पुराने संयुक्त पंजाब की विरासत और इतिहास में पंजाब की ‘बारों’ की अहम भूमिका रही है। पूर्वी और पश्चिमी पंजाब की नई पीढ़ी में से बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो ‘बार’ के अर्थों से वाक़िफ़ होंगे। असल में ‘बार’ दो दरियाओं के बीच बने उस टापू को कहा जाता है, जो जंगल में तब्दील हो चुका होता है।
इन बारों की धरती पर जहां हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल और मिर्ज़ा-साहिबां आदि प्रेम कथाएं प्रकाश में आईं, वहीं पर यह बारों की धरती, दुल्ला भट्टी की बहादुरी और अणख की गाथा की भी गवाह रही है। इन बारों की भूमि पर जहां वारिस शाह और दमोदर गुलाटी ने हीर तथा पीलू ने मिर्ज़ा-साहिबां की अमर प्रेम कहानी को क़लमबंद की, वहीं पर ये बारें ‘ढोला’, माहिया’ और ‘सांई’ शब्दों की भी जन्मभूमि हैं। मोहब्बत और इबादत की सांझी सूफ़ियाना हूक भी इन बारों की धरती से उठी, जिसने संसार में अपने अनेक मुरीद बनाए।
भले ही देश के बँटवारे से पहले वाले, पुराने सांझे पंजाब का बड़ा हिस्सा इन बारों के अधीन रहा है। लेकिन अंग्रेज़ी शासन के समय पंजाब में नहरों का जाल बिछने के बाद इन बारों की भौगोलिक स्थिति और अस्तित्व बुझारत (पहली) बन चुका है। आज इन बारों की भूमि पर कई नए शहर और क़स्बे आबाद हो चुके हैं, जिनसे इन बारों की पहचान धुंधली पड़ गई है। पुराने पंजाब का दरिया सतलुज से चेनाब तक और दरिया चेनाब से झेलम के बीच का क्षेत्र चार बड़ी बारों, सांदल बार, किराना (कराना) बार, नीली बार और ग़ांजी बार में बँटा हुआ था।
सांदल बार:
दरिया रावी और चेनाब के बीच वाले रचना दुआब के जंगली क्षेत्र को सांदल बार कहा जाता है। यह पाकिस्तानी पंजाब की सबसे बड़ी बार है, जो उत्तर से दक्षिण की ओर 40 किलोमीटर लंबी तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 80 किलोमीटर चौड़ी है। क़िला दीदार सिंह, जड़ांवाला, नोशहरा विरकां, संबरियाल, जफ़रवाल, शक्करगढ़, सिरांवाली, एमनाबाद, गुजरांवाला, स्यालकोट, फ़ैसलाबाद, शेख़ूपूरा, नारंग मंडी, मुरीद के, श्री ननकाना साहिब, रसूल नगर, हाफ़िज़ाबाद, शाहकोट, घखर मंडी, कमोके, डसका, पसरूर, टोबा टेक सिंह और वज़ीराबाद शहर मौजूदा समय इस बार की भूमि पर आबाद हैं। हीर-रांझा और मिर्ज़ा-साहिबां के प्रेम-क़िस्से इसी बार की भूमि पर अस्तित्व में आए। हीर-रांझा के प्रेम-क़िस्से को अमर करने वाला बाबा वारिस शाह और बादशाह अकबर से लोहा लेने वाला ग़ैरतमंद पंजाबियों की अणख का प्रतीक दुल्ला भट्टी भी इसी बार में जन्मा था। इसी कारण इस बार का एक बड़ा हिस्सा ‘दुल्ले की बार’ के नाम से भी जाना जाता है।
इसी बार की भूमि पर दमोदर दास अरोड़ा (दमोदर गुलाटी) ने हीर-रांझा की प्रेम कहानी को क़लमब़ंद किया। भाई काहन सिंह नाभा ‘महानकोष’ में सांदल बार का संबंध शांडिल्य ऋषि से बताते हैं और लिखते हैं, कि शांडिल्य ऋषि का यहां निवास होने के कारण इस जंगल को पहले ‘शांडिल्य वन’ कहा जाता था, जो बाद में सांदल बार नाम से जाना जाने लगा।
1890 के दशक में जारी किए पंजाब गवर्नमेंट नोटीफ़िकेशन के अनुसार सांदल बार का मांटगुमरी (साहिवाल) के साथ लगा 6 लाख 5 हज़ार, 5 सौ 86 एकड़ जंगल का हिस्सा झंग शहर के अधीन कर दिया गया। पहले झंग तहसील के जिस हिस्से को सुभागा जंगल कहा जाता था, सन 1907 में उन 18 जंगल के गांवों को ज़िला शाहपुर में तब्दील कर दिया गया। सांदल बार की भले ही आज कोई भी पुरातन निशानी बाक़ी नहीं बची है, परन्तु सांदल बार का नाम क़ायम रखने के लिए फ़ैसलाबाद की सटियाला रोड़ पर सलिमी चौक के पास पीपल्ज़ कॉलोनी में सांदल बार होटल ज़रूर शुरू कर दिया गया है।
किराना या कराना बार:
दरिया चेनाब और झेलम के जंगल-क्षेत्र को किराना या कराना बार कहा जाता है। सन 1909 में किराना बार का क़रीब सारा क्षेत्र जो पहले चनियोट तहसील तक था, ज़िला शाहपुर में तब्दील कर दिया गया। इस शहर के बड़े जंगल के हिस्से को मौजूदा समय नक्का नाम से संबोधित किया जाता है। डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर चनाब कॉलोनी, सन 1904 के अनुसार भारत और सीलोन (श्रीलंका) के मध्य समुद्र पर पुल बनाने के लिए श्री हनुमान किराना चोटियों से पत्थर लेकर गए थे। भारत में उठे बाबरी मस्जिद विवाद से पहले तक किराना हिल पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर अच्छी हालत में मौजूद था, लेकिन सन 1992 में उक्त विवाद की वजह से क्षेत्र के मुस्लिम दंगाईयों ने वह मंदिर गिरा दिया।
गांजी बार:
दरिया सतलुज से ब्यास और दरिया हाकरा से रावी के बीच जंगली क्षेत्र को गांजी बार कहा जाता है। मौजूदा समय जिला बहावलपुर से चिश्तियों तक का सारा क्षेत्र इस बार के अधीन आता है। पंजाबी साहित्य परम्परा के अग्रिम बाबा फ़रीद ने अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा इसी बार की भूमि पर गुज़ारा। बताया जाता है, कि सिंकदर (अलेग्ज़ेंडर) को सांदल बार और गांजी बार के शूरवीर मलियों ने पराजित किया और मुल्तान के नज़दीक वहां के मलियों के घातक तीरों से ही वह मारा गया था। सन 1857 के विद्रोह के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी से लोहा लेने वाले शहीद राय अहमद नवाज़ खरल खां की पैदाइश भी इसी बार में हुई थी।
नीली बार:
दरिया रावी तथा सतलुज के बीच जंगल के क्षेत्र को नीली बार कहा जाता है। इस बार का नाम सतलुज दरिया के यहां बहने वाले नीले रंग के पानी से पड़ा है। इस बार की नीले रंग की भैंसें पूरे पाकिस्तान में मशहूर हैं। ज़िला साहिवाल, ऊकाड़ा, चीचावतनी, आरिफ़वाला, मुल्तान, लोडरां और ज़िला क़सूर का क्षेत्र इसी बार की भूमि पर आबाद है। जब अंग्रेज़ी हुकूमत के समय ज़िला मीयांवाली में नहरों का जाल बिछाया गया तो झंग, सरगोधा, मंडी बहाऊदीन और मीयांवाली के साथ लग हुए जिन जंगल के क्षेत्रों पर गॉदल जाति के जाटों ने अपनी मलकियत क़यम की, उसको गॉदल बार कहा जाता है। उक्त बारों के अतिरिक्त मौजूदा समय पाकिस्तान में दरियाओं के नज़दीक कुछ क्षेत्र व्यास बार, जंगल बार, ख़ज़ाने की बार, रावी बार और मन्नण की बार नाम से भी जाने जाते हैं।
गौंदल बार:
गौंदल बार में दरिया झेलम और चेनाब के बीच का क्षेत्र, जिस में पाकिस्तान के ज़िला गुजरात और मंडी बहाउद्दीन डिवीज़न के सभी ज़िलों के क्षेत्र शामिल हैं। इस बार का नाम गौंदल जाति के उन लोगों के कारण पड़ा, जो पिछली कई सदियों से इस क्षेत्र में रह रहे थे।
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