अशोक का सारनाथ शीर्ष-स्तंभ या लायन कैपिटल भारतीय पुरातत्व विभाग की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है, और देश का प्रतीक चिन्ह भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि यह महत्वपूर्ण खोज जर्मनी में जन्में आई आई टी रुड़की के एक सिविल इंजीनियर ने की थी, जिसे पुरातत्व का कोई ख़ास अनुभव ही नहीं था?
सन 1862 में जर्मनी के हनोवर में जन्में फ़्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल सिविल इंजीनियर और वास्तुकार थे, जिन्हें भारतीय पुरातत्व और कला इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
ओरटेल छोटी उम्र में ही भारत आ गये थे। हालांकि उनके आरंभिक जीवन के बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन कहा जाता है, कि उन्होंने भारत आने से पहले औपचारिक रूप से अपनी जर्मन नागरिकता को छोड़कर ब्रिटेन की नागरिकता हासिल कर ली थी। ओरटेल ने मशहूर थॉमसन कॉलेज ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी , जिसे अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की के नाम से जाना जाता है, जो भारत का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज है। उन्होंने सन 1883 से लेकर सन 1887 तक सहायक अभियंता के तौर पर रेलवे और भवन निर्माण के लिए इंडियन पब्लिक बोर्ड में काम किया। सन 1887 में वह यूरोप वापस चले गए, जहां उन्होंने वास्तुकला का अध्ययन किया। कुछ वर्षों के बाद ओरटेल भारत वापस आ गये, और सन 1892 तक उत्तर-पश्चिमी प्रांतों के लोक निर्माण विभाग में दोबारा काम करने लगे। बाद में उन्हें बर्मा भेज दिया गया।
ओरटेल के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ सन 1904 में आया। 19वीं सदी के बाद से भारत में पुरातत्व का काम ज़ोर पकड़ने लगा था। पुरातत्व के महत्व की जिन अहम जगहों की शिनाख़्त की गई थी, उनमें से एक सारनाथ था, जिसकी प्राचीन भारत में एक महत्वपूर्ण जगह थी। यह बौद्ध समुदाय के लोगों के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थान था, जो सीधे तौर पर गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ा हुआ था, क्योंकि यहीं से उन्होंने 528 ई.पू में अपना पहला धर्मोपदेश देकर धम्म (धर्म) की यात्रा शुरू की थी। बौद्ध धर्म के पतन के बाद, ज़्यादातर स्मारक लंबे समय तक ज़मीन में दबे रह गये थे।
19वीं सदी की शुरुआत में सारनाथ ने उन विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना शुरू किया, जो मानते थे, कि यहां प्राचीन काल के महत्वपूर्ण अवशेष मिलने की संभावना हो सकती है। भारत के पहले सर्वेयर जनरल कॉलिन मैकेंज़ी ने पहली बार सन 1815 में इस स्थान की खोज की। इसके बाद सन 1835-36 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक अलेक्ज़ेंडर कनिंघम और फिर कुछ अन्य पुरातत्वविदों ने सारनाथ में खुदाई करवाई।
सन 1903 में, बनारस में काम करने के दौरान ओरटेल को सारनाथ में खुदाई करने के लिए सरकार से मंज़ूरी मिल गई, और उन्होंने पुरातत्व विभाग की सहायता से सन 1904-05 की सर्दियों में खुदाई शुरू करवाई।
खुदाई में कुछ महत्वपूर्ण चीज़ें मिलीं। खुदाई के दौरान 41 शिलालेखों के साथ लगभग 476 मूर्तियों और वास्तुकला के अवशेष मिले। खुदाई में मुख्य मंदिर, कुषाण वंश के राजा कनिष्क के समय के बोधिसत्व की एक आकृति, एक संघराम (मठ) की नींव, राजा अश्वघोष का एक शिलालेख, बौद्ध और हिंदू देवताओं की कई छवियां और अशोक का स्तंभ मिला जिस पर उसका फ़रमान लिखा हुआ था।
संभवतः सबसे महत्वपूर्ण खोज लायन कैपिटल था। मूल रुप से ये यहां मिले अशोक स्तंभ के शीर्ष पर रखा हुआ था। यह उन स्तंभों में से है, जिसे तीसरी सदी ई.पू. मौर्य राजा अशोक ने बनवाया था। लायन कैपिटल अशोक के बचे रह गये सात शीर्ष-स्तंभों में से एक है । यह शीर्ष-स्तंभ पत्थर के एक बड़े धर्म-चक्र का आधार होता था, जिसमें 32 तीलियां लगी हुई थीं । ये टूटी-फूटी हालत में मिला था। 7 फ़ुट ऊंचे स्तंभ के शीर्ष पर चार आलीशान शेरों के मुंहवाली एक मूर्ति है। यह शेर एक दूसरे के आगे पीछे खड़े हुए हैं। ये शेर, शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गर्व के प्रतीक हैं। शेर शीर्ष फ़लक पर बने हैं। उस फलक पर घोड़े, हाथी, सिंह और एक बैल की आकृति बनी हुई है। हर आकृति को 24 तीलियों वाला धर्मचक्र अलग-थलग करता है।
यह धमेख स्तूप से थोड़ी दूरी ज़मीन में दबा हुआ मिला था। अशोक स्तंभ के टुकड़े तीन खंडों में पास में ही मिले थे। सारनाथ का स्तंभ-शीर्ष अशोक के स्तंभ शीर्षों में सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि अन्य की तुलना में इसे बहुत सुंदर तरीक़े से बनाया गया है। आज भी सारनाथ संग्रहालय में अशोक स्तंभ और शीर्ष-स्तंभ अपनी मूल स्थिति में मौजूद हैं।
अफ़सोस की बात है, कि ओरटेल केवल एक बार ही सारनाथ में खुदाई करवा सके। सन 1905 में उनका आगरा तबादला हो गया और सर्दियों के दौरान संयुक्त प्रांतों में अकाल के कारण स्थानीय सरकार ने उन्हें सारनाथ में खुदाई करने की अनुमति नहीं दी। बाद में यानी सन 1907 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक जॉन मार्शल ने सारनाथ में खुदाई करवाई ।
ओरटेल ने सारनाथ में जो खुदाई करवाई थी, उसे सबसे प्रमुख उत्खननों में से एक माना जाता है। विद्वान बी.सी. भट्टाचार्य लिखते हैं, “ओरटेल की खुदाई ने सारनाथ के शोध कार्य के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। यहां उनकी अद्भुत खोज के लिए दुनिया उनकी क़र्ज़दार है।”
ओरटेल भारत में तीन दशकों से अधिक समय तक रहे। सारनाथ की खुदाई के अलावा उन्होंने चौथी से बारहवीं शताब्दी की कई छवियों पर लोगों का ध्यान दिलाया। कहा जाता है, कि ओरटेल, लोक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद सन 1921 में वापस इंग्लैंड चले गए और वहां उन्होंने भारत के बारे में व्याख्यान दिये। कहा जाता है, कि उन्होंने अपने घर का नाम “सारनाथ” रखा था। यह भी कहा जाता है, कि उन्होंने जमा की गई कई कलाकृतियाँ और तस्वीरें पुरातत्व और मानव विज्ञान संग्रहालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय को दान की थीं।
उत्खनन के दौरान मिला स्तंभ-शीर्ष यानी लायन कैपिटल, आज़ादी के बाद भारत का राज्य प्रतीक चिन्ह बना, लेकिन दुर्भाग्यवश, ओरटेल को भूला दिया गया है।
सन 1904 में सरकार ने, खुदाई के दौरान मिले बेशक़ीमती अवशेषों को संरक्षित करने के लिए सारनाथ में खुदाई-स्थल के पास ही एक संग्रहालय बनाने का फ़ैसला किया था, जो सन 1910 में बनकर तैयार हुआ। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सबसे पुराना साइट संग्रहालय है। आज, इसमें सारनाथ में खुदाई में मिली हज़ारों मूर्तियां और कलाकृतियां देखी जा सकती हैं।
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