क़िला बाड़ा: नाम और शान आज भी क़ायम!

क़िला बाड़ा एक ऐसा क़िला है, जिसका पाकिस्तान में आतंकवादियों और सेना की गोलियां आज तक कुछ नहीं बिगाड़ पाई हैं। पाकिस्तान के संघीय सरकार समर्थक प्रशासनिक क़बाईली क्षेत्र फ़ाटा (फ़ैडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राईबल एरिया) के ख़ैबर एजेंसी की तहसील बाड़ा में मौजूद क़िला बाड़ा सिख राज्य की धरोहर के रूप में आज भी अपनीं शान क़ायम रखे हुए है। मौजूदा समय बाड़ा शहर बाड़ा नदी के किनारे पर आबाद है, और इस के दक्षिण में कुहाट और उत्तर में पेशावर शहर बसा हुआ है। बाड़ा शहर आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम का गढ़ होने के कारण यहा आए दिन लश्कर के आतंकवादियों तथा पाकिस्तान सेना में मुठभेड़ की चलती रहती है। यहां लगातार होने वाली गोलाबारी की वजह से, इस क्षेत्र के हिंदुओं-सिखों धार्मिक स्मारक क़ायम नहीं रह सके, लेकिन सिख राज्य के दौरान बनवाया गया क़िला बाड़ा आज भी मौजूद है और इस समय यह 11वीं फ़्रंटियर कॉर का हैड्क्वार्टर है। इसी वजह से आज यह एफ़.सी. फ़ोर्ट के नाम से जाना जाता है।

 

सन 1834 में, जब सिखों ने पेशावर को फ़तह किया, तो शेरे-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के आदेश पर सरदार हरी सिंह नलवा ने दीवान सिंह गढ़िया को, सरहद की सुरक्षा के लिए, राज्य की सीमाओं पर क़िले बनवाने का काम सौंपा था। दीवान सिंह गढ़िया, सरदार जोध सिंह रामगढ़िया के चचेरे भाई सरदार मंगल सिंह रामगढ़िया के पुत्र थे। अफ़रीदियों और क़बाईलियों पर नज़र रखने के लिए इन क़िलों को बनाया जाना बेहद ज़रूरी था।

सरदार मंगल सिंह रामगढ़िया ने अफ़रीदियों के गढ़ तीराई और शीननू घाटियों में से होते हुए पेशावर को जाने वाले रास्तों पर क़ाला बाड़ा का निर्माण करवाया । तवारीख़-ए-पेशावर के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह के आदेश पर क़िले को बाड़ा नदी के किनारे पर बनाया गया। बाड़ा नदी के किनारे बना होने के कारण वह क़िला ‘बाड़ा फ़ोर्ट’ के नाम से जाना जाने लगा। क़िला बनने के बाद सरदार मंगल सिंह को इस क़िले की क़िलेदारी सौंपी गई और बाद में सरदार झंडा सिंह बुतालिया के नेतृत्व में 300 पैदल सेना, 100 घुड़सवार, तीन तोपें और ज़रूरत के अनुसार असलाह-बारूद रखा गया।

 

हईताबाद-बाड़ा रोड जो आगे जाकर बाड़ा गांव की तरफ़ मुड़ जाती है, उसी बाड़ा रोड पर बाड़ा नाला पार करते ही क़िला रोड शुरू हो जाती है। सुरक्षा नियमों के चलते इस ओर जाने पर मनाही है और रेंजरों की तलाशी और पूछताछ के बाद ही आगे जाना संभव होता है। बाड़ा रोड की ओर से क़िले में जाने से पहले दाएं हाथ की ओर छोटे से मैदान में, नानक शाही ईंटों से बनी दो पुरानी पक्की क़ब्रें मौजूद हैं। क़रीब चार फ़ुट ऊँची इन क़ब्रों पर पत्थर की सिलें लगी हुई थीं जिन पर क़ब्रों के बारे में जानकारी लिखी थी। उन सिलों के ग़ायब हो जाने से और एतिहासिक दस्तावेज़ों में इन क़ब्रों की जानकारी मौजूद न होने से यह कहना मुश्किल है कि यह अंग्रेज़ी सेना के किन अफ़सरों की क़ब्रें हो सकती हैं और यह यहां क्यों बनाई गई हैं ? इसी क़ब्रिस्तान के बिल्कुल सामने बाड़ा मार्किट है, जिसे सदर बाज़ार भी कहा जाता है। क़िले की सेना के लोग इसी बाज़ार से ख़रीदारी करते हैं।

बाड़ा क़िले को मज़बूती देने के लिए इसमें चार विशाल और मज़बूत बुर्ज बनाए गए हैं। इन बुर्जों का घेरा 100 फ़ुट से भी ज़्यादा है और इनमें सैनिकों के निवास के लिए कई कमरे बने हुए हैं। अंग्रेज़ी राज्य के समय इन बुर्जों सहित क़िले के शेष भवनों में की गई तब्दीलियां साफ़ दिखाई देती हैं। क़िले की अंदरूनी दीवारें 20-25 फ़ुट ऊँची और 10 फुट चौढ़ी हैं। क़िले की फ़सील (सुरक्षा दीवार) चार फ़ुट चौड़ी और बहुत मज़बूत है। इसे पत्थरों से बनाया गया है। इसके चारों ओर बनाई गई गहरी खाई आज भी मौजूद है। सिख सल्तनत के समय इसे बाड़ा दरिया के पानी से भरा जाता था। इस फ़सील और क़िले की अंदरून दीवार के बीच 10 फ़ुट चौड़ी गैलरी चारों ओर बनाई गई है। यहां से क़िले की अंदरून दीवार में बनाए मोर्चों में, 11वीं फ़्रटियर कॉर के शस्त्रधारी सैनिक साफ़ दिखाई दे जाते हैं। एसा लगता है, कि क़िले का नक़्शा अमृतसर के क़िला गोबिंदगढ़ को ध्यान में रखकर बनाया गया  है।

क़िले के अंदर सैनिकों की रिहायश के लिए बहुत सारी बैरक, सेना के दफ़्तर, स्टेडियम, मैस और सेना के अफ़्सरों के बड़े-बड़े बंगले बने हुए हैं। ये सब नवीनतम स्मारक अंग्रेज़ी राज्य के दौरान ही बनाए गए हैं। जबकि क़िले में मौजूद मस्जिद को सन 1967 में बनाया गया था। क़िले का अंदरून मुख्य द्वार लकड़ी से सिख सल्तनत के दौरान ही बनाया गया प्रतीत होता है। यह दरवाज़ा 10 फ़ुट चौड़ा और 10 फ़ुट ऊँचा है। इससे आगे क़िले में तैनात सेना और सेना के मुख्य अधिकारियों को ही प्रवेश करने की अनुमति है। यहां मौजूद किसी भी स्मारक की तस्वीर लेना या उसकी ओर टिकटिकी लगाकर देखना किसी बड़ी मुसीबत को न्यौता देने के समान है।

सिख हुकूमत के समय बनी यह सिख धरोहर यानी क़िला बाड़ा आज भी सुरक्षित है और अच्छी हालत में है । यह क़िला फ़टैडरली एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राईबल क्षेत्रों में काफ़ी लोकप्रिय भी है। क़िले के भीतर इसके निर्माणकर्ता सिख दरबार और शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह से संबंधित क़िले के इतिहास को बयां करती कोई भी सिल या सूचना बोर्ड मौजूद नहीं है, जबकि सिख हुकूमत की समाप्ति के बाद इस धरोहर पर क़ाबिज़ होने वाले अंग्रेज़ अहलकारों और सेना के अधिकारियों के नामवाली पट्टियां, क़िले की हर दूसरी या चौथी दीवार पर मौजूद हैं । यह पट्टियां सिख इतिहास को मूंह चिढ़ाती ज़रूर लगती हैं।

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