया था जो बीत चुका है, लेकिन तत्वों को आधुनिक इमारतों में सफलतापूर्वक शामिल किया जा सकता है।”

हालांकि जैकब ने भवनों की डिज़ाइन बनाने की शुरुआत जयपुर से की थी, लेकिन शोहरत मिलने के बाद अन्य रियासतों के साथ, अंग्रेज़ सरकार ने भी उनसे कई महल और संस्थान बनवाये।

चलिये एक नज़र डालते हैं, उनके द्वारा बनाये गये बेहतरीन भवनों पर, जिनमें वो भवन भी शामिल हैं जो उनका जीवनभर जुनून रहा और जिसे बनाने में दशक लग गये थे।

रामगढ़ बांध, जयपुर

सन 1868 में जैकब ने जयपुर रियासत के लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत एक सिंचाई विभाग बनाया। सिंचाई विभाग की स्थापना के बाद इटावा भोपजी के ठाकुर भोपाल सिंह नाथावट ने उन्हें जमवा रामगढ़ में एक जगह का मुआयना करने के लिये बुलवाया। जमवा रामगढ़ जयपुर से क़रीब 35 कि.मी. दूर था। ये जगह प्राकृतिक रूप से एक बड़ा जलाशय बनाने के लिये थी। यहां बाणगंगा नदी अलवर, दौसा और भरतपुर से होते हुए लगभग 240 कि.मी. तक दक्षिण दिशा की तरफ़ बहती है और फिर आगरा में यमुना नदी में मिल जाती है। ये नदी ऐतिहासिक शहर बैराठ से निकलती है और ये मॉनसून में भर जाती है। बाणगंगा नदी जमवा रामगढ़ में तीन कि.मी. के नाले में तब्दील हो जाती है, लेकिन आगे बहकर फिर फैल जाती है।

सन 1872 में एक सर्वेक्षण करवाया गया था। सन 1873 में ब्रिटिश राज के महाराजा सवाई राम सिंह-II ने बांध बनाने की परियोजना को मंज़ूरी दे दी। इसके बाद जयपुर और भरतपुर रियासतों के बीच पानी के नुक़सान और सिंचाई पर इससे पड़ने वाले संभावित प्रभावों को लेकर दो दशकों तक टकराव चलता रहा ।

तीस दिसंबर सन 1897 को राजपुताना के एजेंट गवर्नर जनरल रॉबर्ट जे. क्रॉसवेथ ने इस परियोजना की नींव रखी, जिसे पूरा होने में छह साल लग गये। ये बांध सन 1903 में कहीं जाकर क्रियाशील हुआ। इसका नाम क्रॉसवेथ सागर रखा गया, जो उस समय सबसे बड़ी कृत्रिम नहर थी। ये 16 स्क्वैयर कि.मी. से भी लंबी थी और इसका जलग्रहण क्षेत्र 831 स्क्वैयर कि.मी. था।

अगले 23 सालों तक इस बांध और जलाशय के पानी का उपयोग खेतीबाड़ी के लिये होता रहा, लेकिन जयपुर के निवासियों को भी इसके पानी की ज़रुरत पड़ने लगी। क्योंकि अमानीशाह नाला (द्रव्यवती नदी) तेज़ी से सूखने लगा था, जिसकी वजह से पानी की आपूर्ति प्रभावित हो रही थी।

13 मार्च सन 1931 को भारत के वाइसराय लॉर्ड इर्विन ने रामगढ़ वॉटर वर्क्स का उद्घाटन किया, जिसमें एक पंप हाउस भी था, जो शहर के बाहर क़रीब तीन मील दूर लक्ष्मण दूनगरी में था।

रामगढ़ नहर को सन 1982 में, एशियाई खेलों की नौकायन स्पर्धा के लिये चुना गया था। सन 1982 एशियाई खेलों की मेज़बानी भारत ने की थी। दुर्भाग्य से पानी के अधिक दोहन, नहर के पथ परिवर्तन, गाद, अतिक्रमण, शहरीकरण और जलग्रहण क्षेत्रों में अधिक खेतीबाड़ी की वजह से ये नहर सन 2006 में सूख गई ।

जैकब की सिंचाई परियोजनाओं में इस सबसे प्रसिद्ध परियोजना के अलावा उन्होंने लगभग दो सौ सिंचाई परियोजनाएं भी बनाई थी, जिससे आज भी लाखों भारतीय लाभांवित हो रहे हैं।

रामगढ़ पैलेस, जयपुर

सन 1835 में निर्मित रामगढ़ पैलेस पहले एक गार्डन हाउस हुआ करता था, जो महाराजा सवाई राम सिंह-II ने अपनी दाई मां के लिये बनवाया था। सन 1887 में महाराजा सवाई माधो सिंह ने इसे शिकारगाह में तब्दील कर दिया और आख़िर में महाराजा मान सिंह-II ने अपनी पत्नी महारानी गायत्री देवी के लिये इसको शाही निवास बना दिया। 20वीं सदी की शुरुआत में जैकब ने पैलेस का विस्तार किया और आज जिस रुप में ये दिखता है, वो जैकब की ही देन है।

इस पैलेस की शान-ओ-शौकत अब भी बरक़रार है। महल में हाथ से बनाई गईं संगमरमर की जालियां, गुंबद और छतरियां हैं। इसके अलावा यहां बड़े-बड़े मुग़ल बाग़ भी हैं। जैकब को वास्तुकला के भारतीय तत्वों से कितना लगाव था इसका अंदाज़ा महल में प्रयोग किये गये रुपांकनों और शिल्पकारी से लगाया जा सकता है।

 एल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम, जयपुर

सन 1887 में खुला ये भवन जयपुर का नया टाउन हॉल था, जो महाराजा सवाई राम सिंह -II ने बनवाया था, लेकिन बाद में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सवाई माधो सिंह ने इसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया।

जैकब चूंकि जयपुर रियासत के लोक निर्माण विभाग के चीफ़ इंजीनियर थे, इसलिये भवन की डिज़ाइन और निर्माण का काम उन्हें सौंपा गया। इसकी आधारशिला सम्राट एडवर्ड-VII ने रखी थी, जो वेल्स के राजकुमार की हैसियत से जयपुर आए थे और तब उन्हें राजकुमार एल्बर्ट के नाम से जाना जाता था। ये राजस्थान के सबसे पुराने संग्रहालय के रुप में मशहूर है। यहाँ ज़ेवर, क़ालीन, हाथी दांत, नग और धातु की मूर्तियां रखी हुई हैं। इसके अलावा यहां मिस्र की एक ममी भी है, जो राजस्थान में मिस्र की एकमात्र प्रामाणिक ममी है।

लक्ष्मी निवास पैलेस, बीकानेर

लक्ष्मी निवास पैलेस का निर्माण बीकानेर के महाराजा सर गंगा सिंह ने सन 1892 में करवाया था। महल को दो आंगनों के चारों ओर व्यवस्थित किया गया था, जिसमें पहला और सबसे प्रभावशाली विंग, लक्ष्मी निवास 1902 में पूरा हुआ था। शेष तीन विंगों को चरणों में पूरा किया गया और 1926 में परिसर पूरी तरह बनकर तैयार हुआ।

जैकब ने स्थानीय कारीगरों के व्यापक शिल्प कौशल का इस्तेमाल किया और उस समय के सबसे करिश्माई और प्रसिद्ध महाराजाओं में से एक के लिए एक आधुनिक और शानदार निवास के लिये एक भव्य और अत्यंत विस्तृत मध्ययुगीन अग्रभाग बनाया।

उमेद भवन, कोटा

उमेद भवन कोटा के उम्मेद सिंह-II ने सन 1905 में बनवाया था। जैकब ने महाराजा के लिये इस बेहद अलंकृत और भव्य रिहायशी महल परिसर की डिज़ाइन तैयार की थी। ये शायद एकमात्र रिहायशी महल है, जिसकी डिज़ाइन जैकब ने तैयार की थी। महल परिसर में एक घंटा घर है, जो मीनार की शक्ल में बना हुआ है। अग्रभाग पर गुलाबी बालू पत्थर का प्रयोग किया गया है, जिसकी वजह से सूरज की रौशनी में ये भवन दमकता है। भवन के भीतर संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जिसे खीमच( राजस्थान) और इटली से मंगवाया गया था। खीमच भूतपूर्व कोटा रियासत का ही हिस्सा था।

डेली कॉलेज, इंदौर

डेली कॉलेज की स्थापना इंदौर रियासत के ब्रिटिश एजेंट सर हेनरी डेली ने रेज़ीडेंसी स्कूल के रुप में सन 1870 में की थी। बाद में यानी सन 1882 में सर हेनरी डेली के योगदान के सम्मान में इसका नाम डेली कॉलेज कर दिया गया।

जैकब ने इंडो-सरसेनिक शैली में इसकी डिज़ाइन बनाई थी। 118 एकड़ भूमि में ये सबसे मंहगा स्कूल सन 1906 में बनकर तैयार हुआ था। स्कूल परिसर के लिये ज़मीन इंदौर के शासक होल्कर परिवार ने दी थी।

पूरे भवन का निर्माण एक घंटाघर के इर्दगिर्द किया गया था, ताकि ब्रिटिश राज में लोगों को समय के महत्व का एहसास हो। इसमें छज्जे और जालियां लगाई गई थीं, ताकि ये विशालकाय भवन देखने में हल्का लगे।

रामगढ़ लॉज, जयपुर

रामगढ़ लॉज जैकब ने सन 1920 में रामगढ़ बांध के बराज पर बनाई थी। ये लॉज इंडो-सरसेनिक शैली की बजाय आर्ट डेको मेडिटेरेनियन विला की तर्ज़ पर बनाई गई है। हालांकि जैकब को दशकों से इंडो-सरसेनिक शैली पसंद थी।

इस लॉज में राजकुमार चार्ल्स और श्रीमती जैकलिन कैनेडी जैसी अंतरराष्ट्रीय हस्तियां ठहर चुकी हैं। महाराजा सवाई राम सिंह-II के ज़माने में ये एक छोटी सी शिकारगाह हुआ करती थी।

महाराजा मान सिंह-II और उनकी तीसरी पत्नी महारानी गायत्री देवी को रामगढ़ लॉज बहुत पसंद था। आज भी इस लॉज में महाराजा मान सिंह-II की देश भर की शिकार ट्रॉफियां और शाही परिवार के चित्र देखे जा सकते हैं, जिनमें उनकी एकमात्र संतान राजकुमार जगत सिंह का भी चित्र शामिल है। इस लॉज को अब हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है।

 

 

यहां महारानी गायत्री देवी के लिये ख़ासतौर से शानदार ग़ुसलख़ाने और संगमरमर का बाथटब बनवाया गया था।

विरासत

जैकब ने सन 1874 में शादी की थी। उनकी कोई संतान नहीं थी। वह भारत को अपनी मातृभूमि मानते थे और सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह यहीं रहे। एक बार उन्होंने लिखा, “मैं अपने नजरिये में उग्र हूं और इंग्लैंड के लिये नापसंदगी उनमें से एक है….”

भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्ज़न (1899-1905) के अनुसार भारत में उनकी प्रतिष्ठा सबसे अच्छे पेशेवर वास्तुकार की थी। जैकब को सन 1902 में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

लगातार 45 साल तक काम करने के बाद, कर्नल जैकब ने आख़िरकार इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने अगस्त सन 1913 में नई दिल्ली परियोजना में सलाहकार का पद छोड़ दिया था। काफ़ी बाद इंग्लैंड वापसी पर उन्हें वर्किंग (सरे काउंटी के मध्य में एक रिहाइशी इलाक़ा) में होरसेल कॉमन मुस्लिम कब्रिस्तान की डिज़ाइन बनाने को कहा गया, लेकिन तबीयत ख़राब होने की वजह से वह यह काम नहीं कर सके। उसके कुछ ही समय बाद उनका निधन हो गया।

“सड़क साहब” को गुज़रे एक सदी बीत चुकी है, लेकिन जयपुर के एल्बर्ट हॉल जैसा संग्रहालय, इंदौर के डेली कॉलेज जैसा स्कूल, ताज प्रापर्टी जैसा जयपुर का रामगढ़ पैलेस और राजस्थान की कई छोटी, मध्यम सिंचाई परियोजनाओं जैसे अनेक स्मारक आज भी हमारे देश की शोभा बढ़ा रहे हैं। सही मायने में जैकब अपनी दत्तक मातृभूमि पर, अपनी अमिट छाप छोड़कर गये हैं।

इन वास्तु चमत्कारों से आज भी हज़ारों भारतीय लाभांवित हो रहे हैं। नहरों से सिंचाई करने वाले किसानों को और डेली कॉलेज में पढ़नेवाले छात्रों को फ़ायदा हो रहा है। यही नहीं, कई होटलों से सैकड़ों लोगों को रोज़गार भी मिला हुआ है और टूर गाइड, भारतीय और विदेशी सैलानियों को सर सैमुएल के भवनों दिखाकर अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे हैं।

कुछ लोगों ने उनके काम की, ख़ासकर आज़ाद भारत में, आलोचना भी की है लेकिन मेरे लिए उनका काम राजा लुडविग-II द्वारा उनके पसंदीदा संगीतकार रिचर्ड वैगनर के सम्मान में बवेरिया में निर्मित इतिहासकार श्लॉस नेउशवांस्टीन के समान है। मैं अल्बर्ट हॉल या रामबाग पैलेस के बिना जयपुर, लक्ष्मी विलास पैलेस के बिना बीकानेर या सेंट जॉन्स कॉलेज के बिना आगरा की कल्पना नहीं कर सकता। आधुनिक भारत में इन इमारतों का निरंतर अस्तित्व सड़क साहिब की शाश्वत विरासत के बारे में बहुत कुछ कहता है।

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