डीग पैलेस – जाटों का केन्द्र 

डीग पैलेस – जाटों का केन्द्र 

राजपूत और मराठा योद्धा तो अपने पराक्रम के लिए मशहूर हैं ही । उन्होंने भारत के पश्चिमी क्षेत्र में अपने राजवंश स्थापित किए और उन पर शासन किया।। जाट भी कोई कम नहीं थे। राजस्थान में भरतपुर से 35 किलो मीटर दूर एक पैलेस-परिसर है जो 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट राजवंश के उत्थान का केंद्र रहा है। है।डीग पैलेस शिल्पकारी का अद्भुत नमूना तो है ही साथ ही जाट समुदाय के उत्थान में भी इसकी ख़ास जगह है।

डीग पैलेस की वास्तुकला असामान्य और पेचीदा है | विकिमीडिया कॉमन्स

जब मुग़लों की सत्ता कमज़ोर पड़ने लगी थी, तब जयपुर की सीमा से लगे इलाक़े में रहनेवाले जाट खेतीबाड़ी भी कम ही करते थे। लेकिन उन्होंने मुग़लों की सत्ता के क़िलाफ़ बग़ावत का झंडा बुलंद कर दिया था। उठापटक के उस दौर में, बदन सिंह ने ताक़त के बल पर, सन 1722 में, डीग में अपनी हुकूमत क़ायम करली थी और वह डीग के पहले ठाकुर बन गए थे। बदन सिंह एक बहादुर योद्धा और कुशल शासक थे। उन्होंने जयपुर के महाराणोओं और हैदराबाद के निज़ाम के साथ गठबंधन करके अपनी हुकूमत क़ायम करली थी। उसके बाद उनके बेटे राजा सूरजमल ( 1707-1763) ने जाट साम्राज्य को फैलाकर बुलंदियों तक पहुंचा दिया।

ठाकुर बदन सिंह के बार में जो बात सबसे कम जानी जाती है वह यह कि वह सौंदर्यता के महान प्रशंसक भी थे। उन्हेंने डीग में एक बहुत बड़ा महल भी बनवाया था जिसे पुराना महल कहा जाता है। उनके बाद उनके उत्तराधिकारियों ने उस जगह पर कई महल , भवन और बाग़ बनवाए, वक़्त के साथ वह बहुत बड़ा महल- परिसर बन गया। राजा सूरजमल ने डीग के बजाय भरतपुर को जाट राजवंश की राजधानी बना लिया लेकिन डीग सन 1947 तक ,भरतपुर राज-परिवार के लिए गर्मी के मौसम की आरामगाह बना रहा।

राजा सूरज मल | विकिमीडिया कॉमन्स

डीग पैलेस-परिसर दोनों तरफ़, दो बड़े तालाबं से घिरा है । एक तरफ़ गोपाल सागर और दूसरी तरफ़ रूप सागर है। महल,बाग़ और भवन बीच मे बने हैं। परिसर को ठंडा रखने की पूरी व्यवस्था की गई है। इसी वजह से गर्मियों में भी महल ठंडे रहते हैं।पैलेस-परिसर में सबसे आकर्षक भवन है… गोपाल भवन और दो अन्य भवन हैं…जिनके नाम बारिश के दो महीनों यानी सावन और भादव पर ऱखे गए हैं।

डीग पैलेस की शिल्पकारी की विशेषता उसके भवन ही हैं। यानी गोपाल भवन, सूरज भवन, किशन भवन, नंद भवन,केशव भवन और हरदेव भवन। केशव भवन, बारिश के मौसम के लिए है जो रूप सागर तालाब के किनारे पर बना है।बताया जाता है कि तालाब से हौज़ों में पानी भरने के लिए बैलों की मदद ली जाती थी। हौज़ो की दिवीरों में कई फ़व्वारे निकलते थे। होली के अवसर पर तालाब की दिवारों के छेदों में रंग भर दिए जाते थे। पाइपों के ज़रिए जो पानी आता था उसमें से निकलते रंग इंद्रधनुषी फ़व्वारों की तरह लगते थे।

होली के दौरान जलाशय की दीवार के चुटीले में रंगों के पाउच डाले गए थे। | विकिमीडिया कॉमन्स

डीग में आपको मुग़ल के महलों से से उखाड़कर लाए गए हिस्से भी मिलेंगे। संगमरमर का सुंदर एक झूला है जो बादशाह जहांगीर ने बनवाया था। इसे राजा सूरजमल आगरा से लाए थे जो यहां युद्ध में जीती हुई ट्राफ़ी की तरह रखा है। राजा जवाहर सिंह भी संगमरमर के कई फ़व्वारे और टंकियां आगरा के क़िले से उखाड़कर लाए थे। सन 1764 में वह आगरा क़िले से काले संगमरमर का एक तख़्त भी लूटकर लाए थे जो बादशाह अकबर या जहांगीर में से किसी का था। जो अब गोपाल भवन के सामने रखा हुआ है।

अज भी होली के अवसर पर डीग के महल और फ़व्वारे उत्सव के माहौल में जीवित हो उठते हैं। अब राजस्थान सरकार “डीग होली महत्सव” का प्रचार प्रसार करती है।

ऐलऐचआई—यात्रा गाइड

राजस्थान में, डीग पैलेस, भरतपुर से 32 किलो मीटर दूर है। सबसे नज़दीक हवाई अड्डा है,पंडित दीन दयाल उपाध्याय हवाई अड्डा है, जो डीग पैलेस से 90 किलो मीटर दूर है। सिर्फ़ 35 किलो मीटर के फ़ासले पर , भरतपुर रेलवे जंक्शन भी है।

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